प्रश्न - *दी, तत्वदृष्टि कैसे विकसित करें? मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय भाई, सात दिन तत्व दृष्टि साधना कीजिये। निर्देशित कल्पना के आधार ध्यान कीजिये और गहराई से इसी पर चिंतन करके अपना दृष्टिकोण/नज़रिया उस दिन का तय कीजिये। एक तरह का निर्देशित विचारो का चश्मा लगाइए।
रंगीन चश्मे से दुनियाँ रंगीन दिखती है, जैसा नज़रिया तय करेंगे वैसे नज़ारे दिखने लगेंगे।
*नूतन दृष्टि-योग दृष्टि-तत्व दृष्टि साधना*
चिंता न करें कोई व्रत वगैरह नहीं रहना है। केवल 7 दिन लगातार निर्देशित दृष्टि साधना करनी है वो भी भावात्मक और विचारों से युक्त। रविवार से रविवार तक यह साधना चलेगी। आठवें दिन प्रथम दिन वाला ध्यान केवल दोपहर 12 बजे तक दोहराना होगा।
बिस्तर से उठते ही नेत्र को सबसे पहले अपने हाथ पर केंद्रित कीजिये। भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद दीजिये। फिंर धरती माता को प्रणाम करके ...
प्रथम दिन 👉🏼ईश्वर का प्रकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस प्रकाश की किरण(आत्मा) को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही प्रकाश की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा के प्रकाश का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
द्वितीय दिन 👉🏼 ईश्वर का समुद्र रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद जल(आत्मा) का दोनों भौं के बीच जल की बूँद की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही जल की बूँद की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की बूँद का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
तृतीय दिन 👉🏼 ईश्वर का हवा रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस हवा के प्रवाह को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही हवा(आत्मा) की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा का हवा के प्रवाह का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
चतुर्थ दिन 👉🏼 ईश्वर का अग्नि रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी अग्नि की एक ज्योति(आत्मा) का दोनों भौं के बीच अग्निवत बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही अग्निवत ज्योति की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की अग्निवत कण का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
पांचवा दिन 👉🏼 ईश्वर का आकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिये और अपने मष्तिष्क के भीतर झाँकने का प्रयास कीजिये, विचारो का प्रवाह आकाश तत्व है एसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबके बीच आकाश तत्व को महसूस कीजिये।
छठा दिन 👉🏼 ईश्वर का तेजस्वी किरणों के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए, अपनी आँखों को देखिए और दोनों भौं के बीच तृतीय नेत्र के खुलने का ध्यान/कल्पना कीजिये। स्वयं के चेहरे को देखिए, फ़िर बिना मांस के हड्डियों की खोपड़ी के स्ट्रक्चर को देखिए। फ़िर उन हड्डियों को कैल्शियम के कणों से बना महसूस कीजिये। कल्पना कीजिये कि आपका तृतीय नेत्र X-ray मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और भीतर के हड्डियों के ढाँचे दिखा रहा है।
सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबको X-ray की दृष्टि से देखिए। आज के दिन आपको किसी के वस्त्र, आभूषण, सुंदरता कुछ नहीं देख पाएंगे। सर्वत्र चलते फिरते कंकाल आपके अंदर वैराग्य जगायेंगे।
सातवां दिन 👉🏼 ईश्वर को एक प्रकाशित कण/परमाणु(एटम) के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए। अरे यह क्या जिस परमाणु से मैं बना हूँ उसी से यह दर्पण बना है। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सभी उसी एटम से बने हैं। सजीव तो सजीव और सभी निर्जीव भी तो उसी एटम से बनी है। हम सब तो एक ही तत्व हैं।
🙏🏻 परिणामस्वरूप, सात दिनों में आपको यह अनुभूति होगी कि कण कण में परमात्मा है। हम सब एक हैं। इन 7 दिनों तक चिंता, वासना और कामना समाधि ले लेंगी, वैराग्य जग जाएगा और 7 दिन तक तत्व दृष्टि से जगत देखने का आनन्द मिलेगा 🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय भाई, सात दिन तत्व दृष्टि साधना कीजिये। निर्देशित कल्पना के आधार ध्यान कीजिये और गहराई से इसी पर चिंतन करके अपना दृष्टिकोण/नज़रिया उस दिन का तय कीजिये। एक तरह का निर्देशित विचारो का चश्मा लगाइए।
रंगीन चश्मे से दुनियाँ रंगीन दिखती है, जैसा नज़रिया तय करेंगे वैसे नज़ारे दिखने लगेंगे।
*नूतन दृष्टि-योग दृष्टि-तत्व दृष्टि साधना*
चिंता न करें कोई व्रत वगैरह नहीं रहना है। केवल 7 दिन लगातार निर्देशित दृष्टि साधना करनी है वो भी भावात्मक और विचारों से युक्त। रविवार से रविवार तक यह साधना चलेगी। आठवें दिन प्रथम दिन वाला ध्यान केवल दोपहर 12 बजे तक दोहराना होगा।
बिस्तर से उठते ही नेत्र को सबसे पहले अपने हाथ पर केंद्रित कीजिये। भगवान को 5 चीज़ों के लिए धन्यवाद दीजिये। फिंर धरती माता को प्रणाम करके ...
प्रथम दिन 👉🏼ईश्वर का प्रकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस प्रकाश की किरण(आत्मा) को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही प्रकाश की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा के प्रकाश का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
द्वितीय दिन 👉🏼 ईश्वर का समुद्र रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद जल(आत्मा) का दोनों भौं के बीच जल की बूँद की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही जल की बूँद की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की बूँद का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
तृतीय दिन 👉🏼 ईश्वर का हवा रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस हवा के प्रवाह को दोनों भौं के बीच प्रकाश की बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही हवा(आत्मा) की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा का हवा के प्रवाह का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
चतुर्थ दिन 👉🏼 ईश्वर का अग्नि रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए और उस परमात्मा रूपी अग्नि की एक ज्योति(आत्मा) का दोनों भौं के बीच अग्निवत बिंदी/तिलक जैसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक प्रत्येक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबमें वही अग्निवत ज्योति की कल्पना दोनों भौं के बीच मष्तिष्क में कीजिये। परमात्मा की अग्निवत कण का आभास/कल्पना वृक्षों में पत्तो के बीच मे कीजिये।
पांचवा दिन 👉🏼 ईश्वर का आकाश रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिये और अपने मष्तिष्क के भीतर झाँकने का प्रयास कीजिये, विचारो का प्रवाह आकाश तत्व है एसा ध्यान/कल्पना कीजिये। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबके बीच आकाश तत्व को महसूस कीजिये।
छठा दिन 👉🏼 ईश्वर का तेजस्वी किरणों के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए, अपनी आँखों को देखिए और दोनों भौं के बीच तृतीय नेत्र के खुलने का ध्यान/कल्पना कीजिये। स्वयं के चेहरे को देखिए, फ़िर बिना मांस के हड्डियों की खोपड़ी के स्ट्रक्चर को देखिए। फ़िर उन हड्डियों को कैल्शियम के कणों से बना महसूस कीजिये। कल्पना कीजिये कि आपका तृतीय नेत्र X-ray मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है और भीतर के हड्डियों के ढाँचे दिखा रहा है।
सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सबको X-ray की दृष्टि से देखिए। आज के दिन आपको किसी के वस्त्र, आभूषण, सुंदरता कुछ नहीं देख पाएंगे। सर्वत्र चलते फिरते कंकाल आपके अंदर वैराग्य जगायेंगे।
सातवां दिन 👉🏼 ईश्वर को एक प्रकाशित कण/परमाणु(एटम) के रूप में ध्यान कीजिये। दर्पण में अपना चेहरा देखिए। अरे यह क्या जिस परमाणु से मैं बना हूँ उसी से यह दर्पण बना है। सुबह से लेकर शाम तक मनुष्य, जीव, पशु, पक्षी, वनस्पति सभी उसी एटम से बने हैं। सजीव तो सजीव और सभी निर्जीव भी तो उसी एटम से बनी है। हम सब तो एक ही तत्व हैं।
🙏🏻 परिणामस्वरूप, सात दिनों में आपको यह अनुभूति होगी कि कण कण में परमात्मा है। हम सब एक हैं। इन 7 दिनों तक चिंता, वासना और कामना समाधि ले लेंगी, वैराग्य जग जाएगा और 7 दिन तक तत्व दृष्टि से जगत देखने का आनन्द मिलेगा 🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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