प्रश्न - *दी, महामृत्युंजय मंन्त्र के बारे में मार्गदर्शन करें*
उत्तर - आत्मीय बहन,
महामृत्युंजय मन्त्र के बारे में पुराणों और शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। महामृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव को प्रसन्न करने का मन्त्र है।
👉🏼 *||महामृत्युंजय मन्त्र||*
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
*महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ*
*त्र्यंबकम्* = त्रि-नेत्रों वाले शिव शंकर को
*यजामहे* = हम उन्हें पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय हैं, हम उनको अपनी आत्मा में धारण करते हैं।
*सुगंधिम* = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
*पुष्टिः* = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
*वर्धनम्*= वह जो पोषण करे शक्ति दे, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक हो; जो हर्षित करे है, आनन्दित करे, स्वास्थ्य प्रदान करे
*उर्वारुकम्* = ककड़ी (कर्मकारक)
*इव* = जैसे, इस तरह
*बन्धनात्* = भव बन्धनों/रोगों के बंधनों का अंत कर दें
*मृत्योः* = मृत्यु के भय से
*मुक्षीय* = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
*मामृतात्* = अमरता, मोक्ष दें
*महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं।* जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 करोड़ देवताओं के प्रतिक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है
👉🏼 *||लघु मृत्युंजय मंन्त्र||*
ॐ जूँ स: माम् पालय पालय स: जूँ ॐ
(यदि किसी और के लिए जपना हो तो <माम्> की जगह <उस व्यक्ति का नाम> बोलें। यदि पति सन्तान इत्यादि के जपना हो तो <माम्> के साथ सम्बन्ध बोलें उदाहरण <माम् पति>)
👉🏼 *कालजयी और रोगनिवारक महामृत्युंजय मन्त्र* (इसमें सम्पुट लगाकर मंत्र जपा जाता है)
ॐ हौं जूं सः. ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ स्वः भुवः भू: ॐ सः जूं हौं ॐ।
👉🏼 *मृत संजीवनी महामृत्युंजय गायत्री मंत्र?*
भारतीय ऋषि-मुनियों ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है। इस मंत्र के जाप से मुर्दा को भी जिंदा करना संभव है बशर्ते गुरू से इसका सही प्रयोग सीख लिया जाए। हालांकि भारतीय ऋषि-मुनि इस मंत्र के जाप के लिए स्पष्ट रूप से मना भी करते हैं।
*इसके जप की ऊर्जा सब सहन नहीं कर पाते। अतः जिन्होंने सवा लाख गायत्री का अनुष्ठान किया हो, केवल वही इसे जपने का अधिकार रखते हैं।*
*महामृत्युंजय गायत्री (मृत संजीवनी) मंत्र*
ऊँ हौं जूं स:
ऊँ भूर्भुव: स्व:
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे
ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं
ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम
ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि
ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान
ऊँ धियो योन: प्रचोदयात
ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू:
ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ
*कब हुयी महामृत्युंजय जाप की उत्पत्ति*
एक बार ऋषि मृकण्डु और उन पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की और भगवान शिव ने भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें दो विकल्प दिए. जिसमें अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र...
जिसमें अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र में से एक का चयन करना था। मृकण्डु ने पहले विकल्प का चयन किया और उन्हें मार्कंडेय नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका जीवन काल मात्र 16 वर्ष था।
मृकण्डु ने पहला विकल्प चुना और उन्हें मार्कंडेय की प्राप्ति हुई जिसका जीवन काल मात्र 16 वर्ष था.जब मार्कंडेय को अपने भाग्य के बारे में पता चला, तो उसने शिवलिंग के सामने तपस्या करना शुरू की। जब मृत्यु का समय आया तो स्वयं यम भी उसे इस मंन्त्र के प्रभाव के कारण न ले जा सके और भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद स्वरूप सौ वर्ष की आयु औऱ रोगमुक्त काया प्रदान किया।
रुद्राक्ष की माला और कम्बल का आसन जप के लिए सर्वोत्तम है। जप करते वक्त साधक का मुंह दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए। अनुष्ठान के दौरान दो या एक वक्त सात्विक अन्न या फलाहार ही लें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन,
महामृत्युंजय मन्त्र के बारे में पुराणों और शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि असाध्य रोगों से मुक्ति और अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप किया जाता है। महामृत्युंजय मन्त्र भगवान शिव को प्रसन्न करने का मन्त्र है।
👉🏼 *||महामृत्युंजय मन्त्र||*
ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
*महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ*
*त्र्यंबकम्* = त्रि-नेत्रों वाले शिव शंकर को
*यजामहे* = हम उन्हें पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय हैं, हम उनको अपनी आत्मा में धारण करते हैं।
*सुगंधिम* = मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक)
*पुष्टिः* = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
*वर्धनम्*= वह जो पोषण करे शक्ति दे, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक हो; जो हर्षित करे है, आनन्दित करे, स्वास्थ्य प्रदान करे
*उर्वारुकम्* = ककड़ी (कर्मकारक)
*इव* = जैसे, इस तरह
*बन्धनात्* = भव बन्धनों/रोगों के बंधनों का अंत कर दें
*मृत्योः* = मृत्यु के भय से
*मुक्षीय* = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें
*मामृतात्* = अमरता, मोक्ष दें
*महामृत्युंजय मंत्र के 33 अक्षर हैं।* जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 करोड़ देवताओं के प्रतिक हैं। उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस कोटि देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है
👉🏼 *||लघु मृत्युंजय मंन्त्र||*
ॐ जूँ स: माम् पालय पालय स: जूँ ॐ
(यदि किसी और के लिए जपना हो तो <माम्> की जगह <उस व्यक्ति का नाम> बोलें। यदि पति सन्तान इत्यादि के जपना हो तो <माम्> के साथ सम्बन्ध बोलें उदाहरण <माम् पति>)
👉🏼 *कालजयी और रोगनिवारक महामृत्युंजय मन्त्र* (इसमें सम्पुट लगाकर मंत्र जपा जाता है)
ॐ हौं जूं सः. ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ॐ स्वः भुवः भू: ॐ सः जूं हौं ॐ।
👉🏼 *मृत संजीवनी महामृत्युंजय गायत्री मंत्र?*
भारतीय ऋषि-मुनियों ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है। इस मंत्र के जाप से मुर्दा को भी जिंदा करना संभव है बशर्ते गुरू से इसका सही प्रयोग सीख लिया जाए। हालांकि भारतीय ऋषि-मुनि इस मंत्र के जाप के लिए स्पष्ट रूप से मना भी करते हैं।
*इसके जप की ऊर्जा सब सहन नहीं कर पाते। अतः जिन्होंने सवा लाख गायत्री का अनुष्ठान किया हो, केवल वही इसे जपने का अधिकार रखते हैं।*
*महामृत्युंजय गायत्री (मृत संजीवनी) मंत्र*
ऊँ हौं जूं स:
ऊँ भूर्भुव: स्व:
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे
ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं
ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम
ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि
ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान
ऊँ धियो योन: प्रचोदयात
ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू:
ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ
*कब हुयी महामृत्युंजय जाप की उत्पत्ति*
एक बार ऋषि मृकण्डु और उन पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति के लिए तपस्या की और भगवान शिव ने भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें दो विकल्प दिए. जिसमें अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र...
जिसमें अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र में से एक का चयन करना था। मृकण्डु ने पहले विकल्प का चयन किया और उन्हें मार्कंडेय नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका जीवन काल मात्र 16 वर्ष था।
मृकण्डु ने पहला विकल्प चुना और उन्हें मार्कंडेय की प्राप्ति हुई जिसका जीवन काल मात्र 16 वर्ष था.जब मार्कंडेय को अपने भाग्य के बारे में पता चला, तो उसने शिवलिंग के सामने तपस्या करना शुरू की। जब मृत्यु का समय आया तो स्वयं यम भी उसे इस मंन्त्र के प्रभाव के कारण न ले जा सके और भगवान शिव ने उसे आशीर्वाद स्वरूप सौ वर्ष की आयु औऱ रोगमुक्त काया प्रदान किया।
रुद्राक्ष की माला और कम्बल का आसन जप के लिए सर्वोत्तम है। जप करते वक्त साधक का मुंह दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ होना चाहिए। अनुष्ठान के दौरान दो या एक वक्त सात्विक अन्न या फलाहार ही लें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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