प्रश्न - *दी, सेवा, साधना,संयम और स्वाध्याय को जीवन में उतारते हुए मिशन से किस प्रकार जुड़ेंगे और आत्म प्रगति पर अग्रसर होंगे???*🙏🙏🙏
उत्तर - आत्मीय बहन, अध्यात्म को अगर एक कुर्सी माने तो सेवा, साधना,संयम और स्वाध्याय यह चार उसके पाए हैं। एक के बिना भी कुर्सी पर बैठना मुश्किल है।
👉🏼 *सेवा* - सबसे पहले बहन, यह समझो कि तुम हो कौन? क्या यह शरीर या आत्मा? गाड़ी हो या ड्राइवर? परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद आत्मा शरीर रूपी बोतल में भरी है। ऐसे ही सभी जीव वनस्पति में जहां भी जीवन है वो भी तुम्हारी तरह एक बूँद है। जो उसी परमात्मा का अंश है। जब यह भाव गहरा हो जाएगा और अच्छे से हृदय और मन में अंकित हो जाएगा। बहन कण कण में तुम्हे परमात्मा नजर आएगा। फिंर प्राणिमात्र की सेवा तुम्हें परमात्मा की सेवा नजर आएगी। *सभी अपने लगेंगे, आत्मियता विस्तार और सेवा स्वतः होती जाएगी।*
जब यह क्लियर हो जाये तब ही मिशन क्लियर होगा। मिशन अर्थात जाना कहाँ है? किस सफर में निकलना है?
हमारे गायत्री परिवार का अगर एक वाक्य में विजन और मिशन बताना हो तो बड़ा आसान है कहना - *मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण* । लेकिन जितना कहने में आसान है उतना ही करने में कठिन। देवता बनना कठिन है और लेवता(भिखारी) बनना बड़ा सरल है।
👉🏼 *संयम* - बड़ा आसान है कहना कि भगवान को पाना है तो *मन को निर्मल कर लो और स्वभाव को सरल कर लो*। लेकिन सरल और निर्मल बनना ही तो कठिन है। सफेद कपड़ा गन्दा करना आसान है, मगर उसे पूरे दिन साफ़ और दाग धब्बे मुक्त रखने के लिए कितनी सतर्कता आवश्यक है यह तो सब जानते है। क्या इससे ज्यादा सतर्कता मन की उज्जवलता, निर्मलता और स्वभाव की सादगी के लिए नहीं रखनी पड़ेगी। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। चैतन्य जागरूक रहना पड़ेगा। *स्वयं के प्रति यह चैतन्यता और जागरूकता ही संयम है।*
👉🏼 *साधना* - बहन उपासना ईश्वर की जाती है और साधना स्वयं की जाती है। अपने को साधकर देवता बनाना, दोष दुर्गुणों को उखाड़कर फेंकना। आत्मनिरीक्षण स्वयं का करना। आत्मशोधन कर स्वयं की चेतना को निखारना।
👉🏼 *स्वाध्याय* - *स्व* अर्थात स्वयं का पूर्ण अध्ययन स्वाध्याय है। इसमें सहायक है ध्यान एवं अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय। ध्यान की गहराई अंतर्जगत से जोड़ेगी और स्वयं का परिचय देगी। अच्छी पुस्तकें जीवंत देवता है, इनके स्वाध्याय और सान्निध्य से आत्मा में तत्काल प्रकाश पहुंचता है। यह वह जल है जो बिना साबुन के व्यक्तित्व में चढ़े मल को धोता है। मनुष्य में देवत्व उभारने में सहायक है।
🙏🏻 सेना में भर्ती होने के लिए सैनिक जैसा बलिष्ठ और शारिरिक योग्यता चाहिए। इसी तरह मिशन में सहयोगी होने के लिये सुदृढ़ मानसिक योग्यता चाहिए। सुदृढ़ मानसिक योग्यता के लिए गायत्री जप-ध्यान-योग-प्राणायाम और स्वाध्याय चाहिए। मानसिक सदृढता के साथ स्वयं को मिशन से जोड़िये। *करिष्ये वचनम तव* की भावना से स्वयं को गुरु को समर्पित कर दीजिये और उनके अनुसाशन में जीवन जिये। स्वयं दीप बन जलें, जीवन ऊर्जा से भरपूर हो जाये और अपनी आत्मा के प्रकाश से दूसरों में यह ऊर्जा प्रवाहित करके उन्हें भी अध्यात्म पथ पर चलाएं और उन्हें इसी मिशन से जोड़ें। स्वयं दीप बनकर से अनेकों दीप जलाते रहें।🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, अध्यात्म को अगर एक कुर्सी माने तो सेवा, साधना,संयम और स्वाध्याय यह चार उसके पाए हैं। एक के बिना भी कुर्सी पर बैठना मुश्किल है।
👉🏼 *सेवा* - सबसे पहले बहन, यह समझो कि तुम हो कौन? क्या यह शरीर या आत्मा? गाड़ी हो या ड्राइवर? परमात्मा रूपी समुद्र की एक बूंद आत्मा शरीर रूपी बोतल में भरी है। ऐसे ही सभी जीव वनस्पति में जहां भी जीवन है वो भी तुम्हारी तरह एक बूँद है। जो उसी परमात्मा का अंश है। जब यह भाव गहरा हो जाएगा और अच्छे से हृदय और मन में अंकित हो जाएगा। बहन कण कण में तुम्हे परमात्मा नजर आएगा। फिंर प्राणिमात्र की सेवा तुम्हें परमात्मा की सेवा नजर आएगी। *सभी अपने लगेंगे, आत्मियता विस्तार और सेवा स्वतः होती जाएगी।*
जब यह क्लियर हो जाये तब ही मिशन क्लियर होगा। मिशन अर्थात जाना कहाँ है? किस सफर में निकलना है?
हमारे गायत्री परिवार का अगर एक वाक्य में विजन और मिशन बताना हो तो बड़ा आसान है कहना - *मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण* । लेकिन जितना कहने में आसान है उतना ही करने में कठिन। देवता बनना कठिन है और लेवता(भिखारी) बनना बड़ा सरल है।
👉🏼 *संयम* - बड़ा आसान है कहना कि भगवान को पाना है तो *मन को निर्मल कर लो और स्वभाव को सरल कर लो*। लेकिन सरल और निर्मल बनना ही तो कठिन है। सफेद कपड़ा गन्दा करना आसान है, मगर उसे पूरे दिन साफ़ और दाग धब्बे मुक्त रखने के लिए कितनी सतर्कता आवश्यक है यह तो सब जानते है। क्या इससे ज्यादा सतर्कता मन की उज्जवलता, निर्मलता और स्वभाव की सादगी के लिए नहीं रखनी पड़ेगी। सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। चैतन्य जागरूक रहना पड़ेगा। *स्वयं के प्रति यह चैतन्यता और जागरूकता ही संयम है।*
👉🏼 *साधना* - बहन उपासना ईश्वर की जाती है और साधना स्वयं की जाती है। अपने को साधकर देवता बनाना, दोष दुर्गुणों को उखाड़कर फेंकना। आत्मनिरीक्षण स्वयं का करना। आत्मशोधन कर स्वयं की चेतना को निखारना।
👉🏼 *स्वाध्याय* - *स्व* अर्थात स्वयं का पूर्ण अध्ययन स्वाध्याय है। इसमें सहायक है ध्यान एवं अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय। ध्यान की गहराई अंतर्जगत से जोड़ेगी और स्वयं का परिचय देगी। अच्छी पुस्तकें जीवंत देवता है, इनके स्वाध्याय और सान्निध्य से आत्मा में तत्काल प्रकाश पहुंचता है। यह वह जल है जो बिना साबुन के व्यक्तित्व में चढ़े मल को धोता है। मनुष्य में देवत्व उभारने में सहायक है।
🙏🏻 सेना में भर्ती होने के लिए सैनिक जैसा बलिष्ठ और शारिरिक योग्यता चाहिए। इसी तरह मिशन में सहयोगी होने के लिये सुदृढ़ मानसिक योग्यता चाहिए। सुदृढ़ मानसिक योग्यता के लिए गायत्री जप-ध्यान-योग-प्राणायाम और स्वाध्याय चाहिए। मानसिक सदृढता के साथ स्वयं को मिशन से जोड़िये। *करिष्ये वचनम तव* की भावना से स्वयं को गुरु को समर्पित कर दीजिये और उनके अनुसाशन में जीवन जिये। स्वयं दीप बन जलें, जीवन ऊर्जा से भरपूर हो जाये और अपनी आत्मा के प्रकाश से दूसरों में यह ऊर्जा प्रवाहित करके उन्हें भी अध्यात्म पथ पर चलाएं और उन्हें इसी मिशन से जोड़ें। स्वयं दीप बनकर से अनेकों दीप जलाते रहें।🙏🏻
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment