Tuesday, 23 April 2019

प्रश्न - *दी, पढ़ने में मन नहीं लगता क्या करें? मन भटकता है क्या करें?*

प्रश्न - *दी, पढ़ने में मन नहीं लगता क्या करें? मन भटकता है क्या करें?*

उत्तर- बेटे, दुनियाँ में ऐसा कोई इंजेक्शन, दवाई या चूरण नहीं बना है जिसके सेवन से पढ़ने में मन लग जाये।

मैं तुम्हें कितना भी ज्ञान दे दूँ कि पढ़ना कितना जरूरी है, इससे भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला, क्योंकि पढ़ाई का महत्व जानती हो तभी तो प्रश्न पूंछ रही हो।

गूगल में या किसी के पढ़ाई करने की हज़ारों तकनीक बताने से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, क्योंकि कुछ दिन पढ़ोगी उसके बाद फ़िर वही मन का भटकाव तुम्हें परेशान करेगा।

👉🏼पेड़ काटने के लिए कुल्हाड़ी में धार होगी, तो लकड़हारा कम थकेगा और ज्यादा आउटपुट दे सकेगा।

इसी तरह बुद्धि में धार देने के लिए नित्य आधे घण्टे ध्यान करना शुरू कर दो। आधे घण्टे गायत्री मंत्र जप शुरू कर दो। सोने से पहले एक पैराग्राफ स्वयं को मोटिवेट करने वाला साहित्य पढ़ लो। सुबह उठते ही भगवान को धन्यवाद देकर स्वयं को ढेर सारा अच्छा अच्छा आशिर्वाद दो।

👉🏼दो रँग की टॉफी ले लो या दो रँग के कंकड़ ले लो, एक को नकारात्मक/भटकने वाले विचार का प्रतीक मान लो और दूसरे को सकारात्मक/दिशानिर्देश वाले विचार का प्रतीक मानो। दो कटोरी रख लो। पढ़ने बैठो, ज्यों ही मन भटके ब्लैक टॉफी/कंकड़ भटकने वाली कटोरी में डाल दो। कोई पढ़ाई में मदद करने वाला विचार आये तो सफ़ेद टॉफी/कंकड़ सकारात्मक कटोरी में डाल दो।

यह प्रक्रिया यह तय करेगी कि तुम मन में उठ रहे विचारो के प्रति चैतन्य जागरूक हो। एक दिन ऐसा आएगा कि नकारात्मक विचार वाला कटोरा खाली रह जायेगा और सकारात्मक विचारों वाला कटोरा भर जाएगा। तुम्हारे मन पर तुम्हारा नियन्त्रण बढ़ता जाएगा।

👉🏼 एक पेपर लो और उसमें दो कॉलम बनाओ

एक सफल व्यक्ति की आदत का कॉलम और दूसरा असफ़ल व्यक्ति की आदत का कॉलम

दूसरे पेपर में एक सफल व्यक्ति की नापसंद कार्य का कॉलम और दूसरा असफ़ल व्यक्ति की नापसंद कार्य का कॉलम

उदाहरण - सफल व्यक्ति सुबह उठता है, योग-व्यायाम करता है, अपना एक भी क्षण व्यर्थ नहीं करता।

असफ़ल व्यक्ति लेट उठता है, योग-व्यायाम में आलस्य करता है, खूब समय बर्बाद करता है।

अब जब चेकलिस्ट बन जाये तो अपनी आदतों को लिस्ट से मैच करवा लो। बिना ज्योतिष के स्वयं जान लो कि भविष्य में तुम सफल होगी या असफ़ल। तुम्हारी आदतें यदि सफल व्यक्ति के कॉलम से मैच खाती होंगी और वो तुम हर कार्य कर रही हो जो असफ़ल आदमी की नापसंद है - जैसे सुबह उठना, व्यायाम करना, लक्ष्य पर केंद्रित होना, समय प्रबंधन तो तुम्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।

👉🏼 हम अपना भविष्य डायरेक्ट नहीं बदल सकते, लेकिन हम अपने आदतें बदल सकते हैं, जो हमारा भविष्य स्वतः बदल देगी। अच्छी आदतें 👉🏼 अच्छा भविष्य
बुरी आदतें 👉🏼 बुरा भविष्य

👉🏼 स्वयं की अध्यापिका स्वयं बनो, स्वयं की गतिविधियों पर नजर रखो, स्वयं के विचारों पर नजर रखो।

👉🏼 क्या तुम्हारी कोई पहचान है? तुम्हारा कोई वजूद है? यदि तुम कहीं किसी प्रोग्राम में पहुंचो तो लोग खड़े होकर तुम्हारा अभिवादन करें... तुम्हें लोग तुम्हारे नाम से जाने...

या चाहती हो कि अमुक की बेटी, अमुक की पत्नी और अमुक की माँ ही तुम्हारी पहचान हो, बेनाम जीवन जीना चाहती हो तो तुम्हारी मृत्यु कभी नहीं होगी। क्योंकि जो नाम कभी जिंदा ही नहीं था लोगों के लिए उसकी भला मौत कैसी? मरेगा वही जो जिंदा होगा। बेनाम-बिना वजूद का जीवन मृत ही है। पराधीन व्यक्ति को जीवन मे सुख की आशा का त्याग कर देना चाहिए। गुलामों को पढ़ने की जरूरत नहीं। मालिक बनने के लिए पढ़ना होगा।

👉🏼 अगर पढ़लिख कर और जीवन से संघर्ष करके स्वयं को स्थापित नहीं कर सकती तो लड़कियों की दुर्गति की पोस्ट न पढ़ना न आगे फ़ारवर्ड करना। क्योंकि वजूद विहीन और अयोग्य लड़की को एक भार की तरह पिता दहेज देकर विदा करता है और पति उम्रभर उसे भार मानकर ही रखता है। उसकी कोई ख्वाइश मान्य नहीं होती।

👉🏼 अगर तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकी, जिससे लोग यह कह सकें कि बेटी हो तो तुम्हारी तरह...तुम्हारे आसपड़ोस का हर माता पिता अपनी बच्चियों के सामने तुम्हारा उदाहरण प्रस्तुत नहीं कर सके...तो समझना तुम वजूद विहीन हो...तुमने स्त्री जाति के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया...कन्या भ्रूण हत्या की एक जिम्मेदार तुम भी हो...कोई माता पिता तुम्हे देखकर जब लड़की पैदा करने से डरेगा तो...कन्या भ्रूण हत्या का पाप तुम पर भी लगेगा...क्योंकि तुम लड़की किसी भी लड़के से कम नहीं यह साबित करने में असफ़ल रही...


👉🏼 इतना मोटिवेशन एक आत्मस्वाभिमानी लड़की के लिए पर्याप्त है। वैसे भी मानसिक गुलामो को हमारे प्रश्नोत्तर की जरूरत नहीं है।

गुरू प्रेरणा से हम सृजन की महाशक्तियों और दिव्य युवाओं के लिए पोस्ट लिखते हैं।

 जो अपने मन से हार गया वो भला जग कैसे जीतेगा?

मन बहुत अच्छा गुलाम और मन बहुत बुरा मालिक है। यदि मन को गुलाम नहीं बना सके तो यह मन तुम्हें औरों के आगे भीख मांगने वाला गुलाम 100% बना देगा।

कभी कभी कठोर शब्द और कड़वे प्रवचन मन को चुभते हैं,
लेकिन इस चुभन से बड़े बड़े नेतृत्व उभरते हैं।
हमेशा मीठी दवा से रोग नहीं ठीक होते,
कड़वी दवाओं से रोग ठीक करने पड़ते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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