🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी (1 से 10)*🔥
१) *यज्ञ, जप-तप और अध्यात्म वृद्धावस्था में किया जाता है,अभी तो युवास्था में कैरियर, गृहस्थी और आनन्द मनाया जाता है*
👉🏼 उत्तर - वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोष के कारण यह चिंतन उपजा है कि अध्यात्म की जरूरत सिर्फ वृद्धावस्था में है। शरीर, मन और आत्मा (body, mind, soul) इन तीनों का अस्तित्व तीनों अवस्थाओं बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था में होता है। श्रीमद्भागवत गीता युद्ध के मैदान में युवा अर्जुन को सुनाई गई थी, किसी आश्रम में बैठे वृद्ध अर्जुन को नहीं। अतः वर्तमान वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन भी इस बात को स्वीकार चुका है कि मनुष्य का सम्पूर्ण स्वास्थ्य और विकास शारिरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति पर निर्भर करता है। बचपन से अध्यात्म से जुड़े, यज्ञ और मंन्त्र जप की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक लाभ समझें और इसे जीवन का अनिवार्य अंग बनाएं। युवावस्था में अध्यात्म दिशा देता है और विज्ञान गति देता है।
२) *क्या यज्ञ सिर्फ कोई शुभ प्रसंग या अवसर हो तो ही किया जाता है?*
👉🏼 उत्तर - जीवन में शुभता लाने की लिए यज्ञ नित्य किया जाना चाहिए। जिस जगह यज्ञ होता है वहाँ पर कॉस्मिक एनर्जी घनीभूत होती है, नकारात्मकता मिटता है। औषधीय गो घृत और मन्त्रयुक्त धूम्र आरोग्य वर्धक और प्राण पर्जन्य की वर्षा करता है। दैनिक यज्ञ छोटे और शुभ अवसर पर बड़े यज्ञ किये जाते हैं।
३) *क्या यज्ञ करना सिर्फ ब्राह्मणों का काम है?*
👉🏼 उत्तर - ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म में रमने वाला और लोकल्याण के लिए जीवन समर्पित करने वाला व्यक्ति। जन्म से सब शूद्र हैं और कर्म से ब्राह्मण बनते हैं। वेदों और पुराणों में कर्म आधारित वर्णव्यवस्था का वर्णन है, जातियां और उपजातियां जन्मगत स्वार्थप्रेरित मनुष्यो की रचना है। यज्ञ में शुद्ध भाव होना जरूरी है, क्योंकि मंन्त्र को प्राणवान शुद्ध भाव ही बनाते है। उपासना-साधना(आत्मकल्याण) बिना आराधना(लोककल्याण) सिद्ध नहीं होता। अतः जब भी यज्ञ करें लोककल्याण के भाव से कर्म से ब्राह्मण बनकर यज्ञ करें।
४) *वर्तमान में हम देख रहे है कि जो यज्ञ कराने आता है,वह बहुत सारे पैसा ले जाता है। मम्मी यज्ञ कराने आये हुए ब्राह्मणदेवता कि हफ्ते की सैलरी पापाके 1 महीने के बराबर होगी।*
👉🏼 उत्तर - शिक्षा हो या चिकित्सा या अध्यात्म या कानून इत्यादि, सभी क्षेत्रों में अच्छे और बुरे व्यक्ति पाए जाते हैं। कोई सेवा भाव से करता है और कोई व्यवसाय भाव से करता है। कोई कार्य अच्छा बुरा नहीं होता, उसे करने वाला व्यक्ति अच्छा या बुरा होता है। अतः आपका वास्ता अच्छे सेवाभावी डॉक्टर से हुआ तो आप सभी डॉक्टर को भगवान मान लेते हो, बुरे से हुआ तो पूरे चिकित्सा क्षेत्र को चोर बोल देते हो। इसी तरह आध्यात्मिक यज्ञ करवाने वाले पुरोहित पर भी राय बनाते हो। कृपया एक बार गायत्री परिवार के सेवाभावी राष्ट्र को जगाने वाले पुरोहित परिजन से यज्ञ करवाइये आपकी राय बदल जाएगी।
५) *यज्ञ से आत्म निर्माण से राष्ट्र निर्माण कैसे संभव है ?*
👉🏼 उत्तर - यज्ञीय प्रेरणाओं को *देवपूजन*- श्रेष्ठता का वरण और भावों की शुद्धि, *संगतिकरण* - संगठन में शक्ति, अच्छी सोच और भली नियत के लोगों का एकजुट होना, *परोपकार का भाव* - समाज से जितना लेना उससे ज्यादा समाज को लौटाना यह तीन यज्ञीय प्रेरणाएं प्रत्येक व्यक्ति अपना ले तो आत्मनिर्माण हो जाएगा, ऐसे व्यक्तियों के समूह जहां हो वहां राष्ट्र निर्माण भी स्वतः हो जाएगा। वर्तमान समस्याओं की जड़ स्वार्थकेन्द्रित विकृत चिंतन और विकृत कर्म है, जिसका एकमात्र समाधान यज्ञीय प्रेरणाओं से युक्त सद्चिन्त और सत्कर्म है। एक यज्ञ एक साथ समस्त जीव-वनस्पतियों-पशु-पक्षियों-मनुष्यों को पोषण देने वाला, पर्यावरण संरक्षक और वातावरण शुद्ध करने वाला है।
६) *यज्ञ से सुसन्तति की प्रप्ति कैसे हो सकती है ?*
👉🏼 उत्तर - नित्य यज्ञ करने से यज्ञीय प्रेरणाएं जीवन मे उतरने लगती है और श्रेष्ठ मनोभावों का निर्माण माता-पिता का होता है। माता-पिता के शरीर से बच्चे का शरीर और माता-पिता की मनोभूमि-चिंतन से बच्चे की मनोभूमि-चिंतन का निर्माण होता है। यग्योपैथी से गर्भ मजबूत होता है और विभिन्न बीमारियों का इलाज और आध्यात्मिक टीका करण भी होता है। माता पिता के श्रेष्ठ मनोभूमि से गर्भस्थ शिशु की श्रेष्ठ मनोभूमि, चरित्र-चिंतन-व्यवहार-गुण-कर्म-स्वभाव बनता है, ऐसे सन्तान को ही सुसन्तति कहते है।
७) *यज्ञ-हवन से घर मे सुख शांति आती है, सुखों की वृद्धि होती है ?*
👉🏼 उत्तर - यज्ञ में जैसे मन्त्रों का उच्चारण होता है, वैसे मनोभावों और क्षमता का यज्ञकर्ता में आगमन होने लगता है। उसकी सोचने की, कार्य करने की, जॉब- व्यवसाय की कुशलता बढ़ जाती है। मानसिक प्रबंधन से घर और व्यवसाय का कुशलता पूर्वक प्रबंधन करने लगता है। घर में सबको सद्बुद्धि मिलती है, सब निरोगी और प्रशन्न मन से रहते हैं, प्रेम सहकार का वातावरण विनिर्मित होता है, घर मे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। जिसके कारण घर मे सुख शांति होती है, और धन-धान्य और सुखों की वृद्धि होती है।
८) *अग्निहोत्र हम रोज करते है ?क्या यज्ञ करना जरूरी है ? अगर हाँ तो कब और कैसे ?*
उत्तर - यज्ञ के कई प्रकार है, यज्ञ के कई मंन्त्र है, यज्ञ के कई प्रकार के कुंड होते हैं, यज्ञ में कई प्रकार की समिधा उपयोग होती है, यज्ञ में कई प्रकार की हवन सामग्री उपयोग होती है, यज्ञ एक कुंडीय से लेकर करोड़ो कुंडीय तक हो सकता है। यज्ञ एक बहुत बड़ी व्यवस्था है, उसका एक अंश/प्रकार अग्निहोत्र है। अग्निहोत्र दैनिक आध्यात्मिक ऊर्जा के निर्माण में सक्षम है। लेकिन बड़े स्तर पर लाभ चाहिए तो बड़े यज्ञ कीजिये। रोगोपचार चाहिए तो यग्योपैथी अपनाइए। किस उद्देश्य और किस प्रकार के लाभ के लिए यज्ञ करने जा रहे हैं, उस पर निर्भर करता है कि यज्ञ में कौन सा कुंड, कौन सा मंन्त्र, कौन सी समिधा, कौन सी हवन सामग्री इत्यादि उपयोग होगी।
९) *बिना अच्छा मुर्हत देखे बिना हम सब यज्ञ कैसे करे ?*
👉🏼 उत्तर - दैनिक यज्ञ में मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। एक कुंडीय यज्ञ यदि घर की छत के नीचे या यज्ञ मंडप या मन्दिर में यज्ञ कर रहे तो मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है। खुली जगह और एक से अधिक कुंडीय यज्ञ में मुहूर्त अर्थात मौसम और वातावरण के प्रभाव का विचार करके यज्ञ करना चाहिए। जिससे आंधी, तूफ़ान और अन्य विघ्न बाधाओ से बचा जा सके। गूगल से मौसम की रिपोर्ट चेक करके खुली जगह में यज्ञ प्लान करें।
१०) *गीता में यज्ञ की महिमा का क्या वर्णन है ?*
👉🏼 उत्तर - *यज्ञ की अनिवार्यता को बताते श्रीमद्भागवत के तीसरे अध्याय के यह श्लोक पढ़िये*
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ (१०)
भावार्थ : सृष्टि के प्रारम्भ में प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ सहित देवताओं और मनुष्यों को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा सुख-समृध्दि को प्राप्त करो और यह यज्ञ तुम लोगों की इष्ट (परमात्मा) संबन्धित कामना की पूर्ति करेगा। (१०)
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ॥ (१२)
भावार्थ : यज्ञ द्वारा उन्नति को प्राप्त देवता तुम लोगों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे, किन्तु जो मनुष्य देवताओं द्वारा दिए हुए सुख-भोगों को उनको दिये बिना ही स्वयं भोगता है, उसे निश्चित-रूप से चोर समझना चाहिये। (१२)
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥ (१३)
भावार्थ : यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले भक्त सब पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु अन्य लोग जो अपने इन्द्रिय-सुख के लिए ही भोजन पकाते हैं, वे तो पाप ही खाते हैं। (१३)
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ (१४)
भावार्थ : सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है, वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ की उत्पत्ति नियत-कर्म (वेद की आज्ञानुसार कर्म) के करने से होती है। (१४)
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
१) *यज्ञ, जप-तप और अध्यात्म वृद्धावस्था में किया जाता है,अभी तो युवास्था में कैरियर, गृहस्थी और आनन्द मनाया जाता है*
👉🏼 उत्तर - वर्तमान शिक्षा प्रणाली के दोष के कारण यह चिंतन उपजा है कि अध्यात्म की जरूरत सिर्फ वृद्धावस्था में है। शरीर, मन और आत्मा (body, mind, soul) इन तीनों का अस्तित्व तीनों अवस्थाओं बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था में होता है। श्रीमद्भागवत गीता युद्ध के मैदान में युवा अर्जुन को सुनाई गई थी, किसी आश्रम में बैठे वृद्ध अर्जुन को नहीं। अतः वर्तमान वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन भी इस बात को स्वीकार चुका है कि मनुष्य का सम्पूर्ण स्वास्थ्य और विकास शारिरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति पर निर्भर करता है। बचपन से अध्यात्म से जुड़े, यज्ञ और मंन्त्र जप की आध्यात्मिक-वैज्ञानिक लाभ समझें और इसे जीवन का अनिवार्य अंग बनाएं। युवावस्था में अध्यात्म दिशा देता है और विज्ञान गति देता है।
२) *क्या यज्ञ सिर्फ कोई शुभ प्रसंग या अवसर हो तो ही किया जाता है?*
👉🏼 उत्तर - जीवन में शुभता लाने की लिए यज्ञ नित्य किया जाना चाहिए। जिस जगह यज्ञ होता है वहाँ पर कॉस्मिक एनर्जी घनीभूत होती है, नकारात्मकता मिटता है। औषधीय गो घृत और मन्त्रयुक्त धूम्र आरोग्य वर्धक और प्राण पर्जन्य की वर्षा करता है। दैनिक यज्ञ छोटे और शुभ अवसर पर बड़े यज्ञ किये जाते हैं।
३) *क्या यज्ञ करना सिर्फ ब्राह्मणों का काम है?*
👉🏼 उत्तर - ब्राह्मण अर्थात ब्रह्म में रमने वाला और लोकल्याण के लिए जीवन समर्पित करने वाला व्यक्ति। जन्म से सब शूद्र हैं और कर्म से ब्राह्मण बनते हैं। वेदों और पुराणों में कर्म आधारित वर्णव्यवस्था का वर्णन है, जातियां और उपजातियां जन्मगत स्वार्थप्रेरित मनुष्यो की रचना है। यज्ञ में शुद्ध भाव होना जरूरी है, क्योंकि मंन्त्र को प्राणवान शुद्ध भाव ही बनाते है। उपासना-साधना(आत्मकल्याण) बिना आराधना(लोककल्याण) सिद्ध नहीं होता। अतः जब भी यज्ञ करें लोककल्याण के भाव से कर्म से ब्राह्मण बनकर यज्ञ करें।
४) *वर्तमान में हम देख रहे है कि जो यज्ञ कराने आता है,वह बहुत सारे पैसा ले जाता है। मम्मी यज्ञ कराने आये हुए ब्राह्मणदेवता कि हफ्ते की सैलरी पापाके 1 महीने के बराबर होगी।*
👉🏼 उत्तर - शिक्षा हो या चिकित्सा या अध्यात्म या कानून इत्यादि, सभी क्षेत्रों में अच्छे और बुरे व्यक्ति पाए जाते हैं। कोई सेवा भाव से करता है और कोई व्यवसाय भाव से करता है। कोई कार्य अच्छा बुरा नहीं होता, उसे करने वाला व्यक्ति अच्छा या बुरा होता है। अतः आपका वास्ता अच्छे सेवाभावी डॉक्टर से हुआ तो आप सभी डॉक्टर को भगवान मान लेते हो, बुरे से हुआ तो पूरे चिकित्सा क्षेत्र को चोर बोल देते हो। इसी तरह आध्यात्मिक यज्ञ करवाने वाले पुरोहित पर भी राय बनाते हो। कृपया एक बार गायत्री परिवार के सेवाभावी राष्ट्र को जगाने वाले पुरोहित परिजन से यज्ञ करवाइये आपकी राय बदल जाएगी।
५) *यज्ञ से आत्म निर्माण से राष्ट्र निर्माण कैसे संभव है ?*
👉🏼 उत्तर - यज्ञीय प्रेरणाओं को *देवपूजन*- श्रेष्ठता का वरण और भावों की शुद्धि, *संगतिकरण* - संगठन में शक्ति, अच्छी सोच और भली नियत के लोगों का एकजुट होना, *परोपकार का भाव* - समाज से जितना लेना उससे ज्यादा समाज को लौटाना यह तीन यज्ञीय प्रेरणाएं प्रत्येक व्यक्ति अपना ले तो आत्मनिर्माण हो जाएगा, ऐसे व्यक्तियों के समूह जहां हो वहां राष्ट्र निर्माण भी स्वतः हो जाएगा। वर्तमान समस्याओं की जड़ स्वार्थकेन्द्रित विकृत चिंतन और विकृत कर्म है, जिसका एकमात्र समाधान यज्ञीय प्रेरणाओं से युक्त सद्चिन्त और सत्कर्म है। एक यज्ञ एक साथ समस्त जीव-वनस्पतियों-पशु-पक्षियों-मनुष्यों को पोषण देने वाला, पर्यावरण संरक्षक और वातावरण शुद्ध करने वाला है।
६) *यज्ञ से सुसन्तति की प्रप्ति कैसे हो सकती है ?*
👉🏼 उत्तर - नित्य यज्ञ करने से यज्ञीय प्रेरणाएं जीवन मे उतरने लगती है और श्रेष्ठ मनोभावों का निर्माण माता-पिता का होता है। माता-पिता के शरीर से बच्चे का शरीर और माता-पिता की मनोभूमि-चिंतन से बच्चे की मनोभूमि-चिंतन का निर्माण होता है। यग्योपैथी से गर्भ मजबूत होता है और विभिन्न बीमारियों का इलाज और आध्यात्मिक टीका करण भी होता है। माता पिता के श्रेष्ठ मनोभूमि से गर्भस्थ शिशु की श्रेष्ठ मनोभूमि, चरित्र-चिंतन-व्यवहार-गुण-कर्म-स्वभाव बनता है, ऐसे सन्तान को ही सुसन्तति कहते है।
७) *यज्ञ-हवन से घर मे सुख शांति आती है, सुखों की वृद्धि होती है ?*
👉🏼 उत्तर - यज्ञ में जैसे मन्त्रों का उच्चारण होता है, वैसे मनोभावों और क्षमता का यज्ञकर्ता में आगमन होने लगता है। उसकी सोचने की, कार्य करने की, जॉब- व्यवसाय की कुशलता बढ़ जाती है। मानसिक प्रबंधन से घर और व्यवसाय का कुशलता पूर्वक प्रबंधन करने लगता है। घर में सबको सद्बुद्धि मिलती है, सब निरोगी और प्रशन्न मन से रहते हैं, प्रेम सहकार का वातावरण विनिर्मित होता है, घर मे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। जिसके कारण घर मे सुख शांति होती है, और धन-धान्य और सुखों की वृद्धि होती है।
८) *अग्निहोत्र हम रोज करते है ?क्या यज्ञ करना जरूरी है ? अगर हाँ तो कब और कैसे ?*
उत्तर - यज्ञ के कई प्रकार है, यज्ञ के कई मंन्त्र है, यज्ञ के कई प्रकार के कुंड होते हैं, यज्ञ में कई प्रकार की समिधा उपयोग होती है, यज्ञ में कई प्रकार की हवन सामग्री उपयोग होती है, यज्ञ एक कुंडीय से लेकर करोड़ो कुंडीय तक हो सकता है। यज्ञ एक बहुत बड़ी व्यवस्था है, उसका एक अंश/प्रकार अग्निहोत्र है। अग्निहोत्र दैनिक आध्यात्मिक ऊर्जा के निर्माण में सक्षम है। लेकिन बड़े स्तर पर लाभ चाहिए तो बड़े यज्ञ कीजिये। रोगोपचार चाहिए तो यग्योपैथी अपनाइए। किस उद्देश्य और किस प्रकार के लाभ के लिए यज्ञ करने जा रहे हैं, उस पर निर्भर करता है कि यज्ञ में कौन सा कुंड, कौन सा मंन्त्र, कौन सी समिधा, कौन सी हवन सामग्री इत्यादि उपयोग होगी।
९) *बिना अच्छा मुर्हत देखे बिना हम सब यज्ञ कैसे करे ?*
👉🏼 उत्तर - दैनिक यज्ञ में मुहूर्त की आवश्यकता नहीं होती। एक कुंडीय यज्ञ यदि घर की छत के नीचे या यज्ञ मंडप या मन्दिर में यज्ञ कर रहे तो मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है। खुली जगह और एक से अधिक कुंडीय यज्ञ में मुहूर्त अर्थात मौसम और वातावरण के प्रभाव का विचार करके यज्ञ करना चाहिए। जिससे आंधी, तूफ़ान और अन्य विघ्न बाधाओ से बचा जा सके। गूगल से मौसम की रिपोर्ट चेक करके खुली जगह में यज्ञ प्लान करें।
१०) *गीता में यज्ञ की महिमा का क्या वर्णन है ?*
👉🏼 उत्तर - *यज्ञ की अनिवार्यता को बताते श्रीमद्भागवत के तीसरे अध्याय के यह श्लोक पढ़िये*
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ (१०)
भावार्थ : सृष्टि के प्रारम्भ में प्रजापति ब्रह्मा ने यज्ञ सहित देवताओं और मनुष्यों को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा सुख-समृध्दि को प्राप्त करो और यह यज्ञ तुम लोगों की इष्ट (परमात्मा) संबन्धित कामना की पूर्ति करेगा। (१०)
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुंक्ते स्तेन एव सः ॥ (१२)
भावार्थ : यज्ञ द्वारा उन्नति को प्राप्त देवता तुम लोगों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करेंगे, किन्तु जो मनुष्य देवताओं द्वारा दिए हुए सुख-भोगों को उनको दिये बिना ही स्वयं भोगता है, उसे निश्चित-रूप से चोर समझना चाहिये। (१२)
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥ (१३)
भावार्थ : यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले भक्त सब पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु अन्य लोग जो अपने इन्द्रिय-सुख के लिए ही भोजन पकाते हैं, वे तो पाप ही खाते हैं। (१३)
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ (१४)
भावार्थ : सभी प्राणी अन्न से उत्पन्न होते हैं, अन्न की उत्पत्ति वर्षा से होती है, वर्षा की उत्पत्ति यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ की उत्पत्ति नियत-कर्म (वेद की आज्ञानुसार कर्म) के करने से होती है। (१४)
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment