Thursday, 16 May 2019

यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी (प्रश्न 109)

🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तरी (प्रश्न 109)* 🔥

प्रश्न - 109 - *यज्ञ के दौरान मन्त्रों को वेदोक्त ध्वनि ताल लय में गाकर उच्चारण करना बेहतर है या डायरेक्ट साधारण पढ़ने जैसा उच्चारण करना उत्तम है?*

उत्तर - इस प्रश्न का उत्तर समझने से पूर्व आपको पराश्रव्य ध्वनि का सिद्धांत समझना पड़ेगा।

पराश्रव्य (ultrasound) शब्द उन ध्वनि तरंगों के लिए उपयोग में लाया जाता है जिसकी आवृत्ति इतनी अधिक होती है कि वह मनुष्य के कानों को सुनाई नहीं देती। साधारणतया मानव श्रवणशक्ति का परास २० से लेकर २०,००० कंपन प्रति सेकंड तक होता है। इसलिए २०,००० से अधिक आवृत्तिवाली ध्वनि को पराश्रव्य कहते हैं। क्योंकि मोटे तौर पर ध्वनि का वेग गैस में ३३० मीटर प्रति सें., द्रव में १,२०० मी. प्रति सें. तथा ठोस में ४,००० मी. प्रति से. होता है, अतएव पराश्रव्य ध्वनि का तरंगदैर्घ्य साधारणतया १० - ४ सेंमी. होता है। इसकी सूक्ष्मता प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के तुल्य है। अपनी सूक्ष्मता के ही कारण ये तरंगें उद्योग-धंधों तथा अन्वेषण कार्यों में अति उपयुक्त सिद्ध हुई हैं और आजकल इनका महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। गर्भस्थ शिशु को चेक करने के लिए और पेट के अंदर के विकारों की जांच के लिए अल्ट्रासाउंड का प्रयोग आम बात है। इन ध्वनितरँग से ऑपरेशन, हीरे जैसे ठोस पदार्थ को काटना, ऑपेरशन सबकुछ संभव है। यह ध्वनि तरंग वेव मेकनेकिल मशीन से उतपन्न किया जाता है।

अब इसके साथ साथ आपको प्रकाश के तरंग का सिद्धांत भी समझना होगा। न्यूटन के ही समकालीन जर्मन विद्वान हाइगेंज (Huyghens) ने,सन् 1678 ई. में 'प्रकाश का तरंग सिद्धान्त' (wave theory of light) का प्रतिपादन किया था। इसके अनुसार समस्त संसार में एक अत्यंत हलका और रहस्यमय पदार्थ ईथर (Ether) भरा हुआ है : तारों के बीच के विशाल शून्याकाश में भी और ठोस द्रव्य के अंदर तथा परमाणुओं के अभ्यंतर में भी। प्रकाश इसी ईश्वर समुद्र में अत्यंत छोटी लंबाईवाली प्रत्यास्थ (Elastic) तरंगें हैं। लाल प्रकाश की तरंगें सबसे लंबी होती हैं और बैंगनी की सबसे छोटी। यह भी एक नियम पर काम करता है।

क्वांटम सिद्धान्त का प्रतिपादन 1900 ई. में ऊष्मा विकिरण के संबंध में हुआ था। प्रकाश विद्युत (Photo electricity) की घटना का, जिसमें कुछ धातुओं पर प्रकाश के पड़ने से इलैक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाते हैं और तत्वों के रेखामय स्पेक्ट्रम (Line spectrum) की घटना का, जिसमें परमाणु में से एकवर्ण प्रकाश निकलता है, स्पष्टतया संकेत किसी नवीन प्रकार के कणिकासिद्धांत की ओर है। आइन्स्टाइन ने इन कणिकाओं का नाम फ़ोटान (Photon) रख दिया है। ये कणिकाएँ द्रव्य की नहीं हैं, पुंजित ऊर्जा की हैं। प्रत्येक फ़ोटोन में ऊर्जा E का परिमाण प्रकाश तरंग की आवृत्ति n का अनुपाती होता है, E = hn (जहाँ h प्लांक का नियतांक है)। कॉम्पटन प्रभाव (Compton effect) कहते हैं।

अब इन सिद्धांतों को यज्ञ भी उपयोग में लेता है, वेदमन्त्र की ध्वनि लहरियां और उच्चारण इस तरह बनाएं गए है जिससे अपेक्षित पराश्रव्य ध्वनितरँग निकले, जो औषधियों के होमिकृत के दौरान अग्नि के प्रकाश किरण औषधि पर पड़ते ही उत्सर्जित होने वाले फोटान(photon) अर्थात औषधीय ऊर्जा को ईथर मार्ग से सम्बंधित व्यक्ति, स्थान, वातावरण तक पहुंचा दे। यह पराश्रव्य ध्वनितरँग मनुष्य के शरीर में बिना किसी अवरोध के श्वांस और रोम कूपों से प्रवेश करके अपना प्रभाव दिखाती है।

आपने यज्ञ रिसर्च डॉक्टर ममता सक्सेना की पढ़ी होगी, जिसमें यज्ञ और साधारण धुंए की केस स्टडी बताई गई थी। कि मंत्रोक्त यज्ञ कर प्रभाव से विषाणु नष्ट हुए, जबकि साधारण तरीक़े से जलाए गए अग्नि से वो प्रभाव नहीं पड़ा। इसका मुख्य कारण मन्त्रों की पराश्रव्य ध्वनियों का था जिन्होंने प्रकाश तरंगों की मदद से औषधियों अति सूक्ष्म कणों के साथ उन विषाणुओं पर प्रहार कर उन्हें नष्ट कर दिया। रोगमुक्ति में भी यही ध्वनितरँग अत्यंत सहायक है।

साधारण मंन्त्र उच्चारण में वह पराश्रव्य ध्वनितरँग नहीं निकलती जिससे अपेक्षित लाभ मिल सके। अतः यज्ञ के सम्पूर्ण लाभ के लिए श्रद्धा भाव के साथ मंन्त्र का वेदोक्त उच्चारण लय ताल सुर के साथ करना आवश्यक है, जिससे अपेक्षित पराश्रव्य ध्वनितरँग मुँह से सही तरंगधैर्य(Wavelength), वेग (speed), आवृति (frequency), आयाम (Amplitude) के साथ निकलकर अपेक्षित परिणाम दे सकें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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