Sunday 19 May 2019

प्रश्न 114 से 115, यज्ञ प्रश्नोत्तर , स्वाहा

[5/20, 8:26 AM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्ननोत्तर(प्रश्न 114)* 🔥

प्रश्न - 114 - *यज्ञ के अंत में "स्वाहा" क्यों बोलते हैं?*

उत्तर - आइये जानते हैं यज्ञ में *स्वाहा* का महत्त्व:-

यज्ञ का अर्थ मात्र अग्नि में आहुतियां होमने मात्र का नहीं हैं, शास्त्रों में जीवन अग्नि की दो शक्तियाँ मानी गई है - एक 'स्वाहा' दूसरी 'स्वधा'। *'स्वाहा' का अर्थ है- आत्म- त्याग और अपने से लड़ने की क्षमता।* 'स्वधा' का अर्थ है- जीवन व्यवस्था में 'आत्म- ज्ञान' को धारण करने का साहस।

लौकिक अग्नि में ज्वलन और प्रकाश यह दो गुण पाये जाते हैं। इसी तरह जीवन अग्नि में उत्कर्ष की उपयोगिता सर्वविदित है। आत्मिक जीवन को प्रखर बनाने के लिए उस जीवन अग्नि की आवश्यकता है। अतः 'स्वाहा' और 'स्वधा' के नाम से, प्रगति के लिए संघर्ष और आत्मनिर्माण के नाम से पुकारा जाता है।

👉🏼 *दो पौराणिक कथाएं* :-

1- पौराणिक कथाओं के अनुसार, 'स्वाहा' दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ किया गया था. अग्निदेव को हविष्यवाहक भी कहा जाता है. ये भी एक रोचक तथ्य है कि अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हवन ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम यही हवन आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है.

2- इसके अलावा भी एक अन्य रोचक कहानी भी स्वाहा की उत्पत्ति से जुड़ी हुई है. इसके अनुसार, स्वाहा प्रकृति की ही एक कला थी, जिसका विवाह अग्नि के साथ देवताओं के आग्रह पर सम्पन्न हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं स्वाहा को ये वरदान दिया था कि केवल उसी के माध्यम से देवता हवन सामग्री को ग्रहण कर पाएंगे।

👉🏼 *विज्ञान* - जब मंन्त्र बोलते हैं तब थोड़ा स्वयं के मुँह पर ध्यान दीजिए, ऐसा लगता है मानो मुँह के अंदर की ओर आप मंन्त्र शक्ति ध्वनितरँग तैयार कर रहे हों, और फिर *स्वाहा* बोलते वक्त मुँह और नाभि के पास पेट पर ध्यान दीजिए ऐसा लगता है मानो उस तरंगित ध्वनि शक्ति को आपने अग्नि की ओर मुँह खोलकर पेट से खींचते हुए फोर्स के साथ बाहर की ओर प्रेषित किया। *स्व* में मुँह खुलता है और *हा* बोलते वक्त पेट अंदर की ओर जाता है, मंन्त्र वायु तरंग नाभि से उठकर छाती फ़िर कंठ फिंर मुंह से तेज़ी बाहर की ओर निकलती है । वस्तुतः कई प्रकार की *अल्ट्रासाउंड तरंगों* का निर्माण मुँह की मानव मशीन में करके अग्नि की ओर आहुति डालते समय प्रेषित करने पर वह वेगवान तरंगे *औषधियों* को सूक्ष्म से सूक्ष्म तोड़ देती हैं। औषधि के फोटॉन उत्सर्जित करके उसके ऊर्जा परमाणुओ को सम्बन्धित व्यक्ति, स्थान और वातावरण में विकिरण के माध्यम से प्रवेश करवा देती हैं।

मनुष्य की आँखों से बढ़िया और हज़ारो रंगों को देखने वाला कोई कैमरा धरती पर नहीं बना, फ़ल-सब्जी ख़ाकर रक्त बनाने की आंतो जैसी कोई मशीन धरती पर नहीं। इसी तरह मनुष्य के मुँह से मंन्त्र जपकर अल्ट्रासाउंड वेव से औषधियों के कारण जगाने वाली( यज्ञ के दौरान परमाणु लेवल पर तोड़कर सूक्ष्मतम करने वाली) कोई मशीन दुनियाँ में नहीं है। स्वाहा के समानांतर कोई शब्द नहीं जो मुँह के अग्निचक्र की ऊर्जा को यज्ञ की अग्निचक्र में प्रेषित कर सके और ठीक उसी समय पूरक कुम्भक रेचक प्राणायाम एक साथ होता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/20, 8:43 AM] .: 🔥 *यज्ञ सम्बन्धी प्रश्नोत्तर(प्रश्न 115)* 🔥

प्रश्न - 115 - *यज्ञ के दौरान "इदं न मम" क्यों बोलते हैं?*

उत्तर - 'इदं न मम' अर्थात यह मेरा नही है, कुछ भी मेरा नहीं है यही भारतीय दर्शन है। सब परमात्मा आपका ही है, धन संपदा भी आपकी और हम भी आपके ही हैं। तेरा तुझको अर्पण।

एक कहानी के माध्यम से समझिए इसे:-

एक स्त्री जो कि होममेकर है अपने पति के जन्मदिन पर उसे एक पर्स गिफ़्ट करती है, और प्यार से कहती है तुम जो पैसे मुझे देते हो उसी की बचत से यह गिफ़्ट तुम्हारे लिए है। यहाँ *इदं न मम* का भाव है। क्योंकि पैसे पति द्वारा कमाए और दिए हुये हैं, फिंर भी पति अत्यंत ख़ुश होगा क्योंकि निरहंकारिता के साथ पत्नी ने बचत कर उसे खुश करने के लिए गिफ़्ट दिया। वो उसे रिटर्न गिफ्ट में सबकुछ देगा।

यह सृष्टि परमात्मा की है, कण कण उसका दिया हुआ है। जिस बुद्धिकुशलता से आप कमाते है, बुद्धि भी उसी की दी हुई है। अध्यात्म में आत्मा को स्त्री और परमात्मा को पुरूष की संज्ञा दी गयी है। आत्मा कहती है *तेरा तुझको अर्पण* , *इदं न मम* यह मेरा नहीं हैं।

परमात्मा इस निरहंकारी और समर्पित प्रेम से ख़ुश हो जाता है, अनुदान वरदान से आत्मा को भर देता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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