Monday 13 May 2019

प्रश्न - *आस्था खोने लगती है मन घबराने लग जाता है कभी कभी महीने में 4 बार, ऐसे में क्या करूँ। इसके बारे में मुझे समझा कर प्लीज मुझे ताकत प्रदान करें*

प्रश्न - *आस्था खोने लगती है मन घबराने लग जाता है कभी कभी महीने में 4 बार, ऐसे में क्या करूँ। इसके बारे में मुझे समझा कर प्लीज मुझे ताकत प्रदान करें*

उत्तर- आत्मीय बहन, अध्यात्म क्षेत्र में तीन शब्द बहुतायत प्रयुक्त होते हैं - आस्था, श्रद्धा और विश्वास।

परमात्मा को तुम अभी जानते नहीं, कोई पहचान नहीं, कभी देखा नहीं, कभी मिलन नहीं हुआ। आस्था का अभी तो इतना ही अर्थ हो सकता है कि हम एक परिकल्पना स्वीकार करते हैं। परिकल्पना तो खो सकती है, क्योंकि अस्तित्व में नहीं है।

तुम्हारी कल्पना में भगवान जादूगर की तरह चमत्कार करने वाले हो सकते हैं, या मनोकामना पूर्ति मशीन हो सकते हैं, या सत-चित और आनन्दस्वरूप विराट हो सकते हैं। फ़िर भी कल्पना तो कल्पना ही है जिसका कोई आधार नहीं।

जब तक आस्था प्रगाढ़ नहीं होने लगती है तब यह श्रद्धा नहीं बन पाती है। श्रद्धा में सत् (अर्थात सत्य) + धा (अर्थात धारण) अर्थात सत्य को धारण करना ही श्रद्धा है। भगवान सत(सत्य) चित आनन्द है। इनके के प्रति केवल आस्था नहीं अपितु श्रद्धा बहुत जरूरी है परन्तु विचारहीन श्रद्धा केवल भावुकता पैदा करती है जिसे अन्य शब्दों में अन्धश्रद्धा या मूढ़ता कहते है।

जिस श्रद्धा में साहस का परिचय देते हुए हम उस परमात्मा की खोज में लगते हैं, स्वयं के अस्तित्व में स्वयं के भीतर जब उसे ढूंढते हैं, वही श्रद्धा फ़िर विश्वास में परिणित होने लगती है।

छोटा सा मन है, उसमें उस विराट को कैसे समाओगे? छोटे से कप में समुद्र नहीं भर सकते, छोटे से आंगन में आकाश नहीं समा सकता, छोटे छोटे हाथों से विराट को पूर्ण कैसे स्पर्श कर महसूस करोगे?

तो करना क्या है? कप को समुद्र में फेंक दो, आंगन की दीवार हटा दो, और स्वयं को उस विराट के प्रति समर्पित करके उसमें विलय क़र दो।

आस्था यदि नई है तो वह एक बीज है, उसके ऊपर का हिस्सा तना व पत्तियां श्रद्धा है और विश्वास उसकी जड़ है। रोज जप-तप-ध्यान-स्वाध्याय के जल-हवा-खाद-पानी से सिंचन करो और इसे बड़ा करो। बिना नित्य जप-ध्यान-स्वाध्याय के आस्था का बीज पौधा नहीं बनेगा। जब तक छोटा है, बच्चे भी उखाड़ सकते हैं। अर्थात छोटी मोटी कठिनाइयों में भी आस्था डिग जाएगी। ज्यों ज्यों विश्वास की जड़ गहराई में मजबूती देगी और श्रद्धा का वृक्ष बड़ा होगा। कुछ वर्षों बाद कोई उसे उखाड़ नहीं सकेगा। आस्था के बीज से वृक्ष बने श्रद्धा-विश्वास फ़लीभूत होंगे तो जीवन धन्य हो जाएगा।

याद रखिये, जहॉ मस्तिष्क और हृदय मिलते है वहीं हमारा स्वभाव बनना शुरू होता है। अगर मस्तिष्क अकेला रहे और हृदय  को दबा दे तो विज्ञान पैदा होता है। यदि हृदय अकेला रहे और मस्तिष्क को दबा दे तो मन कल्पना जगत में प्रवेश कर। जब मस्तिष्क और हृदय (मन और दिल) दोनों में श्रद्धा-विश्वासयुक्त भक्ति का प्रवेश हो जाए तो मन में  ईश्वरीय प्रकाश प्रवेश करता है। एक बार हृदयाकाश में सूर्य उदित हो गया तो सदा सर्वदा के लिए अंधकार विदा हो जाता है।

भगवान न्यायकारी जज की तरह है, कोर्ट में बेटा अपराधी हो या अन्य व्यक्ति। अगर गलती की है तो दण्ड तो सबको समान देना पड़ेगा। लेकिन कोर्ट से निकलने के बाद घर से बेटे के केस में उसकी ज़मानत पिता ही भर देता है। आप भक्त बन गए हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि आपके पूर्वजन्म के कर्मफ़ल आपको परेशान नहीं करेंगे। भक्त बन गए है तो आपको इस परेशानी से उबरने का रास्ता जरूर मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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