Saturday 11 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 62 से 70 तक)

[5/9, 9:52 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 62 से 64)* 🔥

प्रश्न 62- *क्या यज्ञ मे आम की लकड़ी ही प्रयोग मे लायी जा सकती है? जहां वह उपलब्ध नही है तो उसका क्या alternative है?*

👉🏼 उत्तर - जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है। जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है। इसलिए यज्ञ में मुख्यतया आम की लकड़ी को समिधा के लिए प्रयोग किया जाता है।

ऋषियों ने उन समिधाओं को यज्ञ के लिए उपयुक्त चुना जिनके जलने पर उतपन्न गैस मानवजाति का कल्याण करे और प्रकृति का पोषण करे। जैसे आम, पीपल, नीम, आँवला, शमी इत्यादि।
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एक बार एक डॉक्टर अंग्रेज ने एक वैद्य पण्डित की परीक्षा करने के लिए एक मजदूर को कई किलोमीटर दूर पण्डित के पास भेजा, जाने से पूर्व उसे वायरस इन्फेक्टेड भोजन खिलाया। डॉक्टर ने मजदूर से कहा जाते वक्त केवल इमली के पेड़ के नीचे उसकी लकड़ी से भोजन बनाना, उसके इमली के फल की नित्य चटनी खाना और इमली के पेड़ के नीचे सोना। यदि इमली का पेड़ रास्ते मे न मिले तो कैथे(एक खट्टा गोल फल) या बेर के पेड़ के नीचे रुकना। पैदल यात्रा करना है, मेरा यह पत्र वैद्य को दे देना। स्वस्थ व्यक्ति मजदूर था, लेकिन इमली के पेड़ वाले उपक्रम से उसे कोढ़ जैसा चर्म रोग गया, अशक्त बीमार होकर किसी तरह पहुंचा। समस्त हाल पण्डित को कह सुनाया। पण्डित ने पत्र खोला उसमें लिखा था इसे तुम पास रखकर इलाज नहीं कर सकते। तुरन्त लौटाओ और कुछ ऐसा करो कि मेरे पास पहुंचते ही यह पुर्ववत स्वस्थ हो जाये। पण्डित ने  उसे उस दिन भोजन के साथ नीम और गिलोय की चटनी खिलाई। गिलोय के ढेर सारे पत्ते दिए जितना वो ले जा सकता था दिया।
वैद्य बोला, रास्ते में केवल नीम के पेड़ के नीचे रुकना। यदि नीम न मिले तो ही आंवले के पेड़ के नीचे या बेल वृक्ष के पेड़ के नीचे रुकना। उनकी लकड़ियों से भोजन पकाना। भोजन पहले गायत्री मंत्र बोलकर 5 आहुति देकर भोग लगाना फिंर खाना। रोज गिलोय के पत्ते और जिस वृक्ष के नीचे रुको उसके पत्ते की चटनी घोंट के सुबह शाम खा लेना। मजदूर जब अंग्रेज डॉक्टर के समक्ष पहुंचा तो हतप्रभ रह गया। वो पहले से डबल स्वस्थ था, चेहरे पर कांति और ओज था। कोढ़ जैसे चर्म रोग गायब हो गए।

जासूसों ने रिपोर्ट दी, उन्होंने वैद्य के गुणगान किया। पत्र उसने जब खोला तो इसमें लिखा था, आपके दिए वायरस को इमली की लकड़ी के धुएं और अन्य खट्टी चीजों ने पोषण दिया। इस व्यक्ति का इम्मयून सिस्टम नष्ट कर दिया। नीम की लकड़ियों के धुएं ने इसके रोम छिद्रों में प्रवेश करके उन्हें नष्ट कर दिया। गायत्री की मंन्त्र तरंगों ने इसकी प्राण ऊर्जा को बढ़ा दिया। गिलोय और नीम की चटनी ने पूरी तरह संक्रमण नष्ट कर दिया। डबल से भी ज्यादा स्वस्थ है, रक्त की रिपोर्ट निकाल के जांच लें।
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उपरोक्त में से कोई लकड़ी न मिले समिधा के लिए तो नारियल के टुकड़े की समिधा बनाकर यज्ञ कर लें

या

गोमय समिधा अर्थात उपलों को घर बैठे ऑनलाइन मंगवा के उपयोग में ले लें।

या

तांबे के पात्र में गैस स्टोव पर बलिवैश्व यज्ञ कर लें।

प्रश्न 63 - *नवग्रहों की शांति के लिए नवग्रह समिधा का नाम बता दीजिए*

उत्तर 👉🏼 सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मंगल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।

मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।

प्रश्न 64 - *ऋतुओं के अनुसार समिधा जो प्रयुक्त होती हैं उनके नाम बताएं*

उत्तर - ऋतुओं के अनुसार समिधा के लिए इन वृक्षों की लकड़ी विशेष उपयोगी सिद्ध होती है।

वसन्त-शमी

ग्रीष्म-पीपल

वर्षा-ढाक, बिल्व

शरद-पाकर या आम

हेमन्त-खैर

शिशिर-गूलर, बड़

यह लकड़ियाँ सड़ी घुनी, गन्दे स्थानों पर पड़ी हुई, कीडे़-मकोड़ों से भरी हुई न हों, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 9:52 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 67)* 🔥

प्रश्न 67 - *क्या गंडमाला का इलाज यग्योपैथी में है?*

उत्तर - हांजी है,

 कंठमाला लसीका ग्रंथियों का एक चिरकारी रोग (chronic disease) है। इसमें गले की ग्रंथियाँ बढ़ जाती हैं और उनकी माला सी बन जाती है इसलिए उसे कंठमाला कहते हैं। आयुर्वेद में इसका वर्णन 'गंडमाला' तथा 'अपची' दो नाम से उपलब्ध है, जिन्हें कंठमाला के दो भेद या दो अवस्थाएँ भी कह सकते हैं।

छोटी बेर, बड़ी बेर या आँवले के प्रमाण की गाँठें (गंड) गले में हो जाती हैं जो माला का रूप धारण कर लेती है उन्हें गंडमाला कहते हैं। परंतु यह क्षेय है और इसका स्थान केवल ग्रीवा प्रदेश ही नहीं है अपितु शरीर के अन्य भागों में भी, जैसे कक्ष, वक्ष आदि स्थानों में ग्रंथियों के साथ ही इसका प्रादुर्भाव या विकास हो सकता है। गाँठों की शृंखला या माला होने के कारण इसे गंडमाला कहते हैं। ज्ञातव्य है कि मामूली प्रतिश्याय (जुकाम), व्रण इत्यादि कारणों से भी ये ग्रंथियाँ विकृत होकर बढ़ जाती हैं परंतु माला नहीं बन पाती हैं अत: इनका अंतर्भाव इसमें नहीं होता।

अथर्ववेद के अनुसार सूर्य चिकित्सा के साथ साथ यग्योपैथी अधिक लाभकारी है।

सूर्य चिकित्सा के लिए यह आर्टिकल पढ़े :- http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1957/February/v2.16

इस रोग सम्बन्धी हवन सामग्री - यग्योपैथी चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही लें।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 9:52 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 65 से 66)* 🔥
 प्रश्न 65 -  *यग्योपैथी में उन्माद चिकित्सा में क्या कोई चिकित्सा उपलब्ध है?*

उत्तर 👉🏼 साइकोसिस - उन्माद एक जटिल मानसिक रोग है, जो सामान्यतः मन बुद्धि और स्मृति मे विभ्रम उतपन्न करता है। ग्रामीण इसे नकारात्मक शक्ति से उतपन्न भूतादि का चक्कर मानते हैं। आयुर्वेद कहता है वात कफ पित्त उन्मार्गी होकर मन मे स्थित होते हैं। तब उन्माद होता है। ज्योतिष इसे प्रारब्धजन्य मानता है। कभी कभी एक्सीडेंट और मानसिक आघात, प्रियजन के बिछोह से यह रोग होता है।

एलोपैथी में शॉक ट्रीटमेंट इत्यादि दिया जाता है।

यग्योपैथी में मानसिक सफाई और बुद्धि को पुनः एक्टिवेट करके होश लाने के लिए उन्माद रोग सम्बन्धित औषधियों से हवन करवाया जाता है और आशातीत लाभ मिलता है।

हवन सामग्री - यग्योपैथी चिकित्सक से परामर्श कर के लेवें।

प्रश्न 66 -  *यग्योपैथी में राज़क्षमा क्षय रोग चिकित्सा में क्या विधान है?*

👉🏼 उत्तर- हांजी है,
एक गंभीर, संक्रामक और बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी जो मुख्‍य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है और जानलेवा हो सकती है, इसे क्षय रोग, टीबी या राज्य क्षमा रोग कहते है।

आधुनिक चिकित्सा के अनुसार क्षय रोग कई प्रकार के होते हैं, और इनके कीटाणुओं/रोगाणुओं/विषाणुओ के कारण होती है। सही इलाज न मिलने पर मृत्यु हो सकती है।

विषाणु का कल्चर करवा के एलोपैथी से भी यह रोग 6 से 8 महीने कर लंबे इलाज से ठीक हो जाता है। इस ट्रीटमेंट को anti-tubercular treatment(ATT) कहते हैं।

यग्योपैथी में समस्त प्रकार के क्षय रोग का इलाज है। यह सस्ता सुंदर टिकाऊ और प्रभावी उपचार है। रोगमुक्ति के साथ साथ यह बलवर्धक एवं पुष्टिकारक भी है।

राज्यक्षमा क्षय रोग सम्बन्धी हवन सामग्री और उपचार विधि - यग्योपैथी चिकित्सक से परामर्श कर के ही शुरू करें। जल्दी ठीक होने के लिए एलोपैथी और यग्योपैथी दोनों साथ साथ कर सकते हैं। कोई साइड इफेक्ट नहीं है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/9, 9:52 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 68)* 🔥

प्रश्न 68) *कहते है बिना यज्ञ के कोई अनुष्ठान सफल नही होता,तो पृथ्वी की जब रचना प्रजापति ब्रह्माजी ने 100 साल गायत्री मंत्र की तप/अनुष्ठान से की तो पूर्णाहुति में कोनसा यज्ञ किया गया ?*

उत्तर - प्रश्न दो प्रकार से पूँछे जाते हैं, एक जिज्ञासा के समाधान के लिए और दूसरा टाइम पास कौतूहल।

कौतूहल के प्रश्न में हम कल्पनाओं के उन पहलुओं पर प्रश्न करते हैं जिनका उत्तर मिल भी जाय तो वर्तमान में उस उत्तर से किसी का न कोई लाभ नहीं होने वाला। जैसे सृष्टि का प्रारंभ कब हुआ, पहला ऑपेरशन किसने किया, पहली बार आग किसने जलाया, पहला पहिया किसने बनाया इत्यादि इत्यादि।

जिज्ञासा के प्रश्न ऐसे होते है जिनके उत्तर से ज्ञान बढ़ता तो है ही साथ मे यह भविष्य में दूसरों की या स्वयं की मदद में काम आने वाले होते हैं। जैसे सृष्टि में सन्तुलन कैसे लाएं, अग्नि का प्रयोग कैसे करें, पर्यावरण संतुलन में यज्ञ किस प्रकार सहायक है, अमुक रोग का यग्योपैथी में उपचार है इत्यादि।

कौतूहल के प्रश्नों का उत्तर न देना उचित होता है, इन्हें इग्नोर करे और कहीं भी प्रकाशित न करे। क्योंकि सृष्टि के आरंभ की जितनी भी पौराणिक कथाएं है उनका कोई प्रमाण नहीं है। वो केवल रेफरेंस है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/10, 10:27 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 69 से 70)* 🔥

प्रश्न -69 - *गायत्री जप करने में मन नहीं लगता, लेक़िन यज्ञ करना बहुत पसंद है। सब कहते हैं बिना जप के यज्ञ सफल नहीं होता?कृपया समाधान करें।*

👉🏼उत्तर - गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी और यज्ञ को भारतीय संस्कृति का पिता कहा गया है। यह दोनों ज्ञान और विज्ञान के अंतरंग और बहिरंग जीवन के समुन्नत करने के केंद्र माने गए हैं।

जिस प्रकार भवन निर्माण के लिए पत्थर/ईंट और चूने/सीमेंट से ही दीवार बनती है, उसी प्रकार आध्यात्मिक उन्नति का आधार गायत्री और यज्ञ हैं।

सृजन के लिए दोनों अनिवार्य हैं, कहने को तो मात्र पिता या मात्र माता भी सन्तान पाल लेती है। लेक़िन यदि माता-पिता दोनों साथ मिलकर परवरिश करें तो फ़िर परवरिश आसान होती है।

अतः गायत्री और यज्ञ एक दूसरे के पूरक हैं।दोनों अनिवार्य हैं।

प्रश्न - 70 - *सभी शुभ अवसरों विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि पर भी यज्ञ होते हैं, जन्म में भी यज्ञ और मृत्यु की शांति हेतु भी यज्ञ क्यों?*

👉🏼 उत्तर - जब जब आपको ईश्वरीय शक्तियों का विशेष आह्वाहन करके उनसे सम्बन्धित अवसर की सफ़लता हेतु उनकी कृपा चाहिए तो यज्ञ करना होता है। केवल यज्ञाग्नि ही वह चैनल है जिससे भक्त और भगवान एक दूसरे को क्रमशः भावनाएं और भगवत्कृपा आदान-प्रदान कर सकते हैं। केवल यज्ञ से ही आप सूक्ष्म संशोधन और समस्त सृष्टि को तुष्ट कर सकते हो।

यज्ञ ही पदार्थ को सूक्ष्मीकृत वायुभूत करके सूक्ष्म ईश्वरीय दुनियाँ में पहुंचा सकता है। यज्ञ ही ईश्वरीय दुनियाँ से लाई सूक्ष्म ऊर्जा को व्यक्ति के अंदर प्रवेश करवा सकता है। वातावरण में बिखेर सकता है।

 जन्म में जन्मी सन्तान के लिए आशीर्वाद प्रार्थना के साथ उस जन्मी आत्मा के सूतक काल को यज्ञ से शुद्ध किया जाता है। इसी तरह मृत्यु के समय दिवंगत आत्मा की शांति-मुक्ति की प्रार्थना के साथ सूतक काल को यज्ञ से शुद्ध किया जाता है। नए घर का वातावरण यज्ञ से शुद्ध करके वहां विद्युत ऊर्जा को सकारात्मक बनाया जाता है। विवाह के अवसर पर यज्ञ के माध्यम से वर-वधु के अंदर एक दूसरे की भावनाओ को प्रवेश करवाया जाता है, सङ्कल्प सूत्रों से बांधा जाता है, तथा अन्तः करण में एक दूसरे के लिए जगह यज्ञ बनाता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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