Saturday 11 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 71 से 80)*


[5/10, 10:27 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 71 से 72)* 🔥

प्रश्न 71- *यज्ञ एक विज्ञान है, तो फिर यज्ञ करने से पूर्व नहाने की बाध्यता क्यों है?*

उत्तर - सत्य है यज्ञ एक विज्ञान है। विज्ञान एक जनरल शब्द है, उस वैज्ञानिक क्रिया में उपकरण भी लगते हैं। जिनकी सफाई अनिवार्य है।

प्लास्टिक का टूथब्रश से मुंह के दांत भी साफ होते हैं और टॉयलेट भी। दोनों प्लास्टिक के उपकरण है, लेकिन कहाँ किस उद्देश्य से उपकरण उपयोग हो रहा है, इसके आधार पर उसके रखरखाव और सफाई का ध्यान रखा जाता है। मुंह मे ब्रश डालने से पहले उसे धोएंगे ही। शरीर को स्नान करवाएंगे।

प्रश्न - 72- *यज्ञ से पूर्व पवित्रीकरण और यज्ञ में उपयोग लाने वाली वस्तुओं को मंन्त्र से पवित्र क्यों करते हैं।*

उत्तर - ऑपेरशन से पहले डॉक्टर मरीज़ को स्नान करवाता है। यज्ञ भी एक विज्ञान है लेकिन चेतना के स्तर का सूक्ष्म विज्ञान भी है और स्थूल भी है। और दैवीय शक्तियों के आह्वाहन इसमें सम्मिलित हैं।  अतः आध्यात्मिक शल्य चिकित्सा के लिए शरीर को स्नान करवाके के ढीले साफ सुथरे वस्त्र पहनने और मन को मन्त्रों से पवित्र करके ईश्वर के समक्ष बैठने को कहा जाता है। साथ यज्ञ के समस्त प्रयुक्त उपकरण धोने सुखाने बावजूद उन्हें भी मन्त्रों से अभिमंत्रित करके पवित्र किया जाता है। क्योंकि सभी उपकरण जो चेतना और सूक्ष्म स्तर हेतु है वो तो धुलेंगे भी और पवित्र भी किये जायेंगे।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

[5/10, 10:27 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 73)* 🔥

प्रश्न - *प्रयाज, याज और अनुयाज़ किसे कहते हैं? इसमें क्या होता है?*

उत्तर - विशिष्ट प्रयोजन के लिए किए जाने वाले यज्ञों को तीन चरणों में बांटा जाता है।

1- प्रयाज, 2- याज एवं 3-अनुयाज

प्रथम चरण प्रयाज, दूसरा याज एवं तीसरा अनुयाज। '

👉🏼 *प्रयाज* (यज्ञ शुरू होने की पूर्व के कार्य, विधि व्यवस्था व निर्णय) - इस में यज्ञ की घोषणा होने से लेकर यज्ञ प्रारंभ होने तक की सारी प्रक्रियाएं आती हैं। यज्ञ स्थल का चुनाव उसके विभिन्न संस्कार यज्ञ की अनिवार्य व्यवस्थाएं जुटाना, उसके लिए आवश्यक आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये जप-तप के विधान, यज्ञशाला निर्माण आदि सभी कार्यों का समावेश होता है। इस समय अश्वमेध का प्रथम चरण प्रयाज चल रहा है। यज्ञ के प्रचार के साथ ही घर घर गायत्री यज्ञ कराकर अश्वमेध के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न की जा रही है।

👉🏼 *याज* (यज्ञ शुरू होने के बाद और पूर्ण होने के बीच के कार्य, निर्णय, विधिव्यस्था) - "याज" को यज्ञीय मुख्य कर्मकांड को कहते हैं। इसमें आचार्य ब्रह्मा, अध्वर्यु, उद्गाता आदि की यज्ञ संसद की स्थापना से लेकर देवपूजन, आहुतियां, सामागान पूर्णाहुति आदि विभिन्न कर्म आते हैं। प्रयोजनों के अनुरूप उतने दिन चलाये जाने का विधान है।

👉🏼 *अनुयाज* (यज्ञ पूर्ण होने के बाद के कार्य, निर्णय, विधिव्यस्था) - इसमें यज्ञ पूर्णाहुति के बाद भागीदारी को संतुष्ट करना, सभी वस्तुओं को यथा स्थान पहुंचाना, यज्ञ से उत्पन्न ऊर्जा को लोक कल्याण के प्रयोजनों में नियोजित करना है। पूर्णाहुति के बाद अनुयाज की प्रक्रिया शुरू होगी।



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

[5/10, 10:27 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 74)* 🔥

प्रश्न - 74- *अग्नि जलाने से ऑक्सीजन खर्च होती है और कार्बन निकलता है। कार्बन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। तो यज्ञ फ़िर फायदेमंद कैसे हुआ? यज्ञ से पर्यावरण प्रदूषण दूर कैसे होगा?*

उत्तर - यज्ञ में ऑक्सीजन बड़ी थोड़ी मात्रा में खर्च होती है, उससे ज्यादा ऑक्सीजन खर्च तो रसोई में, गाड़ियों, कल-कारखानों में खर्च होती है।

स्वर्ण को जलाने पर स्वर्ण भष्म बनती है और कोयले को जलाने पर राख। जले दोनों लेकिन परिणाम और प्रयोग अलग हुए - स्वर्ण भष्म दवा बन गयी।

कोयला या इमली की लकड़ी को जलाओ तो रोगाणु, विषाणु और कीटाणु बढ़ जाते हैं, उस धुएं में मनुष्य रोगी बनता और बल घटता है। लेक़िन नीम या आम की लकड़ी जलाने पर रोगाणु, विषाणु और कीटाणु मरते हैं, इस धुंए में स्वास्थ्य और बल बढ़ता है। जलने की क्रिया बाहर देखने पर एक है परिणाम भिन्न हैं।

अतः एक ही रँग के चश्मे से दुनियाँ देखने पर सब उसी कलर के नजर आएंगे। खुली नजर से सबको देखने पर विविधता समझ आएगी।

पेट्रोलियम प्रोडक्ट - डीज़ल, पेट्रोल, CNG, LPG, कोयला, मिट्टी के तेल इत्यादि मृत ईंधन है, इनमें जीवन नहीं पनपता। इनके पुनः जलने पर जो कार्बन निकलता है वो जीव,वृक्ष,वनस्पति के लिए हानिकारक है।

हवन जीवित ईंधन से किया जाता है, जीवित ईंधन उसे कहते जिनमें जीवन पनप सके। औषधियाँ और लकड़ियों को नमी में रख दें तो उसे नंन्हे पौधे खाद में प्रयोग कर लेंगे, ढ़ेरों जीव पनप जाएंगे जिन्हें सूक्ष्म दर्शी से देखा जा सकता है। गोघृत और मंत्रोच्चार के साथ इनके जलने पर जो कार्बन बनता है वो जीव-वनस्पति-पशु-पक्षियों के लिए लाभदायी है। *यज्ञ की कार्बन का हानिकारक तत्व नष्ट करने के लिए तांबे के कलश स्थापना की जाती है। इस कारण से यज्ञ के कलश के जल को हम सब पीते नहीं हैं, उसे अर्घ्य दे देते है।*

नोट:- केवल मंत्रजप दैनिक साधना में जब होता है, तो वो जल पिया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/10, 10:27 AM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 75)* 🔥

प्रश्न 75- *क्या अग्नि एक ही प्रकार की होती है या इसके भी अलग अलग प्रकार हैं?*

उत्तर - कठोपनिषद और लिंग पुराण के अनुसार अग्नि तीन प्रकार की होती हैं।

*दिव्यस्य भौतिकी स्याग्नेरथो पार्द्विविस्य च।*
*व्युष्टायां तु रजन्या च ब्रह्मणे$वयत्नं जन्मन:।।*

अग्नि वह जो ईंधन से जलती है उसे *पार्थिव अग्नि* कहते हैं।

अग्नि वह जो सूर्य ऊर्जा के साथ धरती पर अवतरित होती है और अग्नितत्व के रूप में ऊर्जावान होकर इस जगत में संव्याप्त होती है उसे *भौतिकी अग्नि* कहते हैं।

*दिव्य अग्नि* वह है जो प्राणियों में ब्रह्म सत्ता, ब्रह्म चेतना बनकर कार्य करती है। ब्रह्मयज्ञ में इसी अग्नि का आह्वाहन किया जाता है और पूजा जाता है। यज्ञ में मन्त्रों द्वारा हम दिव्य अग्नि को अपनी भाव चेतना से आह्वाहन करके मन्त्रों के माध्यम से यज्ञकुंड में स्थापित करते हैं। यह *दिव्य अग्नि को ही यज्ञाग्नि भी कहते हैं जो हमारी आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। हविष्य ग्रहण करने में सक्षम होती है। सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत के बीच कम्युनिकेशन अपने दिव्य चैनल से सम्भव करवाती है।*



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 78 से 80)* 🔥

प्रश्न - 78- *पावकः पवमानश्च शुचिरग्नि श्लोक में वर्णित अग्नि के बारे में बताइये*

👉🏼 उत्तर - कूर्म पुराण में अग्नि के तीन प्रकार बताये गए है, इनकी व्याख्या कूर्म पुराण के त्रयोदश अध्याय के १३.१५ श्लोक में वर्णित है।

पावकः पवमानश्च शुचिरग्निश्च ते त्रयः ।
निर्मथ्यः पवमानः स्याद्‌ वैद्युतः पावकः स्मृतः ।। १३.१५

पावक:- - ईंधन से प्राप्त पार्थिव अग्नि
पवमान:- सूर्य से लाकर हवा के द्वारा स्थापित भौतिक अग्नि
शुचिरग्नि:- शुचि का अर्थ होता है पवित्र, दिव्य -  दिव्यता ब्रह्म चेतना से आती है। यही दिव्य अग्नि है।

प्रश्न - 79 - *ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम, इस मंन्त्र से अग्नि प्रज्ज्वलित करने कर पीछे का भाव बतायें।*

👉🏼उत्तर - यह श्लोक अग्नि सूक्त(ऋग्वेद संहिता १.१.१) में वर्णित है।

इसके ऋषि मधुच्छन्दा वैश्वामित्र हसि, देवता अग्नि है, और छंद गायत्री है।

श्लोक यह है
 ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम होतारं रत्नधातमम

भावार्थ हम अग्निदेव की स्तुती करते है (कैसे अग्निदेव?) जो यज्ञ (श्रेष्ठतम पारमार्थिक कर्म) के पुरोहित (आगे बढाने वाले ), देवता (अनुदान देनेवाले), ऋत्विज( समयानुकूल यज्ञ का सम्पादन करनेवाले ),होता (देवो का आवाहन करनेवाले) और याचको को रत्नों से (यज्ञ के लाभों से ) विभूषित करने वाले है ।

 इस स्तुति के माध्यम से अग्निदेव की स्तुति करके उन्हें यज्ञ कुंड में स्थापित होने के लिए प्रार्थना किया जाता है। यह केवल दिव्य अग्नि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।

प्रश्न -80 - *यज्ञ आहुति में संस्कृत की जगह इंग्लिश या अन्य भाषा के प्रयोग में वही परिणाम आएंगे या भिन्न आएगा?*

👉🏼 उत्तर - संस्कृत एक वैज्ञानिक भाषा है जो मनुष्य के स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर की स्टडी करके बनाई गई है। इसमें कम्युनिकेशन स्थूल और सूक्ष्म दोनों जगत में संभव है।

इसे तुम कम्प्यूटर जगत की मशीन कोड भाषा समझ सकते हो, जिसे मशीन से संवाद करने के लिए अन्य कम्पाइलर या मीडिएटर की जरूरत नहीं है।

अन्य भाषाएँ संस्कृत से उद्गम तो हुई है मगर केवल स्थूल कम्युनिकेशन को ध्यान में रखकर लिपिबद्ध की गई है।इन्हें कम्प्यूटर भाषा मे समझो तो java या .net

इंग्लिश या हिंदी भाषा को कम्पाइलर मीडिएटर की आवश्यकता पड़ती है।

इसी को सिद्ध किया है डॉक्टर रमा जय सुंदर ने

 एक संस्कृत में गायत्री मंत्र जप, इंग्लिश में अर्थ

परिणाम में ब्रेन सन्तुलन में संस्कृत गायत्री मंत्र बेस्ट साबित हुआ। ब्रेन प्रोग्रामिंग केवल संस्कृत में संभव है

https://youtu.be/zfJdBT8QkJo

👉🏼 संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है जो ध्वनि विज्ञान और नक्षत्र विज्ञान पर आधारित है।

ऋषिसत्ताओं ने निरंतर अथक प्रयासो के फलस्वरूप उन्होने  परिपूर्ण, पूर्ण शुद्ध,स्पष्ट एवं अनुनाद क्षमता से युक्त ध्वनियों को ही संस्कृत भाषा के रूप में चुना । सूर्य के एक ओर से 9 रश्मिया निकलती है और सूर्य के चारो ओर से 9 भिन्न भिन्न रश्मियों के निकलने से कुल निकली 36 रश्मियों की ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। और इन 36 रश्मियो के पृथ्वी के आठ वसुओ से टकराने से 72 प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। जिनसे संस्कृत के 72 व्यंजन बने। इस प्रकार ब्रह्माण्ड से निकलने वाली कुल 108 ध्वनियों पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित है। ब्रह्मांड की इन ध्वनियों के रहस्य का ज्ञान वेदो से मिलता है। इन ध्वनियों को नासा ने भी स्वीकार किया है जिससे स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन ऋषि मुनियो को उन ध्वनियों का ज्ञान था और उन्ही ध्वनियों के आधार पर उन्होने पूर्णशुद्ध भाषा को अभिव्यक्त किया। अतः प्राचीनतम आर्य भाषा जो ब्रह्मांडीय संगीत थी उसका नाम “संस्कृत” पड़ा। संस्कृत – संस् + कृत् अर्थात श्वासों से निर्मित अथवा साँसो से बनी एवं स्वयं से कृत , जो कि ऋषियों के ध्यान लगाने व परस्पर-संप्रक से अभिव्यक्त हुयी। कालांतर में पाणिनी ने नियमित व्याकरण के द्वारा संस्कृत को परिष्कृत एवं सर्वम्य प्रयोग मे आने योग्य रूप प्रदान किया

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 76 एवं 77)* 🔥

प्रश्न 76 - *यज्ञ अकेले करना ज्यादा लाभदायक है या समूह में?*

उत्तर - यज्ञ को वेदों में विशुद्ध रूप से सामूहिक करने को कहा है। यज्ञ सामूहिक ही करना चाहिए, इसके एकाकी प्रयोग को निरुत्साहित किया गया है। घर मे भी यज्ञ हो तो कम से कम पति-पत्नी दोनों साथ हो ही। यदि बच्चे है तो बच्चे भी यज्ञ में साथ हो ही। परिवार में अन्य सदस्य माता-पिता सहित हो तो सब साथ मिलकर यज्ञ करें। यदि आस पड़ोस को बुलाकर साथ यज्ञ करे तो और भी अच्छा है।

यज्ञाग्नि में उपस्थित जितने चेतन आत्म प्रतिनिधि होंगे यज्ञाग्नि में उतनी ही ज्यादा दिव्यता और भावनाओं का समावेश होगा। यज्ञ का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचेगा।

*नोट:-* दैनिक अग्निहोत्र और बलिवैश्व यज्ञ अकेले भी किया जा सकता है।

प्रश्न - 77- *यज्ञ परिवार निर्माण में किस प्रकार सहायक है?*

उत्तर- यज्ञ सामूहिकता का प्रतीक है। यज्ञ में परिवार के सामूहिक आहुति समर्पित करने से सबके मनोमालिन्य एक साथ दूर होते हैं। शुभ सँस्कार और यज्ञीय प्रेरणाएं मन में जागृत होते हैं। अंतःकरण परिष्कृत होता है, जनमानस का परिष्कार होता है। एक दूसरे के प्रति भाव सम्वेदना जगती है जो परिवार में प्रेम-सहकार-मित्रभाव जगाती है। परिवार को एक सूत्र में बांधती है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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