Saturday 11 May 2019

यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 81 से 99)* 🔥

[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 81 से 86)* 🔥

प्रश्न -81 -  *यज्ञ के दौरान यज्ञाहुति से पहले और यज्ञ आहुति के बाद बहुत सारी प्रक्रिया/कर्मकांड जल को लेकर करवाई जाती है जैसे पवित्रीकरण,न्यास इत्यादि। इसके पीछे कौन सा विज्ञान कार्य करता है?*

👉🏼उत्तर - कर्मकांड शरीर है और भावनाएं आत्मा। बिन भावनाओ के कर्मकांड का कोई महत्त्व नहीं है।

यज्ञ के लिये जरूरी भावनाएं उत्तपन्न करने के लिए इन आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक कर्मकांडो के माध्यम से वस्तुतः *सेल्फ हिप्नोसिस-स्व सम्मोहन एवं ऑटो सजेशन- स्व-संकेत* देकर मन का उपचार किया जाता है। मन की प्रोग्रामिंग की जाती है, जिससे परमात्म चेतना से जुड़ने के लिए मन तैयार हो सके।

*इन स्व सम्मोहन मंन्त्र निर्देशो से मस्तिष्क की गुप्त रचनात्मक शक्तियों का जागरण होता है* और नस-नाड़ियों में स्नायुतंतुओं में नए कार्य को संपादित करने के लिए नवचेतना का संचार हो जाता है। सभी मनोवैज्ञानिक इस कथन को एक स्वर में स्वीकारते हैं कि आत्मशक्ति के जागरण के लिए और परमात्म चेतना से जुड़ने के लिए मनुष्य को स्वंय ही अपने को निर्देश देना पड़ता है। यह आत्म विज्ञान - स्व सम्मोहन ऋषियों को पहले से ही पता था, इसलिए उन्होंने यह कर्मकांड मंन्त्र और उपक्रम रचे।

👉🏼प्रश्न - 82 - *यज्ञ से पूर्व पवित्रीकरण क्यों करते हैं?*

उत्तर - पवित्रीकरण मंन्त्र से हम अभिमंत्रित जल स्वयं पर छिड़कते है, आध्यात्मिक व मनोवैज्ञानिक तरीक़े से सेल्फ हिप्नोसिस करके मन की सकारात्मक शक्तियो को उभारते हैं और आत्मचेतना को परमात्म चेतना से जुड़ने योग्य पवित्र भावों से ओत-प्रोत करते हैं। अंदर बाहर पवित्रता का भाव बनाते है, मन मन्दिर की सफाई करके उसे परमात्मा के स्थापना के उपयुक्त बनाते हैं।

👉🏼प्रश्न - 83 - *यज्ञ से पूर्व तीन आचमन जल मुँह में क्यों डालते हैं?*

उत्तर - मन के तीन मुख्य भाग हैं-  मन, वाणी, अंतःकरण। पवित्रीकरण के बाद हम मन के और अंदर इन भीतरी भागो पर ध्यान केंद्रित करके  मंन्त्र के माध्यम से अभिमंत्रित जल के तीन आचमन के कर्मकांड द्वारा हम मनोवैज्ञानिक तरीक़े से सेल्फ हिप्नोसिस करके इन तीनों के शुभ संस्कारों को जागृत करते हैं।

प्रश्न - 84 - *यज्ञ से शिखा की जगह जल से स्पर्श क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - *चिद्रूपिणि* वाले मंन्त्र के माध्यम से अभिमंत्रित जल लेकर शिखा मूल के स्पर्श कर्मकांड द्वारा हम आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक तरीक़े से सेल्फ हिप्नोसिस करके स्वयं को याद दिलाते हैं कि मनुष्य हैं। हममें सोचने समझने की शक्ति देकर हमें भगवान ने बड़ा उत्तरदायित्व दिया है। ध्यान रहे कि मष्तिष्क की गतिविधियाँ उर्ध्वगामी रहें। संयम, सेवा, सदाचार, परोपकार की भावना का स्मरण रहे। माता गायत्री का शिखा मूल पर वास हो, जिससे केवल सकारात्मक विचारों का प्रवेश सुनिश्चित हो। नकारात्मकता के लिए कोई जगह शेष न हो। शुभ संस्कारो का चरित्र चिंतन व्यवहार में समावेश हो। शिखा में गांठ बंधने का अर्थ स्मरण रखना होता है। कहावत आपको पता होगी- *बात को गांठ बांध लो, जिससे भूले नहीं।*

प्रश्न - 85 - *यज्ञ से पहले प्राणायाम क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - प्राणायाम में प्राणों के व्यायाम के साथ प्राण ऊर्जा का विज्ञान छुपा है। यह प्राणायाम हम आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक तरीक़े से सेल्फ हिप्नोसिस करते हुए करते हुए भाव करते हैं कि क़ण कण में व्यापत पवित्र प्राण ऊर्जा को अभिमंत्रित श्वांस के माध्यम से भीतर खींच रहे हैं और पूरे शरीर को प्राणवान बना रहे हैं। श्वांस छोड़ते वक्त जो कुछ भी अपवित्र भीतर था उसे बाहर फेंकने का भाव करते हैं। इसमें पूरक, अन्तः कुम्भक, रेचक और बाह्य कुम्भक , इन चार प्रयोजनों द्वारा प्राणयाम करते हैं।

प्रश्न - 86- *यज्ञ से पहले न्यास क्यों करते हैं?*

उत्तर - पुनः यह भी आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक तरीक़े से इंद्रियों को नियंत्रित निर्देश देने की सेल्फ हिप्नोसिस ही है। इंद्रियों के द्वारा ही मनुष्य कार्य करता है, अतः इनका पवित्र रहना बहुत जरूरी है।

👄 *मुख* - मीठा और हितकर बोलें, भूख से कम और स्वास्थ्यकर खाएं।
👃🏻 *नाक* - गन्दगी न सुंघनी पड़े इसलिए हर जगह सफाई रखें। दूसरे के कार्य मे बेवजह नाक न घुसाये।
👀 *आंख* - दोष दृष्टि से बचें, शुभ दृष्टि रखें। अहितकर विकार उतपन्न करने वाले मनोरंजन हेतु दृश्य न देखें।
👂🏻 *कान* - चुगली-चपाटी से बचें, शुभ सुने। अहितकर विकार उतपन्न करने वाले मनोरंजन हेतु गीत-बातें न सुने। मन में शुभ सँस्कार जगाने वाले भजन, जिससे भला हो वो बाते सुने।
💪🏻💪🏻 *भुजा* - श्रेष्ठ कर्म और पुरुषार्थ करें। अनीति करने से बचें।
 *जंघा*- कामेन्द्रिय के दुरुपयोग से बचें, सन्मार्ग पर चलें

स्व संकेत- सेल्फ हिप्नोसिस करते हुए मंन्त्र द्वारा मर्यादा पालन के अनुशासन में समस्त इंद्रियों के साथ समस्त शरीर को मर्यादा के बन्धन में डालते हुए अभिमंत्रित जल से सात जगहों पर स्पर्श करते हैं।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 87 से 89)* 🔥

प्रश्न - 87 - *यज्ञ से पूर्व पृथ्वी पूजन क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - जिस पृथ्वी पर हम यज्ञीय शुभकर्म करने जा रहे हैं, उसे देवता मानकर आभार व्यक्त करते हुए पूजन करते हैं। इसके दो लाभ होते हैं, प्रथम कृतज्ञता व्यक्त हो जाती है और दूसरा अभिमंत्रित जल के स्पर्श से उस स्थान के शुभ सँस्कार जागृत हो जाते हैं। मातृभूमि का पूजन देव पूजन के साथ देश भक्ति को भी प्रदर्शित करता है, कर्तव्य बोध जगाता है, कि इस धरती की सुरक्षा का कर्यव्य हमारा है।

प्रश्न - 88 - *यज्ञ से पूर्व नए यग्योपवीत(जनेऊ) धारण क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - जनेऊ गायत्री माता की प्रतीक प्रतिमा है। इसके नौ धागे नौ सद्गुणों को प्राण पण से अपनाने और सतत बढ़ाने की प्रतिज्ञा/व्रत बन्ध/अनुबंध करवाते हैं। ये नौ गुण के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं- संयम, साहस, समर्थता, विवेक, पुरुषार्थ, उदारता, प्रशन्नता, पवित्रता, व्यवस्थता। इसी प्रधान कर्तव्य को अंतःकरण में स्थायी तौर पर प्रवेश करवाने के लिए मन्त्रों के माध्यम से आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक स्व-संकेत/सेल्फ हिप्नोसिस किया जाता है।

प्रश्न - 89 - *यज्ञ से पूर्व सङ्कल्प क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर- सङ्कल्प का कोई विकल्प नहीं होता। सङ्कल्प करते ही तन-मन उसे पूरा करने में जुट पड़ते हैं। कार्य छोटा हो या  बड़ा ढीले मन और गैर जिम्मेदारी से करने पर पूरा नहीं होता। मन रूपी घोड़े की लगाम सङ्कल्प है, केवल संकल्पों से मन को बांधा जा सकता है। आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक स्व-संकेत/सेल्फ हिप्नोसिस करके हम दैवीय शुभ सङ्कल्प से अभिमंत्रित जल के माध्यम से मन को बांध देते है, जिससे जो भी कार्य शुरू हुआ है उसे मन पूर्णता तक व्यवस्थित रूप से पूरा करे।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 90 एवं 91 )* 🔥

प्रश्न 90 - *यज्ञ क़े दौरान दीप प्रज्ज्वलन क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - पंच तत्वों में से एक तत्व अग्नि है। दीपक के माध्यम से वस्तुतः हम अपने अस्तित्व को जीवंत करते हैं ऊर्जा प्राप्त करते हैं। स्वयं को आत्मज्योति दीपक मानकर परमात्मा के चरणों मे समर्पित होते है।

आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक स्व संकेत स्वयं को देते हैं कि दीपक की तरह यदि स्वयं में परमात्म चेतना की ज्योति स्वयं में धारण करना है तो दीपक की तरह स्वयं की पात्रता बढ़ानी होगी, बाती की तरह संयमित जीवन रखना होगा, घी की तरह उपासना-साधना-आत्मियता विस्तार का ईंधन हमेशा भरना होगा।

दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा 5 मीटर के दायरे तक फैलती है।

प्रश्न 91 - *यज्ञ क़े दौरान तांबे का कलश क्यों रखते है?*

👉🏼 उत्तर - मनुष्य का शरीर यदि घट है तो उसमें भरा जल आत्म तत्व है।

जल शांति एवं शीतलता का प्रतीक है, पल्लव हरीतिमा विकास एवं स्नेह सौहार्द का सन्देश धारण किये हुए हैं। कलश में मंत्रोच्चार द्वारा समस्त दैवीय शक्तियो का आह्वाहन किया जाता है। यूँ तो कण कण में परमात्मा है, लेकिन ज्यों ही आप किसी कलश या मूर्ति में उनका ध्यान करते हैं तो मंन्त्र चुम्बकीय असर दिखाते है। भावना के अनुसार उनकी उपस्थिति वहां महसूस होती है।

तांबे का कलश सकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्माण्ड से पूजन स्थल की ओर खींचता है।

यज्ञ से उतपन्न अतिरिक्त कार्बन भी कलश का जल सोखकर शुद्ध वातावरण कर देता है। 

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 95 से 96)* 🔥

प्रश्न - 95 - *घृत-अवघ्राण क्यों करते हैं?*

👉🏼 उत्तर - यज्ञीय ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए आज्याहुति के समय टपकाये घी मिश्रित जल को यज्ञ कुंड के समक्ष गर्म करते है। यहां मन्त्रों के माध्यम से यज्ञ से तेजस, ओजस, वर्चस, मेधा इत्यादि मांगते है और भावना करते हैं यज्ञ से वो दिव्य अनुदान वरदान हमे मिल रहा है।

यज्ञाग्नि स्थूल और सूक्ष्म जगत के बीच आदान प्रदान का चैनल भी है, तो यज्ञ के दौरान स्वास्थ्य और सद्बुद्धि इत्यादि जो भी मांगी गई थी वो यज्ञ देवता देते हैं जो अत्यंत सूक्ष्म ऊर्जा होती है।घी मिश्रित जल में वो ऊर्जा चिपक जाती है और उसे चेहरे और शरीर मे लगाने पर वह हमारे भीतर प्रवेश कर जाती है।

वाटर मेमोरी - जल की अपनी यादाश्त होती है। पूरे यज्ञ के दौरान मंन्त्र तरंगों को आज्याहुति का घी मिश्रित जल स्टोर करता रहता है। जब इसे चेहरे पर लगाते है तो वही शुभ तरंगे हमारे भीतर प्रवेश करवाता है।

मंन्त्र द्वारा स्व संकेत देते हुए चेहरे पर लगाने का अर्थ यह है कि दिव्यता, त्याग, सहयोग और उदारता के भाव हमारे चेहरे पर उभरे।


प्रश्न - 96 - *यज्ञ भष्म धारण क्यों करते हैं?*

उत्तर - सनातन वैदिक धर्म में मृत्यु के पश्चात चिता यज्ञ होता है, और पंचतत्वों के विलीन होने के बाद मुट्ठी भर राख ही शेष रह जाती है।

भष्म धारण करते वक्त आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक स्व संकेत/सेल्फ हिप्नोसिस में मन के अंदर यह अहसास करवाया जाता है कि जीवन क्षण भंगुर है, अतः इसका एक भी पल व्यर्थ न करें। साथ ही इसके मोह में भी न पड़ें। कुछ ऐसा करे जिससे जीवन सार्थक हो। यह यज्ञीय भावना हम  मष्तिष्क के विचारों में, कंठ - वाणी से, भुजा - कर्म से, हृदय- निष्ठा से धारण करते हैं।

यह अग्नि मन्त्र की आहुति ग्रहण करने के कारण तीव्र ऊर्जा स्पंदन/वाईब्रेशन से भरी होती है। अभिमंत्रित होती है। जो अग्नि के शांत होने पर भी यज्ञ-भष्म के रूप  में लंबे समय तक सुरक्षित रहती है। इस ऊर्जा से पुनः जुड़ने के लिए एक चुटकी माथे पर लगाये। यह मष्तिष्क को ऊर्जावान बनाने में मदद करती है।

हम लोग यज्ञ भष्म एक डिब्बी में सुरक्षित रखते हैं, रोज सुबह माथे में गायत्री मंत्र बोलकर लगाते हैं। साथ ही घर से बाहर निकलने से पहले माथे में लगाते हैं।

कभी यदि सर भारी हुआ या काम की थकान से ऊर्जा कम लगती है, तो एक ग्लास पानी मे नन्ही एक चुटकी यज्ञ भष्म मिलाकर गायत्री मंत्र बोलकर पी लेते हैं।

अभिमंत्रित यज्ञ भष्म नकारात्मकता का शमन करती है, और सकारात्मकता में वृद्धि करती है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 92 से 94)* 🔥

प्रश्न - 92- *स्विष्टकृत होम क्यों करते हैं?*

उत्तर - यज्ञ में एक आहुति स्विष्टकृत मीठे पदार्थ की लगाई जाती है, जो कुछ भूल चूक हो गयी हो उसके क्षमा प्रार्थना के साथ। जैसे मीठे खाद्य पदार्थ भगवान को अर्पित हो रहे हैं वैसे ही संयम, सदाचार, पुरुषार्थ, परमार्थ के सूक्ष्म नैवेद्य भी अर्पित हो जिससे देवता संतुष्ट हो।

प्रश्न - 93- *वसोधारा क्यों करते हैं?*

👉🏼उत्तर - यज्ञ की आहुति का प्रारम्भ घी की सात आज्याहुति से होता है और अंतिम में भी घृत की सबसे बड़ी नीचे से ऊपर की ओर आहुति होती है। इसके पीछे भाव यह होता है कि कार्य के प्रारम्भ में जितना उत्साह था उसकी तरह या उससे ज्यादा उत्साह उसके अंत तक अविच्छिन बना रहे।

अक्सर लोग शुभ कार्य शुरू तो कर देते हैं, शुरू में उत्साह उमंग होता है। लेकिन कुछ दिनों बाद उत्साह ठंडा हो जाता हैं, शुभ सङ्कल्प टूट जाते हैं।

हम आध्यात्मिक मनोवैज्ञानिक स्व संकेत स्वयं को देते है कि, जो भी शुभ कार्य शुरू करेंगे उसे पूर्ण निष्ठा के साथ अंत तक निभाएंगे।

हवन में अंत मे पड़ा यह घी हवन सामग्री को वायुभूत तेजी से होने में मदद करता है।

प्रश्न - 94- *आरती क्यों करते हैं?*

👉🏼उत्तर - आर्त स्वर में भाव युक्त स्तुति आरती कहलाती है, जो आध्यात्मिक मनोविज्ञान शब्दो के माध्यम से देवता की शक्तियो से भक्त को अवगत करवाती है। देवता के प्रति भक्ति भाव जगाती है। साथ ही आरती में आश्वासन भी स्वयं को मिलता है कि ईश्वर हमारे साथ है उसकी शुभ दृष्टि हम पर है। अब सब अच्छा होगा। इस आरती को भक्तिभाव  और ध्यान से शब्दों के अर्थ को समझते हुए गाने से मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।


🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 97)* 🔥

प्रश्न 97- *नकारात्मक शक्ति के शमन के लिए यज्ञ किस प्रकार सहायक है? उदाहरण यदि कई महीनो से खाली मकान में किसी नकारात्मक शक्ति और ऊर्जा का आभास हो, पुश्तैनी मकान है।*

उत्तर - मकान उस घर में रहने वाले लोगों की ऊर्जा और विचारों को संग्रहित रखता है।

यदि आपसे पूर्व उस मकान में कुत्सित विचारो के लोग रह रहे होंगे तो आपको उस घर मे अशांति महसूस होगी।

भूत प्रेत की कल्पना और दिखना 99% कपोल काल्पनिक होता है। केवल 1% ही इसमें सच्चाई होती है। यदि उस घर में आगज़नी, अकाल मृत्यु, हत्याकाण्ड या कोई जघन्य अपराध और मर्डर हुआ होगा तो ही भूत-प्रेत की संभावना बनती है। अतः आसपास उस घर के लोगों का इतिहास तलाशिये फिर निर्णय पर पहुंचिए। केवल 1% मनुष्य वही प्रेत बनता है जो प्रचंड मोह में लालच में या बदले की भावना में होता है। अन्यथा सब मुक्त हो जाते हैं। मनुष्य का शरीर स्थूल हो या सूक्ष्म विद्युतीय एटम(परमाणु) से बना है और प्रत्येक कण स्वतन्त्र सृष्टि करने में सक्षम है। कभी कभी ऐसे ही कण  एक्टिवेट हो जाते है और स्वतन्त्र सृष्टि करके अपनी उपस्थिति का अहसास देते हैं।

बन्द पड़े घर एवं कमरे ऊर्जा युक्त शब्दों के अभाव में, प्रकाश के अभाव में भी थोड़े अशान्त और डरावने लगते है। कुछ हमारी कल्पना भी होती है।

किसी मृत व्यक्ति की सूक्ष्म प्रतिमा या नकारात्मक ऊर्जा ज्यादा कठोर न हुई तो इसे आसानी से हटाया जा सकता है। ऐसे मकानों में उर्जावान अधिक मनुष्यों के साथ रहने और ऊर्जा युक्त शब्दों को बोलने से और उनके मानवीय विद्युत की गर्मी से स्वतः घर की ऊर्जा ठीक हो जाती है, नकारात्मकता का शमन हो जाता है। दिव्य ऊर्जा युक्त गायत्री मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र से 40 दिन तक लगातार यज्ञ करने से किसी भी मकान की ऊर्जा को शुद्ध किया जा सकता है। वातावरण को शुद्ध किया जा सकता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान (प्रश्न 98)* 🔥

प्रश्न - 98- *वर्तमान विज्ञान के युग में यज्ञ का ज्ञान विज्ञान जन जन तक कैसे पहुंचाए? यज्ञ को धर्म से लोग जोड़कर देखते हैं?*

उत्तर - चिकित्सा क्षेत्र में हॉस्पिटल का नाम हिन्दू हो, डॉक्टर सुप्रसिद्ध और हिन्दू हो, आधुनिक चिकित्सा उपकरण हो, सफलता का रेट हाई हो तो क्या अन्य धर्म के रोगी इलाज़ करवाने नहीं आएंगे? जब जीवन चाहिए तो लोग बेस्ट डॉक्टर और बेस्ट हॉस्पिटल के पास जाएंगे।

भारतीय हिन्दू संस्कृति सबसे पुरानी है, जब यह संस्कृति थी तब किसी अन्य धर्म का जन्म ही नहीं हुआ था। ऋषिगण के महान रिसर्च संस्कृत भाषा मे किये गए और उनके नामकरण भी संस्कृत भाषा मे हुए।

पहले हमारा देश ही विश्व गुरु था लोग यहां के गुरु कुल से ही ज्ञान विज्ञान ले गए।

100 करोड़ से ज्यादा हिन्दू भारत में हैं और करोड़ो हिंदू धर्म को मानने वाले लोग विश्व मे हैं। सर्वप्रथम उन तक तो पहुंचाए, फिंर अन्य भी स्वतः जुड़ जाएंगे।

रिसर्च, सेमिनार, मीडिया, न्यूजपेपर, सोशल मीडिया से हम जन जन को वैज्ञानिकता से जोड़ सकते हैं। आसपास के लोगों को भी इसके लाभ से अवेयर करवा सकते हैं। यज्ञ केम्पेन बड़े स्तर पर चला सकते हैं। जो श्रद्धा से जुड़े उसे श्रद्धा से, जो ज्ञान से जुड़े उसे ज्ञान से और जो विज्ञान से जुड़े उसे विज्ञान से जोड़े।

*नाच न आवे, आंगन टेढ़ा* - जब हमें नाचना नहीं आता तो आंगन में कमी निकालते हैं।  *प्रश्न पत्र आउट ऑफ सिलेबस था* वही बच्चा बोलता है जिसकी तैयारी अधूरी होती है। *यज्ञ हिंदू नाम है इसे बदल दो* वही परिजन बोलता है, जिसका यज्ञ विषयक अध्ययन कमज़ोर और आत्मविश्वास की कमी है। *यज्ञ* का नाम बदलने की जरूरत नहीं है, जिस प्रकार *योग* और *ध्यान* को पूरे विश्व ने अपनाया है वैसे ही यज्ञ भी प्रतिष्ठित होगा, क्योंकि यह महाकाल का उद्घोष है। यदि नाम बदलने की ज़रूरत होती तो गुरूदेव स्वयं बदल देते। यज्ञ, हवन, अग्निहोत्र, यग्योपैथी, यज्ञ थैरेपी, बलिवैश्व जो भी प्रचलित नाम हैं उन्हें ही उपयोग में लें साथ ही इसकी वैज्ञानिकता को रिसर्च के माध्यम से प्रस्तुत करें। यज्ञ का स्वरूप दैवीय है, आधुनिक बनाने के चक्कर में इसका देवत्व मत हटाइये अन्यथा कुछ भी शेष नहीं रहेगा। साधारण औषधि जलाने वाले कार्य बनकर रह जाएंगे। बिन श्रद्धा युक्त मन्त्रों के औषधि के कारण प्रभाव को न प्राप्त कर सकेंगे।

गायत्री माता और यज्ञ पिता है, बच्चो का नाम बदला जाता है, माता पिता का नहीं।

विवेकानंद जी, स्वामी रामतीर्थ इत्यादि जैसे महापुरुष जिनकी धर्म संस्कृति की तैयारी अच्छी थी, उन्होंने विदेशी नाम, वेशभूषा,  और रहन सहन की नकल नहीं की। अपितु भारतीय संस्कृति की महानता से लोगों को परिचित करवाया।

यज्ञ का प्रचार दुसरो को बताने से पहले खुद गहराई से जानने की जरूरत है, पहले स्वयं यज्ञ की महानता, ज्ञान-विज्ञान और ऋषियों के रिसर्च पर गर्व कीजिये।  मन से हीन भावना निकालिए, भारतीय संस्कृति का गौरव पहचानिए। लोगों को भारतीय संस्कृति के गौरव से जोड़िये।

ज्ञान-विज्ञान पक्ष के साथ साथ भक्ति पक्ष पर भी ध्यान केंद्रित कीजिये। गुरु पर समर्पित हो जाइए, स्वयं को खाली करके स्वयं में गुरुचेतना भर लीजिये।

जब विदेशों में विवेकानन्द सत्संग कर रहे थे तो एक चित्रकार ने फोटो बनाया। सामने विवेकानन्द और उनके पीछे ठाकुर का चित्र बनाया। जबकि वहां ठाकुर थे ही नहीं। विवेकानंद आश्चर्य में भर गए।

अतः महाकाल युगऋषि के शिष्य हो उन पर भरोसा रखके तैयारी करो और फिर उनका आह्वाहन करके बोलो, सफ़लता जरूर मिलेगी।

यह अध्यात्म क्षेत्र है, यहाँ चेतना स्तर का विज्ञान है। इसे केवल स्थूल स्तर पर ही समझने समझाने में न उलझे, चेतना स्तर तक जाएं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
[5/11, 8:26 PM] 😊: 🔥 *यज्ञ विषयक शंका समाधान(प्रश्न 99)* 🔥
प्रश्न - *क्या लकवे(पैरालिसिस) का ईलाज आध्यात्मिक चिकित्सा व यग्योपैथी से संभव है?*

उत्तर - हाँजी संभव है।

लकवा एक ऐसी बीमारी जिसके बारे में सोचकर ही रूह कॉप उठती है। ये कहना गलत नहीं होगा कि लकवा जैसी बीमारी का नाम सुनते ही लोगों के मन में डर पड़ जाता है क्योंकि ये वो बीमारी है जिसकी वजह से लोगों के शरीर के अंग टेढ़े हो जाते हैं। लकवा का मतलब होता है मांस -पेशियों की गति का ख़त्म हो जाना और शरीर के अनेकों भागों का तालमेल ख़त्म हो जाना। जिनें भागों में लकवा मारता है जैसे हाथों, पैरों, चेहरे आदि उन्होंने विशेष भागों की मांस-पेशियों की गति ख़तम हो जाती है। मास-पेशियों की गति साथ-साथ इन में संवेदना की ग़ैर-मौजूदगी हो जाती है जिस से को उस जगह पर दर्द, ठंड, गर्मी आदि महसूस नहीं होती।

सांसारिक चिकित्सकों के अनुसार लकवे के साथ रोगी में प्रभावित भाग के ख़ून परवाह और मेटाबोलीक क्रियायों पर भी असर होता है।

आध्यात्मिक चिकित्सको के अनुसार 72 हज़ार नाड़ियों में प्राण का प्रवाह पूरे शरीर के भीतर और नाक से चार अंगुल बाहर तक होता है। जिस प्रकार रक्त वाहिका पूरे शरीर को रक्त पहुंचाती है, उसी तरह ये ब्रह्म नाड़ियां पूरे शरीर मे प्राण पहुंचाती है। स्थूल हृदय ऑक्सीजन और रक्त को पम्प करके शुद्धिकरण का कार्य करता है, इसी तरह सूक्ष्म अंतःकरण प्राण को पम्प करके प्राण प्रवाह का संचार करता है। प्राण प्रवाह का जिन अंगों से सम्पर्क टूटा वो लकवा ग्रस्त हो जाते हैं, ब्रेन के विद्युत सन्देश सुनकर रिएक्ट नहीं कर पाते।

इस रोग से मुक्ति के लिए स्थूल स्तर पर और सूक्ष्म स्तर पर दोनों पर प्रयास करना पड़ेगा।

1- स्थूल स्तर पर दवाइंया खाएं
2- देशी लहसन की कली का सेवन करें
3- मंन्त्र पढ़ते हुए प्राणिक हीलिंग के साथ मालिश करें
4- लकवा ग्रस्त अंग पर ध्यान द्वारा प्राण संचार करने की कोशिश करें
5- यग्योपैथी में सम्बन्धित औषधि देवसस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार उत्तराखंड से लाकर नित्य यज्ञ करें। घृत अवघ्राण के बाद वही जल लकवा ग्रस्त अंग पर लगाएं। अभिन्त्रित यज्ञ भष्म लगाएं।
6- प्राणाकर्षण और नाड़ीशोधन प्राणायाम करें।
7- लोकल्याण का ऐसा कोई कार्य करें जिससे आत्म संतुष्टि मिले।
8- चेतना स्तर पर इलाज केवल श्रद्धा विश्वास पर आधारित है। अतः इलाज के दौरान विश्वास बनाये रखें।
9- गायत्री मंत्र जप और उगते हुए सूर्य का ध्यान प्राण का संचार की मरम्मत करता है। जल्दी लाभ मिलता है।
10- खाली पेट गौ अर्क का सेवन करें एवं धैर्यपूर्वक कम से कम 6 महीने उपरोक्त इलाज अपनाएं। प्रारब्ध कटेगा और स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ?

 प्रश्न - जप करते वक्त बहुत नींद आती है, जम्हाई आती है क्या करूँ? उत्तर - जिनका मष्तिष्क ओवर थिंकिंग के कारण अति अस्त व्यस्त रहता है, वह जब ...