Sunday 12 May 2019

प्रश्न - *शिष्यों के बीच मदभेद क्यूँ होता है? भूलें क्यों होती है? या ज़िद्द क्यों करते हैं कि उनने जो समझा वही सत्य है, वही गुरुकार्य है?*

प्रश्न - *शिष्यों के बीच मदभेद क्यूँ होता है? भूलें क्यों होती है? या ज़िद्द क्यों करते हैं कि उनने जो समझा वही सत्य है, वही गुरुकार्य है?*

उत्तर - गुरूदेव साक्षात महाकाल हैं, उन्हें एक हाथी की तरह मानो, और उनके शिष्यों को चेतना दृष्टि से अंधा मानो। जिसके हाथ के स्पर्श में जो आया वो उसने वही गुरुदेव का प्रारूप समझ लिया, गुरुकार्य है। कठिनाई एक और बड़ी यह है कि विशाल 3200 से ज्यादा सत्साहित्य जिसे पूरा पढ़ना किसी के लिए भी असम्भव है।

जितने बड़े गुरूदेव उतनी बड़ी उनकी योजना - युगनिर्माण योजना। जिस योजना के लिए सप्त आंदोलन और शत सूत्रीय कार्यक्रम दिए गए हैं। विचार क्रांति से इसकी शुरुआत करनी है अंत कहाँ है किसी को पता नहीं।

यज्ञ पिता और गायत्री माता का दर्शन, स्वरूप और ज्ञान विज्ञान उतना ही विशाल है।

जब तक चेतन दृष्टि/आत्म दृष्टि  खुलेगी नहीं, शिष्यों से मिशन समझने में भूलें होती रहेंगी।

क्या पता हम सब जिसे युगनिर्माण समझ रहे हैं वो भी पूरी योजना का 1% भी न हो।

कौन किस जगह किस एंगल से युगनिर्माण को देख रहा है, यह पता नहीं है। किसके हाथ मे हाथी का पैर है, किसके हाथ में कान और किसके हाथ मे सूंड पता नहीं। अतः मतभेद स्वभाविक है।

अतः जिसे जो शत सूत्रीय कार्यक्रम से कार्य समझ आ रहा है, उस कार्य को पूर्ण समर्पण और निष्ठा से करें। कोई यदि किसी दूसरे कार्य को शत सूत्रीय कार्यक्रम में से कर रहा है तो उसे करने दें। जिसने जो साहित्य पढ़ा उसे अच्छे से प्रस्तुत करे।

गुरु साक्षात महाकाल हैं, जिसके अंदर वो जो प्रेरणा दे रहे हैं वो उसे पकड़े और समर्पित होकर उसे करने में जुट जाए। किसी और को हतोत्साहित न करे, हो सकता है दूसरे को महाकाल ने कुछ और करने को प्रेरित किया हो।

जिन शिष्यों को आपके समान प्रेरणा मिली है उनके साथ टीम वर्क करे, दूसरे को जो सहयोग कर सकते हैं उसे कर दें। क्योंकि अंत मे सबकी मंजिल एक ही है, एक ही मिशन में सब जुटे हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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