Sunday, 5 May 2019

प्रश्न - *आध्यात्मिक उन्नति में विवाह सहायक है या बाधक? क्या उत्तम है ग्रहस्थ जीवन या ब्रह्मचर्य धारण कर सन्यासी बनना।*

प्रश्न - *आध्यात्मिक उन्नति में विवाह सहायक है या बाधक? क्या उत्तम है ग्रहस्थ जीवन या ब्रह्मचर्य धारण कर सन्यासी बनना।*

उत्तर - आत्मीय भाई, उत्तम और सर्वश्रेष्ठ मार्ग ब्रह्मचर्य धारण करके सन्यासी बनना है।

लेकिन....समस्या यह है कि शादी ऐसा लड्डू जो खाये सो पछताए और जो न खाए वो भी पछताए। अतः उत्तम यह है कि खा लो, जिससे साधना के वक़्त लड्डू की याद में मुंह से लार न आये।

केवल जंगल या हिमालय में एकांत तप से भगवान और आत्मज्ञान नहीं मिलता। यह एकांत सहायक है कोई सांसारिक व्यक्ति डिस्टर्ब नहीं करता, लेकिन प्रकृति जन्य हिंसक पशु-पक्षी-जंतु और विपरीत मौसम वहां भी परेशानी खड़ी करते हैं। वहां हिमालय की शांति और मनुष्य के स्वर का न होना कभी कभी भ्रम पैदा करता है कि परमशान्ति मिल गयी। लेकिन वस्तुतः वह बाह्य शांति है भीतरी नहीं। एक डेमो घर में करके देखो, यदि कांच के खिड़की दरवाज़े है तो सब बन्द करके लाइट बन्द करके निःशब्द बैठ जाओ, बड़ी शांति महसूस होगी। या घर से दूर किसी पहाड़ी स्थान में जाओ और सुबह 3 बजे किसी निर्जन स्थान पर केवल मौन होकर बैठ जाओ, बड़ी शांति महसूस होगी। मगर यह बाह्य शांति है भीतरी नहीं। यह परमशान्ति नहीं है।

अकेले दौड़ोगे तो जीत तुम्हारी है और हार भी तुम्हारी ही है। बिना परीक्षा के पढ़ाई के पास होने में जितना लाभ है उतना ही नुकसान भी है। बिन परीक्षा पता नहीं चलता योग्यता क्या है।

ओलंपिक का बेस्ट तीरंदाज या शूटर बनने में जैसे विवाह न बाधक है और न हीं बाह्य ब्रह्मचर्य सहायक है। उसी प्रकार आध्यात्मिक सफलता में न विवाह बाधक है और न ही बाह्य ब्रह्मचर्य सहायक है। शरीर और मन को साधना है लक्ष्य की ओर एकाग्र होना है। तीरंदाज या शूटर बनने में बाहरी कठिन ठहराव, अभ्यास- प्रयास है, और भगवत्प्राप्ति और आत्मज्ञान में भीतरी ठहराव, अभ्यास और प्रयास है।

अध्यात्म मार्ग बाहर नहीं भीतर की ओर यात्रा है, जिसमें सिद्ध सदगुरु और ईश्वर के अतिरिक्त कोई साथ नहीं चल सकता। यहां अकेले ही जाना है।

विवाह एक ऋषियों द्वारा बनाई सुव्यवस्था है, जिससे मनुष्य की इच्छाएँ शारीरिक, भावनात्मक, सामाजिक नियंत्रित और मर्यादित रूप से पूरी हो सकें। उतपन्न सन्तान को पालक मिले, उनका समाजिक विधि से लालन पालन हो सके। नदी यदि मर्यादा में न रहे तो बाढ़ की त्रासदी होगी, अग्नि यदि मर्यादा में न रहे तो आगजनी होगी। अमर्यादित स्त्री बाढ़ की तरह कुल और समाज डुबो देगी, अमर्यादित पुरुष अग्नि की तरह कुल और समाज को जला देगा।

अतः अग्नि रूपी पुरुष को जल के घेरे में विवाह करके मर्यादा के बंधन में बांध दिया जाता है। स्त्री रूपी नदी को अग्नि रूपी पुरुष से विवाह कराके उसके जल का वाष्पीकरण कराया जाता है, जिससे जल मर्यादित रहे।

यदि ब्रह्मचर्य पालन में तुम कामाग्नि को कठोर तप और साधना से स्वतः नियंत्रित कर सकते हो, तो तुम्हे विवाह रूपी जल के घेरे की आवश्यकता नहीं है। यदि स्वयं में कॉन्फिडेंस नहीं है तो विवाह कर लो।

आध्यात्मिक अंतर्जगत यात्रा में न विवाह बाधक है और न ही केवल बाह्य ब्रह्मचर्य सहायक है। मन को साधना है, ब्रह्मचर्य वस्तुतः मानसिक करना है। शरीर से विवाह हुआ या शरीर ब्रह्मचारी है कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। फ़र्क़ मन में उठ रहे भावों, विचारो और उनके नियमन से पड़ेगा।

ध्यान केवल बैठकर ही नहीं किया जाता, ध्यान 24 घण्टे किया जाता है। होशपूर्वक जिया जाता है, स्वयं के अस्तित्व में परमात्मा का अस्तित्व ढूंढा जाता है। भगवान को केवल स्वयं के भीतर ही पाया जा सकता है, अन्यत्र कहीं नहीं यह ब्रह्मसत्य है। योगी ऑफिस में लेपटॉप के समक्ष कार्य करते हुए भी मन में समाधि ले सकता है, योगी किचन में भोजन बनाते हुये भी समाधिस्थ रह सकता है। आत्मा तेल और शरीर जल को पृथक अनुभव कर सकता है, किसी भी स्थान में, कहीं भी, कभी भी।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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