*आम दृष्टि बनाम तत्वदृष्टि का चश्मा*
कड़ी धूप में यदि धूप का चश्मा लगा लो तो राहत मिलती है। छाया सा अनुभव होता है।
उसी तरह संसार की तप्त परिस्थिति में तत्वदृष्टि का चश्मा लगा लो, तो कुछ अलग सा अनुभव होता हैं।
👉🏼 आम दृष्टि में विभिन्न आभूषण लेकिन सोनार की तत्वदृष्टि में मात्र सोना।
👉🏼 आम दृष्टि में स्त्री-पुरुष, लेकिन सन्तों की तत्वदृष्टि में पंचमहाभूत का वस्त्र धारण किये आत्मा।
👉🏼 आम दृष्टि से मनुष्य शरीर और मन ही सबकुछ है, इसकी तृप्ति के लिए जियो। तत्वदृष्टि से यह शरीर सराय है और मन एक नौकर, स्वामी तो आत्मा है। अतः आत्म तृप्ति के लिये जियो।
👉🏼 आम दृष्टि में स्वादिष्ट भोजन जिह्वा के लिए, तत्वदृष्टि में शरीर का ईंधन
👉🏼 आम दृष्टि में आनन्द वस्तुओं, यश, पद, प्रतिष्ठा में है। तत्वदृष्टि से आनन्द भीतर है।
👉🏼 संसार दुःखमय है उनके लिए है जो दुष्पूर इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति में जनमानस लगा है। संसार सुखमय उनके लिए है जो स्वयं में पूर्ण है और अन्तः जगत के झरने का अमृत पी रहा है।
👉🏼 वह विजयी है जो स्वयं के कल और आज से प्रतिस्पर्धा कर रहा है, जो समय के साथ दौड़ लगा रहा है। वह हारा हुआ है जो दूसरों से प्रतिस्पर्धा में लगा है।
👉🏼 शरीर है तो बीमारी है, बीमारी में भी कुछ का इलाज है और कुछ लाइलाज़ है। जिनका इलाज संभव है उनका करवा लो, जो लाइलाज है उनको स्वीकार लो।
👉🏼 गणित में समस्या हल करने के लिए सूत्र में हम कहते है *माना कि* x = y, फ़िर समस्त जोड़-घटाव-गुणा-भाग करके उत्तर निकाल लेते हैं । इसी तरह जीवन की समस्या हल करने के लिए हम *माना कि ईश्वर है*, फिंर विभिन्न प्रयास करते हैं और उत्तर हमें मिल जाता है।
👉🏼 कटु सत्य है- एक ही मन्दिर और एक ही भगवान सबको समान अनुभूत नहीं होता। अद्भुत है अध्यात्म में ईश्वर की उपस्थिति जब तक दृढ़ विश्वास और श्रद्धा न हो, अनुभूति नहीं होती। अब भगवान की शक्ति तभी नज़र आएगी जब भक्त की भक्ति में शक्ति होगी। *भक्त की भक्ति से भगवान की शक्ति का जन्म होता है, यदि यह कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। वस्तुतः भक्त की भक्ति ही भगवान की शक्ति को जन्म देती है। अगर ऐसा न होता तो एक आराध्य की उपासना-साधना-आराधना करने वालों को एक से लाभ मिलते।*
👉🏼 आंतरिक सफ़लता जप-तप से मिलती है, अच्छी यादाश्त, फोकस, बुद्धिकुशलता, बुद्धि की प्रखरता, तेजस, वर्चस।
👉🏼सांसारिक सफ़लता केवल आध्यात्मिक जप-तप से नहीं मिल सकती। सांसारिक सफ़लता के लिए सांसारिक प्रयास करना होगा। बिना पढ़े पास होना संभव नहीं है, बिना लड़े युद्ध जीतना संभव नहीं है। सांसारिक सफ़लता दो चाबियों से खुलती है - 1- सांसारिक प्रयास और 2- आध्यात्मिक प्रयास
👉🏼 तत्वदृष्टि से स्वयं को, परिवार को और दुनियाँ को देखो, अभी इसी वक़्त आनन्द मार्ग की ओर बढ़ो।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
कड़ी धूप में यदि धूप का चश्मा लगा लो तो राहत मिलती है। छाया सा अनुभव होता है।
उसी तरह संसार की तप्त परिस्थिति में तत्वदृष्टि का चश्मा लगा लो, तो कुछ अलग सा अनुभव होता हैं।
👉🏼 आम दृष्टि में विभिन्न आभूषण लेकिन सोनार की तत्वदृष्टि में मात्र सोना।
👉🏼 आम दृष्टि में स्त्री-पुरुष, लेकिन सन्तों की तत्वदृष्टि में पंचमहाभूत का वस्त्र धारण किये आत्मा।
👉🏼 आम दृष्टि से मनुष्य शरीर और मन ही सबकुछ है, इसकी तृप्ति के लिए जियो। तत्वदृष्टि से यह शरीर सराय है और मन एक नौकर, स्वामी तो आत्मा है। अतः आत्म तृप्ति के लिये जियो।
👉🏼 आम दृष्टि में स्वादिष्ट भोजन जिह्वा के लिए, तत्वदृष्टि में शरीर का ईंधन
👉🏼 आम दृष्टि में आनन्द वस्तुओं, यश, पद, प्रतिष्ठा में है। तत्वदृष्टि से आनन्द भीतर है।
👉🏼 संसार दुःखमय है उनके लिए है जो दुष्पूर इच्छाओं और वासनाओं की पूर्ति में जनमानस लगा है। संसार सुखमय उनके लिए है जो स्वयं में पूर्ण है और अन्तः जगत के झरने का अमृत पी रहा है।
👉🏼 वह विजयी है जो स्वयं के कल और आज से प्रतिस्पर्धा कर रहा है, जो समय के साथ दौड़ लगा रहा है। वह हारा हुआ है जो दूसरों से प्रतिस्पर्धा में लगा है।
👉🏼 शरीर है तो बीमारी है, बीमारी में भी कुछ का इलाज है और कुछ लाइलाज़ है। जिनका इलाज संभव है उनका करवा लो, जो लाइलाज है उनको स्वीकार लो।
👉🏼 गणित में समस्या हल करने के लिए सूत्र में हम कहते है *माना कि* x = y, फ़िर समस्त जोड़-घटाव-गुणा-भाग करके उत्तर निकाल लेते हैं । इसी तरह जीवन की समस्या हल करने के लिए हम *माना कि ईश्वर है*, फिंर विभिन्न प्रयास करते हैं और उत्तर हमें मिल जाता है।
👉🏼 कटु सत्य है- एक ही मन्दिर और एक ही भगवान सबको समान अनुभूत नहीं होता। अद्भुत है अध्यात्म में ईश्वर की उपस्थिति जब तक दृढ़ विश्वास और श्रद्धा न हो, अनुभूति नहीं होती। अब भगवान की शक्ति तभी नज़र आएगी जब भक्त की भक्ति में शक्ति होगी। *भक्त की भक्ति से भगवान की शक्ति का जन्म होता है, यदि यह कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। वस्तुतः भक्त की भक्ति ही भगवान की शक्ति को जन्म देती है। अगर ऐसा न होता तो एक आराध्य की उपासना-साधना-आराधना करने वालों को एक से लाभ मिलते।*
👉🏼 आंतरिक सफ़लता जप-तप से मिलती है, अच्छी यादाश्त, फोकस, बुद्धिकुशलता, बुद्धि की प्रखरता, तेजस, वर्चस।
👉🏼सांसारिक सफ़लता केवल आध्यात्मिक जप-तप से नहीं मिल सकती। सांसारिक सफ़लता के लिए सांसारिक प्रयास करना होगा। बिना पढ़े पास होना संभव नहीं है, बिना लड़े युद्ध जीतना संभव नहीं है। सांसारिक सफ़लता दो चाबियों से खुलती है - 1- सांसारिक प्रयास और 2- आध्यात्मिक प्रयास
👉🏼 तत्वदृष्टि से स्वयं को, परिवार को और दुनियाँ को देखो, अभी इसी वक़्त आनन्द मार्ग की ओर बढ़ो।
🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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