प्रश्न - *बच्चे का जन्म तो ख़ुशी और उत्सव मनाने वाली बात है तो फ़िर सूतक क्यों लगता है? घर में 10 दिन पूजन क्यों नहीं करते। मृत्यु दुःख का कारण है और इसमें सूतक लगे तो बात समझ मे आती है। कृपया समाधान दें।*
उत्तर - आत्मीय बहन,
50 रुपये का मटका और 100 रुपये का फूलों का गुलदस्ता लिया। दूसरे दिन फूल मुरझाए 100 रुपये व्यर्थ हुए तो दुःख न हुआ लेकिन दूसरे दिन 50 रुपये का मटका टूटा तो दुःखी हो गए। मटका के टूटने की अपेक्षा न थी और फूलों के मुरझाने की बात मन में पहले से क्लियर थी। दोनों ही घटनाएं है सुख और दुःख तो आपकी सोच की और अपेक्षा की उपज है। सुख और दुःख वास्तव में मन की उपज है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं, जन्म-मृत्यु से कोई लेना देना नहीं।
कोई घर में आये या कोई घर से बाहर जाए मुख्य दरवाजा घर का तो खोलना ही पड़ेगा।
अब किसी के आने या किसी के जाने पर आपको दुःख या सुख की अनुभूति आपकी व्यक्तिगत है और भावनात्मक है। इससे किसी के आने(बच्चे के जन्म) और किसी के जाने(किसी की मृत्यु) से दरवाज़े (स्थूल से सूक्ष्म के बीच) के खुलने के कार्य तो होगा ही। अतः सूतक तो दोनों ही परिस्थिति में लगेगा। यज्ञ द्वारा सूक्ष्म के शुद्धिकरण दोनों ही परिस्थिति में होगा।
बाहर यदि हवा चल रही हो तो दरवाजा खोलकर घर मे झाड़ू तो नहीं लगा सकते। इसी तरह सूक्ष्म और स्थूल के बीच का दरवाजा जन्म या मृत्यु के कारण किसी भी घर में खुला हो पूर्ण बन्द होंने में 10 दिन लगते है। सूक्ष्म की हलचल और तरंगों के प्रवेश के वक़्त (सूतक में) आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं पूजन एवं यज्ञ करना मना किया जाता है।
यह सत्य भारत सरकार भी समझती है, जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन का एक ही ऑफिस और डिपार्टमेंट है। जन्म से कोई सुखी हो या किसी अपने की मृत्यु के कारण दुःखी हो, दोनों ही परिस्थिति में रजिस्ट्रेशन तो करवाना ही पड़ेगा।
अतः सुख एवं दुःख मन की स्थिति है। जबकि जन्म और मृत्यु मात्र एक घटना है। एक में आत्मा नया शरीर धारण करती है और दूसरे में आत्मा शरीर छोड़ती है। एक ही आत्मा जहाँ से जाती है वहाँ लोग दुःखी और वही आत्मा जब दूसरी जगह जन्मती है तो लोग उत्साह मनाते हैं।
उम्मीद है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन,
50 रुपये का मटका और 100 रुपये का फूलों का गुलदस्ता लिया। दूसरे दिन फूल मुरझाए 100 रुपये व्यर्थ हुए तो दुःख न हुआ लेकिन दूसरे दिन 50 रुपये का मटका टूटा तो दुःखी हो गए। मटका के टूटने की अपेक्षा न थी और फूलों के मुरझाने की बात मन में पहले से क्लियर थी। दोनों ही घटनाएं है सुख और दुःख तो आपकी सोच की और अपेक्षा की उपज है। सुख और दुःख वास्तव में मन की उपज है इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं, जन्म-मृत्यु से कोई लेना देना नहीं।
कोई घर में आये या कोई घर से बाहर जाए मुख्य दरवाजा घर का तो खोलना ही पड़ेगा।
अब किसी के आने या किसी के जाने पर आपको दुःख या सुख की अनुभूति आपकी व्यक्तिगत है और भावनात्मक है। इससे किसी के आने(बच्चे के जन्म) और किसी के जाने(किसी की मृत्यु) से दरवाज़े (स्थूल से सूक्ष्म के बीच) के खुलने के कार्य तो होगा ही। अतः सूतक तो दोनों ही परिस्थिति में लगेगा। यज्ञ द्वारा सूक्ष्म के शुद्धिकरण दोनों ही परिस्थिति में होगा।
बाहर यदि हवा चल रही हो तो दरवाजा खोलकर घर मे झाड़ू तो नहीं लगा सकते। इसी तरह सूक्ष्म और स्थूल के बीच का दरवाजा जन्म या मृत्यु के कारण किसी भी घर में खुला हो पूर्ण बन्द होंने में 10 दिन लगते है। सूक्ष्म की हलचल और तरंगों के प्रवेश के वक़्त (सूतक में) आध्यात्मिक अनुष्ठान एवं पूजन एवं यज्ञ करना मना किया जाता है।
यह सत्य भारत सरकार भी समझती है, जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रेशन का एक ही ऑफिस और डिपार्टमेंट है। जन्म से कोई सुखी हो या किसी अपने की मृत्यु के कारण दुःखी हो, दोनों ही परिस्थिति में रजिस्ट्रेशन तो करवाना ही पड़ेगा।
अतः सुख एवं दुःख मन की स्थिति है। जबकि जन्म और मृत्यु मात्र एक घटना है। एक में आत्मा नया शरीर धारण करती है और दूसरे में आत्मा शरीर छोड़ती है। एक ही आत्मा जहाँ से जाती है वहाँ लोग दुःखी और वही आत्मा जब दूसरी जगह जन्मती है तो लोग उत्साह मनाते हैं।
उम्मीद है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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