प्रश्न - 117 *यज्ञ में स्वाहा के बाद "इदं न मम्" क्यों बोलते हैं?*
उत्तर - "इदं न मम्" अर्थात यह मेरा नहीं है। प्रभु आपका दिया हुआ आपको समर्पित है, तेरा तुझको अर्पण वाला भाव निर्मित किया जाता है।
यदि "इदं न मम्" नहीं बोलते तो अहंकार जन्म लेता है कि यह मेरा है मैंने यज्ञ किया। "अहंकार" नींबू रस की तरह है जो यज्ञ रूपी दूध को फाड़ देता है, तब उससे ईष्ट सिद्धि का मक्खन नहीं निकल सकता।
👉🏼👉🏼👉🏼 *कहानी से समझें* - एक वृक्ष के सभी पत्ते "इदं न मम्" की भावना से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हवा, वृक्ष की जड़ो से पहुंचाए जल और वायु से प्रकाशसंश्लेषण यज्ञ करते और अपने सत्कर्मों से वृक्ष के लिए भोजन बनाकर वृक्ष को हराभरा ताक़तवर बनाने की आहुति देते, जनकल्याण के लिए प्राणवायु(ऑक्सीजन) उत्सर्जित करते। सभी लोग वृक्ष और पत्तों की भूरि भूरि प्रसंशा करते। एक बार एक पत्ते को "अहंकार" हो गया। बोला हम न हों तो न वृक्ष को पोषण मिलेगा और न दुनियाँ को प्राणवायु मिलेगी। "मैं" "मैं" रटने लगा। सबने समझाया पर वो न समझा। अहंकार के कारण उसका सम्पर्क वृक्ष की प्राण चेतना और सूर्य की सविता चेतना से टूट गया। योग से वियोग हो गया। नीचे टूटकर गिर गया और गिरते ही उसे पवन उड़ा ले गयीं। वही सूर्य का प्रकाश जो कभी उसे भोजन बनाने में मदद करता था आज उसे सुखाने लगा। वह सुखने लगा स्वयं के जीवन निर्वहन के लिए भोजन तक न बना सका। उसे अब बात में समझ आयी कि उसकी योग्यता का प्रमुख स्रोत तो वृक्ष ही था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी, दरदर भटकते हुए निष्प्राण हो गया।
मिशन में सदगुरु युगऋषि वृक्ष हैं और हम सब पत्ते बड़े बड़े कार्य रूपी यज्ञ कर रहे हैं। जगह जगह मान प्रतिष्ठा मिल रहा है। जब तक गुरुकार्य यज्ञ "इदं न मम्" के भाव से होगा सफ़लता दिन दूनी रात मिलेगी। "अहंकार" के उद्भव होते ही, सद्गुरु की प्राण चेतना से सम्पर्क टूट जाएगा। फिंर जीवन में "भटकन" शेष बचेगी। तब तक शायद पुनः लौटने की उम्मीद ही न बचे, निष्प्राण कार्य योजना हो जाएगी। मिशन है तो हम हैं, जड़ से पोषण मिल रहा है तो हम कुछ कर पा रहे है। अतः जड़ को समझें और "इदं न मम्" का भाव प्रत्येक कार्य मे बनाएं रखें।
"इदं न मम्" का भाव आज घर घर "गृहे गृहे यज्ञ" के माध्यम से पहुंचाए। सबको सद्गुरु की प्राण चेतना और सूर्य की सविता शक्ति से जोड़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - "इदं न मम्" अर्थात यह मेरा नहीं है। प्रभु आपका दिया हुआ आपको समर्पित है, तेरा तुझको अर्पण वाला भाव निर्मित किया जाता है।
यदि "इदं न मम्" नहीं बोलते तो अहंकार जन्म लेता है कि यह मेरा है मैंने यज्ञ किया। "अहंकार" नींबू रस की तरह है जो यज्ञ रूपी दूध को फाड़ देता है, तब उससे ईष्ट सिद्धि का मक्खन नहीं निकल सकता।
👉🏼👉🏼👉🏼 *कहानी से समझें* - एक वृक्ष के सभी पत्ते "इदं न मम्" की भावना से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में हवा, वृक्ष की जड़ो से पहुंचाए जल और वायु से प्रकाशसंश्लेषण यज्ञ करते और अपने सत्कर्मों से वृक्ष के लिए भोजन बनाकर वृक्ष को हराभरा ताक़तवर बनाने की आहुति देते, जनकल्याण के लिए प्राणवायु(ऑक्सीजन) उत्सर्जित करते। सभी लोग वृक्ष और पत्तों की भूरि भूरि प्रसंशा करते। एक बार एक पत्ते को "अहंकार" हो गया। बोला हम न हों तो न वृक्ष को पोषण मिलेगा और न दुनियाँ को प्राणवायु मिलेगी। "मैं" "मैं" रटने लगा। सबने समझाया पर वो न समझा। अहंकार के कारण उसका सम्पर्क वृक्ष की प्राण चेतना और सूर्य की सविता चेतना से टूट गया। योग से वियोग हो गया। नीचे टूटकर गिर गया और गिरते ही उसे पवन उड़ा ले गयीं। वही सूर्य का प्रकाश जो कभी उसे भोजन बनाने में मदद करता था आज उसे सुखाने लगा। वह सुखने लगा स्वयं के जीवन निर्वहन के लिए भोजन तक न बना सका। उसे अब बात में समझ आयी कि उसकी योग्यता का प्रमुख स्रोत तो वृक्ष ही था। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी, दरदर भटकते हुए निष्प्राण हो गया।
मिशन में सदगुरु युगऋषि वृक्ष हैं और हम सब पत्ते बड़े बड़े कार्य रूपी यज्ञ कर रहे हैं। जगह जगह मान प्रतिष्ठा मिल रहा है। जब तक गुरुकार्य यज्ञ "इदं न मम्" के भाव से होगा सफ़लता दिन दूनी रात मिलेगी। "अहंकार" के उद्भव होते ही, सद्गुरु की प्राण चेतना से सम्पर्क टूट जाएगा। फिंर जीवन में "भटकन" शेष बचेगी। तब तक शायद पुनः लौटने की उम्मीद ही न बचे, निष्प्राण कार्य योजना हो जाएगी। मिशन है तो हम हैं, जड़ से पोषण मिल रहा है तो हम कुछ कर पा रहे है। अतः जड़ को समझें और "इदं न मम्" का भाव प्रत्येक कार्य मे बनाएं रखें।
"इदं न मम्" का भाव आज घर घर "गृहे गृहे यज्ञ" के माध्यम से पहुंचाए। सबको सद्गुरु की प्राण चेतना और सूर्य की सविता शक्ति से जोड़ें।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment