प्रश्न - *गायत्री महामंत्र का भगवान सूर्यनारायण एवं गायत्री माता से क्या सम्बन्ध है?*
उत्तर - यजुर्वेद के अध्याय 3 के श्लोक 100 में गायत्री के 24 अक्षर गायत्री छंद में वर्णित है, जिसका भावार्थ इस प्रकार है:-
*तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*
भावार्थ - सम्पूर्ण जगत के जन्मदाता सविता(सूर्य) देवता की उत्कृष्ट ज्योति का हम ध्यान करते हैं, जो (तेज़ सभी सत्कर्मों को सम्पादित करने के लिये) हमारी बुद्धि को प्रेरित करता है।
मनुष्य बुद्धि से इंद्र, अग्नि, सूर्य इत्यादि किसी देवता का रूप वाचक नाम है, पर आध्यात्मिक दृष्टि से यह दैवीय शक्तिधारा के भाववाचक एवं गुणवाचक है। इन शक्तिधाराओं से हमारी चेतना जुड़े(ध्यान द्वारा योग करके इन शक्तियों को धारण करे)। सूर्य की नाभिकीय सविता शक्ति ही समस्त दैवीय शक्तिधाराओं को ऊर्जा देती है।
अतः दृश्य सूर्य भी स्वयं उस नाभिकीय सविता शक्ति के केंद्र से जुड़ा है। जब हम गायत्री मंत्र जपते हैं तो उसी नाभिकीय सविता शक्ति से सूर्य के ध्यान द्वारा जुड़ते है।
गायत्री माता उसी सविता शक्ति का ही एक दूसरा नाम है।
गायत्री (गय+त्री) , *गय* अर्थाय प्राण और *त्री* अर्थात त्राण (रक्षा)। प्राणों की रक्षा करने वाले मंन्त्र को गायत्री मंत्र कहा गया, जो वस्तुतः सविता शक्ति मंन्त्र अर्थात गायत्री मंत्र ही है।
*सूर्योपनिषद* उपनिषदों की 108 श्रृंखला में एक उपनिषद है और *साधना खण्ड* का अंग है। इसमें गायत्री मंत्र का जो भावार्थ लिखा है उसे सुने:-
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात
*भावार्थ* - वह प्रणव सच्चिदानंद परमात्मा जो भू: भुवः स्व: (धरती आकाश पाताल) सर्वत्र कण कण में व्यापत है। समस्त सृष्टि के उत्पादन कर्ता उन सविता देव के सर्वोत्तम तेज़ का हम ध्यान करते हैं। जो सविता देव हमारी बुद्धि को सद्बुध्दि में बदल दें, सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
गुरूदेव ने निराकार सविता शक्ति को प्रतीक रूप में गायत्री माता रूप में हम बच्चों को ध्यान करने को कहा है, जिससे हम साकार से निराकार तक सहजता से पहुंच सकें।
स्वर एवं वर्ण का वस्तुतः कोई आकार नहीं है, लेक़िन ऋषियों ने मनुष्यों की सहजता के लिए उन निराकार ध्वनियों को साकार लिखने और पढ़ने हेतु लिपिबद्ध किया। इसी तरह सविता शक्ति की धारा निराकार है लेकिन उसको मनुष्यों को साधनात्मक सहजता देने के लिए गायत्री माता रूप में साकार साधना रूप को विकसित किया गया। अंततः पहुंचना उसी निराकार सविता शक्तिधारा तक ही है। अतः ध्वनियों को किसी भी भाषा मे लिपिबद्ध करें हिंदी या रोमन में इससे ध्वनियों के उच्चारण में फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह सविता शक्ति की साकार साधना करें, रूप का ध्यान करके करें या गुणवाचक-भाववाचक निराकार ध्यान करें, मूल शक्तिधारा के अस्तित्व को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। सभी देवता एक ही नाभिकीय सविता शक्ति से शक्ति प्राप्त करते हैं, इसलिए गायत्री मंत्र के जप द्वारा किसी भी देवी देवता की साधना की जा सकती है। यह कॉमन मंन्त्र सभी देवता के लिए है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - यजुर्वेद के अध्याय 3 के श्लोक 100 में गायत्री के 24 अक्षर गायत्री छंद में वर्णित है, जिसका भावार्थ इस प्रकार है:-
*तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात*
भावार्थ - सम्पूर्ण जगत के जन्मदाता सविता(सूर्य) देवता की उत्कृष्ट ज्योति का हम ध्यान करते हैं, जो (तेज़ सभी सत्कर्मों को सम्पादित करने के लिये) हमारी बुद्धि को प्रेरित करता है।
मनुष्य बुद्धि से इंद्र, अग्नि, सूर्य इत्यादि किसी देवता का रूप वाचक नाम है, पर आध्यात्मिक दृष्टि से यह दैवीय शक्तिधारा के भाववाचक एवं गुणवाचक है। इन शक्तिधाराओं से हमारी चेतना जुड़े(ध्यान द्वारा योग करके इन शक्तियों को धारण करे)। सूर्य की नाभिकीय सविता शक्ति ही समस्त दैवीय शक्तिधाराओं को ऊर्जा देती है।
अतः दृश्य सूर्य भी स्वयं उस नाभिकीय सविता शक्ति के केंद्र से जुड़ा है। जब हम गायत्री मंत्र जपते हैं तो उसी नाभिकीय सविता शक्ति से सूर्य के ध्यान द्वारा जुड़ते है।
गायत्री माता उसी सविता शक्ति का ही एक दूसरा नाम है।
गायत्री (गय+त्री) , *गय* अर्थाय प्राण और *त्री* अर्थात त्राण (रक्षा)। प्राणों की रक्षा करने वाले मंन्त्र को गायत्री मंत्र कहा गया, जो वस्तुतः सविता शक्ति मंन्त्र अर्थात गायत्री मंत्र ही है।
*सूर्योपनिषद* उपनिषदों की 108 श्रृंखला में एक उपनिषद है और *साधना खण्ड* का अंग है। इसमें गायत्री मंत्र का जो भावार्थ लिखा है उसे सुने:-
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात
*भावार्थ* - वह प्रणव सच्चिदानंद परमात्मा जो भू: भुवः स्व: (धरती आकाश पाताल) सर्वत्र कण कण में व्यापत है। समस्त सृष्टि के उत्पादन कर्ता उन सविता देव के सर्वोत्तम तेज़ का हम ध्यान करते हैं। जो सविता देव हमारी बुद्धि को सद्बुध्दि में बदल दें, सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।
गुरूदेव ने निराकार सविता शक्ति को प्रतीक रूप में गायत्री माता रूप में हम बच्चों को ध्यान करने को कहा है, जिससे हम साकार से निराकार तक सहजता से पहुंच सकें।
स्वर एवं वर्ण का वस्तुतः कोई आकार नहीं है, लेक़िन ऋषियों ने मनुष्यों की सहजता के लिए उन निराकार ध्वनियों को साकार लिखने और पढ़ने हेतु लिपिबद्ध किया। इसी तरह सविता शक्ति की धारा निराकार है लेकिन उसको मनुष्यों को साधनात्मक सहजता देने के लिए गायत्री माता रूप में साकार साधना रूप को विकसित किया गया। अंततः पहुंचना उसी निराकार सविता शक्तिधारा तक ही है। अतः ध्वनियों को किसी भी भाषा मे लिपिबद्ध करें हिंदी या रोमन में इससे ध्वनियों के उच्चारण में फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह सविता शक्ति की साकार साधना करें, रूप का ध्यान करके करें या गुणवाचक-भाववाचक निराकार ध्यान करें, मूल शक्तिधारा के अस्तित्व को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। सभी देवता एक ही नाभिकीय सविता शक्ति से शक्ति प्राप्त करते हैं, इसलिए गायत्री मंत्र के जप द्वारा किसी भी देवी देवता की साधना की जा सकती है। यह कॉमन मंन्त्र सभी देवता के लिए है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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