प्रश्न - 118 - *क्या यज्ञ से वर्षा करवाना संभव है? क्या यज्ञ से पृथ्वी के नीचे का जल स्तर बढ़ाया जा सकता है?*
उत्तर - वेदों में *मित्र* और *वरुण* को वृष्टि का अधिपति कहा गया है।
*मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपाति तो मा$वताम्*
*मित्र* वायु अर्थात *हाइड्रोजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता और *वरुण* वायु अर्थात *ऑक्सीजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता जो *जलतत्व* के निर्माण में सहायक हैं। आधुनिक विज्ञान भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन वायु के मिश्रण को ही जल तत्व का मिश्रण है।
अतः प्राचीन तत्त्ववेत्ता आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषिगण जब देश मे वृष्टि का अभाव देखते थे तो तब मित्र और वरुण को प्रशन्न करने के लिए 40 दिन का कठोर अनुष्ठान ब्रह्मचर्य पालन करते हुए ऋषिगण समूह में करते थे। तथा प्रत्येक दिन ऐसे तत्वों और औषधियों को गोघृत में मिश्रित करके मित्र और वरुण के वेदमन्त्रों से यज्ञ में आहुतियाँ देते थे। जो सूक्ष्मरूप में शक्तिसम्पन्न होकर अंतरिक्ष मे जाकर इन दोनों गैसों को मिलाने का कार्य करते थे। इस संगतिकरण के परिणामस्वरूप जल के बादलों का निर्माण आसमान में होता था और जो पृथ्वी पर बरसता था। ऋषिगण *मानसून* के जल को भी कई गुना इस यज्ञ प्रयोग से बढ़ा लेते थे। पृथ्वी के नीचे के जलस्तर को भी यह यज्ञ प्रयोग बढ़ाने में सक्षम होता था।
*नोट:-* *मित्र* और *वरुण* दो अलग अलग हिन्दू देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में ' *मित्रावरुण* ' इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है।। *ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं*। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं।
*जो कार्य जलवर्षा चक्र में सूर्य करता है, इनदोनो के सम्मिश्रण से जल के बादलों का निर्माण, वही कार्य सूर्य की शक्ति का यज्ञ में आह्वाहन करके उसी शक्ति(सविता शक्ति ऊर्जा) का उपयोग ऋषिगण भी करते हैं, इनदोनो शक्तियो के सम्मिश्रण और जल के बादलों के निर्माण और जल वर्षा के लिए । अतः यह चेतन विज्ञान 100% प्रभावी है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - वेदों में *मित्र* और *वरुण* को वृष्टि का अधिपति कहा गया है।
*मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपाति तो मा$वताम्*
*मित्र* वायु अर्थात *हाइड्रोजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता और *वरुण* वायु अर्थात *ऑक्सीजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता जो *जलतत्व* के निर्माण में सहायक हैं। आधुनिक विज्ञान भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन वायु के मिश्रण को ही जल तत्व का मिश्रण है।
अतः प्राचीन तत्त्ववेत्ता आध्यात्मिक वैज्ञानिक ऋषिगण जब देश मे वृष्टि का अभाव देखते थे तो तब मित्र और वरुण को प्रशन्न करने के लिए 40 दिन का कठोर अनुष्ठान ब्रह्मचर्य पालन करते हुए ऋषिगण समूह में करते थे। तथा प्रत्येक दिन ऐसे तत्वों और औषधियों को गोघृत में मिश्रित करके मित्र और वरुण के वेदमन्त्रों से यज्ञ में आहुतियाँ देते थे। जो सूक्ष्मरूप में शक्तिसम्पन्न होकर अंतरिक्ष मे जाकर इन दोनों गैसों को मिलाने का कार्य करते थे। इस संगतिकरण के परिणामस्वरूप जल के बादलों का निर्माण आसमान में होता था और जो पृथ्वी पर बरसता था। ऋषिगण *मानसून* के जल को भी कई गुना इस यज्ञ प्रयोग से बढ़ा लेते थे। पृथ्वी के नीचे के जलस्तर को भी यह यज्ञ प्रयोग बढ़ाने में सक्षम होता था।
*नोट:-* *मित्र* और *वरुण* दो अलग अलग हिन्दू देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में ' *मित्रावरुण* ' इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है।। *ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं*। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं।
*जो कार्य जलवर्षा चक्र में सूर्य करता है, इनदोनो के सम्मिश्रण से जल के बादलों का निर्माण, वही कार्य सूर्य की शक्ति का यज्ञ में आह्वाहन करके उसी शक्ति(सविता शक्ति ऊर्जा) का उपयोग ऋषिगण भी करते हैं, इनदोनो शक्तियो के सम्मिश्रण और जल के बादलों के निर्माण और जल वर्षा के लिए । अतः यह चेतन विज्ञान 100% प्रभावी है।*
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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