प्रश्न - *मेरे इंजीनियर भाई की मृत्यु अननैचरल तरीक़े मात्र 22 दिन के इलाज़ के दौरान जनवरी सन 2010 हो गयी। जो भाई मुझे बहुत चाहता था, इस कारण मैं गुरूदेव से नाराज़ हो गयी कि उन्होंने मुझे सबकुछ देकर सब छीन लिया, गुस्से में मैने जप, ध्यान, यज्ञ पूजन सब बन्द कर दिया। मैं बहुत डिप्रेशन में चली गयी, अभी भी ट्रीटमेन्ट चल रहा है। अभी भी गुरूदेव से पूँछती हूँ कि उन्होंने मुझसे सब क्यों छीन लिया, मुझे मेरे परिवार में कोई नहीं चाहता और मैं बिल्कुल अकेली पड़ गयी हूँ। क्या करूँ?*
उत्तर - आत्मीय बहन, तुम्हारे साथ जो घटा वो दुःखद है। लेक़िन क्या मृत्यु केवल तुम्हारे ही घर घटी किसी अन्य के घर कभी नहीं घटी?
एक काम करो,
सरकारी अस्पताल में जाओ और पूरा एक दिन जन्म-मृत्यु होते देखो। कुछ बच्चे जन्मेंगे तो खुशियाँ देखो, कुछ के बच्चों की मृत्यु पर उनके परिजनों के चेहरे की उदासी देखो, एक्सीडेंट से किसी की मृत्यु देखो तो किसी के एक्सीडेंट के बाद भी बचते हुए जीवन को देखो। वृद्ध की मृत्यु पर परिजनों के चेहरे का संतोष देखो। पत्नी प्यारी हुई तो उसकी मृत्यु पर पति का करुण क्रंदन देखो, नहीं तो पति को पत्नी की मृत्यु के बाद भी निश्चिंत होता देखो। यही हाल पत्नियों का भी देखो, पति प्यार और केयर करने वाला हो तो उसकी मृत्यु पर पत्नी को फूट फूट कर करुण क्रंदन देखो, अगर पति प्रताड़ित करने वाला मरे तो पत्नी के चेहरे को निश्चिंत देखो। फ़िर दुनियाँ को देखो सब अपने अपने मे मस्त हैं।
एक दिन श्मशान घाट के पास से गुज़रो देखो कितनी लाशें रोज जलने आती हैं। फिंर एक दिन सरकारी छोटे बच्चों के स्कूल में कुछ चॉकलेट बिस्किट लेकर जाओ, देखो जीवन कैसे मुस्कुरा रहा है।
अब वृक्ष वनस्पतियों, पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ो के जीवन को देखो। फ़िर किसी पार्क या पेड़ के नीचे सुबह सुबह बैठ के सोचो, प्रत्येक जीव में वही आत्मा है जो तुम्हारे अंदर है। अन्य जीवों की मृत्यु पर, अन्य लोगों की मृत्यु पर तुम शोक नहीं मानती क्योंकि तुम्हें उनसे मोह नहीं, प्रेम नहीं, कोई लेना-देना नहीं। जबकि अपने भाई की मृत्यु पर तुम दुःखी हो क्योंकि तुम उसे और वो तुम्हे प्रेम करता था, भाई-बहन का मधुर सम्बन्ध था। लेक़िन यदि वही भाई तुम्हें प्रताड़ित करता, तुमसे नफ़रत करता और तुम दोनों में झगड़े होते। फिंर उसकी मृत्यु होती तो तुम्हें कम दुःख होता।
भगवान न्यायाधीश है, उसकी नज़र में कीड़े, मकोड़े, पशु, पक्षी, नर, नारी, बालक, वृद्ध सभी मात्र जीव है और सब समान है। सबको उनके कर्मफ़ल अनुसार आयु प्रदान करता है। भेद आपकी दृष्टि में मोहवश है अतः किसी अपने की मृत्यु पर आप दुःखी हैं और किसी पराये उसी उम्र के लड़के की अकाल मृत्यु पर आप दुःखी नहीं हैं।
आपने अध्यात्म समझा नहीं, अच्छी आत्मज्ञान की पुस्तकों का स्वाध्याय किया नहीं। आत्मवत सर्वभूतेषु समझा नहीं, इसलिये आपने भगवान की सृष्टि और उसकी न्याय व्यवस्था को समझने की भूल की। भगवान और सद्गुरु को स्वार्थी मनुष्य जैसा पक्षपाती समझा। उनसे रूठ गयी।
जिस दिन आपके भाई की मृत्यु हुई, उस दिन आपके भाई के साथ करोड़ों लोगों की मृत्यु हुई होगी और करोड़ों लोग जन्में होंगें। भगवान के दरबार में करोड़ो लोगों की जन्म-मृत्यु की एक घटना में आपके भाई की मृत्यु की भी घटना हुई होगी। जन्म-मृत्यु कर्मो का हिसाब हुआ होगा और नया जन्म उसे मिल भी गया होगा। पुनर्जन्म में उसकी उम्र कहीं पाँच छः वर्ष की हो भी गयी होगी। जब आपको अपने पिछले जन्म के सम्बन्धी रिश्तेदार याद नहीं तो भला आपके भाई को पिछले जन्म की बहन आप किस प्रकार याद होंगीं?
👉🏼एक कहानी से समझो- एक किशोर लड़के की कमाई और प्यार करने वाले पिता की मृत्यु हो गयी। उसके करुण क्रंदन से गाँव इकठ्ठा हो गया। गाँव के पुरोहित ने समझाया - *जो मरा है वो पुनः जन्मेगा, जो जन्मा है वो पुनः मरेगा। यह शरीर एक वस्त्र है जिसे आत्मा धारण करती है, शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत। अतः व्यर्थ मोह में मत पड़ो और शोक मत करो। सभी आत्मा की स्वतन्त्र यात्रा है। राम नाम ही सत्य है, अतः आत्मउत्कर्ष में लगो।* लड़का आत्मज्ञान समझ गया और जीवन मे आगे बढ़ गया।
उसी पुरोहित के घर बालक जन्मा, उसने उत्सव हेतु गांव वालों को भोज पर बुलाया, जिसमें वह किशोर लड़का भी आया जिसने अपना पिता ख़ोया था। मगर वह शांत और स्थिर था।उसने पुरोहित को बुलाया और समझाया - *जिस प्रकार जो मरा है वो पुनः जन्मेगा, उसी प्रकार जो जन्मा है वो पुनः मरेगा। यह शरीर एक वस्त्र है जिसे आत्मा धारण करती है, शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत। अतः व्यर्थ मोह में मत पड़ो और यह उत्सव मत मनाओ। सभी आत्मा की स्वतन्त्र यात्रा है। राम नाम ही सत्य है और आत्मउत्कर्ष में लगो।* लड़का आत्मज्ञान समझ गया और जीवन मे आगे बढ़ गया। लेक़िन जिस पुरोहित ने उसे आत्मज्ञान दिया था वो ही समझ न सका था। पुरोहित ठिठक गया। उसने सोचा कि जो ज्ञान मैंने दुसरों को दिया वह खुद तो कभी समझा ही नहीं। जैसे मृत्यु में शोक की जरूरत नहीं, वैसे ही जन्म पर भी तो कोई उत्सव की ज़रूरत नहीं। आज पुरोहित को आत्मज्ञान हुआ वो आत्मचेतना में स्थिर हो गया। और गहन शांति में खो गया।
बहन, यदि मोहबन्धन में आँखे बंद किये रहोगी तो कोई संसार का डॉक्टर तुम्हारा इलाज़ न कर सकेगा। अंधे की आँख का ऑपरेशन संभव है, मोह के अंधे का ऑपेरशन संभव नहीं।
तुमने जहां से अध्यात्म छोड़ा था, वहाँ से पुनः शुरू कर दो। प्रेम भीख में मत माँगों, बल्कि प्रेम दुसरों पर लुटाओ। तुम अकेली इसलिए हो क्योंकि तुम मोह में आँखे बंद करके बैठी हो। आंखे खोलो कण कण से *आत्मवत सर्वभूतेषु* वाला आत्मियता विस्तार करो। बिना किसी आशा अपेक्षा के युगपिड़ा निवारण और दुःखियों की सेवा में जुट जाओ। प्रेम ही प्रेम मिलेगा। फ़िर कभी अकेलापन नहीं लगेगा। प्रेम मांगने पर कभी नहीं मिलता, प्रेम बाँटने पर मिलता है।
मरना एक दिन सभी को है, मुझे भी तुम्हें भी। अतः जितनी साँसे मिली है उनके सदुपयोग में जुट जाओ।
कुछ पुस्तकें पढ़ो और गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज या गायत्री तपोभूमि मथुरा या नज़दीकी शक्तिपीठ में 9 दिन का पहले 24 हज़ार गायत्री मंन्त्र का अनुष्ठान करो, फ़िर पुनः गुरु दीक्षा लो। फ़िर स्वयं, समाज और सृष्टि के कल्याण में जुट जाओ।
📖 मैं क्या हूँ?
📖 मरने के बाद क्या होता है?
📖 स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया
📖 गहना कर्मणो गतिः(कर्मफ़ल का सिंद्धान्त)
📖 हम सुख से वंचित क्यों हैं?
📖 सर्वसमर्थ गायत्री साधना
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
🙏🏻 संकुचित सोच त्याग दो, मोह त्याग दो, ब्रह्माण्ड के बड़े पीपल के वृक्ष की तुम एक पत्ती मात्र हो, जो एक तने के बगल वाले पत्ते को भाई मान ली। जनवरी 26, 2010 को आँधी आयी तो उस दिन उस वृक्ष के अनेक पत्ते गिरे, उसमें एक तुम्हारा भाई पत्ता भी था। दूसरे दिन उस वृक्ष पर पुनः नई कोपलें आयी और वो पत्ते बने। वृक्ष के अनेकों पत्ते की तरह तुम्हारा भाई भी मात्र एक पत्ता था। पर तुम्हारे लिए वो भाई था। वृक्ष में पत्ते गिरने और नए पत्ते आने का क्रम आज भी जारी है। अतः मोह निंद्रा से जागो औऱ जीवन की ओर दृष्टि डालो। जो खो दिया उसके चिंतन में वर्तमान को मत बर्बाद करो। उठो जागो और आत्मउत्कर्ष में जुट जाओ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
फ़ेसबुक पेज - https://m.facebook.com/sweta.chakraborty.DIYA/
☝🏻यहाँ कोई अन्य प्रश्न हो तो पोस्ट करें
उत्तर - आत्मीय बहन, तुम्हारे साथ जो घटा वो दुःखद है। लेक़िन क्या मृत्यु केवल तुम्हारे ही घर घटी किसी अन्य के घर कभी नहीं घटी?
एक काम करो,
सरकारी अस्पताल में जाओ और पूरा एक दिन जन्म-मृत्यु होते देखो। कुछ बच्चे जन्मेंगे तो खुशियाँ देखो, कुछ के बच्चों की मृत्यु पर उनके परिजनों के चेहरे की उदासी देखो, एक्सीडेंट से किसी की मृत्यु देखो तो किसी के एक्सीडेंट के बाद भी बचते हुए जीवन को देखो। वृद्ध की मृत्यु पर परिजनों के चेहरे का संतोष देखो। पत्नी प्यारी हुई तो उसकी मृत्यु पर पति का करुण क्रंदन देखो, नहीं तो पति को पत्नी की मृत्यु के बाद भी निश्चिंत होता देखो। यही हाल पत्नियों का भी देखो, पति प्यार और केयर करने वाला हो तो उसकी मृत्यु पर पत्नी को फूट फूट कर करुण क्रंदन देखो, अगर पति प्रताड़ित करने वाला मरे तो पत्नी के चेहरे को निश्चिंत देखो। फ़िर दुनियाँ को देखो सब अपने अपने मे मस्त हैं।
एक दिन श्मशान घाट के पास से गुज़रो देखो कितनी लाशें रोज जलने आती हैं। फिंर एक दिन सरकारी छोटे बच्चों के स्कूल में कुछ चॉकलेट बिस्किट लेकर जाओ, देखो जीवन कैसे मुस्कुरा रहा है।
अब वृक्ष वनस्पतियों, पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ो के जीवन को देखो। फ़िर किसी पार्क या पेड़ के नीचे सुबह सुबह बैठ के सोचो, प्रत्येक जीव में वही आत्मा है जो तुम्हारे अंदर है। अन्य जीवों की मृत्यु पर, अन्य लोगों की मृत्यु पर तुम शोक नहीं मानती क्योंकि तुम्हें उनसे मोह नहीं, प्रेम नहीं, कोई लेना-देना नहीं। जबकि अपने भाई की मृत्यु पर तुम दुःखी हो क्योंकि तुम उसे और वो तुम्हे प्रेम करता था, भाई-बहन का मधुर सम्बन्ध था। लेक़िन यदि वही भाई तुम्हें प्रताड़ित करता, तुमसे नफ़रत करता और तुम दोनों में झगड़े होते। फिंर उसकी मृत्यु होती तो तुम्हें कम दुःख होता।
भगवान न्यायाधीश है, उसकी नज़र में कीड़े, मकोड़े, पशु, पक्षी, नर, नारी, बालक, वृद्ध सभी मात्र जीव है और सब समान है। सबको उनके कर्मफ़ल अनुसार आयु प्रदान करता है। भेद आपकी दृष्टि में मोहवश है अतः किसी अपने की मृत्यु पर आप दुःखी हैं और किसी पराये उसी उम्र के लड़के की अकाल मृत्यु पर आप दुःखी नहीं हैं।
आपने अध्यात्म समझा नहीं, अच्छी आत्मज्ञान की पुस्तकों का स्वाध्याय किया नहीं। आत्मवत सर्वभूतेषु समझा नहीं, इसलिये आपने भगवान की सृष्टि और उसकी न्याय व्यवस्था को समझने की भूल की। भगवान और सद्गुरु को स्वार्थी मनुष्य जैसा पक्षपाती समझा। उनसे रूठ गयी।
जिस दिन आपके भाई की मृत्यु हुई, उस दिन आपके भाई के साथ करोड़ों लोगों की मृत्यु हुई होगी और करोड़ों लोग जन्में होंगें। भगवान के दरबार में करोड़ो लोगों की जन्म-मृत्यु की एक घटना में आपके भाई की मृत्यु की भी घटना हुई होगी। जन्म-मृत्यु कर्मो का हिसाब हुआ होगा और नया जन्म उसे मिल भी गया होगा। पुनर्जन्म में उसकी उम्र कहीं पाँच छः वर्ष की हो भी गयी होगी। जब आपको अपने पिछले जन्म के सम्बन्धी रिश्तेदार याद नहीं तो भला आपके भाई को पिछले जन्म की बहन आप किस प्रकार याद होंगीं?
👉🏼एक कहानी से समझो- एक किशोर लड़के की कमाई और प्यार करने वाले पिता की मृत्यु हो गयी। उसके करुण क्रंदन से गाँव इकठ्ठा हो गया। गाँव के पुरोहित ने समझाया - *जो मरा है वो पुनः जन्मेगा, जो जन्मा है वो पुनः मरेगा। यह शरीर एक वस्त्र है जिसे आत्मा धारण करती है, शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत। अतः व्यर्थ मोह में मत पड़ो और शोक मत करो। सभी आत्मा की स्वतन्त्र यात्रा है। राम नाम ही सत्य है, अतः आत्मउत्कर्ष में लगो।* लड़का आत्मज्ञान समझ गया और जीवन मे आगे बढ़ गया।
उसी पुरोहित के घर बालक जन्मा, उसने उत्सव हेतु गांव वालों को भोज पर बुलाया, जिसमें वह किशोर लड़का भी आया जिसने अपना पिता ख़ोया था। मगर वह शांत और स्थिर था।उसने पुरोहित को बुलाया और समझाया - *जिस प्रकार जो मरा है वो पुनः जन्मेगा, उसी प्रकार जो जन्मा है वो पुनः मरेगा। यह शरीर एक वस्त्र है जिसे आत्मा धारण करती है, शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत। अतः व्यर्थ मोह में मत पड़ो और यह उत्सव मत मनाओ। सभी आत्मा की स्वतन्त्र यात्रा है। राम नाम ही सत्य है और आत्मउत्कर्ष में लगो।* लड़का आत्मज्ञान समझ गया और जीवन मे आगे बढ़ गया। लेक़िन जिस पुरोहित ने उसे आत्मज्ञान दिया था वो ही समझ न सका था। पुरोहित ठिठक गया। उसने सोचा कि जो ज्ञान मैंने दुसरों को दिया वह खुद तो कभी समझा ही नहीं। जैसे मृत्यु में शोक की जरूरत नहीं, वैसे ही जन्म पर भी तो कोई उत्सव की ज़रूरत नहीं। आज पुरोहित को आत्मज्ञान हुआ वो आत्मचेतना में स्थिर हो गया। और गहन शांति में खो गया।
बहन, यदि मोहबन्धन में आँखे बंद किये रहोगी तो कोई संसार का डॉक्टर तुम्हारा इलाज़ न कर सकेगा। अंधे की आँख का ऑपरेशन संभव है, मोह के अंधे का ऑपेरशन संभव नहीं।
तुमने जहां से अध्यात्म छोड़ा था, वहाँ से पुनः शुरू कर दो। प्रेम भीख में मत माँगों, बल्कि प्रेम दुसरों पर लुटाओ। तुम अकेली इसलिए हो क्योंकि तुम मोह में आँखे बंद करके बैठी हो। आंखे खोलो कण कण से *आत्मवत सर्वभूतेषु* वाला आत्मियता विस्तार करो। बिना किसी आशा अपेक्षा के युगपिड़ा निवारण और दुःखियों की सेवा में जुट जाओ। प्रेम ही प्रेम मिलेगा। फ़िर कभी अकेलापन नहीं लगेगा। प्रेम मांगने पर कभी नहीं मिलता, प्रेम बाँटने पर मिलता है।
मरना एक दिन सभी को है, मुझे भी तुम्हें भी। अतः जितनी साँसे मिली है उनके सदुपयोग में जुट जाओ।
कुछ पुस्तकें पढ़ो और गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज या गायत्री तपोभूमि मथुरा या नज़दीकी शक्तिपीठ में 9 दिन का पहले 24 हज़ार गायत्री मंन्त्र का अनुष्ठान करो, फ़िर पुनः गुरु दीक्षा लो। फ़िर स्वयं, समाज और सृष्टि के कल्याण में जुट जाओ।
📖 मैं क्या हूँ?
📖 मरने के बाद क्या होता है?
📖 स्वर्ग-नर्क की स्वचालित प्रक्रिया
📖 गहना कर्मणो गतिः(कर्मफ़ल का सिंद्धान्त)
📖 हम सुख से वंचित क्यों हैं?
📖 सर्वसमर्थ गायत्री साधना
📖 भाव सम्वेदना की गंगोत्री
📖 मित्रभाव बढ़ाने की कला
🙏🏻 संकुचित सोच त्याग दो, मोह त्याग दो, ब्रह्माण्ड के बड़े पीपल के वृक्ष की तुम एक पत्ती मात्र हो, जो एक तने के बगल वाले पत्ते को भाई मान ली। जनवरी 26, 2010 को आँधी आयी तो उस दिन उस वृक्ष के अनेक पत्ते गिरे, उसमें एक तुम्हारा भाई पत्ता भी था। दूसरे दिन उस वृक्ष पर पुनः नई कोपलें आयी और वो पत्ते बने। वृक्ष के अनेकों पत्ते की तरह तुम्हारा भाई भी मात्र एक पत्ता था। पर तुम्हारे लिए वो भाई था। वृक्ष में पत्ते गिरने और नए पत्ते आने का क्रम आज भी जारी है। अतः मोह निंद्रा से जागो औऱ जीवन की ओर दृष्टि डालो। जो खो दिया उसके चिंतन में वर्तमान को मत बर्बाद करो। उठो जागो और आत्मउत्कर्ष में जुट जाओ।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
फ़ेसबुक पेज - https://m.facebook.com/sweta.chakraborty.DIYA/
☝🏻यहाँ कोई अन्य प्रश्न हो तो पोस्ट करें
No comments:
Post a Comment