Wednesday 12 June 2019

निर्जला एकादशी व्रत

*निर्जला एकादशी व्रत* -

गंगा दशहरा के बाद होने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस बार यह 13 जून यानी गुरुवार को मनाई जाएगी। Nirjala ekadashi 2019 पूरे साल की 24 एकादशियों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक हर साल ज्‍येष्‍ठ महीने की शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी या भीम एकादशी का व्रत किया जाता है। यह व्रत बिना पानी के रखा जाता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं।

*निर्जला एकदशी का महत्‍व*
साल में पड़ने वाली 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी का सबसे अधिक महत्व है। इसे पवित्र एकादशी माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सालभर की 24 एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है, इस वजह से इस एकादशी का व्रत बहुत महत्व रखता है।


*निर्जला एकादशी की पूजा विधि* -
निर्जला एकादशी के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह व्रत की शुरुआत पवित्र नदियों में स्नान करके किया जाता है। अगर नदी में स्नान ना कर पाएं तो घर पर ही नहाने के बाद दस माला गायत्री जप *ॐ भूर्भुवः  स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्* और एक माला   *'ऊँ नमो वासुदेवाय'* मंत्र का जाप करें, ततपश्चात दैनिक यज्ञ या बलिवैश्व यज्ञ अवश्य करें और गायत्री मंत्र के साथ उसका दशांश वासुदेव मंन्त्र की आहुति अवश्य दें।

भगवान विष्णु की पूजा करते समय उन्हें लाल फूलों की माला चढ़ाएं, धूप, दीप, नैवेद्य, फल अर्पित करके उनकी आरती करें।

*निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त*
एकादशी तिथि प्रारंभ: 12 जून शाम 06:27
एकादशी तिथि समाप्‍त: 13 जून 04:49


*व्रत का नियम* -  24 घंटे बिना अन्न एवं फलों व्रत रखें, केवल जल भगवान का चरणामृत मानकर पीएं और अगले दिन विष्णु जी की पूजा कर व्रत खोलें। इस व्रत के दौरान ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना शुभ माना जाता है। सिर्फ और सिर्फ जल पीकर रहें, कोई अन्नाहार नहीं और न ही किसी प्रकार का फ़ल ग्रहण करें। जल को हल्का गुनगुना करके खूब सारा जल पियें जिससे वह जल आपके शरीर की सफ़ाई करें, आपकी आंतों को साफ कर आपको रोगमुक्त कर दे। पेट पर जो अत्याचार हम पूरे वर्ष करते हैं उन अत्याचार और अनर्गल खान पान से एक दिन छुट्टी दें। सिर्फ जल पी कर व्रत रहें और शरीर को रोगमुक्त पाप मुक्त करें। 10 माला गायत्री जप के साथ ध्यान स्वाध्याय करके अपने मन को साफ़ करें, चित्त की गन्दगी साफ़ करें।

ठंडे प्रदेश के लोग बिन जल के रह सकते हैं, साथ ही जड़ी बूटी को सूँघकर प्राचीन ऋषि अपने शरीर को कठोर तप के लिए तैयार करते थे। उस वक़्त वनों से धरती हरी भरी रहती थी और मौसम में आद्रता रहती थी। अब न वो प्राचीन मौसम है न वायु शुद्ध है। न ही आपके पास वो प्राचीन जड़ी बूटियां हैं जिनको सूँघकर आप अपनी आँतों में जरूरी वाष्प पहुंचा सकें और वोक्यूम कर के औषधीय हवा से पेट को साफ़ रख सकें। *इसलिए युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव ने बिना जल के व्रत करने के लिए मना किया है।* एक दिन के व्रत से पाप मुक्त नहीं हुआ जा सकता उसी प्रकार जैसे एक दिन पढ़कर पास नहीं हुआ जा सकता, और एक दिन के स्नान से शरीर को लाभ होगा।

हाँ एक बात और, एक दिन रूहअफजा या ठण्डा जल पिलाने से भी पुण्य नहीं मिलेगा, पुण्य उसे मिलेगा जो पूरी गर्मी मटकों में शीतल जल उपलब्ध करवाएगा। प्लास्टिक की ग्लास की गन्दगी पाप और चढ़ायेगी। धरती माता श्राप और देंगी।

नियमित गायत्री उपासना-साधना-आराधना मुक्ति मार्ग प्रसस्त करेगा और नियमित चित्त को साफ़ करेगा।

श्वेता चक्रवर्ती
दिया, गुरुग्राम

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