प्रश्न - *पितृ दोष सत्य या भ्रम? विश्वास या अंधविश्वास? कैसे पता करें पितृ दोष है या नहीं? यदि है तो उसका निवारण कैसे करें?*
उत्तर - अध्यात्म से रिश्ता
कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा रहे हैं परंतु कभी-कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।
*ज्योतिष विद्या*
- ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की जीवन को प्रभावित कर सकता है।
जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो या पूर्वजों ने कोई शुभकर्म स्वयं के उद्धार के लिए न किया हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों से अपने उद्धार के लिए कुछ प्रयास करने को कहती है। क्यूंकि पूर्वजों की भटक रही होती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा पहले संकेत देकर अपने उद्धार के लिए प्रयास करने को कहती है, जब परिवारजन उसे अनसुना कर देते है तो पितर अपना सुरक्षा करना छोड़ देते हैं। ऐसे परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की जीवन में झलकता है।
*पितृदोष* -
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, परिवार जनों का अत्याधिक क्रोधी होना, मष्तिष्क शांत न रहना।
*सूर्य और मंगल*
ज्योतिष विद्या में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है।
*पितृदोष निवारण के उपाय* -
पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।
*नित्य घर में बलिवैश्व यज्ञ करें* -
नित्य पाँच बलिवैश्व की आहुतियाँ देवताओं सहित पितरों को भी तृप्त करती हैं। गृहणियाँ जो स्वयं भोजन बनाती हैं घर की बनी रोटी या चावल में गुड़ और देशी घी मिलाकर चने के बराबर पाँच गोली बना लें। अतिव्यस्त लोग जो ख़ुद खाना नहीं बनाते वो जौ, काला तिल, गुड़, देशी घी को हवन सामग्री में मिला कर ये पांच आहुतियाँ दें।
गैस के ऊपर तांबे के बर्तन(बलिवैश्व वाला) गर्म कर उसमें आहुतियाँ समर्पित करें या गोमयकुण्ड में आहुतियां दें।
मंन्त्र -
1- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ब्रह्मणे* इदं न मम्
2- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *देवेभ्य:* इदं न मम्
3- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ऋषिभ्य:* इदं न मम्
4- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *नरेभ्यः* इदं न मम्
5- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *भूतेभ्यः* इदं न मम्
2
*अमावस्या को श्राद्ध* -
अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
*पीपल को जल*
सात पीपल के वृक्षों का वृक्षारोपण और शनिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है।
*सूर्य को जल*
प्रत्येक रविवार को तीन माला गायत्री मंत्र पितरों की मुक्ति के लिए जपकर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल, गुड़ और कला तिल मिलाकर अर्घय देना चाहिए। थोड़ा जल बचाकर उसे दोनों हाथों की अंजुली बनाकर तीन अंजुली जल का अर्घ्य देते समय निम्नलिखित मंन्त्र बोलें:
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर शांत हों शांत हों शांत हों।
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों।
*पूर्वजों से आशीर्वाद* -
जल स्रोत की सफ़ाई में समयदान करें और उसका पुण्य पूर्वजों को अर्पित कर दें। शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शाम के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार स्वयं पर वारकर, उसे फोड़कर नारियल का पानी बहते जल में मिला दें और तांबे का सिक्का जो जल शुद्ध करता है पूर्वजो को प्रणाम कर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से मांफी मांगकर उनसे आशीर्वाद मांगे।
*गाय को गुड़*
महीने में एक बार गौशाला में समयदान करें, गौ सेवा करें। नज़दीकी गौ शाला में हरा चारा ख़रीदकर दान करें। गुरुवार को समस्त परिवार से स्पर्श करवाकर चना और गुड़ गौ माता को खिलाएं और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो यज्ञभष्म(जिस हवन कुंड में कम से कम 24 या इससे अधिक आहुतियाँ डली हो) को माथे में लगाकर और थोड़ा मुँह में डालकर साथ ही अत्यंत थोड़ा गुड़ खाकर ही निकलें।
*पूर्वजों के उद्धार के लिए 40 दिन का गीता पाठ*
पूर्वजों के उद्धार के लिए नित्य 40 दिन तक एक माला गायत्री जप और गीता के सातवें अध्याय का पाठ बोलकर पढ़ें। जिससे घर की वाइब्रेशन में गीता गूँजे। रसोईघर में गायत्री मंत्रबॉक्स लगाएं।
*पूर्वजन्म* -
हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए। स्वयं के उद्धार हेतु खूब पुण्य कमाइए।
*घर के शुभकर्म और उत्सव में देवताओं, कुलदेवता और पितरों को श्रद्धा सबसे पहले अर्पित करें। फिंर सबका आशीर्वाद लेकर घर मे उत्सव निर्विघ्न मनाना चाहिए।*
न आत्मा मरती है और न जन्म लेती है, जो जीवित रहते जिस गुण स्वभाव कर्म का होता है वो मरने के बाद भी वैसा ही होता है। ये गुण स्वभाव कर्म सँस्कार बनकर अगले जन्म में भी प्रभावित करते हैं। कर्मफ़ल जीवित रहते हुए भी भुगतने पड़ते हैं और शरीर छूटने के बाद भी भुगतना पड़ता है। अध्यात्म जिस आत्मा की अमरता का सिद्धांत मानता है उसे विज्ञान भी मानता है। कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती केवल रूप बदलती है।
पदार्थ को सूक्ष्मीकरण करके सूक्ष्म जीवों तक पहुंचाने का उपक्रम भावों और यज्ञ के माध्यम से संभव है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - अध्यात्म से रिश्ता
कथित तौर पर मॉडर्न होती आजकल की जनरेशन का अध्यात्म से रिश्ता टूटता जा रहा है जिसके चलते वे सभी घटनाओं और परिस्थितियों को विज्ञान के आधार पर जांचने और परखने लगे हैं। वैसे तो इस बात में कुछ गलत भी नहीं है क्योंकि ऐसा कर वे रूढ़ हो चुकी मानसिकता से किनारा करते जा रहे हैं परंतु कभी-कभार कुछ घटनाएं और हालात ऐसे होते हैं जिनका जवाब चाह कर भी विज्ञान नहीं दे पाता।
*ज्योतिष विद्या*
- ये घटनाएं सीधे तौर पर ज्योतिष विद्या से जुड़ी है, जो अपने आप में एक विज्ञान होने के बावजूद युवापीढ़ी के लिए एक अंधविश्वास सा ही रह गया है। खैर आज हम आपको ज्योतिष विद्या में दर्ज पितृ दोष के विषय में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी व्यक्ति की जीवन को प्रभावित कर सकता है।
जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह गई हो या पूर्वजों ने कोई शुभकर्म स्वयं के उद्धार के लिए न किया हो तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों से अपने उद्धार के लिए कुछ प्रयास करने को कहती है। क्यूंकि पूर्वजों की भटक रही होती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा पहले संकेत देकर अपने उद्धार के लिए प्रयास करने को कहती है, जब परिवारजन उसे अनसुना कर देते है तो पितर अपना सुरक्षा करना छोड़ देते हैं। ऐसे परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की जीवन में झलकता है।
*पितृदोष* -
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट उठाने पड़ सकते हैं, जिनमें विवाह ना हो पाने की समस्या, विवाहित जीवन में कलह रहना, परीक्षा में बार-बार असफल होना, नशे का आदि हो जाना, नौकरी का ना लगना या छूट जाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय ना ले पाना, परिवार जनों का अत्याधिक क्रोधी होना, मष्तिष्क शांत न रहना।
*सूर्य और मंगल*
ज्योतिष विद्या में सूर्य को पिता का और मंगल को रक्त का कारक माना गया है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ये दो महत्वपूर्ण ग्रह पाप भाव में होते हैं तो व्यक्ति का जीवन पितृदोष के चक्र में फंस जाता है।
*पितृदोष निवारण के उपाय* -
पितृ दोष को शांत करने के उपाय तो हैं लेकिन आस्था और आध्यात्मिक झुकाव की कमी के कारण लोग अपने साथ चल रही समस्याओं की जड़ तक ही नहीं पहुंच पाते।
*नित्य घर में बलिवैश्व यज्ञ करें* -
नित्य पाँच बलिवैश्व की आहुतियाँ देवताओं सहित पितरों को भी तृप्त करती हैं। गृहणियाँ जो स्वयं भोजन बनाती हैं घर की बनी रोटी या चावल में गुड़ और देशी घी मिलाकर चने के बराबर पाँच गोली बना लें। अतिव्यस्त लोग जो ख़ुद खाना नहीं बनाते वो जौ, काला तिल, गुड़, देशी घी को हवन सामग्री में मिला कर ये पांच आहुतियाँ दें।
गैस के ऊपर तांबे के बर्तन(बलिवैश्व वाला) गर्म कर उसमें आहुतियाँ समर्पित करें या गोमयकुण्ड में आहुतियां दें।
मंन्त्र -
1- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ब्रह्मणे* इदं न मम्
2- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *देवेभ्य:* इदं न मम्
3- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *ऋषिभ्य:* इदं न मम्
4- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *नरेभ्यः* इदं न मम्
5- ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् स्वाहा(आहुतियाँ डालें) इदं *भूतेभ्यः* इदं न मम्
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*अमावस्या को श्राद्ध* -
अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
*पीपल को जल*
सात पीपल के वृक्षों का वृक्षारोपण और शनिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है।
*सूर्य को जल*
प्रत्येक रविवार को तीन माला गायत्री मंत्र पितरों की मुक्ति के लिए जपकर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल, गुड़ और कला तिल मिलाकर अर्घय देना चाहिए। थोड़ा जल बचाकर उसे दोनों हाथों की अंजुली बनाकर तीन अंजुली जल का अर्घ्य देते समय निम्नलिखित मंन्त्र बोलें:
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर शांत हों शांत हों शांत हों।
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर मुक्त हों मुक्त हों मुक्त हों।
ॐ भूर्भुवः स्व: तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् - (जल अंजुली से छोड़े और बोलें) पितर तृप्त हों तृप्त हों तृप्त हों।
*पूर्वजों से आशीर्वाद* -
जल स्रोत की सफ़ाई में समयदान करें और उसका पुण्य पूर्वजों को अर्पित कर दें। शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शाम के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार स्वयं पर वारकर, उसे फोड़कर नारियल का पानी बहते जल में मिला दें और तांबे का सिक्का जो जल शुद्ध करता है पूर्वजो को प्रणाम कर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से मांफी मांगकर उनसे आशीर्वाद मांगे।
*गाय को गुड़*
महीने में एक बार गौशाला में समयदान करें, गौ सेवा करें। नज़दीकी गौ शाला में हरा चारा ख़रीदकर दान करें। गुरुवार को समस्त परिवार से स्पर्श करवाकर चना और गुड़ गौ माता को खिलाएं और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो यज्ञभष्म(जिस हवन कुंड में कम से कम 24 या इससे अधिक आहुतियाँ डली हो) को माथे में लगाकर और थोड़ा मुँह में डालकर साथ ही अत्यंत थोड़ा गुड़ खाकर ही निकलें।
*पूर्वजों के उद्धार के लिए 40 दिन का गीता पाठ*
पूर्वजों के उद्धार के लिए नित्य 40 दिन तक एक माला गायत्री जप और गीता के सातवें अध्याय का पाठ बोलकर पढ़ें। जिससे घर की वाइब्रेशन में गीता गूँजे। रसोईघर में गायत्री मंत्रबॉक्स लगाएं।
*पूर्वजन्म* -
हिन्दू धर्म में पूर्वजन्म और कर्मों का विशेष स्थान है। मौजूदा जन्म में किए गए कर्मों का हिसाब-किताब अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए बेहतर है कि अपने मन-वचन-कर्म से किसी को भी ठेस ना पहुंचाई जाए। स्वयं के उद्धार हेतु खूब पुण्य कमाइए।
*घर के शुभकर्म और उत्सव में देवताओं, कुलदेवता और पितरों को श्रद्धा सबसे पहले अर्पित करें। फिंर सबका आशीर्वाद लेकर घर मे उत्सव निर्विघ्न मनाना चाहिए।*
न आत्मा मरती है और न जन्म लेती है, जो जीवित रहते जिस गुण स्वभाव कर्म का होता है वो मरने के बाद भी वैसा ही होता है। ये गुण स्वभाव कर्म सँस्कार बनकर अगले जन्म में भी प्रभावित करते हैं। कर्मफ़ल जीवित रहते हुए भी भुगतने पड़ते हैं और शरीर छूटने के बाद भी भुगतना पड़ता है। अध्यात्म जिस आत्मा की अमरता का सिद्धांत मानता है उसे विज्ञान भी मानता है। कि ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती केवल रूप बदलती है।
पदार्थ को सूक्ष्मीकरण करके सूक्ष्म जीवों तक पहुंचाने का उपक्रम भावों और यज्ञ के माध्यम से संभव है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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