प्रश्न - *दीदी, गुरुदेव से जुड़ने के बाद माला जप तो कर लेते हैं, लेकिन साहित्य खोलते ही जबर्दस्ती पढ़ना पड़ता है, क्योंकि गुरुदेव ने स्वाध्याय करने को बोला है इसलिए पढ़ते तो हैं लेकिन स्वाध्याय करना अच्छा नही लगता। ऐसा उपाय बताएं जैसे सिरियल देखने का इंतज़ार रहता हैं वैसे स्वाध्याय का भी इंतजार हो..*
उत्तर - आत्मीय बहन, शरीर की उम्र कितनी है इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि हम आत्म बोध और आत्म ज्ञान के लिये कितने वर्षों से प्रयासरत हैं वास्तव में वो ही हमारी असली उम्र है। अब स्वयं की आत्मज्ञान प्राप्ति में प्रयासरत होने का वर्ष कैलकुलेट कर लीजिए और अपनी उम्र समझिए और उम्र के अनुसार मन के बालपन या मैच्योरिटी का आंकलन कीजिये।
स्वयं से कुछ प्रश्न कीजिये:-
🤔 क्या खाई में गिरने की तरह पहाड़ में चढ़ने का कार्य आसान हो सकता है?
🤔 क्या आलस्य में सोने की तरह सुबह उठ कर व्यायाम करने का कार्य आसान हो सकता है?
🤔 क्या निर्रथक टीवी सीरियल देखने(entertainment) की तरह अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तकों का स्वाध्याय(edutainment) की तरह रुचिकर(interesting) हो सकता है?
नहीं न, यह आप भी जानते हैं कि एंटरटेनमेंट और एडुटेन्मेन्ट समान नहीं हैं।
अब जिस सीरियल को आप जिस टीवी में देख रहे हैं, उस टीवी को बनाने वाले नें कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?
टीवी जिस बिजली से चल रहा है, उसे बनाने वाले एडिसन और निकोला टेस्ला ने कितनी पढ़ाई औऱ मेहनत की होगी ज़रा सोचो?
मुम्बई से ऑन एयर करने पर घर बैठे जो डिस आपको टीवी सीरियल दिखा रहा है, उस ईथर सिस्टम को बनाने वाले को सोचो कितना पढ़ना पड़ा होगा?
टीवी सीरियल को जो कैमरे शूट करते हैं औऱ जिस कम्प्यूटर सिस्टम में वो एडिट किया जाता है, वो कैमरे बनाने और कम्प्यूटर-इंटरनेट बनाने वालों ने कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?
एक टीवी सीरियल आप तक पहुंचने में हज़ारों पढ़े लिखे लोगों के प्रयत्न शामिल होते हैं तब जाकर आप एक सीरियल एन्जॉय करते हैं।
अतः पुस्तकों के बिना ज्ञान पाना असम्भव है। चेतन हो या अचेतन, संसार हो या अध्यात्म स्वाध्याय तो सभी क्षेत्र में सफ़लता के लिये पढ़ना तो पड़ेगा।
पढ़ाई में एन्जॉय न ढूंढ के पढ़ाई व स्वाध्याय में लाभ ढूँढिये। उसका महत्व समझिए। और पढ़ने में जुट जाइये।
पहले खाना बनाना कठिन लगता था, अब अभ्यस्त होने पर सरल हो गया न....पहले बाइक चलाना लड़कों को कठिन लगता है, अभ्यस्त होने पर वही सरल हो जाता है....
इसी तरह अभ्यस्त न होने के कारण साहित्यिक भाषा समझने में कठिनाई होती है, जब समझ कुछ नहीं आता और गहरे मन तक वह नहीं पहुंचता, इसलिए पढ़ने में रुचि नहीं जग रही।
लेकिन निरन्तर पढ़ते रहने पर अभ्यस्त होने पर यह साहित्यिक भाषा समझ मे आने लगेगी और जिस दिन ज्ञान समझ मे आने लगा तब स्वाध्याय भी आपके लिए आसान और ज्ञानवर्धक हो जाएगा। अतः मन को अच्छा लगे या नहीं, मन लगे या नहीं नित्य पढ़िये, जिस दिन साहित्यिक भाषा पर आपकी पकड़ हो गयी कमाल हो जाएगा। स्वाध्याय में रुचि जग जाएगी।
मन को सङ्कल्प से बांधिए, बिन पूजन भोजन नहीं और बिन स्वाध्याय शयन नहीं। सङ्कल्प से बंधा मन जल्दी अभ्यस्त होगा।
नित्य पढ़कर कुछ लिखने पर जल्दी साहित्यिक भाषा पर पकड़ बनती है। जब साहित्य की रिदम समझ आ गयी फिंर साहित्य पढ़कर आत्मानंद की अनुभूति होगी।
आपका स्वाध्याय में मन लगने लगे ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन, शरीर की उम्र कितनी है इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता, फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि हम आत्म बोध और आत्म ज्ञान के लिये कितने वर्षों से प्रयासरत हैं वास्तव में वो ही हमारी असली उम्र है। अब स्वयं की आत्मज्ञान प्राप्ति में प्रयासरत होने का वर्ष कैलकुलेट कर लीजिए और अपनी उम्र समझिए और उम्र के अनुसार मन के बालपन या मैच्योरिटी का आंकलन कीजिये।
स्वयं से कुछ प्रश्न कीजिये:-
🤔 क्या खाई में गिरने की तरह पहाड़ में चढ़ने का कार्य आसान हो सकता है?
🤔 क्या आलस्य में सोने की तरह सुबह उठ कर व्यायाम करने का कार्य आसान हो सकता है?
🤔 क्या निर्रथक टीवी सीरियल देखने(entertainment) की तरह अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तकों का स्वाध्याय(edutainment) की तरह रुचिकर(interesting) हो सकता है?
नहीं न, यह आप भी जानते हैं कि एंटरटेनमेंट और एडुटेन्मेन्ट समान नहीं हैं।
अब जिस सीरियल को आप जिस टीवी में देख रहे हैं, उस टीवी को बनाने वाले नें कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?
टीवी जिस बिजली से चल रहा है, उसे बनाने वाले एडिसन और निकोला टेस्ला ने कितनी पढ़ाई औऱ मेहनत की होगी ज़रा सोचो?
मुम्बई से ऑन एयर करने पर घर बैठे जो डिस आपको टीवी सीरियल दिखा रहा है, उस ईथर सिस्टम को बनाने वाले को सोचो कितना पढ़ना पड़ा होगा?
टीवी सीरियल को जो कैमरे शूट करते हैं औऱ जिस कम्प्यूटर सिस्टम में वो एडिट किया जाता है, वो कैमरे बनाने और कम्प्यूटर-इंटरनेट बनाने वालों ने कितनी पढ़ाई की होगी ज़रा सोचो?
एक टीवी सीरियल आप तक पहुंचने में हज़ारों पढ़े लिखे लोगों के प्रयत्न शामिल होते हैं तब जाकर आप एक सीरियल एन्जॉय करते हैं।
अतः पुस्तकों के बिना ज्ञान पाना असम्भव है। चेतन हो या अचेतन, संसार हो या अध्यात्म स्वाध्याय तो सभी क्षेत्र में सफ़लता के लिये पढ़ना तो पड़ेगा।
पढ़ाई में एन्जॉय न ढूंढ के पढ़ाई व स्वाध्याय में लाभ ढूँढिये। उसका महत्व समझिए। और पढ़ने में जुट जाइये।
पहले खाना बनाना कठिन लगता था, अब अभ्यस्त होने पर सरल हो गया न....पहले बाइक चलाना लड़कों को कठिन लगता है, अभ्यस्त होने पर वही सरल हो जाता है....
इसी तरह अभ्यस्त न होने के कारण साहित्यिक भाषा समझने में कठिनाई होती है, जब समझ कुछ नहीं आता और गहरे मन तक वह नहीं पहुंचता, इसलिए पढ़ने में रुचि नहीं जग रही।
लेकिन निरन्तर पढ़ते रहने पर अभ्यस्त होने पर यह साहित्यिक भाषा समझ मे आने लगेगी और जिस दिन ज्ञान समझ मे आने लगा तब स्वाध्याय भी आपके लिए आसान और ज्ञानवर्धक हो जाएगा। अतः मन को अच्छा लगे या नहीं, मन लगे या नहीं नित्य पढ़िये, जिस दिन साहित्यिक भाषा पर आपकी पकड़ हो गयी कमाल हो जाएगा। स्वाध्याय में रुचि जग जाएगी।
मन को सङ्कल्प से बांधिए, बिन पूजन भोजन नहीं और बिन स्वाध्याय शयन नहीं। सङ्कल्प से बंधा मन जल्दी अभ्यस्त होगा।
नित्य पढ़कर कुछ लिखने पर जल्दी साहित्यिक भाषा पर पकड़ बनती है। जब साहित्य की रिदम समझ आ गयी फिंर साहित्य पढ़कर आत्मानंद की अनुभूति होगी।
आपका स्वाध्याय में मन लगने लगे ऐसी ईश्वर से प्रार्थना है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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