Monday 17 June 2019

प्रश्न - *पति की मेहनत की कमाई से खरीदे घर के लिए सास ससुर पर कोर्ट केस करूँ या नहीं?*

प्रश्न - *दी, मेरे पति तीन भाई हैं। तीनों जॉब करते हैं। ससुर की सरकारी नौकरी थी तो उन्हें सरकारी क़वार्टर मिला था। हमारे पति ने अपनी मेहनत की कमाई से घर बनवाया। औऱ जमीन खरीदी। माता-पिता के प्रति प्रेम व भक्ति भाव के कारण घर माता के नाम कर दिया और जमीन पिता के नाम। कुछ वर्षों बाद मेरी जिठानी ने षड्यंत्र करके घर मे कलह किया व मेरे सास-ससुर को ऐसा भड़काया कि उन्होंने मेरे पति को अत्यंत कटु शब्द बोले। जिसके कारण इन्होंने ख़ुद का खरीदा और बनवाया घर छोड़कर किराए में रहने लगे।  कई वर्षों अपने ही बनवाये घर नहीं गए। सास जी के बीमार होने पर हम सब उनको देखने उसी घर मे गए। अब जिठानी हमारे बनवाये घर को सामने से तोड़कर हमारी ही जमीन पर कंस्ट्रक्शन करवा रहीं हैं। मेरा औऱ मेरे पति की मेहनत के स्वप्न के घर को मुझे बचाना चाहिए, उसके लिए लड़ाई लड़नी चाहिए या उसे छोड़ देना चाहिए। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, जब हम आरती की थाली में 100 रुपये चढ़ाएं या 10, उसे वापस नहीं लेते। भगवान हमें कितना लौटाता है या कितना आशीर्वाद देते हैं ये हम भगवान पर छोड़ देते हैं। अतः यहां भी माता-पिता पर निर्णय छोड़ दें।

जिस श्रद्धा व प्रेम से आपके पति और आपने जमीन व घर माता पिता के चरणों मे समर्पित किया। उसे अब वापस मत लीजिये। यह निर्णय माता-पिता पर छोड़ दीजिए कि वो घर आपको लौटाते हैं या नहीं।

वस्तुओं का मोह मत कीजिये। जब समर्पयामि कर दिया तो वापस मत मांगिये। उनको मरते दम तक यह अहसास रहने दीजिए कि उनके पास घर व जमीन बेटे का दिया हुआ है। घर व जमीन की लालच में जिठानी व देवरानी आपके सास ससुर को अपने पास रखेंगी और उनकी सेवा करेंगी। क्यूंकि इस सेवा के पीछे कारण आपके पति बने अतः उन्हें पुण्य फल प्राप्त होगा।

बड़े भाग्यशाली वो बच्चे होते हैं जो माता पिता को घर व जमीन दे सकने योग्य होते हैं।नहीं तो अक्सर माता-पिता ही बच्चो को घर व जमीन देते हैं।

अपनी महान उपलब्धि को  प्रॉपर्टी मोह में नष्ट न करें। पुनः स्वयं के लिए घर बनाने में जुट जाएं।

कोर्ट कचहरी और न्याय व्यवस्था भारत देश में अच्छी नहीं है। हमारे गाँव मे प्रत्येक 5 में से 4 लोग जमीन के कोर्ट केस में उलझे हैं। तारीख़ पर तारीख़ मिलती है, न्याय नहीं मिलता। दिन ब दिन कोर्ट फीस में जेब खाली होती है, कोर्ट के चक्कर मे वक़्त बर्बाद होता है, चप्पल घिस जाती है। इससे कटुता रिश्तों में चरम सीमा तक पहुंच जाती है।

एक बार भाई से कोर्ट केस कर सकते हो, लेकिन माता-पिता से कोर्ट केस कभी मत करो यदि वो कुछ जमीन और प्रोपर्टी से सम्बंधित हो तो...उन्हें मत परेशान करो...जिठानी द्वारा कान भरे जाने के कारण आपके सास ससुर की हालत धृतराष्ट्र और गांधारी की तरह हो गयी है। वो मोह में अंधे हैं।वो किसी भी प्रवचन या कृष्ण भगवान के शांति प्रस्ताव से न समझने वाले हैं।जिठानी महाभारत के लिए प्रस्तुत है।

महाभारत जनकल्याण के लिए जरूर लड़नी चाहिए।महाभारत भाई से भी एक बार लड़ सकते हो। लेकिन माता-पिता से घर और जमीन के लिए लड़ना मेरे हिसाब से उचित नहीं है। दोनों तरफ तुम ही हारोगे क्योंकि केस जीतोगे तो भी माता-पिता को हार जाओगे। नहीं तो घर-जमीन हारोगे।

महाभारत होगा तो विनाश दोनों तरफ होगा। सुख चैन दोनों तरफ छिनेगा। द्रौपदी ने केवल दुर्योधन के रक्त से बाल नहीं धोए थे अपितु उस रक्त में द्रौपदी के पांच पुत्र औऱ समस्त संतानों के भी रक्त थे। लाशों की ढेर में साम्राज्य द्रौपदी औऱ पांच पांडव को मिला था। कोर्ट कचहरी में भी पैसे खर्च दोनों तरफ से होंगे, सुख चैन दोनों तरफ छिनेगा।

जिंदगी छोटी है, आपके पति की कमाई से आपका घर ख़र्च बड़े प्यार से चल रहा है और बच्चे पढ़ लिख रहे हैं। अभी आप लोग शाम को आप सपरिवार सुखपूर्वक भोजन करके चैन की नींद सोते हैं।

विश्वास मानिये, यह सुख चैन सब छीन जाएगा जैसे ही आप कोर्ट केस करेंगे। वकील और आसपड़ोस आपको इतने ज़हरीले विचार देंगे कि आप बदले की भावना से भर उठेंगे। हो सकता है कि हाथापाई की कोर्ट से बाहर नौबत आ जाये। गुस्से में दिमाग़ ज़हरीला हो जाएगा और हृदय कलुषित तो ऐसे जहरीले दिमाग़ और कलुषित हृदय से उपासना कैसे सधेगी? पूजा में मन लगेगा क्या?

निर्णय आपके हाथ मे है कि मोहग्रस्त होकर प्रॉपर्टी के लिए लड़ते हुए सुख चैन खोना है या प्रॉपर्टी को मोह छोड़कर नए सिरे से सृजन का विचार करते सुख चैन से रहना है।

माता के गर्भ की 9 महीने रहने का ऋण, माता व पिता की बचपन से लेकर युवावस्था तक पालने पोषने पढ़ाने लिखाने ऋण से उऋण होने का जो आपको और आपके पति को सौभाग्य मिला ये बहुत कम लोगों को मिलता है।आप दोनों धन्य है। इस  सेवा के सौभाग्य को घर व जमीन के लिए नष्ट मत कीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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