Tuesday 18 June 2019

प्रश्न- *कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं होती। लेकिन मेरे घर में मेरी सास जी अपने ही पुत्रों और उनके बच्चों में भेदभाव करती हैं।

प्रश्न- *कहते हैं पुत्र कुपुत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं होती। लेकिन मेरे घर में मेरी सास जी अपने ही पुत्रों और उनके बच्चों में भेदभाव करती हैं। मेरे जेठ अमीर हैं कम्पनी के मालिक औऱ मेरे पति उनकी कम्पनी में जॉब करते हैं। ससुर जी की मृत्यु के बाद मेरे जेठ जी सब कर रहे हैं। मेरी जिठानी घमण्डी व दुर्व्यवहार करने वाली है। इनके दुर्व्यवहार के बावजूद मेरी सासु माँ उन्हीं का पक्ष लेती हैं, मेरे पति व बच्चों को अपमानित करती रहती हैं। मार्गदर्शन करें।*

उत्तर - आत्मीय बहन, सास कोई देवी या उच्च कोटि की ऋषि आत्मा नहीं है, और न ही यह सतयुग है। इस कलियुग में वह सास एक साधारण स्त्री है जो दिन ब दिन बूढ़ी हो रही है। उसका पति है नहीं औऱ छोटे बेटे अर्थात तुम्हारे पति का कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। वो भी बड़े बेटे का एम्प्लोयी है। एम्प्लॉयी अर्थात गुलाम ही होता है।

बीमारी हजारी में पैसे ख़र्च होंगे, जो बड़ा बेटा ख़र्च कर सकता है लेकीन छोटा बेटा नहीं। अतः वो अपना फ़ायदा देखते हुए और अपनी वृद्धावस्था को काटने के लिए बड़ी बहू की हां में हाँ मिला रही हैं। अपना भला सोच रही है।

तुम्हारा जेठ तुम्हारे पति का कम्पनी में बॉस है। तो इस तरह जिठानी तुम्हारे पति के बॉस की पत्नी हुई। अतः वो एक बॉस की पत्नी की तरह घमण्डी व्यवहार कर रही है। अतः तुम जिठानी में बड़ी बहन ढूंढने की गलती मत करो। उसे बॉस की पत्नी की तरह  ही मानो औऱ व्यवहार की अपेक्षा करो। सास को बॉस की माँ समझ के व्यवहार करो औऱ उसमें दिव्यगुणों युक्त माँ की तलाश मत करो। तुम्हारे बच्चे एम्प्लोयी की बच्चे हैं और जिठानी के बच्चे कम्पनी मालिक के बच्चे हैं। अतः जो पक्षपाती व्यवहार तुम्हारी  सास तुम्हारे बच्चो के साथ कर रही है वो पिता की आर्थिक स्थिति में अंतर के कारण है। तुम और जिठानी में भी व्यवहार का अंतर तुम दोनों के पति की आर्थिक स्थिति के अंतर के कारण सास कर रही है। अतः इसे इग्नोर करो।

किसी तुच्छ नारकीय सांसारिक मनुष्य से देवत्वगुण अच्छाई और समानता के व्यवहार की अपेक्षा ही संसार मे दुःख का कारण है।

सर्वप्रथम अपने पति से खुलकर बात करो कि ऐसा हो रहा है। अतः हमारे पास तीन ऑप्शन हैं:-

1- तुम उम्र भर भाई की कम्पनी में कार्य करो औऱ जो भेदभाव मालिक एम्प्लोयी के बच्चों का घर मे चल रहा है चलने दो। बच्चों को भी यह अंतर समझा के उन्हें मानसिक रूप से तैयार कर दो। अन्यथा यह झगड़ा बड़े होने पर परेशानी का कारण बनेगा।

2- तुम अलग रहने की व्यवस्था बना लो, औऱ भाई की कम्पनी में जॉब करते रहो। दूरी के कारण बड़े पारिवारिक झगड़ो को टाला जा सकता है।

3- तुम अलग जगह जॉब करके या अपना व्यवसाय स्थापित करके हम लोगों को यहां से ले चलो। हमें वो अपमानित करके घर से निकाले इससे अच्छा होगा हम स्वयं ही घर से निकल जाएं। वो भी अपनी जिंदगी में सुखी रहें औऱ हम भी सुखी रहें। मुझे भीख की मलाई-मिश्री नहीं चाहिए, मुझे सम्मान की और सुख की दो रोटी चाहिए।

अपना मन्तव्य अपने पति को क्लियर करके उन्हें स्वतन्त्र निर्णय लेने दें। व्यवस्था को समझकर अपनी अवस्था का निर्णय करने दो। जो भी निर्णय पति ले, उसी अनुसार स्वयं को और अपने बच्चों को मानसिक रूप से तैयार कर लो।

मनःस्थिति बदलते ही परिस्थिति बदल जाएगी। स्वयं को एक एम्प्लॉयी की पत्नी मान लो जो किन्ही कारणवश कम्पनी बॉस के घर उनकी माँ और पत्नी के आश्रय में उनके घर रह रहे हैं। यह भाव आते ही परेशानी तिरोहित हो जाएगी। तुम्हें उनका घमंड और व्यवहार में कोई बुराई नहीं दिखेगी।

मान-अपमान के चक्कर में दुःखी होने में समय व्यर्थ मत करो। सास औऱ जिठानी के दुर्व्यवहार की जड़ आर्थिक अंतर के उपचार की व्यवस्था करो। क्रोध में अपना खून मत जलाओ, इन पर दया करो क्योंकि यह संसारी नारकीय जीव हैं।

रही बात *माता कुमाता न भवति* की, यह सतयुग में लिखा गया था। तब प्रत्येक स्त्री देवी और पुरुष देवता के गुणों से सम्पन्न हुआ करते थे।

लेकीन कलियुग में उपरोक्त कथन में कंडीशन लगी हुई है जो सुंस्कारी औऱ आध्यात्मिक लड़की है वह ही भविष्य में देवत्वगुण मातृत्व से अलंकृत माता बनती है। जो कुसंस्कारी और स्वार्थी लड़की है वह भविष्य में कुमाता ही बनेगी।

कुमाता के कुकर्मों की खबरों में जन्मजात शिशु को कूड़ेदान में फेंकना, शादी के बाद अपने बच्चों को छोड़कर अन्य किसी पुरुष के साथ घर छोड़कर भाग जाना या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर करना। ग़रीबी से तंग आकर बच्चों और पति को छोड़कर अमीर आदमी से शादी कर लेना। स्वार्थप्रेरित होकर आर्थिक आधार पर अपने बच्चों में भेद करना औऱ उनसे दुर्व्यवहार करना इत्यादि शामिल है।

स्वयं का सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है। तुम और तुम्हारे पति योग्य बनो औऱ यह सिद्ध करो कि कलियुग में माता कुमाता हो सकती है लेकिन पुत्र कुपुत्र नहीं होगा। जब तुम्हारी सास अशक्त और निःसहाय हो तो उसे मदद करो और उनके चरणों की निःश्वार्थ सेवा करो। मातृ ऋण से उऋण होने का जब भी अवसर मिले उसके लिए प्रस्तुत व तैयार रहो। अपने अंदर के देवत्व को जागृत करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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