प्रश्न - *सभी को प्रणाम, गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण का विशिष्ट प्रयोग के बारे मैं समझा दीजिए*
उत्तर - अणु से विभु बनने की प्रक्रिया को सूक्ष्मीकरण कहते हैं, इस हेतु की गई विशेष तप साधना के विशिष्ट प्रयोग से निज चेतना का परमात्म चेतना से एकाकार करके उसका विस्तार किया जाता है।
स्थूल की सीमाएं निर्धारित हैं लेक़िन सूक्ष्म का विस्तार अनन्त तक किया जा सकता है।
आइंस्टीन की अंतर्दृष्टि से बताई थ्योरी है जिसको विज्ञान भी मानता है कि *पदार्थ और ऊर्जा एक ही चीज़ के अलग अलग रूप हैं. पदार्थ उर्ज़ा में, और ऊर्जा पदार्थ में बदल सकता है।*
*आइंस्टीन थ्योरी सूत्र E=mc^2* - इस सूत्र के अनुसार इस मास या वज़न (m) को प्रकाश की गति (c) के वर्ग या एस्कवायर से गुना करना पड़ेगा। तब जाकर हम किसी पदार्थ की सारे कणों की ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। एटम बम इसी फार्मूले पर बना है।
उदाहरण- साधारण पेट्रोल साधारण रूप में जलने पर मात्र थोड़ी ही ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है और कुछ किलोमीटर की यात्रा संभव है, लेक़िन यदि इसी पेट्रोल के एक एक कण की ऊर्जा प्राप्त करके उपयोग कर सकें तो दिल्ली की सारी गाड़ियां महीने भर उस ऊर्जा से चल सकेंगी। गाड़ियों का माईलेज बढ़ाने में भी इसी तकनीक पर इंजीनियर काम कर रहे हैं।
*भगवत गीता और वेदों में भी यही इस तरह कहा गया है* - यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। ऊर्जा मरती नहीं रूप बदलती है। परिवर्तन संसार का नियम है।
यग्योपैथी और होमियोपैथी तथा अन्य पैथी वाले भी इसको जानते हैं कि *पदार्थ को जितना सूक्ष्म तोड़ोगे उतनी एनर्जी प्राप्त करोगे। साधारण शब्दों में होमियोपैथी विद्वान हैनिमैन के अनुसार औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके औषधि का वह तत्व बाहर निकाला जा सकता है जिसे कारण तत्व कहते हैं। इसे वे पोटेंटाइज़ेशन कहते हैं।*
यज्ञ द्वारा सूक्ष्मीकृत औषधियों का अद्भुत सामर्थ्य भी इस नियम के अनुसार कार्य करता है औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके उनकी अनन्त क्षमता से इलाज किया जाता है, उन्हें मात्र नासिका, रोमकूपों, मुख्यद्वार, आंखों की श्लेष्मा झिल्ली मात्र से स्पर्श करवा के शरीर मे प्रवेश करवाया जासकता है।
गुरूदेव की सूक्ष्मीकरण साधना के विशिष्ट प्रयोग में भी अणु से विभु की शक्तिधाराओं को प्रवाहित करना था। स्वयं को स्थूल शरीर की सीमा से बाहर निकालकर सूक्ष्म जगत की रिपेयरिंग औऱ शुद्धिकरण करण के लिए युगनिर्माण के लिए सूक्ष्म शरीर के वलय में प्रभावी रूप से कार्य करने योग्य बनाना था।
जो जीवित रहते सूक्ष्म शरीर को नहीं साधते वो देह त्याग के बाद सूक्ष्म शरीर से कार्य नहीं कर पाते। गुरूदेव जानते थे कि स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की कार्यक्षमता ज्यादा है। बस इसे उच्च लेवल पर साधना है। अतः विभीन्न गूढ़ योग क्रियाओं, ध्यान की उच्चस्तरीय साधनाओं और यज्ञ के माध्यम से उन्होंने सूक्ष्म शरीर को साध लिया। स्थूल देहत्याग के बाद भी सूक्ष्म शरीर से गुरुदेब अब भी अनन्त गुना कार्य कर रहे हैं। शिष्यों की चेतना में उतर रहे हैं। परिवर्तन कर रहे हैं।
सूक्ष्मीकरण में स्थूल कर्मकांड नाममात्र का होता है, समस्त साधनाएं चेतना स्तर पर ही होती है और सूक्ष्म ध्यान, तप एवं योग स्तर पर ही होती हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - अणु से विभु बनने की प्रक्रिया को सूक्ष्मीकरण कहते हैं, इस हेतु की गई विशेष तप साधना के विशिष्ट प्रयोग से निज चेतना का परमात्म चेतना से एकाकार करके उसका विस्तार किया जाता है।
स्थूल की सीमाएं निर्धारित हैं लेक़िन सूक्ष्म का विस्तार अनन्त तक किया जा सकता है।
आइंस्टीन की अंतर्दृष्टि से बताई थ्योरी है जिसको विज्ञान भी मानता है कि *पदार्थ और ऊर्जा एक ही चीज़ के अलग अलग रूप हैं. पदार्थ उर्ज़ा में, और ऊर्जा पदार्थ में बदल सकता है।*
*आइंस्टीन थ्योरी सूत्र E=mc^2* - इस सूत्र के अनुसार इस मास या वज़न (m) को प्रकाश की गति (c) के वर्ग या एस्कवायर से गुना करना पड़ेगा। तब जाकर हम किसी पदार्थ की सारे कणों की ऊर्जा प्राप्त कर सकते है। एटम बम इसी फार्मूले पर बना है।
उदाहरण- साधारण पेट्रोल साधारण रूप में जलने पर मात्र थोड़ी ही ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है और कुछ किलोमीटर की यात्रा संभव है, लेक़िन यदि इसी पेट्रोल के एक एक कण की ऊर्जा प्राप्त करके उपयोग कर सकें तो दिल्ली की सारी गाड़ियां महीने भर उस ऊर्जा से चल सकेंगी। गाड़ियों का माईलेज बढ़ाने में भी इसी तकनीक पर इंजीनियर काम कर रहे हैं।
*भगवत गीता और वेदों में भी यही इस तरह कहा गया है* - यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे। ऊर्जा मरती नहीं रूप बदलती है। परिवर्तन संसार का नियम है।
यग्योपैथी और होमियोपैथी तथा अन्य पैथी वाले भी इसको जानते हैं कि *पदार्थ को जितना सूक्ष्म तोड़ोगे उतनी एनर्जी प्राप्त करोगे। साधारण शब्दों में होमियोपैथी विद्वान हैनिमैन के अनुसार औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके औषधि का वह तत्व बाहर निकाला जा सकता है जिसे कारण तत्व कहते हैं। इसे वे पोटेंटाइज़ेशन कहते हैं।*
यज्ञ द्वारा सूक्ष्मीकृत औषधियों का अद्भुत सामर्थ्य भी इस नियम के अनुसार कार्य करता है औषधियों को सूक्ष्मीकृत करके उनकी अनन्त क्षमता से इलाज किया जाता है, उन्हें मात्र नासिका, रोमकूपों, मुख्यद्वार, आंखों की श्लेष्मा झिल्ली मात्र से स्पर्श करवा के शरीर मे प्रवेश करवाया जासकता है।
गुरूदेव की सूक्ष्मीकरण साधना के विशिष्ट प्रयोग में भी अणु से विभु की शक्तिधाराओं को प्रवाहित करना था। स्वयं को स्थूल शरीर की सीमा से बाहर निकालकर सूक्ष्म जगत की रिपेयरिंग औऱ शुद्धिकरण करण के लिए युगनिर्माण के लिए सूक्ष्म शरीर के वलय में प्रभावी रूप से कार्य करने योग्य बनाना था।
जो जीवित रहते सूक्ष्म शरीर को नहीं साधते वो देह त्याग के बाद सूक्ष्म शरीर से कार्य नहीं कर पाते। गुरूदेव जानते थे कि स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर की कार्यक्षमता ज्यादा है। बस इसे उच्च लेवल पर साधना है। अतः विभीन्न गूढ़ योग क्रियाओं, ध्यान की उच्चस्तरीय साधनाओं और यज्ञ के माध्यम से उन्होंने सूक्ष्म शरीर को साध लिया। स्थूल देहत्याग के बाद भी सूक्ष्म शरीर से गुरुदेब अब भी अनन्त गुना कार्य कर रहे हैं। शिष्यों की चेतना में उतर रहे हैं। परिवर्तन कर रहे हैं।
सूक्ष्मीकरण में स्थूल कर्मकांड नाममात्र का होता है, समस्त साधनाएं चेतना स्तर पर ही होती है और सूक्ष्म ध्यान, तप एवं योग स्तर पर ही होती हैं।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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