प्रश्न - *गायत्री मंत्र वेदों का सार है, यह अखण्डज्योति में पढ़ा है। कृपया बताएं गायत्री मंत्र वेदों का सार क्यों और कैसे है?*
उत्तर - आत्मीय बहन,
*सार* का शाब्दिक अर्थ होता है- मूल अंश, तत्त्व, essence
*वेदों का मूल उद्देश्य है* - उस सत चित आनन्द परमात्म चेतना से जनमानस को जोड़ना, उन्हें सत्य राह दिखाना औऱ उन्हें दैवीय अनुसाशन में जीवन जीने हेतु प्रेरित करना, मनुष्य में देवत्व और धरती को स्वर्ग सा सुंदर बनाना है।
उपरोक्त समस्त उद्देश्यों की पूर्ति *गायत्री मंत्र* से भी होती है। इसीलिए गायत्री मंत्र को *वेदों का सार* कहा जाता है।
यदि आपने *गायत्री जयंती की पूर्व संध्या* पर *आदरणीय उपाध्याय बाबूजी* का गायत्री मंत्र पर उद्बोधन सुना हो और नवरात्र अनुष्ठान के अवसर पर *चिन्मय भैया के गायत्री मंत्र विवेचना* सुनी हो तो निम्नलिखित सार क्लियर हो जाएगा।
*ॐ भुर्भुवः स्व:* - वह परमात्मा जो धरती, आकाश , पाताल अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड में एक साथ एक समय में विद्यमान है। यत्र तत्र सर्वत्र है। मछली जिस तरह जल में है और वह जल भी मछली के भीतर है। ठीक इसी तरह हम भी ब्रह्म के भीतर है और वह ब्रह्म भी हमारे भीतर है।
*तत् सवितुर्वरेण्यं* - ऐसे सर्वव्यापी न्यायकारी सर्वशक्तिमान *अखण्डमंडलाकारं* परमात्मा का हम वरण करते हैं। जैसे सती स्त्री स्वयं के अस्तित्व को भूलकर पति के अस्तित्व और पहचान को अपना लेती है। वो पति के जीवन और संपत्ति सबकी अधिकारी बन जाती है। वो दो से एक हो जाते है। मैं मिटने पर केवल वह शेष रह जाता है।
*भर्गो देवस्य धीमहि* - जैसे यज्ञ में समिधा डालने पर वह अग्नि ही बन जाती है। उसी तरह मुझ साधक को सविता में आहूत करता हूँ, अब साधक और सविता एक हो गए हैं। उस सविता के *भर्ग* अर्थात तेज़ में प्रवेश कर उसके समस्त गुण मुझमें अवतरित हो गए हैं। अब हमारी बुद्धि सद्बुद्धि में परिवर्तित हो गई, मुझमें देवत्व उदय हो गया। अज्ञान का अंधकार छंट गया। सविता के समस्त गुणों को मैंने धारण कर लिया।
*धियो योनः प्रचोदयात* - क्योंकि मैंने सर्वव्यापी परमात्मा का वरण कर लिया, उस पर समर्पित होकर उसको अपनी बुद्धि में धारण कर लिया, उसके अनुसाशन में जीना स्वीकार कर लिया।
तो अब वह मेरे बुद्धि रथ पर विराजमान होगा और...
मेरा सतत मार्गदर्शन करेगा,
मुझे सन्मार्ग पर बलपूर्वक ले जाएगा,
मुझे अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाएगा,
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जाएगा,
मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाएगा।
आदरणीय उपाध्याय बाबूजी का लेक्चर निम्नलिखित वीडियो लिंक पर सुने:-
https://youtu.be/BQ883o3d8TU
*आदरणीय चिन्मय पंड्या भैया का गायत्री के ज्ञान व विज्ञान की व्याख्या*
https://youtu.be/saalKt6EPZw
*गायत्री मंत्र वेदों का सार है, अखण्डज्योति आर्टिकल*:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/July/v2.5
गायत्री मंत्र लगातार जपने से व्यक्तित्व का परिष्कार होता है। माइंडसेट देवताओं वाला बनने लगता है, परोपकार का भाव मन में जगने लगता है। मनुष्य देवताओं जैसा व्यवहार करने लगता है, स्वयं के, परिवार के, समाज के, देश के, संसार के कल्याण में योगदान देता है। इस धरती को स्वर्ग बनाने में जुट जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय बहन,
*सार* का शाब्दिक अर्थ होता है- मूल अंश, तत्त्व, essence
*वेदों का मूल उद्देश्य है* - उस सत चित आनन्द परमात्म चेतना से जनमानस को जोड़ना, उन्हें सत्य राह दिखाना औऱ उन्हें दैवीय अनुसाशन में जीवन जीने हेतु प्रेरित करना, मनुष्य में देवत्व और धरती को स्वर्ग सा सुंदर बनाना है।
उपरोक्त समस्त उद्देश्यों की पूर्ति *गायत्री मंत्र* से भी होती है। इसीलिए गायत्री मंत्र को *वेदों का सार* कहा जाता है।
यदि आपने *गायत्री जयंती की पूर्व संध्या* पर *आदरणीय उपाध्याय बाबूजी* का गायत्री मंत्र पर उद्बोधन सुना हो और नवरात्र अनुष्ठान के अवसर पर *चिन्मय भैया के गायत्री मंत्र विवेचना* सुनी हो तो निम्नलिखित सार क्लियर हो जाएगा।
*ॐ भुर्भुवः स्व:* - वह परमात्मा जो धरती, आकाश , पाताल अर्थात समस्त ब्रह्माण्ड में एक साथ एक समय में विद्यमान है। यत्र तत्र सर्वत्र है। मछली जिस तरह जल में है और वह जल भी मछली के भीतर है। ठीक इसी तरह हम भी ब्रह्म के भीतर है और वह ब्रह्म भी हमारे भीतर है।
*तत् सवितुर्वरेण्यं* - ऐसे सर्वव्यापी न्यायकारी सर्वशक्तिमान *अखण्डमंडलाकारं* परमात्मा का हम वरण करते हैं। जैसे सती स्त्री स्वयं के अस्तित्व को भूलकर पति के अस्तित्व और पहचान को अपना लेती है। वो पति के जीवन और संपत्ति सबकी अधिकारी बन जाती है। वो दो से एक हो जाते है। मैं मिटने पर केवल वह शेष रह जाता है।
*भर्गो देवस्य धीमहि* - जैसे यज्ञ में समिधा डालने पर वह अग्नि ही बन जाती है। उसी तरह मुझ साधक को सविता में आहूत करता हूँ, अब साधक और सविता एक हो गए हैं। उस सविता के *भर्ग* अर्थात तेज़ में प्रवेश कर उसके समस्त गुण मुझमें अवतरित हो गए हैं। अब हमारी बुद्धि सद्बुद्धि में परिवर्तित हो गई, मुझमें देवत्व उदय हो गया। अज्ञान का अंधकार छंट गया। सविता के समस्त गुणों को मैंने धारण कर लिया।
*धियो योनः प्रचोदयात* - क्योंकि मैंने सर्वव्यापी परमात्मा का वरण कर लिया, उस पर समर्पित होकर उसको अपनी बुद्धि में धारण कर लिया, उसके अनुसाशन में जीना स्वीकार कर लिया।
तो अब वह मेरे बुद्धि रथ पर विराजमान होगा और...
मेरा सतत मार्गदर्शन करेगा,
मुझे सन्मार्ग पर बलपूर्वक ले जाएगा,
मुझे अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाएगा,
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले जाएगा,
मुझे मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाएगा।
आदरणीय उपाध्याय बाबूजी का लेक्चर निम्नलिखित वीडियो लिंक पर सुने:-
https://youtu.be/BQ883o3d8TU
*आदरणीय चिन्मय पंड्या भैया का गायत्री के ज्ञान व विज्ञान की व्याख्या*
https://youtu.be/saalKt6EPZw
*गायत्री मंत्र वेदों का सार है, अखण्डज्योति आर्टिकल*:-
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/July/v2.5
गायत्री मंत्र लगातार जपने से व्यक्तित्व का परिष्कार होता है। माइंडसेट देवताओं वाला बनने लगता है, परोपकार का भाव मन में जगने लगता है। मनुष्य देवताओं जैसा व्यवहार करने लगता है, स्वयं के, परिवार के, समाज के, देश के, संसार के कल्याण में योगदान देता है। इस धरती को स्वर्ग बनाने में जुट जाता है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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