Monday, 3 June 2019

प्रश्न - *दी, क्या गायत्री जप या यज्ञ से पूर्व विनियोग, सङ्कल्प, तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन और षट् कर्म करना अनिवार्य है?*

प्रश्न - *दी, क्या गायत्री जप या यज्ञ से पूर्व विनियोग, सङ्कल्प, तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन और षट् कर्म करना अनिवार्य है?*

उत्तर -  *यदि किसी विशेष पर्सनल कार्य सिद्धि के लिए विशेष गायत्री पुरश्चरण या यज्ञ या अनुष्ठान कर रहे हो तो विनियोग, सङ्कल्प, तर्पण, मार्जन, शाप विमोचन अनिवार्य है। लेकिन यदि दैनिक साधना स्वयं के, समाज के और सृष्टि के उद्धार के लिए शुद्ध मनोभाव से कर रहे हो तो केवल  षट्कर्म एवं गुरु आह्वाहन-वेदमाता गायत्री आह्वाहन एवं पूजन के बाद डायरेक्ट जप कर सकते हो।*

इनके अर्थ भी समझा रही हूँ इन्हें समझ लो और आगे अन्य भाई बहनों को भी समझाओ कि ये सब क्या और क्यों हैं?

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1- *विनियोग:* -
*विनियोग* - (वि + नियोग) , यहाँ *वि* अर्थात विशेष प्रयोजन हेतु किसी उपासना/अनुष्ठान में मंन्त्र का *नियोग* अर्थात काम मे लेना होता हैं।

*सङ्कल्प* के माध्यम से हम उपासना/यज्ञ/अनुष्ठान का उद्देश्य क्लियर करते हैं।

*विनियोग* के माध्यम से हम संकल्पित उद्देश्य की पूर्ति/अभीष्ट सिद्धि के लिए प्रयोग किये जाने वाले मंन्त्र का संक्षिप्त वर्णन करते हैं। जैसे इस मंन्त्र का ऋषि कौन है, इस मंन्त्र से किस दैवीय शक्ति से जुड़ने जा रहे हैं, इस मंन्त्र के लेखन में कौन सी काव्य वृत्ति/छंद उपयुक्त हुआ है। यह सब संस्कृत मंन्त्र सूक्त के माध्यम से बोला जाता है।
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2- *शाप विमोचन* - शाप अर्थात अनिष्ट की कामना करना और साधना को सफल न होने देना। विमोचन का अर्थ -  बाधाओं और शाप के प्रभाव को रोकना, छुड़ाना। गायत्री सिद्धि के मार्ग के तीन ऋषियों द्वारा दिया शाप है - ब्रह्मा, वशिष्ट एवं विश्वामित्र। यदि निम्नलिखित तीन शर्तो को पूरा करते हैं तो शाप नहीं लगता।

*ब्रह्मा* - जो ब्रह्म का शरणागत हो लोककल्याण के लिए, सृजन के लिए गायत्री साधना न  करके, स्वार्थसिद्धि और विध्वंस के लिए साधना करे, उसकी साधना निष्फल हो जाये।

*वशिष्ठ* - विशेष जनकल्याण करने की अवस्था या भाव न हो, गायत्री शक्ति के सदुपयोग का भाव यदि न हो तो, ऐसी गायत्री साधना निष्फ़ल हो जाये।

*विश्वामित्र* - जो स्वयं, समाज और सृष्टि के कल्याण की कामना न करता हो, जो विश्व का मित्र न हो, जो विध्वंस के लिए गायत्री साधना करे उसकी गायत्री साधना निष्फ़ल हो जाये।

विभिन्न मन्त्रों के माध्यम से शाप विमोचन करते हुए यह साधक विश्वास दिलाता है कि वह गायत्री अनुष्ठान से मिली शक्ति का दुरूपयोग नहीं करेगा और स्वयं, समाज और सृष्टि के कल्याण में लगाएगा। तो उसकी साधना शक्ति के मार्ग के शाप हट जाते हैं, और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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3- *तर्पण* - जिन मंन्त्र एवं क्रियाओं द्वारा देवता या पितर या अन्य शक्तियों को तृप्त करने की क्रिया की जाती है, उसे तर्पण कहते हैं।

जब मंत्रों द्वारा विशिष्ट अनुष्ठान से पूर्व गायत्री तर्पण किया जाता है, तो वह वस्तुतः गायत्री शक्ति को तृप्त और संतुष्ट करने के लिए विधिव्यस्था की जा रही होती है।
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4- *मार्जन*
*मार्जन* - अर्थात अंतःकरण की सफाई एवं भूल, दोष आदि का परिहार(दोष आदि को दूर करना, त्यागना, छोड़ना) और विशिष्ट अनुष्ठान के लिए योग्य बनना। इसके लिए मंन्त्र और कर्मकांड की मदद लेना।
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5- *सङ्कल्प*
आध्यात्मिक अनुष्ठान का उद्देश्य क्लियर करना, और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु क्या क्या करने जा रहे हो उसकी घोषणा करके संकल्पित होना।

6- *कवच* - इसका अर्थ है आच्छादन। जिस प्रकार पदार्थो से बने हुए कवच द्वारा शरीर की रक्षा की जाती है, वैसे ही मन्त्रशक्ति, कर्मकांड और श्रद्धा से बने आध्यात्मिक कवच से शरीर और मन को बाह्य अनिष्ट - आक्रमणों से सुरक्षित किया जाता है। गायत्री    महाविज्ञान में दो कवच दिये गए हैं, सुविधा और रुचि अनुसार कोई एक ही उपयोग में लें। एक में गायत्री मंत्र के अक्षरों को "शक्ति बीज" मानकर उससे कवच बनाया जाता है, दूसरे में गायत्री की विभिन्न शक्तियों और उसके विभिन्न रूपों से शक्ति कवच बनाया जाता है। अतः पुरश्चरण के दौरान इसे अवश्य करें।

7- *ध्यान* - बिना ध्यान जप प्रभावी नहीं होता। अतः जप के वक्त उगते सूर्य या गुरु या गायत्री माता का ध्यान अवश्य करें।

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8- *षट् कर्म* -

👉🏼 *पवित्रीकरण* - मन्त्रो के माध्यम से शरीर के बाह्य औरा और अंतःकरण के भावों की शुद्धि नित्य जप में अनिवार्य है।

👉🏼 *आचमनम* - मन्त्रो के माध्यम से तीनों शरीर के ऊर्जा चक्र की शुद्धि नित्य जप में अनिवार्य है।

👉🏼 *शिखाबन्धन* - शिखा धर्म ध्वजा के साथ साथ विचारों के प्रवेश का द्वार है, अतः मन्त्रो के माध्यम से यहां देवस्थापना करके शुद्ध भावों एवं विचारों का प्रवेश सुनिश्चित करना नित्य जप में अनिवार्य है।

👉🏼 *प्राणायाम* - मन्त्रो के माध्यम से प्राण ऊर्जा को बढ़ाने और औरा  शुद्धि नित्य जप में प्राणायाम के माध्यम से अनिवार्य है।

👉🏼- *न्यास* - इसका अर्थ है स्थापना करना।मंन्त्र के माध्यम से भावना करके मुख्य अंगो में दैवीय शक्तियो की स्थापना करना।

जप विधि विधान के लिए- https://awgpggn.blogspot.com/2019/02/blog-post_5.html?m=1

☝🏻 मेरे द्वारा पोस्ट किए सभी व्हाट्सएप पोस्ट, प्रश्नोत्तर  मेरे इस पर्सनल ब्लॉग में सुरक्षित हैं। जब चाहें वहां से पढ़ भी सकते हैं और कॉपी पेस्ट करके किसी को भेज भी सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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