प्रश्न - *श्वेता बेटा, कभी कभी किन्हीं साधकों की साधना के दौरान स्वास्थ्य क्यों ख़राब होता है? साधकों को कष्ट क्यों उठाना पड़ता है?*
उत्तर - आत्मीय दी,
*कर्म अर्थात कोई भी क्रिया जिसमें हमारी विचारणा एवं भावना जुड़ी होती है। ऐसे कर्म का फ़ल हमें मिलता है।*
*उदाहरण* - अंजाने में हाथ लगकर ग्लास गिरना या पानी की बोतल भूल जाना और उसको कोई प्यासा पी ले या चलते हुए पैर के नीचे चींटी इत्यादि का मर जाना। ऐसे कर्म में हमारे विचार व भावनाएं नहीं लगी अतः इसका कर्मफ़ल ज़ीरो होगा, कर्मफ़ल नहीं होगा।
यदि ग्लास को गुस्से में फेंक के मारना या किसी प्यासे को पानी देना या जानबूझकर चींटी को पकड़कर मारना, ऐसे कर्म में हमने विचारणा व भावना लगाई। अतः इसका कर्मफ़ल मिलेगा।
👉🏼 *जिस प्रकार बैंक में लोन व्यक्ति के नाम होता है। उसके वस्त्र बदलने या घर बदलने से बैंक को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीतरह कर्मफ़ल का अकाउंट जीवात्मा के नाम होता है। शरीर बदलने से या रूप बदलने से जीवात्मा का अकाउंट नहीं बदलता। जन्म जन्मांतर तक कर्मफ़ल भोगना पड़ता है।*
👉🏼 कर्म तीन प्रकार के होते हैं, *संचित, क्रियमाण एवं प्रारब्ध*
*संचित कर्मफ़ल* - तरकश में रखे बाण हैं, जो अभी चले नहीं। बैंक में जमा पैसा है, जो अभी उपयोग नहीं लिया गया। इसे विभिन्न साधनाओं द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
*क्रियमाण कर्मफ़ल* - धनुष में संधान को तैयार बाण है, बैंक के ATM में खड़े होकर निकाला जा रहा पैसा है। जो वर्तमान में उपयोग होने वाला है। घटना घट रही है। इस पर थोड़ा बहुत नियंत्रण करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
*प्रारब्ध कर्मफ़ल* - छोड़ा जा चुका तीर, खर्च किया जा चुका पैसा। घटना घट चुकी है, अब उसको रोका नहीं जा सकता। अब उस प्रारब्ध को भोगना होगा या उस प्रारब्ध को सम्हालना होगा। जैसे एक्सीडेंट हो गया तो हॉस्पिटल में इलाज़ करवाना।
*प्रायश्चित साधना के दौरान* - हम कर्मफ़ल को शीघ्रता से काटते हैं।
*उदाहरण* - हमने घर के लिए लोन लिया था जिसे 24 EMI में चुकाना है, एक निश्चित EMI जा रही थी। लेकिन अब हमें दूसरा बड़ा घर खरीदना है या वर्तमान लोन पूरा चुका के बन्द करना है। तो आपने क्या किया बैंक से बोलकर EMI डबल या ट्रिपल करवा दी। जो पैसे दो साल में चुकने थे वो दो महीने या कुछ महीनों में चुकाएंगे तो अर्थ व्यवस्था घर की डिस्टर्ब तो होगी ही। लेकिन आप ढेर सारा इंटरेस्ट का पैसा बचा लेंगे और कुछ नया प्लान कर लेंगे।
इसी तरह जो प्रारब्ध कई जन्मों में कटना था, वो प्रायश्चित साधना से शीघ्रता से कटता है। अतः साधना के दौरान साधक को कष्ट उठाने पड़ते हैं। साधक संचित कर्मफ़ल नष्ट करता है, क्रियमाण कर्मफ़ल की तीव्रता को कम करता है। प्रारब्ध को सम्हालने में जुटता है।
अतः जन्मों के प्रारब्ध काटने में ऊर्जा तो ख़र्च होगी न बहन, अतः साधक को कष्ट उठाने पड़ेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - आत्मीय दी,
*कर्म अर्थात कोई भी क्रिया जिसमें हमारी विचारणा एवं भावना जुड़ी होती है। ऐसे कर्म का फ़ल हमें मिलता है।*
*उदाहरण* - अंजाने में हाथ लगकर ग्लास गिरना या पानी की बोतल भूल जाना और उसको कोई प्यासा पी ले या चलते हुए पैर के नीचे चींटी इत्यादि का मर जाना। ऐसे कर्म में हमारे विचार व भावनाएं नहीं लगी अतः इसका कर्मफ़ल ज़ीरो होगा, कर्मफ़ल नहीं होगा।
यदि ग्लास को गुस्से में फेंक के मारना या किसी प्यासे को पानी देना या जानबूझकर चींटी को पकड़कर मारना, ऐसे कर्म में हमने विचारणा व भावना लगाई। अतः इसका कर्मफ़ल मिलेगा।
👉🏼 *जिस प्रकार बैंक में लोन व्यक्ति के नाम होता है। उसके वस्त्र बदलने या घर बदलने से बैंक को कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीतरह कर्मफ़ल का अकाउंट जीवात्मा के नाम होता है। शरीर बदलने से या रूप बदलने से जीवात्मा का अकाउंट नहीं बदलता। जन्म जन्मांतर तक कर्मफ़ल भोगना पड़ता है।*
👉🏼 कर्म तीन प्रकार के होते हैं, *संचित, क्रियमाण एवं प्रारब्ध*
*संचित कर्मफ़ल* - तरकश में रखे बाण हैं, जो अभी चले नहीं। बैंक में जमा पैसा है, जो अभी उपयोग नहीं लिया गया। इसे विभिन्न साधनाओं द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
*क्रियमाण कर्मफ़ल* - धनुष में संधान को तैयार बाण है, बैंक के ATM में खड़े होकर निकाला जा रहा पैसा है। जो वर्तमान में उपयोग होने वाला है। घटना घट रही है। इस पर थोड़ा बहुत नियंत्रण करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
*प्रारब्ध कर्मफ़ल* - छोड़ा जा चुका तीर, खर्च किया जा चुका पैसा। घटना घट चुकी है, अब उसको रोका नहीं जा सकता। अब उस प्रारब्ध को भोगना होगा या उस प्रारब्ध को सम्हालना होगा। जैसे एक्सीडेंट हो गया तो हॉस्पिटल में इलाज़ करवाना।
*प्रायश्चित साधना के दौरान* - हम कर्मफ़ल को शीघ्रता से काटते हैं।
*उदाहरण* - हमने घर के लिए लोन लिया था जिसे 24 EMI में चुकाना है, एक निश्चित EMI जा रही थी। लेकिन अब हमें दूसरा बड़ा घर खरीदना है या वर्तमान लोन पूरा चुका के बन्द करना है। तो आपने क्या किया बैंक से बोलकर EMI डबल या ट्रिपल करवा दी। जो पैसे दो साल में चुकने थे वो दो महीने या कुछ महीनों में चुकाएंगे तो अर्थ व्यवस्था घर की डिस्टर्ब तो होगी ही। लेकिन आप ढेर सारा इंटरेस्ट का पैसा बचा लेंगे और कुछ नया प्लान कर लेंगे।
इसी तरह जो प्रारब्ध कई जन्मों में कटना था, वो प्रायश्चित साधना से शीघ्रता से कटता है। अतः साधना के दौरान साधक को कष्ट उठाने पड़ते हैं। साधक संचित कर्मफ़ल नष्ट करता है, क्रियमाण कर्मफ़ल की तीव्रता को कम करता है। प्रारब्ध को सम्हालने में जुटता है।
अतः जन्मों के प्रारब्ध काटने में ऊर्जा तो ख़र्च होगी न बहन, अतः साधक को कष्ट उठाने पड़ेंगे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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