प्रश्न - *बहन जी, वैज्ञानिक अध्यात्मवाद(Scientific Spirituality) के बारे मे समझाये। भारत मे 1- पिछड़े एवं 2-विकसित एरिया या अन्य जगहों पर विस्तार से इसे कैसे लागू कर सकते है? विदेशो मे इसे किस तरह लागू कर सकते है ? इस बारे मे बताए।*
उत्तर- आत्मीय भाई,
*जिसके पास वैज्ञानिक मनोवृत्ति है, वह धर्म दर्शन- अध्यात्म के मूल्यों को कहीं अधिक गहराई से सोच समझ सकता है। वह परम्पराओं एवं अशाश्वत मूल्यों के बंधन में नहीं बँधता। वह कभी धार्मिक कट्टरपंथी नहीं होता। जो मात्र आध्यात्मिक मानसिकता का है, वैज्ञानिकता को महत्व नहीं देता, उसका चिन्तन एकाँगी है- अधूरा है।*
इस तरह *ज्ञान प्राप्ति के लिये, सत्य की ओर पहुँचने के लिये दो राजमार्ग स्पष्ट दिखाई देते हैं- एक विज्ञान से प्रारम्भ होकर दर्शन पर समाप्त होने वाला। दूसरा अध्यात्मवाद से प्रारंभ होकर वैज्ञानिक मानसिकता तक ले जाने वाला।* दोनों एक ही बिन्दु पर समाप्त होते हैं, जिसका नाम है, वैज्ञानिक अध्यात्मवादी जब तक विज्ञान और अध्यात्म रूपी दोनों विधाओं का ऐसा समन्वयात्मक रूप स्थापित नहीं होता, तब तक दोनों ही अधूरे, लंगड़े लूले अपाहिज के समान हैं।
*वैज्ञानिक अध्यात्मवाद(Scientific Spirituality) का मूल है- जिज्ञासा की भावना का होना। किसी भी वस्तु, घटनाक्रम, चमत्कार इत्यादि को देखकर जो मनुष्य को ‘क्या’, ‘कैसे’ व ‘क्यों’ का प्रश्न पूछने को प्रेरित करे, ऐसी मानसिकता वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का मूल प्राण है। क्या हुआ? क्यों हुआ? कैसे हुआ?इसके पीछे रहस्य क्या है? तथ्य तर्क व प्रमाण से इसे समझने व समझाने की कोशिश करना।* इसमें शंका उठाने का मौलिक अधिकार मनुष्य को मिल जाता है ताकि उपलब्ध सिद्धान्त, परम्पराएँ, मान्यताएँ, सामाजिक स्थिति को वैज्ञानिकता के चश्मे से देखकर भली-भाँति उनका विश्लेषण किया जा सके। वैज्ञानिक मनोवृत्ति के रहते हम अध्यात्म पर चढ़े अनेकों आक्षेपों को निरस्त कर उसका शोधन कर सकते हैं, वर्तमान बदलते समय में पुरानी धार्मिक अभ्यास, विभिन्न साधनाएं व परम्पराये कितनी उपयोगी हैं। इनका प्रायोगिक विश्लेषण करके प्रस्तुत करना वैज्ञानिक अध्यात्मवाद है । *वैज्ञानिक मनोवृत्ति यह स्वीकार करने को बाध्य कर देती है कि ज्ञान का उत्थान एवं वास्तविकता का बोध हमेशा पूर्व धारणाओं, विश्वासों, सिद्धान्तों तथा नियमों को गलत सिद्ध करके ही होता है। यही कारण है कि विज्ञान की प्रगति के क्रमिक इतिहास में हम पग-पग पर अनेकों पिछली मान्यताएँ टूटते व नयी बनती पाते हैं।*
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के शोधकर्ताओं को विभिन्न प्रायोगिक साधनाएं करनी होती है। अध्यात्म की चलती फ़िरती प्रयोगशाला स्वयं के जीवन को बनाना होता है। विज्ञान स्थूल उपकरणों से देखा व परिभाषित किया जा सकता है, लेकिन अध्यात्म का प्रभाव आंशिक ही स्थूल उपकरणों द्वारा परिभाषित किया जा सकता है:-
*उदाहरण* - मेडिटेशन एवं गायत्री जप के प्रभाव को NMR, MRI, EEG इत्यादि से आंशिक रूप में ही जाना जा सकता है। आंशिक रूप से ही जप व ध्यान के बाद अच्छे हार्मोन्स( Endorphins, Serotonin, Dopamine, Oxytocin etc) के रिसाव और उससे होने वाले लाभों को एनालिसिस किया जा सकता है । जबकि इसके व्यापक प्रभाव को साधक अपने जीवन मे अनुभूति कर सकता है। 72 हज़ार सूक्ष्म नाड़ियों पर पड़ने वाला इसका प्रभाव, बढ़ते प्राण प्रवाह और श्रेष्ठ बनता चरित्र चिंतन व्यवहार तो अनुभूति ही किया जा सकता है। अतः वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार कर्ता को स्वयं के जीवन की प्रयोगशाला में किये अनुसंधान और मिले लाभ बताकर ही लोगों को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद से जोड़ा जा सकता है।
👉🏼 *ग्रामीण पिछड़े क्षेत्रों में* - विभिन्न सत्संग एवं भजन कीर्तन समूह बनाकर नित्य अध्यात्म का अभ्यास कराया जा सकता है। भक्ति योग से ज्ञान योग तक पहुंचा जा सकता है।
👉🏼 *शहरी क्षेत्रों में* - पॉवर पॉइंट प्रेसेंटेशन, वर्कशॉप, ज्ञान चर्चा द्वारा आधुनिक उदाहरणों द्वारा वैज्ञानिक अध्यात्म वाद समझाया जा सकता है। फ़िर धीरे धीरे उन्हें विभिन्न साधनाओ से जोड़ा जा सकता है। यहाँ ज्ञान योग से भक्ति योग तक पहुंचना होगा।
👉🏼 *अन्य एरिया में* - जिस एरिया में जाएं वहां की थोड़ी बहुत भाषा सीखें, उनकी संस्कृति तहज़ीब व परम्पराओं को समझें। फिंर उनसे ज्ञान चर्चा करें और उदाहरण देते वक़्त उन्हीं के आसपास की परिचित घटनाओं और बातों का उदाहरण दें और समझाएं। यहाँ संस्कृति को समझ के अध्यात्म की पैरवी करनी होगी।
👉🏼 *विदेशों में* - इंग्लिश भाषा पर मज़बूत पकड़ बनाएं, बाइबल एक बार पढ़ लें। अपने सनातन धर्म के आध्यात्मिक वैज्ञानिक पहलुओं को नोट कर लें। जो बातें सनातन धर्म और बाइबल की मैच खाती हो, बात की शुरुआत उस पॉइंट्स से करें। यहां बाइबल से सनातन धर्म और वैज्ञानिक अध्यात्मवाद तक पहुंचना होगा।
👉🏼 *भाई, विवेकानंद जी शिकागो में इसलिए सफल हुए क्योंकि उनका जीवन ही अध्यात्म की प्रयोगशाला था। युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव ने गायत्री शक्तिधारा को देश-विदेश में पहुंचाने के दक्षता इसलिए पाई क्योंकि उनका स्वयं का जीवन गायत्री शक्ति की प्रयोगशाला थी।*
*बुझा दीपक दूसरे दीपक को नहीं जला सकता। इसी तरह दूसरे के जीवन मे अध्यात्म का प्रकाश पहुंचाने के लिए सबसे पहले स्वयं के जीवन को अध्यात्म के प्रकाश से रौशन करना होगा। इसी बात को युगऋषि ने इस तरह कहा है कि -"स्वयं में सुधार व बदलाव करके ही दूसरे को सुधरने व बदलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।"*
हमारे मिशन में वही कार्यकर्ता दूसरे व्यक्ति तक वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को पहुंचा सकेगा। जिसका जीवन स्वयंमेव वैज्ञानिक अध्यात्म की प्रयोगशाला होगी, जो नित्य गायत्री मंत्र जप, ध्यान, स्वाध्याय, योग, प्राणायाम, लोकसेवा करता होगा। जिसके जीवन में अध्यात्म का प्रकाश झलकता होगा।
*हमारा मष्तिष्क बैंक की तरह है, उसमें जितना अधिक जप-तप व स्वाध्याय करके तथ्य,तर्क,प्रमाण व तप ऊर्जा जमा करोगे। उतना ही वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार हेतु मष्तिष्क के ATM से ऊर्जावान विचारों को निकालकर उपयोग कर सकोगे।
छोटे युद्ध के लिए छोटी तैयारी, योग्यता-पात्रता, शक्ति व साधन चाहिए, लेक़िन बड़े युद्ध के लिए बड़ी तैयारी, योग्यता-पात्रता, शक्ति व साधन चाहिए। अतः जितनी स्वयं की आध्यात्मिक तैयारी हो औऱ मष्तिष्क में स्वाध्याय द्वारा अर्जित विचार हों उसी हिसाब से क्षेत्र चुनकर वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार में जुट जाइये।
युगऋषि लिखित साहित्य अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:-
📖 वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
📖 युगनिर्माण स्वरूप एवं कार्यक्रम
📖 युगनिर्माण कब और कैसे
📖 भावसम्वेदना की गंगोत्री
📖 महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय भाई,
*जिसके पास वैज्ञानिक मनोवृत्ति है, वह धर्म दर्शन- अध्यात्म के मूल्यों को कहीं अधिक गहराई से सोच समझ सकता है। वह परम्पराओं एवं अशाश्वत मूल्यों के बंधन में नहीं बँधता। वह कभी धार्मिक कट्टरपंथी नहीं होता। जो मात्र आध्यात्मिक मानसिकता का है, वैज्ञानिकता को महत्व नहीं देता, उसका चिन्तन एकाँगी है- अधूरा है।*
इस तरह *ज्ञान प्राप्ति के लिये, सत्य की ओर पहुँचने के लिये दो राजमार्ग स्पष्ट दिखाई देते हैं- एक विज्ञान से प्रारम्भ होकर दर्शन पर समाप्त होने वाला। दूसरा अध्यात्मवाद से प्रारंभ होकर वैज्ञानिक मानसिकता तक ले जाने वाला।* दोनों एक ही बिन्दु पर समाप्त होते हैं, जिसका नाम है, वैज्ञानिक अध्यात्मवादी जब तक विज्ञान और अध्यात्म रूपी दोनों विधाओं का ऐसा समन्वयात्मक रूप स्थापित नहीं होता, तब तक दोनों ही अधूरे, लंगड़े लूले अपाहिज के समान हैं।
*वैज्ञानिक अध्यात्मवाद(Scientific Spirituality) का मूल है- जिज्ञासा की भावना का होना। किसी भी वस्तु, घटनाक्रम, चमत्कार इत्यादि को देखकर जो मनुष्य को ‘क्या’, ‘कैसे’ व ‘क्यों’ का प्रश्न पूछने को प्रेरित करे, ऐसी मानसिकता वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का मूल प्राण है। क्या हुआ? क्यों हुआ? कैसे हुआ?इसके पीछे रहस्य क्या है? तथ्य तर्क व प्रमाण से इसे समझने व समझाने की कोशिश करना।* इसमें शंका उठाने का मौलिक अधिकार मनुष्य को मिल जाता है ताकि उपलब्ध सिद्धान्त, परम्पराएँ, मान्यताएँ, सामाजिक स्थिति को वैज्ञानिकता के चश्मे से देखकर भली-भाँति उनका विश्लेषण किया जा सके। वैज्ञानिक मनोवृत्ति के रहते हम अध्यात्म पर चढ़े अनेकों आक्षेपों को निरस्त कर उसका शोधन कर सकते हैं, वर्तमान बदलते समय में पुरानी धार्मिक अभ्यास, विभिन्न साधनाएं व परम्पराये कितनी उपयोगी हैं। इनका प्रायोगिक विश्लेषण करके प्रस्तुत करना वैज्ञानिक अध्यात्मवाद है । *वैज्ञानिक मनोवृत्ति यह स्वीकार करने को बाध्य कर देती है कि ज्ञान का उत्थान एवं वास्तविकता का बोध हमेशा पूर्व धारणाओं, विश्वासों, सिद्धान्तों तथा नियमों को गलत सिद्ध करके ही होता है। यही कारण है कि विज्ञान की प्रगति के क्रमिक इतिहास में हम पग-पग पर अनेकों पिछली मान्यताएँ टूटते व नयी बनती पाते हैं।*
वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के शोधकर्ताओं को विभिन्न प्रायोगिक साधनाएं करनी होती है। अध्यात्म की चलती फ़िरती प्रयोगशाला स्वयं के जीवन को बनाना होता है। विज्ञान स्थूल उपकरणों से देखा व परिभाषित किया जा सकता है, लेकिन अध्यात्म का प्रभाव आंशिक ही स्थूल उपकरणों द्वारा परिभाषित किया जा सकता है:-
*उदाहरण* - मेडिटेशन एवं गायत्री जप के प्रभाव को NMR, MRI, EEG इत्यादि से आंशिक रूप में ही जाना जा सकता है। आंशिक रूप से ही जप व ध्यान के बाद अच्छे हार्मोन्स( Endorphins, Serotonin, Dopamine, Oxytocin etc) के रिसाव और उससे होने वाले लाभों को एनालिसिस किया जा सकता है । जबकि इसके व्यापक प्रभाव को साधक अपने जीवन मे अनुभूति कर सकता है। 72 हज़ार सूक्ष्म नाड़ियों पर पड़ने वाला इसका प्रभाव, बढ़ते प्राण प्रवाह और श्रेष्ठ बनता चरित्र चिंतन व्यवहार तो अनुभूति ही किया जा सकता है। अतः वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार कर्ता को स्वयं के जीवन की प्रयोगशाला में किये अनुसंधान और मिले लाभ बताकर ही लोगों को वैज्ञानिक अध्यात्मवाद से जोड़ा जा सकता है।
👉🏼 *ग्रामीण पिछड़े क्षेत्रों में* - विभिन्न सत्संग एवं भजन कीर्तन समूह बनाकर नित्य अध्यात्म का अभ्यास कराया जा सकता है। भक्ति योग से ज्ञान योग तक पहुंचा जा सकता है।
👉🏼 *शहरी क्षेत्रों में* - पॉवर पॉइंट प्रेसेंटेशन, वर्कशॉप, ज्ञान चर्चा द्वारा आधुनिक उदाहरणों द्वारा वैज्ञानिक अध्यात्म वाद समझाया जा सकता है। फ़िर धीरे धीरे उन्हें विभिन्न साधनाओ से जोड़ा जा सकता है। यहाँ ज्ञान योग से भक्ति योग तक पहुंचना होगा।
👉🏼 *अन्य एरिया में* - जिस एरिया में जाएं वहां की थोड़ी बहुत भाषा सीखें, उनकी संस्कृति तहज़ीब व परम्पराओं को समझें। फिंर उनसे ज्ञान चर्चा करें और उदाहरण देते वक़्त उन्हीं के आसपास की परिचित घटनाओं और बातों का उदाहरण दें और समझाएं। यहाँ संस्कृति को समझ के अध्यात्म की पैरवी करनी होगी।
👉🏼 *विदेशों में* - इंग्लिश भाषा पर मज़बूत पकड़ बनाएं, बाइबल एक बार पढ़ लें। अपने सनातन धर्म के आध्यात्मिक वैज्ञानिक पहलुओं को नोट कर लें। जो बातें सनातन धर्म और बाइबल की मैच खाती हो, बात की शुरुआत उस पॉइंट्स से करें। यहां बाइबल से सनातन धर्म और वैज्ञानिक अध्यात्मवाद तक पहुंचना होगा।
👉🏼 *भाई, विवेकानंद जी शिकागो में इसलिए सफल हुए क्योंकि उनका जीवन ही अध्यात्म की प्रयोगशाला था। युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव ने गायत्री शक्तिधारा को देश-विदेश में पहुंचाने के दक्षता इसलिए पाई क्योंकि उनका स्वयं का जीवन गायत्री शक्ति की प्रयोगशाला थी।*
*बुझा दीपक दूसरे दीपक को नहीं जला सकता। इसी तरह दूसरे के जीवन मे अध्यात्म का प्रकाश पहुंचाने के लिए सबसे पहले स्वयं के जीवन को अध्यात्म के प्रकाश से रौशन करना होगा। इसी बात को युगऋषि ने इस तरह कहा है कि -"स्वयं में सुधार व बदलाव करके ही दूसरे को सुधरने व बदलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।"*
हमारे मिशन में वही कार्यकर्ता दूसरे व्यक्ति तक वैज्ञानिक अध्यात्मवाद को पहुंचा सकेगा। जिसका जीवन स्वयंमेव वैज्ञानिक अध्यात्म की प्रयोगशाला होगी, जो नित्य गायत्री मंत्र जप, ध्यान, स्वाध्याय, योग, प्राणायाम, लोकसेवा करता होगा। जिसके जीवन में अध्यात्म का प्रकाश झलकता होगा।
*हमारा मष्तिष्क बैंक की तरह है, उसमें जितना अधिक जप-तप व स्वाध्याय करके तथ्य,तर्क,प्रमाण व तप ऊर्जा जमा करोगे। उतना ही वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार हेतु मष्तिष्क के ATM से ऊर्जावान विचारों को निकालकर उपयोग कर सकोगे।
छोटे युद्ध के लिए छोटी तैयारी, योग्यता-पात्रता, शक्ति व साधन चाहिए, लेक़िन बड़े युद्ध के लिए बड़ी तैयारी, योग्यता-पात्रता, शक्ति व साधन चाहिए। अतः जितनी स्वयं की आध्यात्मिक तैयारी हो औऱ मष्तिष्क में स्वाध्याय द्वारा अर्जित विचार हों उसी हिसाब से क्षेत्र चुनकर वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के प्रचार प्रसार में जुट जाइये।
युगऋषि लिखित साहित्य अधिक जानकारी के लिए पढ़ें:-
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📖 युगनिर्माण स्वरूप एवं कार्यक्रम
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📖 भावसम्वेदना की गंगोत्री
📖 महाकाल की युग प्रत्यावर्तन प्रक्रिया
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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