Thursday, 18 July 2019

प्रश्न - *दान क्यों करना चाहिए? इसका महत्त्व बताइये?*

प्रश्न - *दान क्यों करना चाहिए? इसका महत्त्व बताइये?*

उत्तर - देश व समाज की उन्नति व सुव्यवस्था धर्मतंत्र एवं राजतंत्र पर निर्भर करती है। दोनों के सुव्यवस्थित संचालन के लिए धन खर्च की आवश्यकता होती है।

*राजतन्त्र* - कर व्यवस्था(Tax) पर चलता है। कर चुकाने पर आपको बदले में रोड, पानी, बिजली, सुरक्षा जैसी अनेक सुविधाएं सरकार देती है। यह सांसारिक और बाह्य सुविधा प्रदान करता है।

*धर्मतन्त्र* -  दान व्यवस्था (donation) पर चलता है। दान देने के बदले में आपको पुण्य मिलता है औऱ अंतःकरण में शांति मिलती है। आपके दान किये पैसों से लोकल्याण की कई फ्री सेवाएं, चिकित्सा, भोजनालय, ज्ञान दान, किशोर किशोरियों, बच्चों, युवाओं के लिए वर्कशॉप इत्यादि आयोजित किये जाते हैं। यह आध्यात्मिक और अंतर्जगत में आत्मसुरक्षा की सुविधा प्रदान करता है।

कानून दुर्घटना के बाद एक्शन में आता है। धर्म दुर्घटना होने ही नहीं देता। क़ानून टूटते मन व रिश्ते, बिखरते परिवार नहीं बचा सकता, धर्म टूटते मन की मरम्मत, टूटते रिश्तों में पुनः प्रेम व बिखरते परिवार को बचा सकता है। लोगों के अंदर आत्मियता जगाकर समाज को व्यवस्थित बना सकता है। अपराध पनपने से रोक सकता है।
👇🏻
धर्मतंत्र के बिना राजतन्त्र अपराधियों और स्वार्थियों को जन्म देगा।

अतः दान जरूर दें, इस लोक में और परलोक में पुण्य लाभ पाएं।

पुण्य एक ऐसी यूनिवर्सल करेंसी है और फिक्सड डिपॉजिट है जो किसी भी जन्म में उपयोग में लिया जा सकता है।

पुण्य तभी मिलता है, जब दान सही हाथों और सुपात्र को दिया जाय। दिए दान से या तो भूख मिटाए, या दवाई खरीदे या वस्त्र खरीद के पहने या उस पैसे से कोई अच्छा कार्य करके रोजी रोटी कमाए।

यदि आपने शराबी भिखारी को दान दिया और उसने उस पैसे से शराब खरीद कर पी ली, तो आपको पाप लगेगा। आइये एक कहानी के माध्यम से इसे समझते हैं।
👇🏻👇🏻👇🏻
कबीरदास जी के पास भिक्षा व मदद माँगने दो गरीब युवक आये। कबीर दास जी ने धागा जो वो बना रहे थे दान कर दिया।

एक ने उन धागों से फूलों को बांध बांधकर बेचना शुरू किया। मन्दिर के लिए मालाएं बनाई। परिवार को सम्हाला और रोजी रोटी चलने लगी।

दूसरे ने कबीरदास के धागे से मछलियां और केकड़े पकड़े। उन्हें बेंचा और उसका व्यापार भी चल निकला।

कई वर्षों बाद दोनों कबीरदास जी को धन्यवाद देने पहुँचे। पहले युवक को धन्यवाद देते हुए कबीरदास बोले, धन्यवाद तो मुझे तुम्हें देना चाहिए, क्योंकि मेरे दिए धागे के बिज़नेस और सेवाकार्य से मैं पुण्य का पार्टनर/भागीदार बना।

दूसरे युवक को कबीरदास जी बोले, तुमने मुझे करोड़ो जीवों की हत्या का पाप का पार्टनर/भागीदार बना दिया।

काश, धागे के दान से पहले मैं तुम्हे ज्ञान का दान देता। धागे के सही सदुपयोग को सुनिश्चित कर दान देता तो पाप का भागीदार न बनता। यदि मेरे मना करने पर भी तुम धागे से जीव पकड़कर हत्या करते तो मैं उस पाप का भागीदार न बनता। क्योंकि ज्ञान को अनसुना करने का तब पाप तुम्हे लगता।

अतः दान सोच समझकर दें। सबसे सुपात्र को दान दें। जिस भी संस्था या मन्दिर को दान दे रहे हैं, पहले चेक करें कि वो जन जागृति के केंद्र हैं या नहीं। समाजसेवा कर रहे हैं या नहीं। जन सामान्य को आध्यात्मिक दिशाधारा दे रहे हैं या नहीं। युगनिर्माण की विविध योजनाएं चला रहे हैं या नहीं।

जहां लोककल्याण के कार्य हो रहे होंगे वहां आपका दिया दान हज़ारों गुना फल देगा। किसी गरीब कन्या के विवाह(सही घर में) और गरीब बच्चे की पढ़ाई का खर्च उठाने पर(सुसंस्कारी बच्चे के)  पुण्यफ़ल मिलेगा। किसी को अच्छी पुस्तक दान देने पर इस ज्ञान दान का अनेक गुना फल मिलता है।

सबसे अधिक पुण्य वृक्षारोपण(कम से कम 7 वर्ष उन वृक्षों की देखभाल),  यज्ञ करवाने से प्रकृति को पोषण(विधिविधान से गोघृत व औषधियों से यज्ञ) और ज्ञान साहित्य(युगसाहित्य) के दान से मिलता है।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

डायबिटीज घरेलू उपाय से 6 महीने में ठीक करें - पनीर फूल(पनीर डोडा)

 सभी चिकित्सक, योग करवाने वाले भाइयों बहनों, आपसे अनुरोध है कि आप मेरे डायबटीज और ब्लडप्रेशर ठीक करने वाले रिसर्च में सहयोग करें। निम्नलिखित...