Tuesday, 2 July 2019

अनुष्ठान - * देव संगतिकरण सामूहिक चांद्रायण साधना*🙏

*अनुष्ठान  - * देव संगतिकरण सामूहिक चांद्रायण साधना*🙏

16 *जुलाई  गुरुपूर्णिमा से  15 अगस्त श्रावणी पूर्णिमा तक*🙏

*पापों के प्रायश्चित्त के लिए और आत्म उत्थान के लिए जिन तपों का शास्त्रों में वर्णन हैं उनमें चांद्रायण व्रत का महत्व सर्वोपरि वर्णन किया गया है*।

एक महीने में मन की आध्यात्मिक प्रोग्रामिंग हो जाती है, प्राण ऊर्जा उर्ध्वगामी हो जाती है। यह व्रत घर गृहस्थी रहते हुए एवं जो जॉब करते हैं वो भी आराम से कर सकते हैं। मन को संकल्पों में बांध कर इसे आसानी से पूरा कर सकते हैं।

*प्रायश्रित्त शब्द प्रायः+चित्त शब्दों से मिल कर बना है। इसके दो अर्थ होते है।*

प्रायः पापं विजानीयात् चित्तं वै तद्विशोभनम्।

प्रायोनाम तपः प्रोक्तं चित्तं निश्चय उच्यते॥

(1) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है शुद्धि। प्रायश्चित अर्थात् पाप की शुद्धि।

(2) प्रायः का अर्थ है पाप और चित्त का अर्थ है निश्चय। प्रायश्चित अर्थात् तप करने का निश्चय।

दोनों अर्थों का समन्वय किया जाये तो यों कह सकते हैं कि तपश्चर्या द्वारा पाप कर्मों का प्रक्षालन करके आत्मा को निर्मल बनाना। तप का यही उद्देश्य भी है। चान्द्रायण तप की महिमा और साथ ही कठोरता सर्व विदित है। चांद्रायण का सामान्य क्रम यह है कि जितना सामान्य आहार हो, उसे धीरे धीरे कम करते जाना और फिर निराहार तक पहुँचना। इस महाव्रत के आहारक्रम एवं माला जप के साथ कई भेद है जो नीचे दिये जाते हैं -

👉🏼(1) *पिपीलिका मध्य चान्द्रायण।*

एकैकं ह्रासयेत पिण्डं कृष्ण शुलेच वर्धवेत।

उपस्पृशंस्त्रिषवणमेतच्चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- पूर्णमासी को 15 ग्रास भोजन करे फिर प्रतिदिन क्रमशः एक एक ग्रास कृष्ण पक्ष में घटाता जाए। चतुर्दशी को एक ग्रास भोजन करे फिर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से एक एक ग्रास बढ़ता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास पर पहुँच जावे। इस व्रत में पूरे एक मास में कुल 240 ग्रास ग्रहण होते हैं।

👉🏼(2) *यव मध्य चान्द्रायण* -

प्तमेव विधि कृत्स्न माचरेद्यवमध्यमे।

शक्ल पक्षादि नियतश्चरंश्चान्द्रायणं व्रतम्॥

अर्थात्- शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को एक ग्रास नित्य बढ़ाता हुआ पूर्णमासी को 15 ग्रास खावें। फिर क्रमशः एक एक ग्रास घटाता हुआ चतुर्दशी को 1 ग्रास खावें और अमावस को पूर्ण निराहार रहे। इस प्रकार एक मास में 240 ग्रास खावें।

👉🏼(3) *यति चान्द्रायण*

अष्टौ अष्टौ समश्नीयात् पिण्डन् माध्यन्दिने स्थिते।

नियतात्मा हविष्याशी यति चान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- प्रतिदिन मध्यान्हकाल में आठ ग्रास खाकर रहें। इसे यति चांद्रायण कहते है। इससे भी एक मास में 240 ग्रास ही खाये जाते हैं।

👉🏼(4) *शिशु चान्द्रायण*

बतुरः प्रातरश्नीयात् पिण्डान् विप्रः समाहितः।

चतुरोऽख्त मिते सूर्ये शुशुचान्द्रायणं स्मृतम्॥

अर्थात्- चार ग्रास प्रातः काल और चार ग्रास साँय काल खावें। इस प्रकार प्रतिदिन आठ ग्रास खाता हुआ एक मास में 240 ग्रास पूरे करे।

👉🏼(5) *मासपरायण* - चन्द्रायण की कठोरता न सध पा रही हो तो अतिव्यस्त जॉब करने वाले एक खाने का और एक लगाने का(दाल या सब्जी) को एक माह के लिए तय कर लें। भूख से आधा उदाहरण- चार रोटी खाते हो तो दो रोटी सुबह और दो शाम को खा कर मासपरायण रह सकते है।
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तिथि की वृद्धि तथा क्षय हो जाने पर ग्रास की भी बुद्धि तथा कमी हो जाती है। ग्रास का प्रमाण मोर के अड्डे, मुर्गी के अड्डे, तथा बड़े आँवले के बराबर माना गया है। बड़ा आँवला और मुर्गी के अंडे के बराबर प्रमाण तो साधारण बड़े ग्रास जैसा ही है। परन्तु मोर का अंडा काफी बड़ा होता है। एक अच्छी बाटी एक मोर के अंडे के बराबर ही होती है। इतना आहार लेकर तो आसानी से रहा जा सकता है। पिण्ड शब्द का अर्थ ग्रास भी किया जाता है और गोला भी। गोला से रोटी बनाने की लोई से अर्थ लिया जाता हैं यह बड़ी लोई या मोर के अंडे क प्रमाण निर्बल मन वाले लोगों के लिए भले ही ठीक हो। पर साधारणतः पिण्ड का अर्थ ग्रास ही लिया जाता है।
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जल कम से कम 6 से 7 ग्लास घूंट घूंट करके बैठ कर दिन भर में पीना ही है, यदि न पिया जाए तो जबरजस्ती न पिएं। अन्यथा कब्ज की शिकायत हो जाएगी।
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चान्द्रायण व्रत के दिनों में सन्ध्या, स्वाध्याय, देव पूजा, गायत्री जप, हवन आदि धार्मिक कृत्यों का नित्य नियम रखना चाहिए। भूमि शयन, एवं ब्रह्मचर्य का विधान आवश्यक है। ब्रह्मचर्य शक्ति के क्षरण को रोकता है।
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*जप अनुष्ठान* -
👉🏼एक मास में एक सवा लाख जप अनुष्ठान करें
👉🏼या कम से कम तीन 24 हज़ार के अनुष्ठान करें तो उत्तम है।
👉🏼इतना न सधे तो कम से कम दो 24 हज़ार के
👉🏼या एक 24 हज़ार का अनुष्ठान एक महीने के अंदर कर ही लें।
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यदि जप तप ध्यान प्राणायाम योग और स्वाध्याय सन्तुलित हुआ तो कमज़ोरी लगने का कोई सवाल ही उतपन्न न होगा। लेकिन यदि इसमें व्यतिक्रम हुआ अर्थात व्रत हुआ बाकी न हुआ किसी कारण वश किसी दिन तो कमज़ोरी आ सकती है। तो ऐसी अवस्था मे ग्लूकोज़ पानी पी लें या किसी फल का रसाहार ले लें।
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प्रत्येक ग्रास का प्रथम गायत्री से अनुमंत्रण करे फिर ॐ। भूः। भूवः। स्वः। महः। जनः। तपः। सत्यं। यशः। श्रीः। अर्क। ईट। ओजः । तेजः। पुरुष। धर्म। शिवः इनके प्रारम्भ में ‘ॐ’ और अन्तः ‘नमः स्वाहा’ संयुक्त करके उस मंत्र का उच्चारण करते हुए ग्रास का भक्षण करें यथा- ‘ॐ सत्यं नमः स्वाहा’। ऊपर पंद्रह मंत्र लिखे हैं। इसमें से उतने ही प्रयोग होंगे जितने कि ग्रास भक्षण किये जायेंगे, जैसे चतुर्थी तिथि को चार ग्रास लेने हैं तो (1) ॐ नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (2) ॐ भूः नमः स्वाहा (3) ॐ भुवः नमः स्वाहा (4) ॐ स्वः नमः स्वाहा इन चार मंत्रों के साथ एक एक ग्रास ग्रहण किया जायगा।
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व्रत की समाप्ति पर *मां भगवती भोजनालय में दान दें* तथा सत्साहित्य और मन्त्रलेखन पुस्तिका ज्ञान दान में बांटे है।

Reference Article - http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1951/November/v2.14

स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान रखें, डायबिटीज और अस्वस्थ या वृद्ध श्रीफ़ल कच्चे नारियल के टुकड़े छोटे छोटे काटकर रख लें। जब भी थोड़ी कमज़ोरी लगे तो नारियल के टुकड़े खा लें। यदि डायबटीज के मरीज़ का शुगर कम लग रहा हो तो थोड़ा गुड़ खा लें।

🙏🏻 मन में कचरा भरने वाले और कुत्सा -वासना-हिंसा बढ़ाने वाले टीवी सीरियल फ़िल्म व्रत के दौरान न देखें। ऐसे साहित्य न पढ़े। खबरें न्यूज पेपर या वेबसाइट में देख लें। टीवी की खबरों से एक महीने दूर रहें।

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कृपया चन्द्रायण व्रत का रजिस्ट्रेशन अवश्य कर लें, जिससे आपके लिए सूक्ष्म संरक्षण की शान्तिकुंज से व्यवस्था हो सके:-

निम्नलिखित साइट विजिट करें, एवं रजिस्ट्रेशन बटन पर क्लिक करके अपनी डिटेल फॉर्म में भरकर सबमिट कर दें:-

👉🏼http://diya.net.in/events_activities/events/2019/chandrayan_sadhana2019

👉🏼 यदि कोई प्रश्न चन्द्रायण सम्बन्धी हो तो रेखा दी से मार्गदर्शन इस नम्बर पर प्राप्त करें - +918209319828

🙏🏻श्वेता, दिया

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