Sunday 21 July 2019

प्रश्न - *क्या यग्योपैथी-यज्ञ चिकित्सा से पंचतत्वों में सन्तुलन संभव है? यदि हाँ तो कैसे? इससे क्या हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा?*

प्रश्न - *क्या यग्योपैथी-यज्ञ चिकित्सा से पंचतत्वों में सन्तुलन संभव है? यदि हाँ तो कैसे? इससे क्या हमारा स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा?*

उत्तर - आत्मीय दीदी जी, बिल्कुल वायु, जल, भूमि, आकाश व अग्नि ((पंच तत्व))को शुद्ध करने व सन्तुलित करने का एक ही उपाय यज्ञ है। ये पांचों तत्व दूषित नहीं होंगे तो वर्तमान की पर्यावरण प्रदूषण की समस्या समाप्त हो जाएगी। पर्यावरण में प्रदूषण नहीं होगा तो मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।

*मित्रावरुणौ वृष्ट्याधिपाति तो मा$वताम्*

*मित्र* वायु अर्थात *हाइड्रोजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता और *वरुण* वायु अर्थात *ऑक्सीजन* गैस की सूक्ष्म सत्ता जो *जलतत्व* के निर्माण में सहायक हैं। आधुनिक विज्ञान भी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन वायु के मिश्रण को ही जल तत्व का मिश्रण है।

जो कार्य जलवर्षा चक्र में सूर्य करता है, इनदोनो के सम्मिश्रण से जल के बादलों का निर्माण, वही कार्य सूर्य की शक्ति का यज्ञ में आह्वाहन करके उसी शक्ति(सविता शक्ति ऊर्जा) का उपयोग ऋषिगण भी करते हैं,  । अतः यह चेतन विज्ञान 100% प्रभावी है।

अग्नि में डाली हुई आहुति सूर्य किरणों में उपस्थित होती है, उनके संसर्ग प्राण पर्जन्य के मेघों का संग्रह होता है। यह वर्षा जल यज्ञद्वारा प्रेषित औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। इस जल के प्रभाव से उत्तपन्न, अन्न, वनस्पति, सब्जी, फल सब आरोग्यवर्धक व पुष्टि वर्धक होते हैं।

यज्ञ से समस्त देवगण भी तुष्ट होते हैं, अतः वे भी सम्पूर्ण वातावरण में जीवनी शक्ति प्रवाहित करते हैं। ये जीवनी शक्ति अग्नि, वायु, वरुण, पृथ्वी, आकाश, सूर्य चन्द्र इत्यादि के प्रभाव से ही उत्तपन्न हो पाता है।

यदि हम यज्ञ का बराबर अनुष्ठान करते हैं तो समस्त देवताओं के साथ साथ पंच तत्वों के अधिष्ठाता देवताओं को भी पुष्ट बनने में पूरा सहयोग प्राप्त होता है। यज्ञ से जल, थल, वायु, आकाश शुद्धि एवं पुष्टि का यही अभिप्राय है। इनकी पुष्टि व शुद्धि से वातावरण को संरक्षण मिलता है और  रोगाणु नष्ट होते हैं। पंच तत्वों से यह मानव शरीर भी बना हुआ है। अतः जब पंच तत्व पुष्ट होंगे तो सर्वत्र होंगे वातावरण के साथ शरीर के पंच तत्व भी शुद्ध व पुष्ट होंगे।

*यज्ञ में मंत्रों द्वारा अग्नि का मंथन किया जाता है। यज्ञाग्नि को भौतिक अग्नि ही न समझा जाये। इसके अंतर्निहित अन्य भी अग्नि है, जिसकी ओर वेद इंगित करता है। श्रद्धा युक्त मंन्त्र वह चाबी है जो यज्ञाग्नि की महाशक्ति के द्वार को खोलती है, पञ्च तत्वों को तुष्ट कर उनकी महा ऊर्जा को उद्वेलित कर सकते हैं। असम्भव को संभव बना सकती है।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...