प्रश्न - *दी, जीवन में अध्यात्म कितना आवश्यक है? इसकी वाकई कोई ज़रूरत है भी या नहीं? आस्तिक के साथ साथ कई नास्तिक लोग भी सफल जीवन जीते देखे गए हैं, आस्तिक के साथ साथ नास्तिक भी कई दुःखी है।*
उत्तर - प्रिय आत्मीय बेटी,
*आस्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता है जो सृष्टि का संचालन कर रही है। उसके ध्यान पूजन से वो प्रशन्न होगा और मनोकामना पूर्ति कर देगा। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा करता है।
*नास्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता नहीं है जो सृष्टि का संचालन कर रही है, सब अपने आप हो रहा है। ध्यान पूजन से कुछ नहीं होगा और एक ही जन्म मिला है चार दिन की जिंदगी ऐश करो। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा नहीं करता है।
बेटे, एक कर्मकांड में उलझता है और दूसरा संसार मे उलझता है। बस्तुतः वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के अभाव में दोनों के जीवन मे उतार चढ़ाव होते रहते हैं।
*तुम मेरे कहने से अध्यात्म से मत जुड़ो, स्वयं से पहले अध्यात्म क्या है इसे समझो, इसका महत्त्व समझ आये तो ही जुड़ना। हम कोई पंडे पुजारी नहीं है, जो कर्मकांड में तुम्हें उलझाएँगे। हम सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो पिछले 17 वर्ष से जॉब कर रहे हैं। हमने युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव "पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य" के सूक्ष्म मार्गर्दशन में उनकी बताई साधना व स्वाध्याय से जो "जीवन में वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का महत्त्व" समझा बस वही तुम्हें बता रहे हैं।*
👉🏼 *कहानी*- पाषाण युग में अग्नि न होने के कारण लोग पशुवत जीते थे। रात के बाद रौशनी के अभाव में किसी को कुछ नहीं दिखता था, पेट खराब हुआ तो गिरते पड़ते बाहर जाते। चोटिल होकर लौटते या जानवर उनका शिकार कर लेते, सुबह दर्द से कराहते, दुःखी होते। कोई चीज़ रात को गुम हुई तो मिलती नहीं। रात को आंख होते हुए भी रौशनी के अभाव में अंधे थे।
अग्नि की खोज हुई, अब रात को भी लोगों को अग्नि के प्रकाश में दिखने लगा। अब किसी का पेट ख़राब होता तो भी उसे बाहर जाने में भय न रहा। अग्नि से जानवर डरकर दूर भाग जाते, लोग सकुशल लौट पाते। कुछ भी रात को गुम हो तो उसे अग्नि की रौशनी में ढूंढ लेते।
👉🏼 अब तुम बताओ, अग्नि के बिना भी जीवन था और अग्नि के प्रकाश के साथ भी जीवन है। दोनों में फ़र्क़ क्या है?
👉🏼 बेटे, अनपढ़ लोग भी जीते हैं और पढेलिखे लोग भी ज्ञान के प्रकाश में भी जीते हैं, बताओ दोनों में फर्क क्या है?
🙏🏻 बेटे अध्यात्म, स्वयं का अध्ययन है, और स्वयं के जीवन में अध्यात्म की रौशनी में जीना है।
दुनियाँ में जितनी भी वैज्ञानिक खोज़ हुई है, उसका आधार था प्रश्न का मानव मन में उठना।
👉🏼 अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की फ़ोटो देखो, और स्वयं से प्रश्न पूँछो कि ये कहाँ गए? घर या आसपड़ोस में जन्में बच्चों को देखो और प्रश्न करो यह कहाँ से आये। स्वयं की बचपन की फ़ोटो देखो और बड़े की फ़ोटो देखो, और प्रश्न पूँछो मैं तो मैं ही हूँ पर मेरा शरीर तो पूरी तरह बदल गया? यदि शरीर मैं होती तो बदलाव न होता। ऐसा क्या है जो सबके शरीर मे है, जब तक वह ऊर्जा जिसे आत्मा हम कहते है तो जीवन है, नहीं तो शरीर रूपी मशीन बन्द, चिता में शरीर जला दिया जाएगा।
👉🏼 गूगल में विदेशी और भारतीय अनेकों लोगों की पुनर्जन्म की सत्य घटनाएं मिल जाएंगी। जो यह सिद्ध करती है, मृत्यु के बाद भी और जन्म से पहले भी आत्मा का अस्तित्व है। इसकी पढ़ाई करने वाले विज्ञान को *परामनोविज्ञान(Parapsychology)* कहते हैं।
👉🏼 ऋषियों की बात को आइंस्टीन ने भी सिद्ध कर दिया कि पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थ में बदला जा सकता है।
👉🏼 बेटे, वैदिक रश्मि थ्योरी पढ़ोगे तो समस्त ब्रह्माण्ड का विज्ञान समझ आएगा, वैदिक गणित पढ़ोगे तो गणितीय सिद्धांत में माहिर बनोगे। वेद, उपनिषद, गीता एवं युगसाहित्य पढ़ोगे तो जीवन के सिद्धांत समझ मे आएंगे। इसे ही *स्वाध्याय* कहते हैं।
👉🏼 युगऋषि ने सभी प्राचीन ग्रंथों का हिंदी अनुवाद, उनके मूलभूत सिद्धांत को विभिन्न पुस्तकों में सरल हिंदी में लिखकर दे दिया है। किसी भी पुस्तक से शुरू करो पहुँचोगी उसी मूल ज्ञान की जड़ तक ही।
👉🏼 संसार में प्रत्येक घटना के पीछे कारण होता है, किसी भी कार्य के पीछे कोई न कोई कर्ता होता है। अतः किसी के मानने या न मानने से सृष्टि के रचयिता परमात्मा के अस्तित्व को कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक उसी तरह जैसे सूर्य ऊर्जा के लिए सोलर पैनल छत पर लगाओ या न लगाओ, सूर्य तो उगेगा ही। सोलर पैनल लगाया है तो ऊर्जा मिल जाएगी। नहीं लगाया तो न मिलेगी। बेटे अंतर्जगत में परमात्मा का सूर्य उगा हुआ है, लेक़िन समस्या यह है कि आपने ध्यान रूपी सोलर पैनल नहीं लगाया। इसलिए उसकी ऊर्जा को महसूस नहीं कर पा रहे। यही *उपासना(ध्यान)* है।
👉🏼 बेटे जैसे मछली जल में और जल मछली के भीतर है। वैसे ही हवा के भीतर हम और हमारे भीतर हवा है। लेकिन स्वयं सोचो कितने क्षण तुम आसपास हवा के समुद्र को महसूस करती हो। गर्मी लगती है तो कहती हो पंखा चलाओ। क्या पंखे ने हवा उतपन्न की? नहीं न.. पंखे ने मात्र हवा में हलचल उतपन्न की औऱ आपको हवा महसूस हुई। इसी तरह ब्रह्म हमारे भीतर और हम ब्रह्म के भीतर हैं। लेकिन वह परब्रह्म परमात्मा हवा की तरह हमें तबतक महसूस नहीं होता जबतक हम भी पंखे की रोटेशन की तरह उसके मंन्त्र जप का पंखा मन में न चलाये। जैसे ही आध्यात्मिक प्रक्रिया कर्मकांड करते हो तो जो परमात्म तत्व आसपास मौजूद है उसमें हलचल होती है उसे तुम पंखे की हवा की तरह महसूस करने लगते हो। यही *उपासना(जप)* है।
👉🏼 बेटे, कठिन अभ्यास से पहलवान हो या जिम्नास्ट शरीर को साधता है। तब उस खेल में जीतता है। इसी तरह मन को साधने के लिए *आत्मशोधन, आत्मबोध, तत्त्वबोध, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय* जैसे उपक्रम अपनाए जाते है। यही *साधना* कहलाती है।
👉🏼 आइंस्टीन की *पेन वेव थ्योरी* ऋषियों की दी थ्योरी को प्रतिपादित करती है। कि दूसरों को कष्ट दोगे तो उस आह से स्वयं भी बच न सकोगे और दूसरों को सुख दोगे तो स्वयंमेव सुख पाओगे। यही *आराधना* है।
🙏🏻 *अध्यात्म का प्रकाश और अग्नि का प्रकाश तर्क कुतर्क करने की विषयवस्तु नहीं है। यह जलाकर देखने और प्रकाश को अनुभूति करने की विषयवस्तु है। उसे व्यवस्थित उपयोग करके जीवन जीना आसान करना लक्ष्य है।*
🙏🏻 *अध्यात्म कोई अंधेरे में गुमी वस्तु ढूंढकर आपको नहीं देता। अपितु यह प्रकाश देता है, जिससे उस प्रकाश की सहायता से आपको वस्तु ढूंढने में आसानी हो। इसीतरह अध्यात्म के प्रकाश में समस्या का समाधान ढूंढना आसान हो जाता है।*
🙏🏻 *तुम पढ़ीलिखी हो, अतः इस मूर्खता में मत पड़ना कि भगवान की पूजा मनोकामना पूर्ति का साधन है। भगवान की आराधना से ऊर्जा/ईंधन मिलता है, उससे गाड़ी चलाना है या घर रौशन करना है। यह मनुष्य का विवेक तय करता है।*
🙏🏻 *गायत्री मंत्र जप हाई स्पीड उस पंखे की तरह है जो ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा में तरंग तो उत्तपन्न करता ही है, साथ ही उस ऊर्जा से आपके बुद्धिकौशल को बढ़ा देता है। आपकी आत्मा को प्रकाशित कर देता है। जिसकी रौशनी में आप अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने में सक्षम बन जाते हैं।*
🙏🏻 *यज्ञ एक आध्यात्मिक ऊर्जा उतपन्न करने का शशक्त माध्यम है, जो न सिर्फ़ मानव एवं पर्यावरण को पोषण देता है, अपितु उसका उपचार भी करता है। यज्ञ ब्रह्मांडीय ऊर्जा को किये गए यज्ञ स्थान पर आरोपित करने की शक्ति रखता है। यह एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक विज्ञान है।*
🙏🏻 विज्ञान गति देता है और अध्यात्म दिशा। दिशा के अभाव में गति मंजिल तक नहीं पहुंचा सकती।
🙏🏻 उम्मीद है आपको अध्यात्म की जीवन में उपयोगिता क्यों है यह क्लियर हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - प्रिय आत्मीय बेटी,
*आस्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता है जो सृष्टि का संचालन कर रही है। उसके ध्यान पूजन से वो प्रशन्न होगा और मनोकामना पूर्ति कर देगा। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा करता है।
*नास्तिक* - मानता है कि कोई सत्ता नहीं है जो सृष्टि का संचालन कर रही है, सब अपने आप हो रहा है। ध्यान पूजन से कुछ नहीं होगा और एक ही जन्म मिला है चार दिन की जिंदगी ऐश करो। आत्मा व परमात्मा के अस्तित्व पर भरोसा नहीं करता है।
बेटे, एक कर्मकांड में उलझता है और दूसरा संसार मे उलझता है। बस्तुतः वैज्ञानिक अध्यात्मवाद के अभाव में दोनों के जीवन मे उतार चढ़ाव होते रहते हैं।
*तुम मेरे कहने से अध्यात्म से मत जुड़ो, स्वयं से पहले अध्यात्म क्या है इसे समझो, इसका महत्त्व समझ आये तो ही जुड़ना। हम कोई पंडे पुजारी नहीं है, जो कर्मकांड में तुम्हें उलझाएँगे। हम सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो पिछले 17 वर्ष से जॉब कर रहे हैं। हमने युगऋषि परमपूज्य गुरूदेव "पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य" के सूक्ष्म मार्गर्दशन में उनकी बताई साधना व स्वाध्याय से जो "जीवन में वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का महत्त्व" समझा बस वही तुम्हें बता रहे हैं।*
👉🏼 *कहानी*- पाषाण युग में अग्नि न होने के कारण लोग पशुवत जीते थे। रात के बाद रौशनी के अभाव में किसी को कुछ नहीं दिखता था, पेट खराब हुआ तो गिरते पड़ते बाहर जाते। चोटिल होकर लौटते या जानवर उनका शिकार कर लेते, सुबह दर्द से कराहते, दुःखी होते। कोई चीज़ रात को गुम हुई तो मिलती नहीं। रात को आंख होते हुए भी रौशनी के अभाव में अंधे थे।
अग्नि की खोज हुई, अब रात को भी लोगों को अग्नि के प्रकाश में दिखने लगा। अब किसी का पेट ख़राब होता तो भी उसे बाहर जाने में भय न रहा। अग्नि से जानवर डरकर दूर भाग जाते, लोग सकुशल लौट पाते। कुछ भी रात को गुम हो तो उसे अग्नि की रौशनी में ढूंढ लेते।
👉🏼 अब तुम बताओ, अग्नि के बिना भी जीवन था और अग्नि के प्रकाश के साथ भी जीवन है। दोनों में फ़र्क़ क्या है?
👉🏼 बेटे, अनपढ़ लोग भी जीते हैं और पढेलिखे लोग भी ज्ञान के प्रकाश में भी जीते हैं, बताओ दोनों में फर्क क्या है?
🙏🏻 बेटे अध्यात्म, स्वयं का अध्ययन है, और स्वयं के जीवन में अध्यात्म की रौशनी में जीना है।
दुनियाँ में जितनी भी वैज्ञानिक खोज़ हुई है, उसका आधार था प्रश्न का मानव मन में उठना।
👉🏼 अपने स्वर्गवासी पूर्वजों की फ़ोटो देखो, और स्वयं से प्रश्न पूँछो कि ये कहाँ गए? घर या आसपड़ोस में जन्में बच्चों को देखो और प्रश्न करो यह कहाँ से आये। स्वयं की बचपन की फ़ोटो देखो और बड़े की फ़ोटो देखो, और प्रश्न पूँछो मैं तो मैं ही हूँ पर मेरा शरीर तो पूरी तरह बदल गया? यदि शरीर मैं होती तो बदलाव न होता। ऐसा क्या है जो सबके शरीर मे है, जब तक वह ऊर्जा जिसे आत्मा हम कहते है तो जीवन है, नहीं तो शरीर रूपी मशीन बन्द, चिता में शरीर जला दिया जाएगा।
👉🏼 गूगल में विदेशी और भारतीय अनेकों लोगों की पुनर्जन्म की सत्य घटनाएं मिल जाएंगी। जो यह सिद्ध करती है, मृत्यु के बाद भी और जन्म से पहले भी आत्मा का अस्तित्व है। इसकी पढ़ाई करने वाले विज्ञान को *परामनोविज्ञान(Parapsychology)* कहते हैं।
👉🏼 ऋषियों की बात को आइंस्टीन ने भी सिद्ध कर दिया कि पदार्थ को ऊर्जा में और ऊर्जा को पदार्थ में बदला जा सकता है।
👉🏼 बेटे, वैदिक रश्मि थ्योरी पढ़ोगे तो समस्त ब्रह्माण्ड का विज्ञान समझ आएगा, वैदिक गणित पढ़ोगे तो गणितीय सिद्धांत में माहिर बनोगे। वेद, उपनिषद, गीता एवं युगसाहित्य पढ़ोगे तो जीवन के सिद्धांत समझ मे आएंगे। इसे ही *स्वाध्याय* कहते हैं।
👉🏼 युगऋषि ने सभी प्राचीन ग्रंथों का हिंदी अनुवाद, उनके मूलभूत सिद्धांत को विभिन्न पुस्तकों में सरल हिंदी में लिखकर दे दिया है। किसी भी पुस्तक से शुरू करो पहुँचोगी उसी मूल ज्ञान की जड़ तक ही।
👉🏼 संसार में प्रत्येक घटना के पीछे कारण होता है, किसी भी कार्य के पीछे कोई न कोई कर्ता होता है। अतः किसी के मानने या न मानने से सृष्टि के रचयिता परमात्मा के अस्तित्व को कोई फर्क नहीं पड़ता। ठीक उसी तरह जैसे सूर्य ऊर्जा के लिए सोलर पैनल छत पर लगाओ या न लगाओ, सूर्य तो उगेगा ही। सोलर पैनल लगाया है तो ऊर्जा मिल जाएगी। नहीं लगाया तो न मिलेगी। बेटे अंतर्जगत में परमात्मा का सूर्य उगा हुआ है, लेक़िन समस्या यह है कि आपने ध्यान रूपी सोलर पैनल नहीं लगाया। इसलिए उसकी ऊर्जा को महसूस नहीं कर पा रहे। यही *उपासना(ध्यान)* है।
👉🏼 बेटे जैसे मछली जल में और जल मछली के भीतर है। वैसे ही हवा के भीतर हम और हमारे भीतर हवा है। लेकिन स्वयं सोचो कितने क्षण तुम आसपास हवा के समुद्र को महसूस करती हो। गर्मी लगती है तो कहती हो पंखा चलाओ। क्या पंखे ने हवा उतपन्न की? नहीं न.. पंखे ने मात्र हवा में हलचल उतपन्न की औऱ आपको हवा महसूस हुई। इसी तरह ब्रह्म हमारे भीतर और हम ब्रह्म के भीतर हैं। लेकिन वह परब्रह्म परमात्मा हवा की तरह हमें तबतक महसूस नहीं होता जबतक हम भी पंखे की रोटेशन की तरह उसके मंन्त्र जप का पंखा मन में न चलाये। जैसे ही आध्यात्मिक प्रक्रिया कर्मकांड करते हो तो जो परमात्म तत्व आसपास मौजूद है उसमें हलचल होती है उसे तुम पंखे की हवा की तरह महसूस करने लगते हो। यही *उपासना(जप)* है।
👉🏼 बेटे, कठिन अभ्यास से पहलवान हो या जिम्नास्ट शरीर को साधता है। तब उस खेल में जीतता है। इसी तरह मन को साधने के लिए *आत्मशोधन, आत्मबोध, तत्त्वबोध, योग, प्राणायाम, स्वाध्याय* जैसे उपक्रम अपनाए जाते है। यही *साधना* कहलाती है।
👉🏼 आइंस्टीन की *पेन वेव थ्योरी* ऋषियों की दी थ्योरी को प्रतिपादित करती है। कि दूसरों को कष्ट दोगे तो उस आह से स्वयं भी बच न सकोगे और दूसरों को सुख दोगे तो स्वयंमेव सुख पाओगे। यही *आराधना* है।
🙏🏻 *अध्यात्म का प्रकाश और अग्नि का प्रकाश तर्क कुतर्क करने की विषयवस्तु नहीं है। यह जलाकर देखने और प्रकाश को अनुभूति करने की विषयवस्तु है। उसे व्यवस्थित उपयोग करके जीवन जीना आसान करना लक्ष्य है।*
🙏🏻 *अध्यात्म कोई अंधेरे में गुमी वस्तु ढूंढकर आपको नहीं देता। अपितु यह प्रकाश देता है, जिससे उस प्रकाश की सहायता से आपको वस्तु ढूंढने में आसानी हो। इसीतरह अध्यात्म के प्रकाश में समस्या का समाधान ढूंढना आसान हो जाता है।*
🙏🏻 *तुम पढ़ीलिखी हो, अतः इस मूर्खता में मत पड़ना कि भगवान की पूजा मनोकामना पूर्ति का साधन है। भगवान की आराधना से ऊर्जा/ईंधन मिलता है, उससे गाड़ी चलाना है या घर रौशन करना है। यह मनुष्य का विवेक तय करता है।*
🙏🏻 *गायत्री मंत्र जप हाई स्पीड उस पंखे की तरह है जो ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा में तरंग तो उत्तपन्न करता ही है, साथ ही उस ऊर्जा से आपके बुद्धिकौशल को बढ़ा देता है। आपकी आत्मा को प्रकाशित कर देता है। जिसकी रौशनी में आप अपने जीवन को सुव्यवस्थित करने में सक्षम बन जाते हैं।*
🙏🏻 *यज्ञ एक आध्यात्मिक ऊर्जा उतपन्न करने का शशक्त माध्यम है, जो न सिर्फ़ मानव एवं पर्यावरण को पोषण देता है, अपितु उसका उपचार भी करता है। यज्ञ ब्रह्मांडीय ऊर्जा को किये गए यज्ञ स्थान पर आरोपित करने की शक्ति रखता है। यह एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक विज्ञान है।*
🙏🏻 विज्ञान गति देता है और अध्यात्म दिशा। दिशा के अभाव में गति मंजिल तक नहीं पहुंचा सकती।
🙏🏻 उम्मीद है आपको अध्यात्म की जीवन में उपयोगिता क्यों है यह क्लियर हो गया होगा।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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