प्रश्न - *दी, हमारे हॉस्टल के मेस में शाकाहारी व मांसाहारी दोनों पकता है। मैं शाकाहारी हूँ और साधना भी करता हूँ। लेक़िन बर्तन तो मिक्स हो जाते होंगे, जिस बर्तन में एक दिन पहले किसी ने मांस खाया उसी बर्तन को माँज के वर्कर रख देते हैं। हम लोग पहचान नहीं पाते और कोई भी प्लेट लेकर भोजन कर लेते हैं। इससे हमारा धर्म भ्रष्ट तो नहीं होता, हमारी साधना नष्ट तो न होगी?*
उत्तर - बेटे, एक धर्म होता है जो सामान्य परिस्थिति में होता है और दूसरा युगधर्म होता है जो कठिन व विपरीत परिस्थितियों में पालन किया जाता है।
तुम क्योंकि घर से बाहर हो और होस्टल में रह रहे हो, अतः तुम पर समय, परिस्थिति व जगह के कारण युगधर्म लागू होगा। बर्तन अलग करने का नियम यदि सभी शाकाहारी बच्चे मिलकर करवा सकें तो अति उत्तम है जैसे बड़े होटल में ग्रीन प्लेट शाकाहारी व ब्लेक प्लेट मांसाहारी के लिए होती है।
लेकिन यदि प्लेट अलग करवाना संभव नही है, फ़िर ऐसी परिस्थिति में उन बर्तनों पर कुछ जल की बूंदे डालते हुए एक बार गायत्री मंत्र पढ़कर पवित्रीकरण का भाव कर लो।
फिंर थाली में भोजन लेकर बैठ जाओ, और भोजन से पहले तीन बार गायत्री मंत्र पढ़कर मन ही मन भोजन को भगवान को भोग लगाओ। अब तुम्हारा भोजन भगवान का प्रसाद बन गया है, ऐसे भावों को मन मे धारण करते हुए प्रेमपूर्वक भोजन करो। तुम्हारे धर्म की रक्षा होगी एवं तुम्हारी साधना भी नष्ट न होगी।
किन्हीं कारणवश या जॉब के कारण यदि आपको होटल में खाना मजबूरी हो तो उपरोक्त विधि से शाकाहारी भोजन को भगवान को भोग लगाकर उसे पवित्र प्रसाद मान करके ग्रहण कर सकते हैं। जिससे आपकी साधना व धर्म का रक्षण हो सके।
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - बेटे, एक धर्म होता है जो सामान्य परिस्थिति में होता है और दूसरा युगधर्म होता है जो कठिन व विपरीत परिस्थितियों में पालन किया जाता है।
तुम क्योंकि घर से बाहर हो और होस्टल में रह रहे हो, अतः तुम पर समय, परिस्थिति व जगह के कारण युगधर्म लागू होगा। बर्तन अलग करने का नियम यदि सभी शाकाहारी बच्चे मिलकर करवा सकें तो अति उत्तम है जैसे बड़े होटल में ग्रीन प्लेट शाकाहारी व ब्लेक प्लेट मांसाहारी के लिए होती है।
लेकिन यदि प्लेट अलग करवाना संभव नही है, फ़िर ऐसी परिस्थिति में उन बर्तनों पर कुछ जल की बूंदे डालते हुए एक बार गायत्री मंत्र पढ़कर पवित्रीकरण का भाव कर लो।
फिंर थाली में भोजन लेकर बैठ जाओ, और भोजन से पहले तीन बार गायत्री मंत्र पढ़कर मन ही मन भोजन को भगवान को भोग लगाओ। अब तुम्हारा भोजन भगवान का प्रसाद बन गया है, ऐसे भावों को मन मे धारण करते हुए प्रेमपूर्वक भोजन करो। तुम्हारे धर्म की रक्षा होगी एवं तुम्हारी साधना भी नष्ट न होगी।
किन्हीं कारणवश या जॉब के कारण यदि आपको होटल में खाना मजबूरी हो तो उपरोक्त विधि से शाकाहारी भोजन को भगवान को भोग लगाकर उसे पवित्र प्रसाद मान करके ग्रहण कर सकते हैं। जिससे आपकी साधना व धर्म का रक्षण हो सके।
🙏🏻श्वेता, DIYA
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