प्रश्न - *अकाल एक्सीडेंट से मृत्यु, हत्या द्वारा मृत्यु, घात प्रतिघात से होने वाली मृत्यु के प्रारब्ध को क्या वर्तमान जन्म में अच्छे कर्म करके टाला जा सकता है?*
उत्तर - जिंदगी और मौत का रहस्य ऐसा है जिसे आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है क्योंकि ये दो चीजें ऐसी हैं जो ईश्वर के हाथों में और व्यक्ति के अपने कर्मो पर निर्भर होते हैं। फिर भी जीवन और मृत्यु पर ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों ने जो शोध किए हैं उनसे कुछ चीजें तो सामने आए ही हैं। यही वजह है कि कुछ लोग अपनी मृत्यु को लेकर भविष्यवाणी करते रहे हैं और यह सच भी हुए हैं जैसे नस्त्रेदमस ने अपनी मौत को पहले ही जान लिया था। दरअसल कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए तो मृत्यु कब और कैसे आएगी इसकी काफी कुछ जानकरी हासिल कर सकते हैं।
लेकिन यहां हम ज्योतिष और परामनोविज्ञान को नहीं समझाने जा रहे हैं। यहां हम आपको कुछ मूलभूत सिद्धांत बताते हैं।
जिस प्रकार फ़ूड प्रोडक्ट बनते ही उसी पैकेट में बनने की तिथि व उस प्रोडक्ट की एक्पायरी(नष्ट) होने की तिथि लिख दी जाती है। इसी तरह जन्म के समय ही मृत्यु का कारण एवं तिथि समय लिख दिया गया होता है। जिस व्यक्ति या कारण से मृत्यु होगी वो भी निर्धारित प्रारब्ध के अनुसार हो जाता है।
उदाहरण -
1- भगवान कृष्ण के कुल की मृत्यु युद्ध से होना।
2- भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के वक़्त पूर्व जन्म के बाली रूपी का आह्वान एवं उसके तीर से मृत्यु होना।
3- भगवान बुद्ध की मृत्यु जहर दिए जाने से होना।
4- श्रीसीता जी का भूमि समाधि, श्री लक्ष्मण जी का त्याग व उनकी मृत्यु, श्रीराम जी, श्रीभरत, श्रीशत्रुघ्न की जल समाधि।
5- एक संत गाड़ी से प्रवचन देने जा रहे थे, पीछे बैठे थे तभी गाड़ी रोक के ड्राइवर की सीट पर बैठ गए बाकी को उतार दिया। थोड़ी देर में एक ट्रक ने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया।
6- वृंदावन के संत ने शिष्यों से कहा आज मेरी मृत्यु एक व्यक्ति के हाथ होगी। लेक़िन उसे कुछ कहना मत। मैं पिछले जन्म में कसाई था। अनेकों वध किये थे, मुझे उस पीड़ा से गुजरना होगा। बोले महाराज आप ने तो पिछले 30 वर्ष से घोर तप किया है। संत बोले बेटे प्रारब्ध मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका था। संत बनने से मेरे जीवन का कल्याण हुआ और जो कष्ट कई जन्म भुगतना पड़ता वो एक जन्म में ही चुक जाएगा। संचित कर्म तो मैंने क्लियर कर लिए, अगले जन्मों में जो वध करने वाली आत्माएं थी उनसे अकाउंट क्लियर हो गया, लेकिन जो प्रारब्धवश मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका है, वो मेरी मृत्यु का कारण जाने अनजाने में बनेगा। अगले दिन एक किसान एक चोर को कुल्हाड़ी फेंक के मारता है वो गलती से संत को लगती है और उनकी मृत्यु हो जाती है।
7- मृत्यु केवल शरीर बदलने का माध्यम है, हम मोहग्रस्त अज्ञानी मनुष्य शरीर को सबकुछ मानते हैं इसलिए मृत्यु को बहुत बड़ी चीज़ समझते हैं, भयग्रस्त रहते हैं।
आत्मा की यात्रा जन्म जन्मांतर के लिए चलती है। सराय रूपी शरीर तो वो बदलती रहती है।
एक बार शिव जी से मिलने कैलाश मानसरोवर श्री भगवान विष्णु गरुण सहित गए। तभी वहां यमराज भी आये, एक चिड़िया को उन्होंने प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। गरुण के पूंछने पर बताया बिल्ली के द्वारा यह चिड़िया के मरने का क्षण आ गया है। वो आगे बोल ही रहे थे कि गरुण ने पूरी बात सुने बिना चिड़िया को बचाने हेतु उठाया और गरुण लोक पहुंचा दिया। और वापस आकर बैठ गए। यमराज लौटे तो चिड़िया को वहां न देख, आंखे बंद किया। फिंर जोर से हँसे। तब गरुण ने पूँछा आप अब क्यों हंसे। बोले गरुण तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना उस चिड़िया को यहां से ले गए। मैं इसलिए हँसा कि जब मैंने चिड़िया को यहां देखा तो सोचा कि यह तो यहां बैठी है, इसकी मृत्यु का समय आ गया है। बिल्ली तो गरुण लोक में मारेगी। यह वहां तक पहुंचेगी कैसे? देखो गरुण तुम इसका माध्यम बने। गरुण लोक में उस चिड़िया की मृत्यु दूसरे गरुण द्वारा पकड़ी बिल्ली ने कर दिया है।
यमराज ने कहा, गरुण जन्म के साथ ही मृत्यु निश्चित हो जाती है।
मृत्यु से भय नहीं करना चाहिए, उसे जीवन की एक अनिवार्य घटना के रूप में बोध पूर्वक स्वीकारना चाहिए।
मृत्यु का स्वरूप बीमारी, दुर्घटना, हत्या, जल से डूबने इत्यादि जो भी माध्यम होगा तो होगा। अभी जो जीवन है उसे बेहतरीन जियें।
सभी पूर्वज मृत्यु को प्राप्त हुए, हम भी जाएंगे। अतः स्वयं के आत्मउत्कर्ष के लिए जियें, व्यवस्थित जियें।
ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित पुस्तकें पढ़िये
1- प्रज्ञा पुराण
2- मरने के बाद क्या होता है
3- गरुण पुराण
🙏🏻श्वेता, DIYA
उत्तर - जिंदगी और मौत का रहस्य ऐसा है जिसे आज तक कोई सुलझा नहीं पाया है क्योंकि ये दो चीजें ऐसी हैं जो ईश्वर के हाथों में और व्यक्ति के अपने कर्मो पर निर्भर होते हैं। फिर भी जीवन और मृत्यु पर ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों ने जो शोध किए हैं उनसे कुछ चीजें तो सामने आए ही हैं। यही वजह है कि कुछ लोग अपनी मृत्यु को लेकर भविष्यवाणी करते रहे हैं और यह सच भी हुए हैं जैसे नस्त्रेदमस ने अपनी मौत को पहले ही जान लिया था। दरअसल कुछ बातों पर ध्यान दिया जाए तो मृत्यु कब और कैसे आएगी इसकी काफी कुछ जानकरी हासिल कर सकते हैं।
लेकिन यहां हम ज्योतिष और परामनोविज्ञान को नहीं समझाने जा रहे हैं। यहां हम आपको कुछ मूलभूत सिद्धांत बताते हैं।
जिस प्रकार फ़ूड प्रोडक्ट बनते ही उसी पैकेट में बनने की तिथि व उस प्रोडक्ट की एक्पायरी(नष्ट) होने की तिथि लिख दी जाती है। इसी तरह जन्म के समय ही मृत्यु का कारण एवं तिथि समय लिख दिया गया होता है। जिस व्यक्ति या कारण से मृत्यु होगी वो भी निर्धारित प्रारब्ध के अनुसार हो जाता है।
उदाहरण -
1- भगवान कृष्ण के कुल की मृत्यु युद्ध से होना।
2- भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के वक़्त पूर्व जन्म के बाली रूपी का आह्वान एवं उसके तीर से मृत्यु होना।
3- भगवान बुद्ध की मृत्यु जहर दिए जाने से होना।
4- श्रीसीता जी का भूमि समाधि, श्री लक्ष्मण जी का त्याग व उनकी मृत्यु, श्रीराम जी, श्रीभरत, श्रीशत्रुघ्न की जल समाधि।
5- एक संत गाड़ी से प्रवचन देने जा रहे थे, पीछे बैठे थे तभी गाड़ी रोक के ड्राइवर की सीट पर बैठ गए बाकी को उतार दिया। थोड़ी देर में एक ट्रक ने गाड़ी का एक्सीडेंट कर दिया।
6- वृंदावन के संत ने शिष्यों से कहा आज मेरी मृत्यु एक व्यक्ति के हाथ होगी। लेक़िन उसे कुछ कहना मत। मैं पिछले जन्म में कसाई था। अनेकों वध किये थे, मुझे उस पीड़ा से गुजरना होगा। बोले महाराज आप ने तो पिछले 30 वर्ष से घोर तप किया है। संत बोले बेटे प्रारब्ध मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका था। संत बनने से मेरे जीवन का कल्याण हुआ और जो कष्ट कई जन्म भुगतना पड़ता वो एक जन्म में ही चुक जाएगा। संचित कर्म तो मैंने क्लियर कर लिए, अगले जन्मों में जो वध करने वाली आत्माएं थी उनसे अकाउंट क्लियर हो गया, लेकिन जो प्रारब्धवश मेरे संत बनने से पहले जन्म ले चुका है, वो मेरी मृत्यु का कारण जाने अनजाने में बनेगा। अगले दिन एक किसान एक चोर को कुल्हाड़ी फेंक के मारता है वो गलती से संत को लगती है और उनकी मृत्यु हो जाती है।
7- मृत्यु केवल शरीर बदलने का माध्यम है, हम मोहग्रस्त अज्ञानी मनुष्य शरीर को सबकुछ मानते हैं इसलिए मृत्यु को बहुत बड़ी चीज़ समझते हैं, भयग्रस्त रहते हैं।
आत्मा की यात्रा जन्म जन्मांतर के लिए चलती है। सराय रूपी शरीर तो वो बदलती रहती है।
एक बार शिव जी से मिलने कैलाश मानसरोवर श्री भगवान विष्णु गरुण सहित गए। तभी वहां यमराज भी आये, एक चिड़िया को उन्होंने प्रश्न भरी दृष्टि से देखा। गरुण के पूंछने पर बताया बिल्ली के द्वारा यह चिड़िया के मरने का क्षण आ गया है। वो आगे बोल ही रहे थे कि गरुण ने पूरी बात सुने बिना चिड़िया को बचाने हेतु उठाया और गरुण लोक पहुंचा दिया। और वापस आकर बैठ गए। यमराज लौटे तो चिड़िया को वहां न देख, आंखे बंद किया। फिंर जोर से हँसे। तब गरुण ने पूँछा आप अब क्यों हंसे। बोले गरुण तुमने मेरी पूरी बात सुने बिना उस चिड़िया को यहां से ले गए। मैं इसलिए हँसा कि जब मैंने चिड़िया को यहां देखा तो सोचा कि यह तो यहां बैठी है, इसकी मृत्यु का समय आ गया है। बिल्ली तो गरुण लोक में मारेगी। यह वहां तक पहुंचेगी कैसे? देखो गरुण तुम इसका माध्यम बने। गरुण लोक में उस चिड़िया की मृत्यु दूसरे गरुण द्वारा पकड़ी बिल्ली ने कर दिया है।
यमराज ने कहा, गरुण जन्म के साथ ही मृत्यु निश्चित हो जाती है।
मृत्यु से भय नहीं करना चाहिए, उसे जीवन की एक अनिवार्य घटना के रूप में बोध पूर्वक स्वीकारना चाहिए।
मृत्यु का स्वरूप बीमारी, दुर्घटना, हत्या, जल से डूबने इत्यादि जो भी माध्यम होगा तो होगा। अभी जो जीवन है उसे बेहतरीन जियें।
सभी पूर्वज मृत्यु को प्राप्त हुए, हम भी जाएंगे। अतः स्वयं के आत्मउत्कर्ष के लिए जियें, व्यवस्थित जियें।
ज्यादा जानकारी के लिए निम्नलिखित पुस्तकें पढ़िये
1- प्रज्ञा पुराण
2- मरने के बाद क्या होता है
3- गरुण पुराण
🙏🏻श्वेता, DIYA
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