Thursday, 25 July 2019

प्रश्न - *बेटे, भगवान की कृपादृष्टि के लिये उनका मंन्त्र जप व तप साधना की जाती है, फ़िर गुरु दीक्षा की क्या आवश्यकता? गुरु दीक्षा की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक अनिवार्यता पर प्रकाश डालें..*

प्रश्न - *बेटे, भगवान की कृपादृष्टि के लिये उनका मंन्त्र जप व तप साधना की जाती है, फ़िर गुरु दीक्षा की क्या आवश्यकता? गुरु दीक्षा की आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक अनिवार्यता पर प्रकाश डालें..*

उत्तर - बाबूजी प्रणाम,

अध्यात्म जगत में प्रवेश हेतु एवँ आत्म चेतना विज्ञान के गहन अध्ययन हेतु शिष्य को उन सद्गुरू की आवश्यकता होती है जो तपस्वी व उस मंन्त्र के दृष्टा ज्ञाता व तपस्वी हों। सद्गुरु देहधारी भी हो सकते हैं और सूक्ष्म शरीरधारी भी।

*मन्त्र सिद्धि में चार तथ्य सम्मिलित रूप से काम करते हैं* -

(1) ध्वनि विज्ञान के आधार पर विनिर्मित शब्द शृंखला का चयन और उसका विधिवत् उच्चारण। यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

 (2) साधक की संयम द्वार, निग्रहित प्राण शक्ति और मानसिक एकाग्रता का संयुक्त समावेश, चेतना का परिमार्जन एवं चेतन जगत की समझ, यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

(3) उपासना प्रयोग में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ उपकरणों की भौतिक किन्तु सूक्ष्म शक्ति का ज्ञान व विधिवत प्रयोग, यह ज्ञान सद्गुरु ही करवाता है।

(4) भावना प्रवाह, श्रद्धा, विश्वास एवं उच्चस्तरीय लक्ष्य दृष्टिकोण। लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं का पूर्व ज्ञान और उनके निराकरण के उपाय। यह ज्ञान भी सद्गुरु ही करवाता है।

इन चारों का जहाँ जितने अंश में समावेश होगा वहाँ उतने ही अनुपात से मन्त्र शक्ति का प्रतिफल एवं चमत्कार दिखाई पड़ेगा। इन तथ्यों की जहाँ उपेक्षा की जा रही होगी और ऐसे ही अन्धाधुन्ध गाड़ी धकेली जा रही होगी- जल्दी -पल्दी वरदान पाने की धक लग रही होगी वहाँ निराशा एवं असफलता ही हाथ लगेगी। अज्ञानता ही असफलता का कारण है, औऱ ज्ञान ही सफलता का आधार है। ज्ञान का आदि श्रोत सद्गुरु ही है।

वाद्य यंत्र खरीद लेने मात्र से कोई संगीतज्ञ नहीं बन जाता, उसी तरह मंन्त्र के अक्षर ज्ञान को पाकर कोई मन्त्रज्ञ नहीं बन पाता।  वाद्य यंत्र कुशल गुरु के मार्गदर्शन में कठिन निरन्तर अभ्यास से ही सीखा जा सकता है। उसी तरह मंन्त्र एक चेतन वाद्य यंत्र है, इससे प्रभु को रिझाया भी जा सकता है और इससे चर अचर को वश में भी किया जा सकता है। इसकी अनन्त शक्तियों से परिचय  व इसके उपयोग की विधा व साधना मात्र सद्गुरु ही करवा सकता है।

मंन्त्र से आध्यात्मिक शल्यक्रिया व उपचार भी संभव है, इसका ज्ञान भी सद्गुरु कृपा से ही मिलता है।

गुरुदीक्षा में गुरु का ज्ञान एवं मार्गदर्शन तो मिलता ही है, साथ ही गुरुदीक्षा में गुरु के किये तप का एक अंश शिष्य को मिलता है। शिष्य को गुरु एक आध्यात्मिक गर्भ प्रदान करता है जिसमें जब तक उसकी चेतना परिमार्जित नहीं हो जाती तब तक संरक्षण व पोषण देता है। शरीर को जन्म माता जिस प्रकार देती है, वैसे ही चेतन जगत में दूसरा जन्म गुरु देता है।
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*एक कहानी से समझें* - संत नामदेव को भगवान विट्ठल दिखते थे व उनके हाथों भोजन करते थे। मित्रवत थे। एक बार संत कुम्हार गोरा ने उन्हें कच्चा मटका कह दिया क्योंकि वो निगुरे(बिना गुरु के थे)। नामदेव परेशान हो गए और शाम को साधना में उन्होंने विट्ठल से कहा कि लोग गुरु धारण  तो लोग प्रभु आपको पाने के लिए करते हैं। आप तो मुझे मिले हुए हो फिंर मुझे गुरु धारण की क्या आवश्यकता? भगवान विट्ठल बोले नामदेव जब तक सद्गुरु से दीक्षित नहीं होंगे तब तक तुम्हारी चेतना परिमार्जित नहीं होगी, और परमलक्ष्य को समझ न सकोगे। मेरे अनन्त स्वरूप का ज्ञान व भान तुम्हारे सद्गुरु ही तुम्हे करवाएंगे। नामदेव ने कहा कौन होंगे मेरे सद्गुरु? भगवान विठ्ठल ने उन्हें *विसोबा खेचर* सदगुरु बनाने को कहा। जब गुरु का आगमन उनके जीवन मे हुआ तो *नामदेव* धन्य हो गए।
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9 वर्ष की कठिन साधना संत भूरी बाई कर रही थीं, लेकिन आत्मज्ञान से वंचित थी। 9 वर्ष बाद उन्हें सद्गुरु महाराजा चतुर सिंह मिले। उनकी कृपा और मार्गदर्शन में तीन दिन में ही आत्मज्ञान हो गया।
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ऐसे अनेक उदाहरण व गुरु महिमा गुरुगीता में पढ़ सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन



🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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