*संगठन का महत्त्व*
संगठन में मिस्टर परफ़ेक्ट और मिस परफ़ेक्ट की तलाश न करें।
एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, एक अकेला व्यक्ति समाज नहीं बना सकता, एक समिधा से यज्ञ न होगा।
युगनिर्माण यज्ञ हेतु सबको साथ एक साथ आना होगा, समिधाओं को युगनिर्माण में आहुत होना होगा। अपनी प्रतिभा क्षमता लगानी होगी।
कहानी - *एक बार Porcupine( पोर्क्युपाइन - साही) जानवर जिसके शरीर मे काँटे होते हैं, एक ठंडे प्रदेश में रहते थे।* अत्यधिक ठंड से वो बेहाल हो रहे थे, मीटिंग बुलाई गयी कि ठंड से कैसे बचें और जीवित रहें?
तभी मीटिंग के दौरान सबने अनुभव किया कि वो गर्मी महसूस कर रहे है। क्योंकि सबके शरीर की गर्मी से माहौल गर्म महसूस हो रहा था। सब ख़ुश हो गए उनका जीवन बच जाएगा यदि वो साथ रहे तो ये जानकर। लेकिन एक समस्या थी, जब वो साथ होते तो कांटे एक दूसरे के एक दुसरो को चुभते। जो यह सह सकता वही साथ रह सकता, यदि अलग रहें तो जीवन पर संकट मंडराएगा। एक *साही* को चुभन बर्दास्त न हुई वो अकेले रहने निकल गया। ठंडक ने उसे बेहाल कर दिया और वो जमकर बेहोश हो गया। तभी सभी साही उसे उठाकर ले आये और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उन सबकी शरीर की गर्मी से पुनः उसकी चेतना लौटी तो उसे अहसास हुआ, यदि जान बचाना है तो संगठित रहना पड़ेगा। जीना है तो कांटे सहने पड़ेंगे।
इसी तरह परिवार हो या संस्था सब जगह सबके व्यवहार में कुछ न कुछ कांटे होते ही हैं, कोई कटु बोलता है तो कोई जल्दी गुस्सा हो जाता है इत्यादि कोई न कोई अवगुण सबके भीतर है, लेकिन जब साथ मिलकर काम करते हैं तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। जब सब साथ होते है तो आनंद आता है। संगठित परिजन साक्षात महाकाल की सेना लगते हैं।
इसलिए आत्मीय भाईयों बहनों थोड़े थोड़े व्यवहार के कांटे एक दूसरे के सह लो, और एक साथ मिलकर मिशन को नई ऊंचाइयों पर ले चलो। कोई परफ़ेक्ट इस दुनियाँ में नहीं है, स्वयं को चेक करें कि क्या हम 100% परफेक्ट है? अपने जन्माये बच्चों को चेक करे क्या वो परफ़ेक्ट 100% है? क्या घर परिवार में सब आपकी बात मानते है नहीं न...तो फ़िर संस्था और मिशन में मिस्टर या मिस परफ़ेक्ट की तलाश क्यों कर रहे हो जिसके साथ ही काम करोगे? जो थोड़ा भी सही है उसके साथ काम करना शुरू करो और उसकी अच्छाई को गुरुकार्य युगनिर्माण हेतु नियोजित करो....
बिखरोगे तो टूटोगे, बहुत सारा काम है पूरे युग की विचारधारा को सही दिशा में लगाना है। अतः छोटी मोटी बातों से उतपन्न मन मुटावो को इग्नोर करें। बड़े लक्ष्य युगनिर्माण हेतु आओ एकजुट हो प्रयास करें।
जब घर मे बच्चे लड़ते है तो मम्मी पापा गुस्सा होते है न, इसी तरह किसी भी कारण से यदि हम सब विवाद करेंगे तो क्या गुरुदेब और माता जी गुस्सा न होंगे?
*आओ इस गुरुपूर्णिमा को अपने अहं को गुरुचरणों में समर्पित करें, एक दूसरे के थोड़े से स्वभाब की कठिनाइयों के साथ स्वयं को एडजस्ट करें और संगठित हो गुरुकार्य करें। जिससे गुरुदेव माता जी हम पर प्यार दुलार लुटाएं।*
आइये गुरु पूर्णिमा पर हम सब गुरुदेव को यह आश्वासन दें कि हम सब एक दूसरे की कमियों को सहन करते हुए मिल कर कार्य करेंगे। आलोचना नहीं प्यार से भाई बहनों को गुरुदेव के बताए मार्ग पर चलने को विवश करेंगे।
🙏🏻श्वेता, दिया
संगठन में मिस्टर परफ़ेक्ट और मिस परफ़ेक्ट की तलाश न करें।
एक अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, एक अकेला व्यक्ति समाज नहीं बना सकता, एक समिधा से यज्ञ न होगा।
युगनिर्माण यज्ञ हेतु सबको साथ एक साथ आना होगा, समिधाओं को युगनिर्माण में आहुत होना होगा। अपनी प्रतिभा क्षमता लगानी होगी।
कहानी - *एक बार Porcupine( पोर्क्युपाइन - साही) जानवर जिसके शरीर मे काँटे होते हैं, एक ठंडे प्रदेश में रहते थे।* अत्यधिक ठंड से वो बेहाल हो रहे थे, मीटिंग बुलाई गयी कि ठंड से कैसे बचें और जीवित रहें?
तभी मीटिंग के दौरान सबने अनुभव किया कि वो गर्मी महसूस कर रहे है। क्योंकि सबके शरीर की गर्मी से माहौल गर्म महसूस हो रहा था। सब ख़ुश हो गए उनका जीवन बच जाएगा यदि वो साथ रहे तो ये जानकर। लेकिन एक समस्या थी, जब वो साथ होते तो कांटे एक दूसरे के एक दुसरो को चुभते। जो यह सह सकता वही साथ रह सकता, यदि अलग रहें तो जीवन पर संकट मंडराएगा। एक *साही* को चुभन बर्दास्त न हुई वो अकेले रहने निकल गया। ठंडक ने उसे बेहाल कर दिया और वो जमकर बेहोश हो गया। तभी सभी साही उसे उठाकर ले आये और उसके चारों ओर इकट्ठा हो गए। उन सबकी शरीर की गर्मी से पुनः उसकी चेतना लौटी तो उसे अहसास हुआ, यदि जान बचाना है तो संगठित रहना पड़ेगा। जीना है तो कांटे सहने पड़ेंगे।
इसी तरह परिवार हो या संस्था सब जगह सबके व्यवहार में कुछ न कुछ कांटे होते ही हैं, कोई कटु बोलता है तो कोई जल्दी गुस्सा हो जाता है इत्यादि कोई न कोई अवगुण सबके भीतर है, लेकिन जब साथ मिलकर काम करते हैं तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। जब सब साथ होते है तो आनंद आता है। संगठित परिजन साक्षात महाकाल की सेना लगते हैं।
इसलिए आत्मीय भाईयों बहनों थोड़े थोड़े व्यवहार के कांटे एक दूसरे के सह लो, और एक साथ मिलकर मिशन को नई ऊंचाइयों पर ले चलो। कोई परफ़ेक्ट इस दुनियाँ में नहीं है, स्वयं को चेक करें कि क्या हम 100% परफेक्ट है? अपने जन्माये बच्चों को चेक करे क्या वो परफ़ेक्ट 100% है? क्या घर परिवार में सब आपकी बात मानते है नहीं न...तो फ़िर संस्था और मिशन में मिस्टर या मिस परफ़ेक्ट की तलाश क्यों कर रहे हो जिसके साथ ही काम करोगे? जो थोड़ा भी सही है उसके साथ काम करना शुरू करो और उसकी अच्छाई को गुरुकार्य युगनिर्माण हेतु नियोजित करो....
बिखरोगे तो टूटोगे, बहुत सारा काम है पूरे युग की विचारधारा को सही दिशा में लगाना है। अतः छोटी मोटी बातों से उतपन्न मन मुटावो को इग्नोर करें। बड़े लक्ष्य युगनिर्माण हेतु आओ एकजुट हो प्रयास करें।
जब घर मे बच्चे लड़ते है तो मम्मी पापा गुस्सा होते है न, इसी तरह किसी भी कारण से यदि हम सब विवाद करेंगे तो क्या गुरुदेब और माता जी गुस्सा न होंगे?
*आओ इस गुरुपूर्णिमा को अपने अहं को गुरुचरणों में समर्पित करें, एक दूसरे के थोड़े से स्वभाब की कठिनाइयों के साथ स्वयं को एडजस्ट करें और संगठित हो गुरुकार्य करें। जिससे गुरुदेव माता जी हम पर प्यार दुलार लुटाएं।*
आइये गुरु पूर्णिमा पर हम सब गुरुदेव को यह आश्वासन दें कि हम सब एक दूसरे की कमियों को सहन करते हुए मिल कर कार्य करेंगे। आलोचना नहीं प्यार से भाई बहनों को गुरुदेव के बताए मार्ग पर चलने को विवश करेंगे।
🙏🏻श्वेता, दिया
No comments:
Post a Comment