Tuesday, 9 July 2019

प्रश्न - *दी, तीन जोड़ो ने श्रेष्ठ सन्तान का जन्म सुनिश्चित करने हेतु "गर्भाधान" सँस्कार करवाने की इच्छा ज़ाहिर की है। कर्मकांड भाष्कर में गर्भाधान सँस्कार विधि वर्णित नहीं है। साथ ही "षोडश सँस्कार विवेचन" वांगमय में भी इसकी विधि वर्णित नहीं है।

प्रश्न - *दी, तीन जोड़ो ने श्रेष्ठ सन्तान का जन्म सुनिश्चित करने हेतु "गर्भाधान" सँस्कार करवाने की इच्छा ज़ाहिर की है। कर्मकांड भाष्कर में गर्भाधान सँस्कार विधि वर्णित नहीं है। साथ ही "षोडश सँस्कार विवेचन" वांगमय में भी इसकी विधि वर्णित नहीं है। कृपया मार्गदर्शन करें*

उत्तर - वर्तमान समय में युवा जोड़ो में *ब्रह्मचर्य के संयम* को पालन करने में कठिनाई होती है। इनसे कड़े नियम सधते नहीं, इसलिए *गर्भाधान सँस्कार* की जगह *पुंसवन सँस्कार* को अधिक महत्त्व दिया गया है।

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों (षोडश संस्कार) का उल्लेख किया जाता है जो मानव को उसके गर्भ में जाने से लेकर मृत्यु के बाद तक किए जाते हैं। इनमें से विवाह, यज्ञोपवीत इत्यादि संस्कार बड़े धूमधाम से मनाये जाते हैं। वर्तमान समय में सनातन धर्म या हिन्दू धर्म के अनुयायी गर्भधान से मृत्यु तक १६ संस्कारों का पालन करते थे। इनमें प्रथम सँस्कार *गर्भाधान सँस्कार* होता था।

*गर्भाधान सँस्कार* में जोड़े साथ मिलकर वैदिक गायत्री यज्ञ करते थे जिसमें गायत्री मंत्र एवं महामृत्युंजय मंत्र इत्यादि की आहुतियाँ दी जाती थी।

 यज्ञाग्नि में पूर्णाहुति के बाद पुरुष के लिए उसी अग्नि में *पुरोडाश(हविष्यान्न जौ, काला तिल, चावल के आटे की बाटी)* गर्म किया जाता था व स्त्री के लिए *चरु(गाय के दूध, गुड़ या ख़जूर, चावल से बनी खीर)* खीर को गर्म किया जाता था। जिससे हवन की ऊर्जा *पुरोडाश* और *चरु* में प्रवेश कर सके।

पुरुष *पुरोडाश* यज्ञ प्रसाद में खाता था एवं स्त्री *चरु* यज्ञ प्रसाद में ख़ाकर 40 दिन तक *ब्रह्मचर्य पालन* करते हुए सवा लाख का अनुष्ठान करते थे। 

कुछ विशेष ऋषिपरम्परा में अधिकतम 5 वर्षो तक तपस्या करके फ़िर सन्तानोत्पादन करते थे। लेक़िन साधारण लोग 40 दिन का ब्रह्मचर्य धारण करके सन्तान हेतु प्रयास करते थे। 40 दिन की पुरुष की तपस्या और 40 दिन की स्त्री की तपस्या गर्भ धारण के बाद ऊर्जा पुंज का निर्माण करते थे। वह ऊर्जा पुंज गर्भ में दिव्यात्माओं का आह्वाहन करता था, गर्भ में ऊर्जा का चुंबकत्व महर्षि पातंजलि के *सापेक्ष एवं आन्तर्य* के सिद्धांत पर काम करता है। इस ऊर्जा पूंज के प्रभाव के कारण दुष्टात्मा गर्भ में प्रवेश नहीं कर पाती। और दिव्यात्मा का प्रवेश सुनिश्चित हो जाता है। श्रेष्ठ आत्मा के गर्भ में आने के बाद जब तक बच्चे का जन्म न हो जाये, पति-पत्नी नित्य वेद ऋचाओं का पाठ, पुराण की कथाओं का श्रवण एवं जप तप करते थे। गर्भस्थ शिशु के दिव्य प्रशिक्षण *पुंसवन सँस्कार* करके प्रारम्भ करते थे।

 इस तरह दिव्यात्मा के जन्म को गर्भ के आसपास दिव्य वातावरण विनिर्मित करके सुनिश्चित करते थे।

जिन जोड़ो को श्रेष्ठ सन्तान प्राप्ति की इच्छा है वो उपरोक्त विधि से *गर्भाधान सँस्कार* कर सकते हैं। ध्यान रहे, गर्भाधान सँस्कार के बाद 40 दिन कम से कम ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अनुष्ठान करना आवश्यक है।

युवा जोड़ो को - पुस्तक  *आओ गढ़े सँस्कारवान पीढ़ी* के भाग एक एवं दो अवश्य पढ़ने को दें। साथ ही पुस्तक *स्वर योग का दिव्य ज्ञान* पढ़ने को दीजिये।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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