Monday, 29 July 2019

प्रश्न - *विदेशों में लोग हम भारतीयों की तरह आध्यात्मिक नहीं होते व अच्छे कर्म नहीं करते, फ़िर भी वो हम भारतीयों से श्रेष्ठ व सुखी जीवन कैसे जीते हैं? शंका का समाधान करें.*

प्रश्न - *विदेशों में लोग हम भारतीयों की तरह आध्यात्मिक नहीं होते व अच्छे कर्म नहीं करते, फ़िर भी वो हम भारतीयों से श्रेष्ठ व सुखी जीवन कैसे जीते हैं? शंका का समाधान करें.*

उत्तर - बेटे, आपके प्रश्न अनुसार आप आर्थिक संपन्नता को श्रेष्ठ जीवन मानते हैं। यह प्रश्न यह भी बताता है कि आप मध्यमवर्गीय परिवार के हैं जो आर्थिक तंगी से त्रस्त है। इसलिए आपको दूर के ढोल सुहावने लग रहे हैं, दूसरे की प्लेट का भोजन स्वादिष्ट दिख रहा है।

साथ ही आपका प्रश्न यह भी बताता है कि आप अध्यात्म क्या है नहीं जानते। पूजन के कर्मकांड को सबकुछ समझते है।

सुख को धन से जोड़ना ही गलत है। धार्मिक कर्मकांड को अध्यात्म   समझना ही गलती है। स्वार्थ व मनोकामना पूर्ति हेतु दिए दान दक्षिणा को अच्छे कर्म समझना गलत हैं।

👉🏼 बेटे, तुम्हारी सोच ऐसी है इसमें तुम्हारी गलती नहीं है। गलती माता पिता की है जिन्होंने   तुम्हे अध्यात्म से जोड़ा नहीं। अध्यात्म का स्वाद चखाया ही नहीं।

👉🏼 जानते हो मनुष्य के स्वर्ग की कल्पना भी कुछ ऐसी ही है, वर्तमान जीवन में जिनके जो अभाव है काल्पनिक स्वर्ग में उनके वो सब उपलब्ध होगा। गर्म प्रदेश वासी के लिए जम्मू-कश्मीर की ठंडक स्वर्ग लगेगा। और जम्मू कश्मीर के लोगों को गर्म प्रदेश स्वर्ग लगेगा। जिसके पास जो नहीं वही स्वर्ग।

👉🏼 *आइये आपको कुछ उदाहरण देकर समझाती हूँ।* 👈🏻

मजदूर एवं रिक्शेवाले जिनकी आय अत्यंत कम है, उनके लिए महीने के दस हज़ार कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है।

दस हज़ार महीने के कमाने वाला सोचता है कि पचास हज़ार कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है।

पचास हज़ार महीने के कमाने वाले के लिए लाख रुपये महीने का कमाने वाला श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहा है। कहने का अर्थ यह है कि सभी अपने से उच्च पद वाले और अपने से दोगुने कमाने वाले को सुखी मान रहे हैं।
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इसी तरह भारत जैसे विकासशील में रहने वाले युवाओं के लिए अमेरिका व यूरोप देश मे रहने वाले लोग श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहे हैं। इसलिए वो इन देशों में जाकर रहना व जॉब करने का ख्वाब देखते हैं, यह देश इनके लिए स्वर्ग समान है।
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बस यही भ्रम है, जाकर उन लोगों से पूँछो जो क्रमशः दस हज़ार या बीस हज़ार या पचास हज़ार या एक लाख या दस लाख इत्यादि महीने का कमा रहे हैं वो क्या सुखी हैं? सभी का जवाब नहीं होगा...क्योंकि सभी वर्तमान से और बेहतर बनने के लिए दुःखी है।

अमेरिका व यूरोपियन देश मे रहने वालों को पूँछो क्या आप अपने देश में स्वर्ग का अनुभव कर रहे हैं, श्रेष्ठ व सुखी जीवन जी रहे हैं? तो वो भी बताएंगे कि कितने दुःखी है।

सबसे ज्यादा मानसिक रोगी, आत्महत्याएं, टूटते रिश्ते और अशांत लोग इन्ही विकसित देशों में रहते हैं। आये दिन लोग मनोचिकित्सक के पास मानसिक उलझनों को लेकर पहुंचे रहते है।

इन देशों में भी वही सुखी है जो आध्यात्मिक है। वहाँ के लोग भी ईश्वर पर विश्वास रखकर अपने तरीके से उनके अनुसार जीवन जीते है और लोकल्याण के कार्य करते हैं।
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*सत्य घटना* - आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पंड्या जिन दिनों लंदन में मनोचिकित्सक की सेवाएं दे रहे थे, उस समय उनके पास बड़े अमीर घरों के लोग मानसिक समस्या लेकर आते थे। उनके अनुभव अनुसार अमीरी और धन जिन्हें भारतीय गरीब व्यक्ति सुखी जीवन का टिकट समझता है वो वास्तव में एक भ्रम के अतिरिक्त कुछ नहीं। यदि धन ही सबकुछ होता तो धनी व्यक्ति सुखी होता लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।
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संसार में सुखी वह है जिसके पास अध्यात्म है, जो जीवन के प्रति समझ रखता है। जीवन जीना जानता है। आध्यात्मिक होने का अर्थ है स्वयं के अस्तित्व को पूर्णता से जानना और जन्म और मृत्यु के बीच के समय को सुव्यवस्थित जीना। स्वयं की चेतना का विस्तार करना, वर्तमान में जीना। जो जिस वक्त जहां शरीर से उपलब्ध है वहां मन से भी उपस्थित रहने की कला जानना। आत्मा व परमात्मा को तत्व से अनुभूत करना।

वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि कुछ परसेंट भारतीयों का आर्थिक जीवन पाश्चात्य यूरोपीय एवं अमरीकन लोगो से अधिक है। फिंर भी वो सब आध्यात्मिक है।

यूरोपीय एवं अमेरिकन देशों में भी  लोग आध्यात्मिक है और अच्छे कर्म कर रहे हैं।

आइंस्टीन, न्यूटन, कलाम इत्यादि सभी बड़े नामी देश विदेश के आध्यात्मिक हैं।
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निम्नलिखित पुस्तकें पढ़िये व अध्यात्म के मूलभूत सिद्धांत समझिए।
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1- जीवन जीने की कला
2- हम सुख से वंचित क्यों है
3- गहना कर्मणो गति: (कर्मफ़ल का सुनिश्चित सिद्धांत)

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हांजी एक और बात👉🏼, संसार में भौतिक सम्पन्नता पूजा-पाठ करने से नहीं आती। कोई डॉक्टर इंजीनियर मन्दिर में भजन करके नहीं बन सकता। संसार मे सांसारिक उपलब्धि सांसारिक प्रयास से मिलती है।

जिस तरह तन व मन की भूख में अंतर है, उसी तरह मन व आत्म सुख में अंतर है।

अध्यात्म तन, मन, आत्मा के व्यवस्थित सन्तुलन के लिए होता है। अध्यात्म का प्रकाश जीवन को रौशनी देने के लिए है, दिशा धारा देने के लिए है। सांसारिक गति तो सांसारिक प्रयास व विज्ञान से ही मिलेगी। अध्यात्म को जीवन में दिशा ज्ञात करने के लिए अपनाओ और सांसारिक प्रयास उस दिशा में शीघ्रता से पहुंचने के लिए करो।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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