Wednesday 31 July 2019

प्रश्न - *दी, लगन एवं आसक्ति में क्या अंतर है? मम्मी कहती हैं कि पढ़ने व पूजा में लगन लगाओ, साथ ही गीता में एक जगह मैंने पढ़ा जिसमें आसक्ति नहीं करने की सलाह दी गयी है। कृपया समझाएं।*

प्रश्न - *दी, लगन एवं आसक्ति में क्या अंतर है? मम्मी कहती हैं कि पढ़ने व पूजा में लगन लगाओ, साथ ही गीता में एक जगह मैंने पढ़ा जिसमें आसक्ति नहीं  करने की सलाह दी गयी है। कृपया समझाएं।*

उत्तर - आत्मीय बेटे, लगन अर्थात प्रेम(love) और आसक्ति(attachment) अर्थात मोह।

आसक्ति एक तरह से लगाव(प्रेम) का ही पर्याय लोग समझते है । जब किसी भी अमुक वस्तु या व्यक्ति से इतना अधिक लगाव हो जाता है कि बिना उसके उसे कुछ भी अच्छा न लगे , यह आसक्ति(मोह) का द्योतक है । आसक्ति एक तरह का नशा है । नशे में व्यक्ति की जो मनोदशा होती है वही आसक्ति मे भी होती है । होश नहीं रहता, अच्छा बुरा सोचने की समझ इंसान खो देता है। प्रेम(लगन) व्यक्ति होश में करता है, मोह(आसक्ति) में वह मदहोश रहता है। प्रेम में बुद्धि चलती है, मोह में बुद्धि काम नहीं करती। मोह को राग कहते हैं और प्रेम को अनुराग भी कहते हैं।

आसक्ति मानसिक भाव है । हमारे अंत: पटल में सारी क्रियायें दो कारकों से संचालित होती हैं , एक मष्तिष्क की तर्क शक्ति से और दूसरा मन की बेलगाम इच्छाओं से । मष्तिष्क तर्क द्वारा संचालित क्रियायें गुण और दोष के विवेचना के उपरांत ही होती हैं । जब कि मन के द्वारा संचालित क्रियाओं पर गुण दोष का कोई असर नही होता है । इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि मन के द्वारा संचालित क्रियायें समय काल परिस्थितियों से अनभिज्ञ रहती हैं ।

👉🏼 *उदाहरण:-* माँ बालक से मोह करेगी, बच्चे पर आसक्त रहेगी तो दिनभर उसे अपने पास रखेगी, उसकी गन्दी आदतें भी उसे न दिखेगी, मोह में बच्चे की अनर्गल डिमांड भी मानेगी।

👉🏼 लेकिन यदि मां बच्चे से सच्चा प्रेम करेगी तो उसे अपने से दूर उसके भले के लिए पढ़ने भी भेजेगी औऱ उसको अच्छा व्यक्ति बनाने का प्रयास भी करेगी। गलती करने पर पीटेगी भी।
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प्रेम इंसान किसी से तभी कर सकता है, जब उसे पाने के लिए वह स्वयं की समस्त सुख सुविधाओं का त्याग कर दे। जिससे प्रेम करता है उसकी खुशी ही प्रथम प्रायोरिटी होती है। प्रेम की पूर्ति के लिए सबकुछ त्यागने में हिचक नहीं करता। जैसे पढ़ाई से प्रेम, पढ़ाई की लगन लगी तो नींद व आलस्य इंसान छोड़ देता है, पढ़ने में जुट जाता है।
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आसक्त/मोहग्रस्त इंसान भटकता है, क्योंकि वो कर्म के फल से चिपकता है। प्रेम/लगन में व्यक्ति कर्म करता है फल ईश्वर पर छोड़ देता है।

क्लास में नम्बर 1 और उच्च अंक प्राप्त करने की चाह कर्मफ़ल की आसक्ति है। पढ़े हुए सब्जेक्ट में मास्टर बनने की चाह प्रेम है। सब्जेक्ट मैटर एक्सपर्ट बनना प्रेम है।

आसक्त रिजल्ट को लेकर तनावग्रस्त होता है, प्रेम करने वाला पढ़ने में व्यस्त रहता है, उसे सम्बन्धित विषय की जानकारी को और गहराई से पढ़ने में जुटा रहता है।

🙏🏻श्वेता, DIYA

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