प्रश्न - *सुयोग्य पढ़ी लिखी कन्या के विवाह हेतु सुयोग्य लड़का नहीं मिल रहा क्या करें? कोई उपाय बताएं.*
उत्तर- आत्मीय दी,
*ध्यान रखिये, वेदों और पुराणों में जाति व्यवस्था है ही नहीं। वहाँ चार वर्ण कर्म आधारित हैं और वह भी परब्रह्म के ही अंश हैं। प्राचीन समय में अपनी जाति कुल में शादी करने के कुछ अलग कारण थे:-*
👉🏼पहले जमाने में कोई फैशनपरस्ती और अत्यधिक खर्च नहीं था। आवागमन के साधन नहीं थे। कोई सुविधा नहीं थी। इसलिए लोग आसपास पहचान वालों में शादी करते थे, जिससे विवाह के बाद भी लड़की की खोज खबर मिलती रहे।
👉🏼 खानपान औऱ आध्यात्मिक तप साधना से लोग अपने संतानों की गुणवत्ता और ऊर्जा शरीर बेहतर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्हीं के यहां विवाह करते थे जो एक जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया और खानपान अपनाते हों।
👉🏼 विवाह में मुहूर्त इसलिए देखा जाता था कि उस दिन वर्षा या आंधी का ग्रहनक्षत्र के कारण योग न बन रहा हो। उस समय सुरक्षित मैरिज हॉल होते नहीं थे। अतः खुले में विवाह में यह अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती थी।
👉🏼 कोर्ट में विवाह रजिस्टर नहीं होता था, अतः विवाह हुआ है इसके लिए कुछ लोगों को साक्ष्य बनाया जाता था, जिससे सामाजिक दबाव रिश्ता निभाने का बना रहे। इसलिए लड़के और लड़की वाले लोगों को बुलाते थे। इन्हें ही घराती व बराती कहा गया। लोग दूर दूर गावो से पैदल आते थे तो भोजन प्रबन्ध व रात में रुकने की व्यवस्था करनी पड़ती थी।
👪 विवाह जरूरी क्यों है?
👉🏼 विवाह शारीरिक सम्बन्ध बनाने का और जायज़ बच्चे पैदा करने मात्र समझौता नहीं हुआ करता था। यह एक गृहस्थ तपोवन और समाज की महत्त्वपूर्ण ईकाई परिवार की आधारशिला होती थी। शरीर से पहले मन को मिलाने और लड़के व लड़की के ऊर्जा शरीर को मिलाने के लिए विधिवत अग्नि के समक्ष उन्हें संकल्पित किया जाता था। दो शरीर और एक आत्मा बनकर एकत्व अर्धांगिनी-अर्धांग बनते थे। पूरे समाज को सम्हालते व श्रेष्ठ संतानों का जन्म सुनिश्चित करते थे।
👉🏼 विवाह समाज को व्यवस्थित चलाने औऱ कामेच्छाओं के व्यवस्थित पूर्ति के लिए बनाया गया था। जिससे जो लोग ब्रह्मचर्य पालन में अक्षम हैं उन्हें व्यवस्था मिल जाये और स्वयं को साधने में मदद मिले।
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अब वर्तमान में आवागमन और सूचना-आदान प्रदान की कोई समस्या नहीं है, तो आसपड़ोस और जानपहचान की जाति में रिश्ता ढूंढने में समय व्यर्थ मत कीजिये। कोर्ट मैरिज की रजिस्ट्रेशन के लिए हैं, तो अतिरिक्त खर्चीली शादी में मत पड़िये। कुछ परिवार जन को आमंत्रित कर आदर्श विवाह शुभ वैदिक मंत्रों के साथ करवाइये। वर्तमान में पण्डित जी से लड़का या लड़की ढूँढवाने की जगह इंटरनेट में मेट्रीमोनियल साईट पर अपने बच्चों के लिए योग्य वर या कन्या ढूँढिये। जिस शहर का लड़का या लड़की हो उनका पुलिस वेरिफिकेशन करवा लीजिये।
लड़का और लड़की अपनी योग्यता से ज्यादा या समकक्ष जीवनसाथी ढूंढने में समय व्यर्थ न करें। बल्कि ऐसे जीवनसाथी ढूंढे जिनसे आपके विचार मिले और जिनसे मिलकर आपको अच्छा लगे। वो चाहे कम योग्य क्यों न हों उनसे विवाह कर लें।
जाति-पाति, धन-संपत्ति, उच्च पद इत्यादि विवाह को सफल नहीं बनाते। विवाह को सफल वैचारिक समानता बनाती है।
गायत्री परिवार के 16 करोड़ लोगों को तो जाति पाति के चक्कर मे पड़ना ही नहीं चाहिए यदि वो नियमित *गायत्री उपासना करते है* तो गायत्री परिवार के किसी भी जाति के *नित्य गायत्री उपासना* करने वाले से विवाह की सहमति दे देनी चाहिए। क्योंकि उनके DNA में जरूरी परिवर्तन गायत्री मंत्र और यज्ञ कर देता है, जो श्रेष्ठ सन्तान के जन्म को सुनिश्चित करता है।
लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह मत कीजिये, क्योंकि लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे, लेकिन आपकी जरूरत पर कभी मदद नहीं करेंगे। रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़िये और आध्यात्मिक वैदिक परंपरा का पालन कीजिये।
यदि आपकी लड़की या लड़का गायत्री परिवार से बाहर के लड़के या लड़की से प्रेम विवाह करना चाहता है। तो उन चयनित बच्चो को बोलो विवाह की अनुमति तब मिलेगी जब आप *गायत्री उपासना-साधना-आराधना* को अपने जीवन का अंग बनाएंगे। जिससे आप दोनों के सुखमय गृहस्थी की डोर माता गायत्री के हाथ मे होगी तो हम निश्चिंत रहेंगे।
जिन बच्चों के विवाह में देरी हो रही है, वो स्वयं या उनके लिए उनके माता-पिता *सवा लाख गायत्री मंत्र जप का एक अनुष्ठान* या *24 हज़ार गायत्री मंत्र के चार अनुष्ठान* कर दीजिए।
साथ ही जिनके विवाह में देरी हो रही है उन्हें प्रत्येक माह की हिंदी तिथि तृतीया का व्रत करना चाहिए, एक वक्त फल एवं एक वक्त मीठा आहार भगवान को अर्पित कर खाना चाहिए। आहार में व्रत के दिन नमक न खाएं। यदि बिना नमक तकलीफ हो रही हो तो सेंधा नमक पानी मे घोलकर पी लें, लेकिन भोजन में न खाए।- *गायत्री की कात्यायनी शक्ति धारा* से जुड़ने के लिए कीजिये। व्रत के दिन तीन माला गायत्री मंत्र जपिये, और एक माला निम्नलिखित पार्वती मंन्त्र की जपिये:-
मंन्त्र-
*हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया ।*
*तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकातां सुदुर्लभाम ॥*
भावार्थ - हे शिव की अर्द्धांगिनी गौरी माता, जिस प्रकार आप और शिव आदर्श गृहस्थ है। आप दोनों में प्रेम है। अपनी जैसी गृहस्थी हमारी भी बसाने की कृपा करें।हमारा भी विवाह करवा कर कल्याण करें।
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*सुयोग्य जोड़ियाँ इस प्रकार मिलेगी, यह गुरूदेव का लेख अवश्य पढ़ें, वैवाहिक समस्याओं के समाधान के लिए*
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http://literature.awgp.org/book/vivah_Sanskar/v1.85
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर- आत्मीय दी,
*ध्यान रखिये, वेदों और पुराणों में जाति व्यवस्था है ही नहीं। वहाँ चार वर्ण कर्म आधारित हैं और वह भी परब्रह्म के ही अंश हैं। प्राचीन समय में अपनी जाति कुल में शादी करने के कुछ अलग कारण थे:-*
👉🏼पहले जमाने में कोई फैशनपरस्ती और अत्यधिक खर्च नहीं था। आवागमन के साधन नहीं थे। कोई सुविधा नहीं थी। इसलिए लोग आसपास पहचान वालों में शादी करते थे, जिससे विवाह के बाद भी लड़की की खोज खबर मिलती रहे।
👉🏼 खानपान औऱ आध्यात्मिक तप साधना से लोग अपने संतानों की गुणवत्ता और ऊर्जा शरीर बेहतर बनाना चाहते थे। इसलिए उन्हीं के यहां विवाह करते थे जो एक जैसी आध्यात्मिक प्रक्रिया और खानपान अपनाते हों।
👉🏼 विवाह में मुहूर्त इसलिए देखा जाता था कि उस दिन वर्षा या आंधी का ग्रहनक्षत्र के कारण योग न बन रहा हो। उस समय सुरक्षित मैरिज हॉल होते नहीं थे। अतः खुले में विवाह में यह अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ती थी।
👉🏼 कोर्ट में विवाह रजिस्टर नहीं होता था, अतः विवाह हुआ है इसके लिए कुछ लोगों को साक्ष्य बनाया जाता था, जिससे सामाजिक दबाव रिश्ता निभाने का बना रहे। इसलिए लड़के और लड़की वाले लोगों को बुलाते थे। इन्हें ही घराती व बराती कहा गया। लोग दूर दूर गावो से पैदल आते थे तो भोजन प्रबन्ध व रात में रुकने की व्यवस्था करनी पड़ती थी।
👪 विवाह जरूरी क्यों है?
👉🏼 विवाह शारीरिक सम्बन्ध बनाने का और जायज़ बच्चे पैदा करने मात्र समझौता नहीं हुआ करता था। यह एक गृहस्थ तपोवन और समाज की महत्त्वपूर्ण ईकाई परिवार की आधारशिला होती थी। शरीर से पहले मन को मिलाने और लड़के व लड़की के ऊर्जा शरीर को मिलाने के लिए विधिवत अग्नि के समक्ष उन्हें संकल्पित किया जाता था। दो शरीर और एक आत्मा बनकर एकत्व अर्धांगिनी-अर्धांग बनते थे। पूरे समाज को सम्हालते व श्रेष्ठ संतानों का जन्म सुनिश्चित करते थे।
👉🏼 विवाह समाज को व्यवस्थित चलाने औऱ कामेच्छाओं के व्यवस्थित पूर्ति के लिए बनाया गया था। जिससे जो लोग ब्रह्मचर्य पालन में अक्षम हैं उन्हें व्यवस्था मिल जाये और स्वयं को साधने में मदद मिले।
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अब वर्तमान में आवागमन और सूचना-आदान प्रदान की कोई समस्या नहीं है, तो आसपड़ोस और जानपहचान की जाति में रिश्ता ढूंढने में समय व्यर्थ मत कीजिये। कोर्ट मैरिज की रजिस्ट्रेशन के लिए हैं, तो अतिरिक्त खर्चीली शादी में मत पड़िये। कुछ परिवार जन को आमंत्रित कर आदर्श विवाह शुभ वैदिक मंत्रों के साथ करवाइये। वर्तमान में पण्डित जी से लड़का या लड़की ढूँढवाने की जगह इंटरनेट में मेट्रीमोनियल साईट पर अपने बच्चों के लिए योग्य वर या कन्या ढूँढिये। जिस शहर का लड़का या लड़की हो उनका पुलिस वेरिफिकेशन करवा लीजिये।
लड़का और लड़की अपनी योग्यता से ज्यादा या समकक्ष जीवनसाथी ढूंढने में समय व्यर्थ न करें। बल्कि ऐसे जीवनसाथी ढूंढे जिनसे आपके विचार मिले और जिनसे मिलकर आपको अच्छा लगे। वो चाहे कम योग्य क्यों न हों उनसे विवाह कर लें।
जाति-पाति, धन-संपत्ति, उच्च पद इत्यादि विवाह को सफल नहीं बनाते। विवाह को सफल वैचारिक समानता बनाती है।
गायत्री परिवार के 16 करोड़ लोगों को तो जाति पाति के चक्कर मे पड़ना ही नहीं चाहिए यदि वो नियमित *गायत्री उपासना करते है* तो गायत्री परिवार के किसी भी जाति के *नित्य गायत्री उपासना* करने वाले से विवाह की सहमति दे देनी चाहिए। क्योंकि उनके DNA में जरूरी परिवर्तन गायत्री मंत्र और यज्ञ कर देता है, जो श्रेष्ठ सन्तान के जन्म को सुनिश्चित करता है।
लोग क्या कहेंगे इसकी परवाह मत कीजिये, क्योंकि लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे, लेकिन आपकी जरूरत पर कभी मदद नहीं करेंगे। रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़िये और आध्यात्मिक वैदिक परंपरा का पालन कीजिये।
यदि आपकी लड़की या लड़का गायत्री परिवार से बाहर के लड़के या लड़की से प्रेम विवाह करना चाहता है। तो उन चयनित बच्चो को बोलो विवाह की अनुमति तब मिलेगी जब आप *गायत्री उपासना-साधना-आराधना* को अपने जीवन का अंग बनाएंगे। जिससे आप दोनों के सुखमय गृहस्थी की डोर माता गायत्री के हाथ मे होगी तो हम निश्चिंत रहेंगे।
जिन बच्चों के विवाह में देरी हो रही है, वो स्वयं या उनके लिए उनके माता-पिता *सवा लाख गायत्री मंत्र जप का एक अनुष्ठान* या *24 हज़ार गायत्री मंत्र के चार अनुष्ठान* कर दीजिए।
साथ ही जिनके विवाह में देरी हो रही है उन्हें प्रत्येक माह की हिंदी तिथि तृतीया का व्रत करना चाहिए, एक वक्त फल एवं एक वक्त मीठा आहार भगवान को अर्पित कर खाना चाहिए। आहार में व्रत के दिन नमक न खाएं। यदि बिना नमक तकलीफ हो रही हो तो सेंधा नमक पानी मे घोलकर पी लें, लेकिन भोजन में न खाए।- *गायत्री की कात्यायनी शक्ति धारा* से जुड़ने के लिए कीजिये। व्रत के दिन तीन माला गायत्री मंत्र जपिये, और एक माला निम्नलिखित पार्वती मंन्त्र की जपिये:-
मंन्त्र-
*हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्वं शंकरप्रिया ।*
*तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकातां सुदुर्लभाम ॥*
भावार्थ - हे शिव की अर्द्धांगिनी गौरी माता, जिस प्रकार आप और शिव आदर्श गृहस्थ है। आप दोनों में प्रेम है। अपनी जैसी गृहस्थी हमारी भी बसाने की कृपा करें।हमारा भी विवाह करवा कर कल्याण करें।
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*सुयोग्य जोड़ियाँ इस प्रकार मिलेगी, यह गुरूदेव का लेख अवश्य पढ़ें, वैवाहिक समस्याओं के समाधान के लिए*
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http://literature.awgp.org/book/vivah_Sanskar/v1.85
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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