Thursday 25 July 2019

प्रश्न - *भारतीय सनातन संस्कृति एवं हिन्दू संस्कृति के बीच बड़ा फर्क क्या है ?

प्रश्न - *भारतीय सनातन संस्कृति एवं हिन्दू संस्कृति के बीच बड़ा फर्क क्या है  ? पू.गुरूदेवने हमेशा भारतीय संस्कृति शब्द प्रयोजा है, कभी हिन्दू संस्कृति शब्दका इस्तेमाल नही किया है । भारतीय संस्कृति "वसुधैव..." मे मानती है, जैसे पू.  गुरूदेव द्वारा व्याख्यायित किया गया है लेकिन हिन्दू संस्कृति, जो भीषण पीडावाले भारतीय मध्यकालकी देन है, संकुचित, केवल भारत देश एवं हिन्दू प्रजा तक सीमित व्याख्यायित है, ये एक दिग्भ्रान्ति समान एवं दुनियाको भ्रमित करने वाली फिलासफी है तो उस पर आप विस्तृत जानकारी दे ।*

उत्तर - आत्मीय भैया, जब समस्त विश्व में कोई पढ़ना लिखना भी नहीं जानता था, उस वक़्त आध्यात्मिक वैज्ञानिक रिसर्चर ऋषियों ने तप करके वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। उसे लिपिबद्ध किया। उस ज्ञान को पढ़ने व समझने के लिए देवभाषा संस्कृत का प्रयोग हुआ।

वेद ही वैदिक सनातन धर्म की नींव है, जिसे ऋषियों ने तपकरके पाया। धर्म का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। जब मानव सभ्यता ने जन्म लिया तो ऋषि संसद ने ईश्वरीय आदेश से अध्यात्म एवं विज्ञान के आधार पर वैदिक सनातन धर्म जो कि मानवीय जीवन और समाज का आध्यात्मिक संविधान था की स्थापना की, इसमें मनुष्य कद कर्तव्य औऱ अधिकारों की विवेचना की गई। मनुष्य की जीवन शैली, समाज की संरचना पर विचार किया गया। मनुष्य के कल्याण हेतु स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, अध्यात्म इत्यादि विषयों की पूर्ण विवेचना किया गया। जिसका लक्ष्य था प्राणी मात्र का कल्याण। ऐसी विधिव्यस्था बनाई जिसके पालन से प्रकृति में सन्तुलन और मनुष्यों में देवत्व रहे। यह धरती स्वर्ग के समान सुंदर हो और मनुष्य सुखपूर्वक रहे। *वसुधैव कुटुम्बकम - पूरी पृथ्वी एक परिवार का भाव* स्थिर सदा है। क्योंकि यह विश्व को तत्व दृष्टि से देखते हैं। परमार्थ दृष्टि है क्योंकि यह जानते हैं यह संसार प्रतिध्वनि है सुख-प्रेम बांटोगे तो सुख-प्रेम स्वयं तक लौट के आएगा और दुःख-पीड़ा बांटोगे तो दुःख-पीड़ा स्वयं तक लौटकर आयेगी। हम सभी तत्वतः एक दूसरे से जुड़े हैं।


वैदिक सनातन धर्म 90 हज़ार वर्षों से भी अधिक वर्षों से पुराना है।

हिंदू कोई धर्म नहीं है यह प्राचीन भारत में रहने वाले लोगों की जीवनशैली है। इसी तरह  मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म नहीं है यह सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं, ये कुछ हजार वर्ष पुराने ही हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। इन सभी सम्प्रदाय के स्थापकों ने अपने ज्ञान और प्रभाव से कुछ नियम, विधिव्यस्था और परंपराएं मन मुताबिक बनाई। जिसका नामकरण किया औऱ उन सभी नियम, विधिव्यस्था, परम्पराओं को अपने अपने ग्रन्थों में लिखा। ये मेरा तेरा भाव और अलगाववादी भावना से प्रेरित है। संकुचित व स्वार्थी दृष्टिकोण है क्योंकि ये तत्वदर्शी नहीं है।

अतः मेरे विचार से जब हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, यहूदी सम्प्रदायों, इनके ग्रन्थों और  संस्कृति से भारतीय वैदिक संस्कृति की तुलना करना उचित ही न होगा। क्योंकि ये सब सम्प्रदाय वैदिक मूल्य व संस्कृति के आगे कहीं ठहरते ही नहीं है।

परमपूज्य गुरूदेव ने अपने सभी ग्रन्थों में वैदिक सनातन भारतीय संस्कृति को ही महत्त्व दिया है। क्योंकि यह मानव मात्र के कल्याण एवं प्रकृति के सन्तुलन व संरक्षण की विधिव्यवस्था है। अतः यहां हमें अपनी जड़ों से जुड़ते हुए वैदिक भारतीय संस्कृति को ही वरीयता देना चाहिए।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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