प्रश्न - *मेरे पतिदेव ने अपने जन्मस्थान पर घर बनाया जो कि मेरे पति के ही नाम पर है। उसमें उनके छोटे भाई व उनके पिता सपरिवार रहते हैं। देवर की उच्च शिक्षा का ख़र्च भी मेरे पति ने उठाया, छोटी बहनों के विवाह की जिम्मेदारी उठायी। हम लोग दूसरे शहर में रहते हैं। मेरी सास मुझे तो बहुत कुछ उल्टा सीधा सुनाती थीं, लेकिन छोटी बहू को कुछ नहीं कहती। अपने बड़े बेटे अर्थात मेरे पति को इस तरह प्रोग्राम किया है कि उन्हें परिवार को देखना है, लेकिन छोटे बेटे को मेरी सास कुछ नहीं कहती। देवर कोई जिम्मेदारी नहीं उठाता, जो भी कमाता है अपनी जेब मे रखता है। माता-पिता आये दिन कोई न कोई घूमने जाने की देवर-देवरानी के साथ की डिमांड भी हमसे पूरी करवाते है। ऊपर से सास तो मेरी बेइज्जती करती ही थीं, मेरी देवरानी भी हम दोनों की इज्जत/रेस्पेक्ट नहीं करती। इनसे रिश्ता भी निभाना है और इनकी हरकतों से मेरा जी भी जलता रहता है। ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? मार्गदर्शन कीजिये।*
उत्तर - प्रिय आत्मीय बहन, आप जिस पति की अर्धांगिनी हैं उसे जन्मदेने वाली आपकी सास है, उसे पढ़ा लिखा के योग्य बनाने वाले आपके ससुर हैं। पति 50% आपके हैं और 50% माता पिता के, इस तरह उनके द्वारा किया गया माता पिता के लिए कार्य का क्रेडिट आपको नहीं मिलेगा और वो न देंगे। क्योंकि न आपने पति को जन्म दिया है और न ही पाल पोस के बाद किया है। यदि उस घर के निर्माण में आपकी जॉब की कमाई भी लगी है तो भी सास ससुर की नजर में वो आपका कर्तव्य है। अतः फिंर भी क्रेडिट नही मिलेगा। रेस्पेक्ट आपको वो नहीं देंगे।
आपके पतिदेव ने देवर की उच्च शिक्षा का जो ख़र्च उठाया, उसका अहसान देवर को मानना चाहिए। लेक़िन उसके हिसाब से यह बड़े भाई का कर्तव्य है। देवरानी जो कि देवर की जॉब लगने के बाद विवाह करके आई, वो क्यों अहसान मानेगी? किसने देवर को पढ़ाया या घर बनवाया? इससे उसको कोई लेना देना नहीं। उसने विवाह जॉब कर रहे लड़के से किया बस, जो खुद के घर मे माता पिता के साथ रह रहा है।
सास का जोर छोटी बहू पर इसलिए नहीं चल रहा कि छोटी बहू सास से तेज़ स्वभाव की है। औऱ आप नरम स्वभाव की हैं, इसलिए वो अपनी भड़ास आप पर निकाल रही हैं। छोटी पर उनकी कोशिश बेकार हो जाती है।
मातृ-पितृ ऋण से उऋण होने के लिए जब तक माता-पिता जीवित हैं, घर में जो रह रहा है रहने दीजिए, जैसा चल रहा है चलने दीजिये। घर देवर के नाम पर ट्रांसफर मत करना। घर के कारण सास ससुर को सेवा मिलती रहेगी तो पुण्य आपको ही मिलेगा। सास ससुर बड़े बेटे की संपत्ति है यह जानते हैं।
सास ससुर के महाप्रयाण के बाद घर का क्या करना है सोच लेना।
सास या देवरानी से सम्मान पाने की कल्पना स्वप्न में भी मत करना। यह मूर्खतापूर्ण विचार है कि वो तुम्हें सम्मान दें। घर मे सम्मान पाने की इच्छा का त्याग करो, और सम्मान चाहिए तो समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कुछ सम्मानीय कार्य करो। अगर हज़ार लोग तुम्हारा सम्मान कर रहे हैं और केवल चार लोग आपकी सास व ससुर और देवर व देवरानी सम्मान नहीं कर रही तो आपको फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए। आपको समाज मे हज़ारो से सम्मान प्राप्त करने में ऊर्जा खर्च करनी चाहिए न कि केवल चार लोगों से सम्मान पाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
स्वयं के उत्थान व आत्मसम्मान हेतु कुछ विशेष करने में जुटिये। आपके पति छोटे बच्चे नहीं है, यदि वो भावना में बह रहे हैं तो उन्हें भावनात्मक मूर्ख(emotional fool) बनने से रोकने के लिए झगड़े मत कीजिये। बल्कि लॉजिकल बातें कीजिये। उन्हें सत्य की राह दिखाइए।
1- पति से कहिये, पक्षी अपने बच्चे को तब तक चोंच में दाना देता है, जब तक वो उड़ना नहीं सीख जाता। इसी तरह छोटे भाई की मदद तब तक अच्छी थी जब तक वह जॉब नहीं करने लगा था और उसका विवाह नहीं हुआ था। अब उसे भी अपने पंख मजबूत करने दो, उसे भी अपनी तरह अपनी जिंदगी बनाने दो। कम कमाता है तो कम खर्चे में गृहस्थी चलाये और यदि ज्यादा कमाता है तो ज्यादा ख़र्च कर ले।
2- माता पिता के लिए कर्तव्य निभाओ, भगवान बनो। जो उचित हो वो अवश्य करो। जैसे भगवान हम जो मांगते हैं वो नहीं देता। हम जिसके योग्य होते हैं केवल वो हमें वह देता है। इसी तरह जो उचित हो वह अवश्य करो। लेक़िन डिमांड जो है वो माता पिता की है या वो डिमांड भाई की है उसे विवेक से समझो।
3- किसी का पेट भरा जा सकता है, किसी की इच्छा पात्र भरा नहीं जा सकता। इच्छाएँ अनन्त हैं। अतः पेट भरो और जरूरतें पूरी करो। लेक़िन अनावश्यक ख्वाहिशों को मना करो।
4- समाज कल्याण में भी अपनी ऊर्जा, धन व समय खर्च करो। इस तरफ भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाओ।
5- बच्चे के भविष्य और हमारी व अपनी वृद्धावस्था के लिए भी प्रयत्न करो। देवता की तरह वृद्धावस्था में भी लोगो को दो, लेकीन किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, ऐसी व्यवस्था कर लो।
देखो, लड़ाई मूर्खो से की जाती है, बुद्धिमान इंसान से नहीं। तुम बुद्धिमान हो, तुम यह जानते हो कि पूर्वजों में भी कोई दो भाई हमेशा साथ नहीं रहे, तुम्हारे पिता भी चाचा लोगों के साथ नहीं है। तुम भी हमेशा साथ न रह सकोगे। अतः बिना कड़वाहट के कुछ दूरी रखकर रिश्ता बना रहे ऐसी व्यवस्था करो। मदद ऐसे करो कि, अगर आग लगे तो एक हाथ से अपनी दाढ़ी की आग बुझाओ और दूसरे हाथ से दूसरों की।
बहन सास, ससुर, देवर, देवरानी से अपेक्षित व्यवहार की उम्मीद मत करो, वो टीवी नहीं हैं अतः उनका रिमोट कंट्रोल मत ढूंढो। कभी भी मनचाहा व्यवहार नहीं मिलेगा यह जितनी जल्दी समझ लो उतना अच्छा है।
बहन पति यदि आपकी बात न माने, तो उनसे व्यर्थ मत लड़ना। केवल अपनी तर्क संगत बात रखो और सामने वाले पर छोड़ दो कि उसे क्या करना है। जिंदगी को आनन्दपूर्वक जियो, आनन्द पाने के लिए अपने मन को व्यर्थ के विचारों से मुक्त रखना पड़ेगा। भगवान का शुक्रिया करो और प्रार्थना करो कि भगवान आपके पति को इतनी कमाई दे कि वो सद्बुद्धि के साथ केवल सत्पात्रों को दान पुण्य करें फिंर भी राजाओं की तरह उनका धन का अक्षय भण्डार भरा रहे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
उत्तर - प्रिय आत्मीय बहन, आप जिस पति की अर्धांगिनी हैं उसे जन्मदेने वाली आपकी सास है, उसे पढ़ा लिखा के योग्य बनाने वाले आपके ससुर हैं। पति 50% आपके हैं और 50% माता पिता के, इस तरह उनके द्वारा किया गया माता पिता के लिए कार्य का क्रेडिट आपको नहीं मिलेगा और वो न देंगे। क्योंकि न आपने पति को जन्म दिया है और न ही पाल पोस के बाद किया है। यदि उस घर के निर्माण में आपकी जॉब की कमाई भी लगी है तो भी सास ससुर की नजर में वो आपका कर्तव्य है। अतः फिंर भी क्रेडिट नही मिलेगा। रेस्पेक्ट आपको वो नहीं देंगे।
आपके पतिदेव ने देवर की उच्च शिक्षा का जो ख़र्च उठाया, उसका अहसान देवर को मानना चाहिए। लेक़िन उसके हिसाब से यह बड़े भाई का कर्तव्य है। देवरानी जो कि देवर की जॉब लगने के बाद विवाह करके आई, वो क्यों अहसान मानेगी? किसने देवर को पढ़ाया या घर बनवाया? इससे उसको कोई लेना देना नहीं। उसने विवाह जॉब कर रहे लड़के से किया बस, जो खुद के घर मे माता पिता के साथ रह रहा है।
सास का जोर छोटी बहू पर इसलिए नहीं चल रहा कि छोटी बहू सास से तेज़ स्वभाव की है। औऱ आप नरम स्वभाव की हैं, इसलिए वो अपनी भड़ास आप पर निकाल रही हैं। छोटी पर उनकी कोशिश बेकार हो जाती है।
मातृ-पितृ ऋण से उऋण होने के लिए जब तक माता-पिता जीवित हैं, घर में जो रह रहा है रहने दीजिए, जैसा चल रहा है चलने दीजिये। घर देवर के नाम पर ट्रांसफर मत करना। घर के कारण सास ससुर को सेवा मिलती रहेगी तो पुण्य आपको ही मिलेगा। सास ससुर बड़े बेटे की संपत्ति है यह जानते हैं।
सास ससुर के महाप्रयाण के बाद घर का क्या करना है सोच लेना।
सास या देवरानी से सम्मान पाने की कल्पना स्वप्न में भी मत करना। यह मूर्खतापूर्ण विचार है कि वो तुम्हें सम्मान दें। घर मे सम्मान पाने की इच्छा का त्याग करो, और सम्मान चाहिए तो समाज में सम्मान प्राप्त करने के लिए कुछ सम्मानीय कार्य करो। अगर हज़ार लोग तुम्हारा सम्मान कर रहे हैं और केवल चार लोग आपकी सास व ससुर और देवर व देवरानी सम्मान नहीं कर रही तो आपको फ़र्क़ नहीं पड़ना चाहिए। आपको समाज मे हज़ारो से सम्मान प्राप्त करने में ऊर्जा खर्च करनी चाहिए न कि केवल चार लोगों से सम्मान पाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
स्वयं के उत्थान व आत्मसम्मान हेतु कुछ विशेष करने में जुटिये। आपके पति छोटे बच्चे नहीं है, यदि वो भावना में बह रहे हैं तो उन्हें भावनात्मक मूर्ख(emotional fool) बनने से रोकने के लिए झगड़े मत कीजिये। बल्कि लॉजिकल बातें कीजिये। उन्हें सत्य की राह दिखाइए।
1- पति से कहिये, पक्षी अपने बच्चे को तब तक चोंच में दाना देता है, जब तक वो उड़ना नहीं सीख जाता। इसी तरह छोटे भाई की मदद तब तक अच्छी थी जब तक वह जॉब नहीं करने लगा था और उसका विवाह नहीं हुआ था। अब उसे भी अपने पंख मजबूत करने दो, उसे भी अपनी तरह अपनी जिंदगी बनाने दो। कम कमाता है तो कम खर्चे में गृहस्थी चलाये और यदि ज्यादा कमाता है तो ज्यादा ख़र्च कर ले।
2- माता पिता के लिए कर्तव्य निभाओ, भगवान बनो। जो उचित हो वो अवश्य करो। जैसे भगवान हम जो मांगते हैं वो नहीं देता। हम जिसके योग्य होते हैं केवल वो हमें वह देता है। इसी तरह जो उचित हो वह अवश्य करो। लेक़िन डिमांड जो है वो माता पिता की है या वो डिमांड भाई की है उसे विवेक से समझो।
3- किसी का पेट भरा जा सकता है, किसी की इच्छा पात्र भरा नहीं जा सकता। इच्छाएँ अनन्त हैं। अतः पेट भरो और जरूरतें पूरी करो। लेक़िन अनावश्यक ख्वाहिशों को मना करो।
4- समाज कल्याण में भी अपनी ऊर्जा, धन व समय खर्च करो। इस तरफ भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाओ।
5- बच्चे के भविष्य और हमारी व अपनी वृद्धावस्था के लिए भी प्रयत्न करो। देवता की तरह वृद्धावस्था में भी लोगो को दो, लेकीन किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े, ऐसी व्यवस्था कर लो।
देखो, लड़ाई मूर्खो से की जाती है, बुद्धिमान इंसान से नहीं। तुम बुद्धिमान हो, तुम यह जानते हो कि पूर्वजों में भी कोई दो भाई हमेशा साथ नहीं रहे, तुम्हारे पिता भी चाचा लोगों के साथ नहीं है। तुम भी हमेशा साथ न रह सकोगे। अतः बिना कड़वाहट के कुछ दूरी रखकर रिश्ता बना रहे ऐसी व्यवस्था करो। मदद ऐसे करो कि, अगर आग लगे तो एक हाथ से अपनी दाढ़ी की आग बुझाओ और दूसरे हाथ से दूसरों की।
बहन सास, ससुर, देवर, देवरानी से अपेक्षित व्यवहार की उम्मीद मत करो, वो टीवी नहीं हैं अतः उनका रिमोट कंट्रोल मत ढूंढो। कभी भी मनचाहा व्यवहार नहीं मिलेगा यह जितनी जल्दी समझ लो उतना अच्छा है।
बहन पति यदि आपकी बात न माने, तो उनसे व्यर्थ मत लड़ना। केवल अपनी तर्क संगत बात रखो और सामने वाले पर छोड़ दो कि उसे क्या करना है। जिंदगी को आनन्दपूर्वक जियो, आनन्द पाने के लिए अपने मन को व्यर्थ के विचारों से मुक्त रखना पड़ेगा। भगवान का शुक्रिया करो और प्रार्थना करो कि भगवान आपके पति को इतनी कमाई दे कि वो सद्बुद्धि के साथ केवल सत्पात्रों को दान पुण्य करें फिंर भी राजाओं की तरह उनका धन का अक्षय भण्डार भरा रहे।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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