Saturday 27 July 2019

प्रश्न - *मानव का सहज धर्म क्या है? यह बताने की कृपा करें ताकि आगे की यात्रा में गति आ सके*

प्रश्न - *मानव का सहज धर्म क्या है? यह बताने की कृपा करें ताकि आगे की यात्रा में गति आ सके*

उत्तर - आत्मीय भाई, *मानव का सहज धर्म समझने से पहले आइये समझते हैं कि धर्म शब्द का वास्वविक अभिप्राय क्या है? धर्म संस्कृत भाषा का शब्द है। इसकी परिभाषा है कि जो वस्तु जिन गुण व गुणों को धारण करती है वह उसका धर्म कहलाता है*।

अग्नि रूप, दाह, ताप, प्रकाश आदि को धारण करती है तथा सदैव ऊपर की ओर ही गति करती है। यह सब अग्नि के गुण व धर्म कहलाते हैं। अग्नि मित्र हो शत्रु, कोई भी वस्तु हो कचरा या मिष्ठान्न दोनों को बिना भेदभाव के जलायेगी। अमीर हो या गरीब सबके घर जलने पर ऊष्मा देगी जो भी रखोगे पका देगी।

इसी प्रकार से वायु, पृथिवी, आकाश, जल आदि के गुण हैं। सबके लिए एक समान।

अच्छा जी क्या मनुष्य का धर्म मानव मात्र का कल्याण है, जियो और जीने दो, भगवान की सृष्टि में सहायक बनो।

इस हेतु मनुष्य को किन व क्या-क्या गुण धारण करना चाहिये? मनुष्य का सहज धर्म क्या है?

संसार में सत्य व असत्य दो प्रकार के गुण हैं। मनुष्यों द्वारा सत्य भी बोला जाता है और असत्य भी। दोनों परस्पर विरोधी गुण हैं। अब इनमें से किसको धर्म व किसको अधर्म माना जाये? संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो यह चाहता हो कि दूसरे लोग उसके साथ असत्य का व्यवहार करें। सभी मनुष्य यह चाहते हैं कि उनके साथ दूसरे लोग सदैव सत्य का ही व्यवहार करें। सत्य उसे कहते हैं कि जो पदार्थ जैसा है उसका वैसा ही वर्णन करना। उसके विपरीत यदि वर्णन किया जाये तो वह सत्य न होकर असत्य कहलाता है। अग्नि में जलाने का गुण होता है। यदि कोई यह कहे कि अग्नि जलाता नहीं है तो यह असत्य होगा। यदि कहें कि अग्नि में दाह वा जलाने का गुण होता है तो यह सत्य माना जायेगा। इसी प्रकार से सत्य व्यवहार वा सत्याचरण धर्म व इसके विपरीत असत्य का व्यवयहार अधर्म व असत्य कहलाता है। अब यह विचार करें कि सत्य क्या किसी स्थान विशेष के लोगों का गुण हैं या यह सार्वभौमिक सभी मनुष्यों का गुण है। भारत के लोग सत्य बोलें तो धर्म और इसी प्रकार से अन्य देश के लोगों पर भी यह लागू होता है। संसार में सभी स्थानों वा देशों में सत्य व्यवहार ही मान्य है। इससे यह ज्ञात होता है कि सत्य बोलना व व्यवहार में सत्य का पालन व आचरण ही उचित व मान्य है। अतः सत्य धर्म का आवश्यक व प्रमुख अंग सिद्ध होता है। । इसे सत्य धर्म या मानव धर्म कह सकते हैं। सत्य सार्वभौमिक धर्म होने से ही सर्वत्र सभी लोगों द्वारा इसका व्यवहार अनादि काल से किया जा रहा है। मनुष्य ने सत्य धर्म का पालन नहीं किया इसलिए संसार मे दुःख व्याप्त है। मनुष्य अपने परिवार और प्रियजनों के साथ ईमानदारी और अच्छा व्यवहार करता है लेक़िन गैरों के साथ बुरा व्यवहार और कमाने के लिए बेईमानी करने से नहीं चूकता। जो भी दो नाव की सवारी करेगा वो असहज रहेगा औऱ कष्ट पायेगा।

*सत्यम शिवम सुंदरम* - मनुष्य को सत्य का आचरण करना चाहिए, शिव के कल्याणकारी गुणों को धारण करना चाहिए तभी उसके जीवन मे ईश्वरीय सुंदर जीवन का समावेश होगा।

👉🏼 *उदाहरण* - अगर रोड में आपके बच्चे के साथ पड़ोसी का बच्चा गिरता है तो दोनों के लिए उतना ही प्यार और सम्वेदना आपके हृदय में होगी। तभी आप *सहज मानव धर्म* पालन कर पाएंगे।

*तुलसीदास* की चौपाई में जानिए भगवान आपसे कौन सा *सहज मानव धर्म* चाहते हैं।

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,
मोहि कपट छल छिद्र न भावा।

परहित सरिस धर्म नहीं भाई,
परपीड़ा सम नहीं अधमाई।।

🙏🏻🎊🎊🎊🎊🎊🎊🙏🏻
*सत्य आचरण करते हुए निर्मल मन और भाव सम्वेदना से लोककल्याण करना और आत्मियता का विस्तार करना ही मानव का सहज धर्म है।*
☝🏻🌸🌸🌸🌸🌸🌸☝🏻

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

No comments:

Post a Comment

प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद्यमहे’, ' धीमही’ और 'प्रचोदयात्’ का क्या अर्थ है?

 प्रश्न - रुद्र गायत्री मंत्र में *वक्राय* (vakraya) उच्चारण सही है या *वक्त्राय* (vaktraya) ?किसी भी देवताओं के गायत्री मंत्र में ' विद...