Saturday, 17 August 2019

प्रश्न - *मेरे विवाह को 17 वर्ष हो गए हैं, मेरे पति कोई मेरा कोई सपोर्ट नहीं करते, हमारे बीच नित्य झगड़े होते हैं। कहने को हमारी लव मैरिज हुई थी। बेटा 15 वर्ष का है वो भी परेशान हो गया है। यह अपने माता-पिता के अतिरिक्त किसी की नहीं सुनते।*

प्रश्न - *मेरे विवाह को 17 वर्ष हो गए हैं, मेरे पति कोई मेरा कोई सपोर्ट नहीं करते, हमारे बीच नित्य झगड़े होते हैं। कहने को हमारी लव मैरिज हुई थी। बेटा 15 वर्ष का है वो भी परेशान हो गया है। यह अपने माता-पिता के अतिरिक्त किसी की नहीं सुनते।*

उत्तर - आत्मीय बहन, प्रत्येक जीव के व्यक्तित्व का निर्माण गर्भ से लेकर युवावस्था तक उसके माता पिता करते हैं और विवाह के बाद उस जीव पर उसके जीवनसाथी के कारण बदलाव आता है। जो व्यक्ति अपने माता-पिता से प्रेम करता है वो पत्नी से भी प्रेम करता है क्योंकि वो रिश्तों की अहमियत समझता है। फ़र्क इतना है कि कुछ पति माता-पिता द्वारा पत्नी के प्रति किये जा रहे अनुचित व्यवहार में भी बोलने की हिम्मत नहीं रखते। कुछ पति दोनो तरफ बैलेंस बनाने में सक्षम होते हैं। कुछ पत्नी की तरफ होकर माता पिता के प्रति कर्तव्यों की उपेक्षा करते हैं।

युवावस्था और प्रेमविवाह में कुछ एक से दो वर्षों तक प्रेम का असर व खुमार होता है, इस दौरान मित्रवत आत्मीयता का सम्बंध स्थापित जिन दम्पत्ति के बीच न हुआ तो वैचारिक महाभारत निश्चित है। वक्त के साथ जब हमारा स्वयं का शरीर ढलता रहता है तो फिर रिश्तों में ढलान भी तो स्वभाविक है। केवल रिश्तों में जब मित्रता  ही हर वक्त नूतनता देती है।

मित्रता स्वयं को समझाने का नाम नहीं होता, मित्रता में हम दूसरे को समझते हैं। उसकी इच्छाओं-आकांक्षाओं और उसके व्यवहार को समझकर रिश्ता निभाते हैं।

*प्रज्ञापुराण भाग 3 के अनुसार, रिश्तेदार पूर्व जन्म के लेनदेन के अनुसार होते हैं:-*

पिता यदि लेनदार/कर्जदार होता है, तो वो पुत्र की सेवा करता है। यदि पुत्र लेनदार/कर्जदार होता है तो वो माता-पिता की सेवा करता है।

आपको इस बात की खुशी होनी चाहिए कि पति अपने कर्ज को उतार रहे हैं। यदि आप इस नजरिए से देखे तो जो हो रहा है वह पूर्वजन्म के कर्म फल के अनुसार हो रहा है।

यदि आप अपने पति की जगह होती तो शायद आप भी अपने माता पिता की ऐसे ही सेवा कर रही होती और शायद आपका जीवनसाथी भी यही सोचता कि उससे ज्यादा आप माता पिता को चाहती है व उनका सुनती हैं।

भगवान को धन्यवाद दीजिये, और अपने सास-ससुर को धन्यवाद दीजिये कि आपके पति अच्छे संस्कार दिए हैं उन्होंने, नहीं तो आपको यह नहीं पता कि आजकल के हज़ारों कुसंस्कारी लड़के अपने पत्नी बच्चों को रोता बिलखता छोड़कर ऑफिस की लड़कीयों के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं।

आप ग़ुलाब के पुष्प की तरह बन जाइये, रोज़ सुबह अपनी हल्की सी मुस्कान व सौम्य व्यवहार से घर में पॉजिटिव ऊर्जा का संचार कीजिये। कोई भी आपकी तरफ देखे तो नई ऊर्जा महसूस करे। यदि आपके पति माता-पिता के पास जाएं तो आप कुछ गिफ़्ट अपनी तरफ से खरीद के भेज दीजिये।

आज से प्रेम और मदद मांगने की इच्छा का त्याग कर दीजिए, कोई आपकी केयर करे या सपोर्ट करे इसकी भी उम्मीद त्याग दीजिये। आज से एक नए अवतार एक नए जन्म में आप आ जाइये, ये सोचिये कि ससुराल में मैं सबको कैसे ज्यादा से ज्यादा प्रेम बाँटू, कैसे केयर करूँ, कैसे मदद करूँ और कैसे सेवा करूँ। यह दुनियाँ ईश्वर का रंगमंच है, केवल इस पर फ़ोकस कीजिये कि मेरा रोल और रिस्पांसिबिलिटी ठीक से हो रहा है या नहीं। आज से युगऋषि के कहे अनुसार *अपना सुधार कीजिये* और गुण-कर्म-स्वभाव से चन्दन या गुलाब की तरह बन जाइये। जहाँ आप मौजूद हों वहाँ कोई युद्ध की इच्छा ही न कर सके। हमसे कोई तभी लड़ सकता है जब हम उसके प्रतिउत्तर में लड़े, यदि हम शांत हैं तो कोई युद्ध व झगड़ा हो ही नहीं सकता। गंगा सी पवित्र और निर्मल भावों की बन जाइये, जितना जॉब के साथ साथ सामर्थ्यानुसार सास-ससुर-पति-बेटे की सेवा कर सकें उतना कर दें। न कर सकें तो सहजता से *सॉरी* बोल दें।

जंगल में सन्त अपने तप और मनोबल से हिंसक पशु और हिंसक कोल-भील जनजाति को भी मित्र बना लेते हैं। क्या आप इस दिशा में प्रयत्नशील नहीं हो सकती? पति को सुधारने की जगह स्वयं को सुधारने में नहीं लग सकती?

ऑफिस हो या घर, कोई हमें अपमानित या दुःखी तब ही कर सकता है, जब हम उससे अपेक्षा रखते हैं।

*उदाहरण* - मैंने अत्यंत मेहनत से कढ़ाई पनीर व पुलाव बनाया, मन ही मन सोचा व परिवार वालों से अपेक्षा की कि वो मेरी तारीफ़ करें। बच्चे व पति आये फ़टाफ़ट खा कर चले गए। अब क्योंकि जिस तारीफ़ की उम्मीद थी न मिलने के कारण हमनें मुँह फुला लिया, स्वयं को अपमानित महसूस किया। लेकिन एक बार पुनः तारीफ पाने की लालच जगी और पति से पूंछा खाना कैसा बना था। पतिदेव बोले अच्छा था, लेकिन आज मुझे मेरी माँ की याद आ गयी उनके हाथों में जादू था, मुझे उनके हाथ की कढ़ाई पनीर बहुत पसंद थी, उनके हाथ मे जादू था। अब यह सुनना था कि मैं गुस्से में जल भून कर राख हो गयी। अब उन्होंने तो सहज एक तथ्य(fact) बोला, लेकिन उससे दुःख या सुख की कल्पना तो मेरी थी। अगर मैं केवल सेवाभाव से भोजन बिना तारीफ़ की लालच के बनाती तो मुझे कोई दुःख नहीं होता। गलती हमारी सोच और कुछ पाने की चाहत की है, एवं हम सजा दूसरों को देने निकलते हैं, वो सामने वाला अन्तर्यामी देवता तो है नहीं की हमें और हमारी अपेक्षाओं को समझ ले।

*कैंची बनकर पति के जीवन से उनके माता-पिता को अलग करने में लगेंगीं तो नित्य पति के मन को घाव देंगी वो आपसे दूर होते चले जायेंगे। उसकी जगह सुई-धागा बनकर रिश्तों की मरम्मत करके जोड़ेंगी तो पति आपके आगे नतमस्तक हो जाएंगे। उनका हृदय आपसे सदा सर्वदा के लिए जुड़ जाएगा।*

🙏🏻 *अतः कोई दूसरा देवता बने न बने हम स्वयं तो देवता बन सकते हैं, हम स्वयं तो दूसरे की खुशी का कारण बन सकते हैं। हम स्वयं तो झगड़े टाल सकते हैं। हम स्वयं तो उनके सहायक बन सकते हैं*। 🙏🏻

मनःस्थिति बदलते ही, आप बहुत अच्छा महसूस करेंगी। जैसे ही देवताओं जैसे बनेगीं, और ससुराल वालों पर अनुदान-वरदान बरसाएंगी, निःश्वार्थ प्रेम-सेवा व आत्मीयता विस्तार करेंगी आपका घर स्वयंमेव दिव्यता से भर उठेगा। घर में सौभाग्य लक्ष्मी का वास हो जाएगा।

नित्य गायत्री उपासना में चन्द्र गायत्री की एक माला नित्य जपें और पुस्तक 📖 *भाव सम्वेदना की गंगोत्री* और 📖 *मित्रभाव बढ़ाने की कला* नित्य पढ़ें। चन्द्र गायत्री रिश्ते में प्रेम संचार करता है।

चन्द्र गायत्री मंत्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृतत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात।*

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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