Thursday 29 August 2019

गणेशचतुर्थी महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 6) (कुल 30 भाग हैं)*

*"गणेश चतुर्थी महात्म्य - गर्भस्थ शिशु का निर्माण - गर्भ ज्ञान विज्ञान - गर्भ सम्वाद(भाग 6) (कुल 30 भाग हैं)*

📯 गर्भ में गायत्री मंत्र अभिमंत्रित जल स्पर्श करवाते और प्यार से हाथ फेरते हुए बोलें- मेरे बच्चे, जानते हो आज क्या है? आज गणेश चतुर्थी अर्थात गणेश जी का जन्मदिन है। गणेश जी भगवान शंकर व पार्वती जी के पुत्र हैं। सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। जानते हो कैसे?

एक बार सभी देवताओं कि सभा ब्रह्मा-विष्णु-महेश जी की अध्यक्षता में कैलाश में हुई। यह तय करना था प्रथम पूज्य देवता कौन होगा? शर्त यह रखी गयी जो पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा के पहले आएगा वही विजेता होगा। सब अपने अपने वाहन लेकर निकल पड़े। लेकिन भगवान गणेश ने अपने चूहे से अपने माता-पिता शंकर पार्वती की सात प्रदक्षिणा की अर्थात सात बार परिक्रमा की। बोले - माता पिता मेरा पूरा ब्रह्मांड मेरे माता पिता हैं यही प्रकृति व पुरुष हैं। इनमें समस्त विश्व समाहित है। इस बुद्धि कुशलता व तत्वज्ञान के कारण उन्हें प्रथमपूज्य देवता ब्रह्मा जी ने घोषित किया।

जानते हो बेटे, पृथ्वी की तरह हमारे विचारो में भी गुरुत्वाकर्षण होता है। निरन्तर गणेश मंन्त्र जप से हमारे अंदर सद्बुद्धि, विवेकदृष्टि, सत्कर्म और भावों की पवित्रता के लिए अपने दिमाग़ में गुरुत्वाकर्षण-चुम्बकत्व पैदा होता हैं। जिसके प्रभाव से ब्रह्मांड में व्याप्त सादृश्य विचार, शक्ति और प्रभाव हमारे भीतर प्रवेश करते हैं। हम जैसे विचारों का गुरुत्वाकर्षण-आकर्षण-चुम्बकत्व पैदा करते है, धीरे धीरे हम वैसा करने लगते है और एक दिन हम वैसे बन जाते है। इसलिए अच्छे मंन्त्र जप से हम अच्छे इंसान बनते हैं। यह ब्रह्माण्ड गूगल सर्च की तरह है, जैसे विचार मंन्त्र जप द्वारा सर्च करोगे वैसे समान विचार-प्रभाव-शक्तियां तुम तक पहुंचेगा।

🙏🏻 *आओ गणेश जी के प्रतीक स्वरूप की व्याख्या समझते हैं, पूजन स्थल में रखी यह गणेश मूर्ति देखो* 🙏🏻

*गणेश जी का यह बड़ा सर* - विवेक-सद्बुद्धि का प्रतीक है। ज्ञानर्जन हेतु सबसे ज़्यादा समय-साधन खर्च करने की हमें प्रेरणा देता है। मानसिक आहार - स्वाध्याय और ध्यान द्वारा सद्बुद्धि-विवेक और अंतर्दृष्टि प्राप्त होती है।

*यह दो बड़े कान* - कहते हैं कि हमेशा सतर्क रहो, और कान के पक्के बनो। सुनी सुनाई बातों पर भरोसा मत करो। किसी के कान भरने पर बहको मत।

*यह लम्बी सूड़* - परिस्थिति को सूंघ लो दूर से ही। अर्थात भविष्य की घटनाओं का पुर्वानुमान करके योजना बनाओ। ऐसे कार्य करो जिनके दूरगामी लाभ और परिणाम हों।

*गणेश जी का यह एक दांत* -गणेशजी एकदन्त हैं , जिसका अर्थ है एकाग्रता। जो यह कहता है कि डबल थॉट/दोहरे विचारो में मत उलझो। एक लक्ष्य निर्धारित करो और एक निष्ठ होकर उस पर डटे रहो। उठो आगे बढ़ो और तब तक मत रुको, जबतक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

*गणेशजी का यह बड़ा पेट* -  उदारता और आत्मीयता का प्रतीक है। अपने अंदर इतनी आत्मीयता रखो कि सर्वत्र बांटो।

*गणेशजी का ऊपर उठा हुआ हाथ* रक्षा का प्रतीक है – अर्थात, ‘घबराओ मत, मैं तुम्हारे साथ हूँ’ और उनका झुका हुआ हाथ, जिसमें हथेली बाहर की ओर है,उसका अर्थ है, अनंत दान, और साथ ही आगे झुकने का निमंत्रण देना – यह प्रतीक है कि हम सब एक दिन इसी मिट्टी में मिल जायेंगे ।

*ये अपने हाथों में अंकुश लिए हैं*, जिसका अर्थ है – जागृत होना , और पाश – अर्थात नियंत्रण । जागृति के साथ, बहुत सी ऊर्जा उत्पन्न होती है और बिना किसी नियंत्रण के उससे व्याकुलता हो सकती है । मन पर नियंत्रण हेतु मन की वृत्तियों पर अंकुश लगाना अनिवार्य है।

*तुम सोचते होंगे- गणेशजी, हाथी के सिर वाले भगवान क्यों एक चूहे जैसे छोटे से वाहन पर चलते हैं? क्या यह बहुत अजीब नहीं है?*

बेटे, इसका एक गहरा रहस्य है । एक चूहा उन रस्सियों को काट कर अलग कर देता है जो हमें बांधती हैं| चूहा उस मन्त्र के समान है जो अज्ञान की अनन्य परतों को पूरी तरह काट सकता है, और उस परम ज्ञान को प्रत्यक्ष कर देता है जिसके भगवान गणेश प्रतीक हैं ।

*हमारे प्राचीन ऋषि इतने गहन बुद्धिशाली थे, कि उन्होंने दिव्यता व प्रेरणाओं को शब्दों के बजाय इन प्रतीकों के रूप में दर्शाया, क्योंकि शब्द तो समय के साथ बदल जाते हैं, लेकिन प्रतीक कभी नहीं बदलते । तो जब भी हम उस सर्वव्यापी गणेश जी का ध्यान करें, हमें इन गहरे प्रतीकों को अपने मन में रखना चाहिये, जैसे हाथी के सिर वाले भगवान, और उसी समय यह भी याद रखें, कि गणेशजी हमारे भीतर ही हैं । यही वह ज्ञान है जिसके साथ हमें यह गणेश चतुर्थी मनानी चाहिये ।*

चलो गणेश जी की बताई शिक्षा व प्रेरणा को ध्यान में रखते हुए चलो 5 बार गणेश गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं:-

*गणेश गायत्री मन्त्र*—ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

*विद्महे का भावार्थ है, अपनी बुद्धि(Key skill) में धारण करने को।*

*‘धीमहि’ कहते हैं–ध्यान(Meditation) को*।

*'तन्नो' या 'तन्न:'* - वह हमारे लिए (That for us)

*प्रचोदयात कहते है पवित्र(Proliferation) बनाने को*

भावार्थ - *उस मंगलमय प्रकाशवान परमात्मा गणेश जी का ध्यान हम करते है, जिन्हें मन बुद्धि और हृदय में धारण करने पर सब प्रकार की सुख-शान्ति, ऐश्वर्य, प्राण-शक्ति और परमपद की प्राप्ति होती है। वह हमारे हृदय को निर्मल और पवित्र बनाये। हमारा जीवन श्रेष्ठ बने, और हमारी बुद्धि और हृदय पवित्र-निर्मल बने, हम सन्मार्ग पर चले।*


क्रमशः....(अगली कड़ी - भाग 7 में)

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

*सभी गर्भ सम्वाद निम्नलिखित ब्लॉग पर उपलब्ध हैं:-*
http://awgpggn.blogspot.com/

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