Thursday, 1 August 2019

प्रश्न - *जीवन क्या है? जीना क्यों? और जीना कैसे चाहिए ? मार्गदर्शन करें जी..*



प्रश्न - *जीवन क्या है? जीना क्यों? और जीना कैसे चाहिए? मार्गदर्शन करें जी..*

उत्तर - आत्मीय भाई,

जब तक जान है व श्वांस चल रही है, साधारण परिभाषा व चिकित्सक के अनुसार व्यक्ति जीवित है व उसके पास जीवन है।

आध्यात्मिक परिभाषा में होश व चैतन्यता से जिन पलों को महसूस करते हुए पूर्णता से जीते हैं, वही जीवन है।


न जन्म हमारे हाथ में है और न ही मृत्यु हमारे हाथ में है। हमारे हाथ में जन्म से मृत्यु तक का समय है। यह समय हम कहाँ, कैसे, क्यों और कितना खर्च किसके लिए कर रहे हैं। वस्तुतः यही जीवन है।

*यह जीवन मनुष्य के लिए ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है।* इसकी गरिमा इतनी बड़ी है, जितनी संसार में किसी अन्य सत्ता की नहीं। *मानव जीवन ही वह अवसर है, जिसमें हम जो भी चाहें प्राप्त कर सकते हैं। इसका सदुपयोग हमें कल्पवृक्ष की भांति फल देता है।*

यदि अंतरात्मा से प्रश्न पूँछे कि *आखिर हम इस दुनिया में आए ही क्यों हैं* ? *जीवन जीना क्यों है?* तो अंतरात्मा जवाब देगी कि सामान इकट्ठा करने के लिए नहीं आये , एक आरामदायक जीवनशैली जीने के लिए नहीं आये , अपने परिवार के जीवन को जितना हो सके आरामदायक बनाकर फ़िर मर जाने के लिए तो नहीं आये हैं, *अब कोई यह माने या नहीं कि मृत्यु के बाद भी जीवन है या नहीं लेकिन एक बात तो साफ़ है कि हम संसार की इन वस्तुओं में से कोई एक भी अपने साथ नहीं ले जा सकते, क्योंकि हमारे पूर्वज भी न ले जा सके* ! तो फ़िर अपने जीवन को, वस्तुओं को हासिल करने और उनकी रक्षा करने में समर्पित करने का क्या औचित्य बनता है ? *धन कमाइए लेकिन उसे अपनी खुद की आत्म - सतुष्टि और खुशी से ज्यादा महत्वपूर्ण धन कमाने को मत बनाइए* धन को जीवनलक्ष्य मत बनाइये, क्योंकि मृत्यु के बाद एक सिक्का भी साथ नहीं ले जा सकेंगे ! "

वेद, पुराण, उपनिषद पढ़ेंगे तो आपको जवाब मिलेगा क़ि मनुष्य के जीवन का उद्देश्य है कि *अविद्या का नाश करना, सत्य ज्ञान की प्राप्ति करना, मैं क्या हूँ? यह जानना, स्वयं के अस्तित्व को पूर्णता प्रदान करना। हमारी आत्मा की पूर्णता परमात्मा से है। उसे पाने के लिए जन्म जन्मांतर तक प्रयासरत रहना। क्योंकि यह यात्रा आत्मा की है शरीर की नहीं, जैसे बस बदलने से यात्री की यात्रा को फर्क नहीं पड़ता, उसी तरह शरीर बदलने से आत्मा की यात्रा नहीं रुकती।*

*जीवन कैसे जियें यह प्रकृति व पुष्पों से सीखें* - प्रात: की सुगंधित मंद पवन बह रही थी। एक गुलाब का पुष्प खुशी से झूम रहा था। आसपास के पेड़-पौधों ने कहा, इतना मत इतराओ, शाम होते-होते ये नाजुक पंखुडियां मुरझा जाएंगी। पुष्प ने कहा, कोई बात नहीं, जितना जीवन है, उतनी देर तो खुश हो लूं। दूसरे पौधों ने फिर कहा, इतना झूमोगे तो माली की नजर में आ जाओगे और वह तुम्हें तोड़ कर ले जाएगा। शाम से पहले ही जीवन समाप्त हो जाएगा। क्या तुम्हें डर नहीं लगता? गुलाब के पुष्प ने सहज भाव से उत्तर दिया, हम कितना अच्छा जीवन जीते हैं, यह महत्व रखता है, कितना लंबा जीते हैं, वह नहीं। मेरे लिए मेरे जीवन का मतलब है चारों तरफ खुशबू और खुशी खुशबू फैलाना। यदि मेरी सुगंध का माधुर्य फैलने से मेरी मृत्यु भी आ जाती है, तो उसे मैं अविनाशी जीवन मानूंगा, परमात्मा ने जिस उद्देश्य से मुझे बनाया था वह जीवन मैंने पूर्णता से जिया यह मेरी उपलब्धि है। पुष्प की तरह हमें भी जितनी भी उम्र मिली है, उसे सहजता व सरलता से जीना चाहिए।

यदि हम अपने जीवन की सीमित समय सीमा में कुछ श्रेष्ठता पाना चाहते हैं, तो हमें उन विचारों और कार्यों को प्राथमिकता देनी होगी, जिससे मानव समाज का कल्याण हो। मानव और समाज के कल्याण करने की इच्छा मात्र से हमारी मानसिकता ऐसी हो जाती है कि अपना कल्याण, स्वार्थ न सोचकर केवल समाज हित और मानव कल्याण की ओर बढ़ जाते हैं। हमारा लक्ष्य केवल दीर्घायु पाना नहीं है। हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि जीवन की समय सीमा में जितना अधिक से अधिक हो सके श्रेष्ठता प्राप्त करें, कुछ सकारात्मक करें। *ईश्वर के निमित्त बनकर ईश्वर की बनाई सृष्टि की देखभाल करें, स्वयं के अस्तित्व की पहचान करें, इस सृष्टि के नियंता को जानने के लिए प्रयासरत रहें, ईश्वर का दिया जीवन ईश्वर के लिए जियें।*

🙏🏻 श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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