Thursday, 8 August 2019

कविता - *अहंता व भक्ति में से किसे चुनेंगे?*

कविता - *अहंता व भक्ति में से किसे चुनेंगे?*

बड़ा कठिन है स्वयं के दोष को जानना,
बड़ा कठिन है निज अहंता को पहचानना,
बड़ा कठिन है समर्पण के साथ भक्ति करना,
बड़ा कठिन है बिना पद के नेतृत्व करना।

बड़ा कठिन है निज अहंता को जीतना,
बड़ा कठिन है पद प्रतिष्ठा का मोह छोड़ना,
बड़ा कठिन है निष्काम भाव से भक्ति करना,
बड़ा कठिन है निर्मल हृदय भक्त बनना।

कुछ मनोकामना के लिए,
मिशन का कार्य करते हैं,
कुछ सम्मान के लिए,
मिशन का कार्य करते हैं,

कुछ कर्ता भाव लिए,
मिशन का कार्य करते हैं,
कुछ ही निमित्त बनकर,
मिशन का कार्य करते हैं।

सब कुछ न कुछ,
गुरु से माँगते रहते हैं,
कुछ बिरले ही,
सर्वस्व अर्पित करते है।

अहंता कहती है,
गुरुलक्ष्य की पूर्ति में,
केवल मेरा तरीका ही ठीक है,
भक्ति कहती है,
गुरुलक्ष्य की पूर्ति में,
सबका तरीका ठीक है।

*धन* से ज्यादा,
 *तप* का अहंकार घातक है,
*गुरुसेवा* का अहंकार,
*भक्तिपथ* में बाधक है।

अहंता और भक्ति के युद्ध में,
कोई एक ही शेष बचेगा,
भक्ति जीती तो ही,
हृदय में भगवान मिलेगा।

*मैं* को मिटाकर ही,
*उसे* पा सकते हैं,
*अहंता* को गलाकर ही,
*भक्ति* रस में रम सकते हैं।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

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