कविता - *मेरे सदगुरु मेरा जीवन*
जब जब मोह में भटकती हूँ,
तुम ही राह दिखाते हो,
न जाने किस विचार रूप में,
तुम मार्गदर्शन कर जाते हो।
जब भी गहन निराशा का,
अंधकार छा जाता है,
आशा की किरण,
मन मष्तिष्क में जगा देते हो।
तुम पर मेरा अटूट श्रद्धा-विश्वास,
अमृत की तरह कार्य करता है,
वैचारिक-सामाजिक परिस्थिति का विष,
इस अमृत से कट जाता है।
तुम्हारे चरणों की भक्ति मुझे,
बहुत आत्मशक्ति शक्ति देती है,
आँधितूफ़ान व विपत्तियों से लड़ने में,
यह शक्ति मदद करती है।
तुम्हारा युग साहित्य,
तुमसे प्रत्यक्ष बातें करवाता है,
तुम्हारे विराट प्रखर- प्रज्ञा स्वरूप का दर्शन,
यह स्वाध्याय में करवाता है,
तुम मेरे साथ,
कृष्ण की तरह हरपल रहते हो,
मेरे मार्गदर्शक की भूमिका,
आत्मगुरु बनकर निभाते हो।
मेरे बुद्धिरथ को,
हे कृष्ण रुपी जगतगुरु!
तुम ही तो सम्हाल रहे हो,
अपने मार्गर्दशन से,
जीवन का हर महाभारत,
मुझे जीता रहे हो।
गुरु दक्षिणा में,
मैं अकिंचन क्या दे सकती हूँ?
"करिष्ये वचनम तव",
का यह वादा तुमसे करती हूँ,
तन मन धन औ यह जीवन,
तुम्हारे चरणों में अर्पित करती हूँ।
अंतिम श्वांस तक,
तेरे आदेशानुसार ही हर कर्म करूंगी,
जब जब इस धरती पर पुनः जन्म लूँगी,
तेरे लिए ही जियूंगी और तेरे लिए ही मरूँगी,
जब धर्मस्थापना के लिए तुम अवतार लोगे,
तेरा अंग अवयव बनकर,
कार्य करने का प्रयास करूंगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
जब जब मोह में भटकती हूँ,
तुम ही राह दिखाते हो,
न जाने किस विचार रूप में,
तुम मार्गदर्शन कर जाते हो।
जब भी गहन निराशा का,
अंधकार छा जाता है,
आशा की किरण,
मन मष्तिष्क में जगा देते हो।
तुम पर मेरा अटूट श्रद्धा-विश्वास,
अमृत की तरह कार्य करता है,
वैचारिक-सामाजिक परिस्थिति का विष,
इस अमृत से कट जाता है।
तुम्हारे चरणों की भक्ति मुझे,
बहुत आत्मशक्ति शक्ति देती है,
आँधितूफ़ान व विपत्तियों से लड़ने में,
यह शक्ति मदद करती है।
तुम्हारा युग साहित्य,
तुमसे प्रत्यक्ष बातें करवाता है,
तुम्हारे विराट प्रखर- प्रज्ञा स्वरूप का दर्शन,
यह स्वाध्याय में करवाता है,
तुम मेरे साथ,
कृष्ण की तरह हरपल रहते हो,
मेरे मार्गदर्शक की भूमिका,
आत्मगुरु बनकर निभाते हो।
मेरे बुद्धिरथ को,
हे कृष्ण रुपी जगतगुरु!
तुम ही तो सम्हाल रहे हो,
अपने मार्गर्दशन से,
जीवन का हर महाभारत,
मुझे जीता रहे हो।
गुरु दक्षिणा में,
मैं अकिंचन क्या दे सकती हूँ?
"करिष्ये वचनम तव",
का यह वादा तुमसे करती हूँ,
तन मन धन औ यह जीवन,
तुम्हारे चरणों में अर्पित करती हूँ।
अंतिम श्वांस तक,
तेरे आदेशानुसार ही हर कर्म करूंगी,
जब जब इस धरती पर पुनः जन्म लूँगी,
तेरे लिए ही जियूंगी और तेरे लिए ही मरूँगी,
जब धर्मस्थापना के लिए तुम अवतार लोगे,
तेरा अंग अवयव बनकर,
कार्य करने का प्रयास करूंगी।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
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