कविता - *दोष हमारा ही है*
उम्र निकल जायेगी,
दोष देने में अगर,
ज्यों का त्यों बना रहेगा,
हमारा जीवन समर,
यदि कर्मफ़ल के सिद्धांत को,
हम समझेंगे नहीं,
अपने जीवन में जो हो रहा है,
उसकी जिम्मेदारी लेंगे नहीं,
तो दोष हमारा ही है।
ऑफिस में बॉस,
और घर में सास,
मौसम की तरह है,
जो बदले नहीं जा सकते,
केवल इनका प्रबन्धन सीख के,
इन्हें सम्हाला जा सकता है।
यदि प्रबन्धन में हम अकुशल हैं तो,
तो दोष हमारा ही है।
जीवनसाथी लोहे की तरह है,
हम पारस हुए तो,
वह स्वर्ण बन जायेगा,
यदि हम नहीं सम्हाल सके,
तो उसके व्यक्तित्व में जंग लग जायेगा।
यदि हम अपने चरित्र-चिंतन व्यवहार से,
उसे स्वर्ण में बदल नहीं सके,
तो दोष हमारा ही है।
रिश्ते की क़ामयाबी की चाबी,
हमारे भीतर ही है,
अगर दोषारोपण करके बाहर ढूंढेंगे,
तो कभी मिलेगी ही नहीं,
समस्या जहां है समाधान वहाँ है,
यह बात अगर हम समझेंगे नहीं,
तो दोष हमारा ही है।
जीवनसाथी अनाथ नहीं है,
यदि कैंची बनकर,
उसके माता-पिता से उसके सम्बन्ध काटेंगे,
उसे अनाथ बनाएंगे,
इससे उसका दिल दुःखेगा,
और बात बिगड़ेगी,
तो दोष हमारा ही है।
प्रेम को छीना व ख़रीदा नहीं जा सकता,
उसे प्रेम व सेवा देकर ही पाया जा सकता है,
प्रेम व सेवा से तो,
ईश्वर को भी वश में किया जा सकता है,
फ़िर तुच्छ मानव जीवनसाथी को,
वश में करना क्या मुश्किल है?
यह बात अगर हम समझेंगे नहीं,
तो दोष हमारा ही है।
क़ानून व रिश्तेदार के दबाव में,
प्रेम उपजेगा नहीं,
घर गृहस्थी बसेगा नहीं,
टूटे रिश्तों के तार जुड़ेगा नहीं,
यदि हम कानून व रिश्तेदारों से,
परिवार बसाने की चाह रखेंगे,
तो दोष हमारा ही है।
धर्म पालन से,
शुभ संस्कारों के जागरण से,
घर एक तपोवन बनेगा,
सुख शांति और आनन्द बरसेगा,
एक दूसरे के प्रति समर्पण से,
धरती का स्वर्ग परिवार बनेगा,
यदि यह जीवन सूत्र हम अपनाएंगे नहीं,
तो दोष हमारा ही है।
🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन
No comments:
Post a Comment